जैन जिन शब्द से बना है जिसका अर्थ है इंद्रियों पर नियंत्रण करना
तीर्थंकर
तीर्थंकर से तात्पर्य है ऐसा व्यक्ति जो अपने ज्ञान के माध्यम से मानव को
इस संसार रूपी भवसागर से पार करने में मदद करें
कुल तीर्थंकर 24 माने गए हैं
1 ऋषभदेव
2 (22) अरिष्ट नेमी
3 (23) पार्श्वनाथ
महावीर
स्वामी की फोटो http://www.goldenclasses.com/जैन-धर्म/
चार महाव्रत
1 सत्य
2 अहिंसा
3 अस्तेय — चोरी नहीं करना
4 अपरिग्रह — जरूरत से ज्यादा संग्रह नहीं करना
महावीर स्वामी के द्वारा पांचवा महाव्रत ब्रह्मचर्य जोड़ा गया
महावीर स्वामी
जन्म – 540 ईसा पूर्व
स्थान – वैशाली के कुंड ग्राम नामक स्थान पर
पिता – सिद्धार्थ
माता – त्रिशला
पत्नी – यशोदा
पुत्री – प्रियदर्शना
महावीर स्वामी को जुंमबिक ग्राम के समीप रिजुपालिका नदी के किनारे
साल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई इसके बाद महावीर स्वामी निम्न नामों से जाने गए
1 अर्ह – योग्य
2 निर्ग्रन्थ – बंधन रहित
3 जिन – विजेता
468 ईसा पूर्व में पावा में महावीर स्वामी की मृत्यु हुई जो मल्ल महाजनपद की राजधानी थी
जैनधर्म की शिक्षाएं
जैन धर्म ईश्वर व आत्मा दोनों में विश्वास करता है
परंतु इन दोनों का स्थान 24 तर्थंकरों के नीचे रखा गया
जैनधर्म स्यादवाद में विश्वास करता है
जैनधर्म के त्रि रत्न—
1 सम्यक श्रद्धा
2 सम्यक के ज्ञान
3 सम्यक आचरण
आश्रव
कर्म का जीव की और प्रवाह आश्रव कहलाता है
सर्वर
कर्म का प्रवाह जीव की और रुक जाना सर्वर कहलाता है
बंधन
कर्म का जीव में संयुक्त हो जाना बंधन कहलाता है
निर्जरा
जीव मै से जब बुरे कर्मों का नाश हो जाए तब यह स्थिति निर्जरा कहलाती है
निर्जरा के बाद जीव को अनंत चतुष्टय की प्राप्ति होती है जिसमें अनंत ज्ञान
अनंत दर्शन अनंत वीर्य (तेज) व अनंत सुख शामिल है
सल्लेखना
सल्लेखना से तात्पर्य है सत्य का लेखा जोखा जैन धर्म में जलन को त्याग कर
अपनी जीवन लीला समाप्त करना इसको सल्लेखना कहा गया
चंद्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर सल्लेखना पद्धति के द्वारा अपने प्राणों का त्याग किया था
जैन धर्म में अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है
जैन संगीति
चंद्रगुप्त मौर्य के काल में 300 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में स्थूलभद्र के नेतृत्व में
पहली जैन संगीति का आयोजन किया गया
यहां जैन धर्म दो भागों में बट गया
1 श्वेतांबर
2 दिगंबर
दूसरी जैन संगीति
इस संगीति का आयोजन 513 ईस्वी में गुजरात के बल्लवी नामक स्थान पर किया गया
इस जैन संगीति का नेतृत्व देवरदीक्षमाश्रमण के द्वारा किया गया यहां जैन साहित्य की रचना हुई जिन्हें आगम कहा गया
सभी सभी परीक्षाओं में इसमें से सवाल आता है इसलिए पढ़ें और आगे शेयर करें
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