उच्चतम न्यायालय
भारतीय न्यायव्यवस्था के शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है. उच्चतम न्यायालय 26 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया और भारत के गणतंत्र बनने के दो दिन बाद यानी 28 जनवरी, 1950 को इसने काम करना प्रारंभ किया.
सर्वोच्च न्यायालय का गठन ( Build of Supreme Court )
संविधान के अनुसार भारत की शीर्ष न्यायपालिका यहाँ का सर्वोच्च न्यायालय है. संविधान के अनुसार इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा अधिक-से-अधिक सात न्यायाधीश होते हैं. संसद् कानून द्वारा न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन कर सकती है. न्यायाधीशों की संख्या में समय-समय पर बढ़ोतरी की जाती रही है.
वर्तमान समय में उच्चत्तम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश (कुल 31 न्यायाधीश) हैं. लेकिन इससे पहले फरवरी 2009 में इसकी संख्या 26 थी। यह वृद्धि उच्चतम न्यायालय संशोधन 2008 के अंतर्गत हुई थी।
मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है. मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से परामर्श अवश्य लेता है.
उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता–
यह नागरिकों के मूल अधिकार का गारंटी है और संविधान का अभिभावक है। इनकी वेतन व भत्ते संचित निधि से आते हैं। इसके फैसलों की कोई आलोचना नहीं कर सकता नहीं तो वह दंड का भागी होगा।
उच्चतम न्यायालय की शक्तियां व कार्य ( Powers and functions of the Supreme Court )
न्यायालय की यह एकल व्यवस्था भारत सरकार अधिनियम 1935 से ग्रहण की गई है। भारत में एकीकृत न्यायपालिका और मूल विधि व न्याय की एक प्रणाली है। उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 (1935 अधिनियम के तहत ) को हुआ था।
उच्चतम न्यायालय ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल का स्थान ग्रहण किया था, जो अब तक अपील का सर्वोच्च न्यायालय था। भारत के संविधान के भाग 5, अनुच्छेद 124 से 147 उच्चतम न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, शक्तियां आदि का उल्लेख है। इसकी स्थापना संसद द्वारा हुई थी।
संविदा राष्ट्रपति को दो मामलों में उच्चतम न्यायालय से राय लेने के लिए अधिकार देता है ( अनुच्छेद 143)
सार्वजनिक महत्व के किसी मसले पर विधिक प्रश्न उठाने पर( इसमें इनकार भी कर सकता है)
किसी पूर्व संविधानिक संदेश समझौते आदि किसी मसलों पर किसी विवाद के उत्पन्न होने पर( इसमें न्यायालय को अपना मत देना अनिवार्य है)।
राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में किसी प्रकार के विवाद का निपटारा करती है। संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के व्यवहार आचरण की जांच पड़ताल करता है तथा दोषी पाए जाने पर राष्ट्रपति से उसे हटाने की सिफारिश कर सकता है तथा राष्ट्रपति से मारने के लिए बाध्य नहीं है। यह स्वयं सुधार संस्था है। इसका वास्तविक न्यायिक क्षेत्र संघीय मामलों तक ही सीमित है।
उच्चतम न्यायालय की प्रक्रिया
उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद न्यायालय की प्रक्रिया और संचालन हेतु नियम बना सकता है । संवैधानिक मामलों एवं संदर्भों को राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत बनाया जाता है और न्यायाधीशों की पीठ (पांच न्यायाधीशों) द्वारा निर्मित किया जाता है अन्य मामलों का निर्णय सामान्यता तीन न्यायाधीशों की पीठ करती है । फैसले खुली न्यायालय द्वारा जारी किए जाते हैं । सभी निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं लेकिन मत भिन्नता हो तो न्यायाधीश इस असहमति का कारण बता सकता है ।
न्यायाधीश नियुक्ति-
भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति, अन्य न्यायाधीशों व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह पर करता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति मैं मुख्य न्यायाधीश का परामर्श आवश्यक है। इसके द्वारा दी गई सलाह राष्ट्रपति को माननी ही होगी।
मुख्य न्यायाधीश अपने 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाम व परामर्श से ही राष्ट्रपति को परामर्श देता है। मुख्य न्यायाधीश वरिष्ठतम न्यायाधीश मैं से ही चुना जाता है। उसके लिए उसे कम से कम किसी उच्च न्यायालय में 5 साल के लिए न्यायधीश होना चाहिए यह सभी मिलाकर 10 वर्षों का वकील होना परम आवश्यक है।
इसमें न्यूनतम आयु का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है। इन सभी को शपथ राष्ट्रपति दिलवाता है तथा इनका कार्यकाल भी नहीं किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ ( Supreme Court judges qualifications )
सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश वही व्यक्ति हो सकता है, जो –
- भारत का नागरिक हो
- कम-से-कम 5 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो
- कम-से-कम 10 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय में वकालत कर चुका हो या
- राष्ट्रपति के विचार में सुविख्यात विधिवेत्ता (कानून ज्ञाता) हो
शपथ :-
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, तीसरी अनुसूची के अनुसार शपथ ग्रहण करते हैं
- उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की सेवानिवृत्त की आयु 65 वर्ष है।
कार्यकाल तथा वेतन ( Tenure and salary )
सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रह सकते हैं. 65 वर्ष की आयु के पूर्व भी वे राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर पद मुक्त हो सकते हैं. राष्ट्रपति उनको अवकाश प्राप्ति से पूर्व भी संसद् द्वारा पारित महाभियोग प्रस्ताव के बाद पद से हटा सकते हैं. अभी तक इस प्रक्रिया द्वारा सर्वोच्च या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को हटाया नहीं गया है.
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 1 लाख रुपये प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीशों का वेतन 90 हज़ार रुपये प्रति माह निर्धारित किया गया है.
निष्काशन प्रस्ताव-
100 सदस्यों( लोकसभा) या 50 सदस्यों( राज्यसभा के मामलों में) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद अध्यक्ष या सभापति को दिया जाना चाहिए वह उसे शामिल भी कर सकता है तथा अश्वीकरा भी और बाद में उसे राष्ट्रपति को दे देता है।अब तक किसी पर भी महाभियोग नहीं चला है। इनको सारी सुविधाएं पेंशन, भत्ते, निशुल्क आवास आदि मिलते हैं जोकि संसद निर्धारित करती है। राष्ट्रपति एक कार्यकारी न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है।
जब मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या उसकी अनुपस्थिति में मुख्य न्यायाधीश का कार्य संभालता है। जब कभी कोरम पूरा ना हो तो मुख्य न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अस्थाई कॉल के लिए नियुक्त करता है तथा उसे सभी शक्तियां उच्चतम न्यायालय की प्राप्त होती हैं लेकिन ऐसा केवल राष्ट्रपति की पूर्व सलाह के बाद ही किया जाता है।
उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपतिकी सलाह पर उच्चतम न्यायालय में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है। उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद न्यायालय की प्रक्रिया और संचालन हेतु नियम बना सकता है।
उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता :
- वरिष्ठ अधिवक्ता:- ये वे अधिवक्ता होते है, जिन्हें उच्चतम न्यायालय वरिष्ट अधिवक्ता की मान्यता देता है।न्यायालय ऐसे किसी भी अधिवक्ता को,जो उसकी नजर में ख्यात विधिवेत्ता हो,कानूनी मामलों में पारंगत हो,संविधान का विशेष ज्ञान रखता हो,तथा बार की सदयस्ता प्राप्त हो,उसकी सहमति से वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त कर सकता है।
- एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड:- केवल इस प्रकार के अधिवक्ता ही उच्चतम न्यायालय के समक्ष किसी प्रकार का रिकॉर्ड पेश कर सकते है एवं अपील फ़ाइल कर सकते है। ये किसी पार्टी की ओर से भी उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश भी हो सकते है।
- अन्य अधिवक्ता:– ये वे अधिवक्ता होते हैं, जिनका नाम अधिवक्ता अधिनियम,1961 के अंतर्गत किसी बार काउंसिल में दर्ज होता है।ये किसी पार्टी की ओर से उच्चतमन्यायालय के समक्ष पेश हो सकते हैं तथा बहस कर सकते है।लेकिन इन्हें उच्चतम न्यायालय में कोई दस्तावेज या मामला दायर करने का अधिकार नहीं होता है।
सवैधानिक स्थिति ( Constitutional status )
भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है जिसे भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है। भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त हैं। भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारतीय संविधान के संरक्षक की है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों की नींव हैं। उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय अदालत है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है।
इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्च्तम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है। भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को हुआ