सल्तनत काल- खिलजी वंश
खिलजी वंश
खिलजी वंश:— खिलजी क्रांति से तात्पर्य है – सत्ता पर तुर्की अमीर वर्ग के एकाधिकार की समाप्ति। अब श्रेष्ठ पद जातीय व नस्लीय आधार पर नहीं अपितु योग्यता के आधार पर किए जा सकते थे।
बलबन का राजस्व सिद्धांत जो कि रक्त की शुद्धता व उच्च कुलीनता पर आधारित था, खिलजी काल में समाप्त हो गया। अतः खिलजी क्रांति प्रशासन में व्यापक स्थानीय भागीदारी की दिशा महत्वपूर्ण थी। यद्यपि खिलजी सुल्तान भी तुर्क थे पर उन्होंने गैर तुर्कों को भी प्रशासन में शामिल किया। साम्राज्यवादी व आर्थिक नीतियों में उग्र व प्रबल परिवर्तन भी हुए। इतिहासकार हबीब ने इन परिवर्तनो को खिलजी क्रांति कहा है।
ख़िलजी वंश का संस्थापक- जलालुद्दीन ख़िलजी (1290-1296 ई)
जलालुद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत में एक नवीन राजवंश, खिलजी वंश की स्थापना की। जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने उदार निरंकुशवाद को शासन का आधार बनाया। इसका दृष्टिकोण हिंदू जनता के प्रति उदार था।
खिलजी वंश की स्थापना ‘खिलजी क्रांति’ के नाम से प्रसिद्ध है। जलालुद्दीन खिलजी ने कैकुबाद द्वारा बनवाए गए किलोखरी महल में अपना राज्याभिषेक करवाया।
मुसलमानों का दक्षिण भारत का प्रथम आक्रमण जलालुद्दीन के शासनकाल में देवगिरी के शासक रामचंद्र देव पर हुआ। इस आक्रमण का नेतृत्व अलाउद्दीन खिलजी ने किया था।
जलालुद्दीन ने भारतीय हिन्दू समाज के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया। इसके शासनकाल में लगभग दो हजार मंगोल इस्लाम धर्म स्वीकार के दिल्ली के निकट बस गए।
जलालुद्दीन खिलजी की हत्या 1296 ईस्वी में उसके भतीजे अलाउद्दीन खिलजी ने छलपूर्वक की और खुद सुल्तान कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
अलाउद्दीन ख़िलजी ( 1296-1316ई )
अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शिहाबुद्दीन खिलजी था जो जलालुद्दीन खिलजी का भाई था जलालुद्दीन खिलजी ने अपनी पुत्री का विवाह अल्लाउद्दीन खिलजी से किया अलाउद्दीन खिलजी ने जलालुद्दीन खिलजी की हत्या करवाई एवं सत्ता हासिल की
जलालुद्दीन खिलजी को मारने का षड़यंत्र अलाउद्दीन खिलजी उलूक खां जो अलाउद्दीन खिलजी का भाई था और मोहम्मद सलीम ने रची दक्षिणी भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम मुसलमान सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी था, जो विजय प्राप्त सुल्तान था
अलाउद्दीन खिलजी को मानकपुर में सुल्तान घोषित किया गया एवं राज्य अभिषेक दिल्ली में बलवन के लाल किले में हुआ
प्रारंभिक नाम- अली गुरशास्प
अलाउद्दीन खिलजी को इन नामों से भी जाना जाता है
1 जनता का चरवाहा
2 खलीफा का नायब
3 सिकंदर ए सानी
4 सिकंदर द्वितीय
5 यामीन उल खिलाफत
6 नासिरी अमीर उल मौममिन
7 विश्व का सुल्तान
8 पूर्व मध्यकालीन इतिहास का राजनीतिक अर्थशास्त्रज्ञ
अलाउद्दीन खिलजी के समय कोई विद्रोह हुए जिनमें से प्रमुख➖
- 1 गुजरात विजय के पश्चात् लूट के माल को लेकर नव मुसलमानों ने विद्रोह किया यह रणथंबोर के शासक हम्मीर देव से जा मिले।
- 2 अकत खां का विद्रोह
- 3 मलिक उमर (बदायूं का गवर्नर) एवं मंगू खां (अवध का गवर्नर) का विद्रोह
- 4 दिल्ली में हाजी मौला का विद्रोह
विद्रोह का दमन करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने कई प्रयास किए➖
- 1 अमीर वर्गों की संपत्ति जब्त
- 2 गुप्तचर प्रणाली का गठन
- 3 दिल्ली में शराबबंदी
- 4 त्योहारों पर रोक
अलाउद्दीन खिलजी का राजत्व सिद्धांत
अल्लाउद्दीन खिलजी को जिल्ले इलाही माना गया परंतु यह सिद्धांत शरीयत के सिद्धांत पर आधारित नहीं था। इसमें इस्लामी सिद्धांतों का सहारा नहीं लिया गया,धर्म को राजनीति से अलग रखा इसमें इस्लामी सिद्धांतों का सहारा नहीं लिया गया। धर्म को राजनीति से अलग रखा।
अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन खिलजी के राजत्व सिद्धांत का प्रतिपादन किया अलाउद्दीन खिलजी ने खलीफा की सत्ता को मान्यता दी लेकिन प्रशासन में उनके हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया उसने इस्लाम, उलेमा, खलीफा किसी का सहारा नहीं लिया और निरकुशं राजतंत्र में विश्वास किया
अलाउद्दीन खिलजी ने बलबन की जातीय नीति को त्याग दिया और योग्यता के आधार पर पदों का विवरण किया।
अलाउद्दीन खिलजी सल्तनत का विस्तार करने के लिए भारत के कई क्षेत्रों में अभियान चलाया
1 उत्तर भारत पर किए गए अभियान
1. गुजरात अभियान- अलाउद्दीन खिलजी का पहला सैन्य अभियान 1298 में गुजरात के विरुद्ध था। इस अभियान का नेतृत्व उलूग खां एवं नुसरत खां ने किया गुजरात का बघेल राजपूत कर्ण देव तृतीय(रायकरन) पराजित हुआ
गुजरात मार्ग में जैसलमेर को विजित किया गया गुजरात अभियान से ही मलिक काफूर को लाया गया। इसे 1000 दीनार में खरीदा गया इसी कारण ही हजार दीनारी भी कहा जाता है।
2. रणथंबोर अभियान-
उलूग खां एवं नुसरत खां के नेतृत्व में रणथंबोर का आक्रमण किया गया पहले प्रयास मैं रणथंबोर के आक्रमण को हम्मीर देव ने विफल किया और नुसरत खान जो अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति था मारा गया इसके बाद स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंबोर आक्रमण की कमान संभाली
राणा हमीर देव के प्रधान-मंत्री रणमल ने धोखा किया अंततः अमीर देव पराजित हुआ एवं मारा गया हम्मीर काव्य के अनुसार रति पाल एवं कृष्णपाल इस पराजय के प्रमुख कारण थे इस अभियान में नव मुसलमानों ने राणा हमीर का साथ दिया हम्मीर देव की मृत्यु के पश्चात रणथंबोर की राजपूत महिलाओं ने जोहर किया। राजस्थान में जौहर का यह प्रथम प्रमाण था।
जौहर – जोहर के दौरान एक अग्निकुंड बनाया जाता था पुरुषों द्वारा युद्ध में जाते समय केसरिया वस्त्र धारण किए जाते थे यह केसरिया करना कहा जाता था यदि युद्ध में राजा मारा जाता तो रानी एवं अन्य स्त्रियां अपने स्वाभिमान, इज्जत की रक्षा करने के लिए उस अग्नि कुंड में कूदकर जान देती थी एवं अपने गौरव एवं सतीत्व की रक्षा करती थी।
3. चित्तौड़गढ़ पर अभियान-
चित्तौड़ पर आक्रमण 1303 ईस्वी में किया गया। इस आक्रमण का नेतृत्व स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने किया इसके आक्रमण के पीछे कई कारण थे जैसे➖
- 1 चित्तौड़ का किला सामरिक महत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण था
- 2 राजा रतन सिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करना अल्लाउद्दीन खिलजी की एक लालसा थी। (मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत के अनुसार)
आखिरकार अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और राणा रतन सिंह को वीरगति प्राप्त हुई एवं रानी पद्मिनी ने जौहर किया दो वीर सैनिक गोरा एवं बादल वीरगति को प्राप्त हुए अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। चित्तौड़ को अपने पुत्र को सुपुर्द कर दिया और इसका नाम खिज्राबाद कर दिया
इस अभियान में अमीर खुसरो अलाउद्दीन खिलजी के साथ था परंतु अमीर खुसरो ने पद्मावती की घटना का कोई उल्लेख नहीं किया
4. मालवा पर अभियान-
इस अभियान का नेतृत्व आइनु मुल्क मुल्तानी ने किया मालवा का शासक महलकदेव भाग गया एवं मालवा भी दिल्ली सल्तनत के कब्जे में आ गया
5. सिवाना पर अभियान-
सिवाना के शासक सातलदेव एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। अलाउद्दीन खिलजी की ओर से कमालुद्दीन कुर्ग ने नेतृत्व किया युद्ध में सातलदेव वीरगति को प्राप्त हुआ यहां भी राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया
अलाउद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रख दिया और इस दुर्ग संरक्षक कमालुद्दीन को नियुक्त किया।
6. जालौर पर अभियान –
जालौर शासक कान्हड़देव और अलाउद्दीन खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। जिसका नेतृत्व कमालुद्दीन ने किया।कान्हड़देव को वीरगति प्राप्त हुई
2 दक्षिणी भारत पर किए गए अभियान
1. देवगिरी अभियान – अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय देवगिरी में सेना नहीं थी उस वक्त रामचंद्र का पुत्र सिंघणदेव अपनी सेना दक्षिण अभियान के लिए ले गया था अलाउद्दीन खिलजी ने यहां पर जनता को जी भर कर लूटा। रामचंद्र ने संधि प्रस्ताव भेजा परंतु सिंघणदेव ने युद्ध करने का निश्चय किया।
सिंघणदेव की सेना युद्ध छोड़कर भाग गई। यह देख कर सिघंणदेव ने संधि की फिर से पेशकश की। अलाउद्दीन खिलजी ने कठोर मांगों के साथ संधि स्वीकार की और कर देने का वचन दिया देवगिरी अभियान के समय अलाउद्दीन खिलजी ने अपार धन प्राप्त किया
2. देवगिरी का द्वितीय अभियान-
देवगिरी के शासकों ने 2- 3 वर्ष तक अलाउद्दीन खिलजी को कर देना बंद कर दिया। इस कारण देवगिरी पर अलाउद्दीन खिलजी ने फिर से आक्रमण किया गया। इस आक्रमण के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने रामचंद्र को ‘रायरायने की उपाधि” प्रदान की एवं गुजरात में “नवसारी” की जागीर प्रदान की।
इसका उद्देश्य अलाउद्दीन खिलजी दक्षिणी भारत पर विजय के लिए एक भरोसेमंद साथी चाहता था
3. देवगिरी का तृतीय अभियान-
रामचंद्र देव के पुत्र सिंघणदेव सिंहासन पर बैठते ही अधीनता के सब लक्षणों को त्याग दिया एवं स्वतंत्र शासक की भांति कार्य करने लगा। मलिक काफूर को आक्रमण के लिए भेजा गया, जिसमें सिंघणदेव मारा गया। रामचंद्र के दामाद हरपाल देव को गद्दी पर बैठाया गया।
4. तेलंगाना अभियान-
इस अभियान का नेतृत्व मलिक काफूर ने किया एवं देवगिरी के शासक रामचंद्र ने मलिक काफूर का पूरा सहयोग किया वारंगल के शासक ने बिना युद्ध किए अधीनता स्वीकार की एवं प्रतीक के रूप में सोने की एक मूर्ति जिसके गले में सोने की जंजीर थी, भेंजी।
वारंगल के शासक रुद्र प्रताप ने हाथी,घोड़े,सोना, चांदी आदि दिए। कोहिनूर हीरा मलिक काफूर ने यहीं से प्राप्त किया।
5. होयसल अभियान या द्वार समुद्र की विजय-
होयसल राज्य पर बल्लाल तृतीय का शासन था, इस अभियान का नेतृत्व मल्लिक काफूर ने किया। देवगिरी शासक रामचंद्र ने काफूर की सहायता की। आक्रमण के समय बल्लाल पांड्य राज्य के गृह युद्ध में वीर पांड्य की सहायता करने के लिए दक्षिण की ओर गया हुआ था।
बल्लाल ने प्रतिवर्ष कर अदा करने की संधि की। तथा बहुत अधिक मात्रा में सोना चांदी हीरे मोती आदि सुपुर्द किए। बल्लाल को अपने अगले अभियान में सहायता के लिए विवश किया
6. पंड्या अभियान या मदुरा पर विजय-
होयसल सफल अभियान के बाद मलिक काफूर पांडेय राज्य की ओर बढ़ा। इस अभियान में बलाल तृतीय ने मलिक काफूर की मदद की पांडेय शासक के 2 पुत्र सुंदर पांडेय एवं वीर पांडेय के बीच सिंहासन को लेकर गृह युद्ध चल रहा था।
मलिक काफूर ने सुंदर पंड्या का पक्ष लिया, मलिक काफूर,वीर पांडेय को हरा नहीं सका। युद्ध में वीर पांडेय जीता एवं सुंदर पांडेय को बाहर निकाल दिया। इस अभियान में मलिक काफूर ने नगरों भवनों मंदिरों को लूटा परंतु वीर पांडेय से न जीत सका।
बलाल तृतीय को दिल्ली बुलाया गया,उसकी सहायता से प्रसन्न होकर अलाउद्दीन खिलजी ने उपहार स्वरूप किल्लत,एक मुकुट और छत्र तथा 10 लाख टंका मुद्राएं प्रदान की। यह विजय राजनीतिक दृष्टि से महत्वहीन परंतु आर्थिक दृष्टि से महान विजय थी
तुर्की सुल्तानों में अलाउद्दीन खिलजी प्रथम शासक था जिसने
- घोड़ों को दागने की प्रथा प्रारंभ की।
- विशाल तथा स्थाई सेना का गठन किया।
- सैनिकों को नगद वेतन दिया।
- भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया।
- राज्य की नीति निर्धारण में उलेमा वर्ग का कोई दखल सहन नहीं किया। धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया।
- बाजार नियंत्रण व्यवस्था- अलाउद्दीन द्वारा प्रारंभ (सर्वप्रथम)। राजकीय अन्नागार राशनिंग व्यवस्था की स्थापना की।
- वेश्यावृत्ति पर प्रतिबंध लगाया।
- दक्षिण भारत को जीतने और दिल्ली से उसे अपने अधीन रखने में सफल प्रयास किया।
अलाउद्दीन खिलजी द्वारा प्रशासन में कुछ पदों का सृजन किया गया
- दीवान-ए-वजारत- इसका प्रमुख वजीर होता था। इसका मुख्य विभाग वित्त विभाग था। वजीर राजस्व एकत्रीकरण का कार्य करता था
- दीवान-ए-आरिज – यह सैनी मंत्री होता था। सेना की भर्ती,वेतन बांटना
- दीवान-ए-इंशा – इसका कार्य शाही आदेशों एवं पत्रों का प्रारूप तैयार करना था
- दीवान-ए-रसालत – पड़ोसी राज्य में भेजे जाने वाले पत्रों का प्रारूप तैयार करता था विदेशी राजदूतों से संपर्क रखता था
- दीवान-ए-रियासत – अलाउद्दीन खिलजी ने यह नया मंत्रालय स्थापित किया इसका प्रमुख कार्य राजधानी के आर्थिक मामलों की देखभाल करना। व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण रखना था।
- मुहतसिब- बाजारों पर नियंत्रण. नाप-तौल का निरीक्षण
- बरीद ए मुमालिक – गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी
खिलजी वंश स्मरणीय तथ्य ( Memorial facts )
- अमीर_खुसरो फारसी विद्वान, चित्तौड़ विजय के समय अलाउद्दीन खिलजी के साथ था।
- इस दौरान पहली बार किसी समसामयिक लेखक द्वारा जोहर का विवरण (1303) लिखा गया। (खजाइल उल फुतूह ग्रंथ में)
- अमीर_खुसरो के उपनाम- तूतिया ए हिंद, हिंदुस्तानी तुर्क, तुर्क अल्लाह।
- अमीर_खुसरो बलबन से गयासुद्दीन तुगलक तक आठ सुल्तानों के शासनकाल का प्रत्यक्षदर्शी रहा।
- अमीरखुसरो द्वारा रचित ग्रंथ –
- तारीख ए अलाई , नरसिपेहर, तुगलकनामा, आशिकी, किरानुस्सादेन।
- अलाउद्दीन का सेनापति मलिक काफूर दक्षिण विजय का श्रेय इन्हें ही जाता है। उनका उपनाम हजार दिनारी था।
- अलाउद्दीन के काल में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण हुए थे।
- अला उल मुल्क अलाउद्दीन खिलजी का सलाहकार, दिल्ली का कोतवाल, एकमात्र व्यक्ति जो अलाउद्दीन को सलाह देने का साहस करता था।
- शहना ए मंडी – अलाउद्दीन खिलजी द्वारा गठित गल्ला अथवा खाद्यान्न बाजार का अधीक्षक जिसका मुख्य कार्य है मूल्यों पर नियंत्रण रखना था पहला शहना मलिक कबूल था।
- बरीद – माल क्रय विक्रय की सूचना सुल्तान को भेजने वाला अधिकारी।
- दीवान ए मुस्तखराज – अलाउद्दीन खिलजी द्वारा स्थापित राजस्व विभाग।
- दीवान ए रियासत – अलाउद्दीन खिलजी द्वारा स्थापित नया पद जिसका कार्य व्यापारी वर्ग पर कठोर नियंत्रण रखना था मलिक याकूब इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था।
- मुनहियान – अलाउद्दीन के समय का गुप्तचर विभाग।
- कुतुबुद्दीन मुबारक शाह सल्तनत काल का प्रथम शासक था जिसने स्वयं को खलीफा घोषित किया, खलीफा तुल्लाह (खिलाफत उल लह) की उपाधि धारण की।
- अलाउद्दीन ख़लजी ने किस शासक को ‘ रायरायान ‘की पदवी दी –रामदेव को
- किस अभिलेख में कहा गया है कि ,” अलाउद्दीन ख़लजी के देवातातुल्य शौर्य से पृथ्वी अत्याचारों से मुक्त हो गयी ।” जोधपुर लेख
- किसने कहा कि ,”अलाउद्दीन के द्वारा विजित किलों की गणना कौन कर सकता है ।”- कक्क सूरी
- अलाउद्दीन ख़लजी के योग्य सेनापति थे -उलूग खाँ, नूसरत खाँ, मलिक काफूर, ग़ाजी मलिक ।
- अलाउद्दीन ख़लजी को सेनापतियों का सेनापति के रूप में स्मरण किया जाता है ।
- होयसाल राजा बल्लाल के दिल्ली जाने एवं अलाउद्दीन ख़लजी के द्वारा उसके स्वागत का विवरण दिया है – इसामी ने ।
- मलिक काफूर के माबर अभियान के समय उसकी सहायता किस शासक ने की थी – होयसाल राजा बल्लाल देव ने ।
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के शासन का समय रहा है –(1290-96) जलालुद्दीन फिरोज खिलजी
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी दिल्ली की गद्दी पर कब बैठा -1290 ई.
- सुल्तान बनने से पहले जलालुद्दीन क्या था –बुलंदशहर का इफ्तादार
- नवीन मुसलमान किसे कहा गया –दिल्ली में बसने वाले मंगोलों को ।
- किसने जलालुद्दीन फिरोज खिलजी की हत्या कर दिल्ली की गद्दी हासिल की – अलाउद्दीन खिलजी (1296 ई. में)
- अलाउद्दीन खिलजी के शासन का समय रहा है -(1296-1316 ई.) अलाउद्दीन खिलजी
- जलालुउद्दीन खिलजी के शासन में अलाउद्दीन क्या था – ड़ा-मानिकपुर का सुबेदार
- उसने देवगिरी पर कब आक्रमण किया –1296 ई.
- सिकंदर-ए-सानी की उपाधि किसने ग्रहण की –अलाउद्दीन
- अलाउद्दीन के समय किसने दिल्ली में विद्रोह किया था –हाजियों ने ।
- हाजियों के विद्रोह को किसने खत्म किया –हमीदुद्दीन
- अलाउद्दीन ने कौन-सा सिद्धांत चलाया था –दैवी अधिकार
- अलाउद्दीन खिलजी ने सेना में कौन-सी प्रथा शुरू की –हुलिया रखने की प्रथा
खिलजी वंश खिलजी वंश खिलजी वंश खिलजी वंश खिलजी वंश खिलजी वंश खिलजी वंश खिलजी वंश