नागरिकता समानता & विकास
समानता
अवसर की समानता का 2 व्यवहारिक पक्ष
1.सकारात्मक क्रिया
यह व्यवस्था अमेरिका में प्रचलित है, जिसके द्वारा अश्वेतों के सामाजिक, आर्थिक, एवं शैक्षिक उत्थान के लिए सरकार विश्वविद्यालय द्वारा कुछ विशेष उपाय एवं प्रबंध किए जाते है।
सकारात्मक क्रिया के अंतर्गत अमेरिका में विश्ववविद्यालयो में अश्वेतों के काम अंको पर प्रवेश दिया गया।अश्वेतों के लिये सीट आरक्षित कि गयी।
भारत में अवसर की समानता ( Equality of opportunity in India )
भारतीय संविधान में अवसर की समानता को संरक्षणात्मक विभेद या विधि के समक्ष समान संरक्षण की संज्ञा भी दी जाती हैं।
इसके अंतर्गत पिछड़े वर्ग के लोगों को सेवाओं में आरक्षण प्रदान किया जाता है।
यह विभेद संरक्षणात्मक है।क्योंकि समाज के वंचित वर्गों के संरक्षण एवं उत्थान के लिए यह विभेद आवश्यक है।
परिणामो की समानता या अवसर की समानता -इसका समर्थन मार्कशवादी विचारक करते हैं। परिणामो की समानता का आशय ,सभी व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति को समान बना देना है।_
समानता से सम्बंधित कुछ प्रमुख पुस्तकें (Some major books related to equality)–
1. बेट्टी फ्रीडन-
A.The feminine mystique
B. The second stage
2.जेर्मिन ग्रिर की पुस्तकें
1.sex and destiny 1984
2.The female eunuch 1970
3. साइमन द बुआ-
1.The second sex 1949
2.The personal is poitical 1970
4. वर्जिनिया वुल्फ की पुस्तकें- A room of one’s own 1929
5. केरोल गिलीगंन की पुस्तकें- In a different oice 1982
नागरिकता {Citizenship}
नागरिकता की परिभाषा- नागरिकता राज्य में व्यक्ति की स्थिति को स्पष्ट करती है। यह वह कानूनी स्थिति है, जिसके द्वारा नागरिकों को राज्य का अधिकार मिलता है और उन्हें राज्य के प्रति कुछ कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है।
- लॉस्की- “अपनी शिक्षित बुद्धि को लोकहित के लिए प्रयुक्त करना ही नागरिकता है।”
- गेटेल- “नागरिकता किसी व्यक्ति की उस स्थिति को कहते हैं, जिसके अनुसार वह अपने राज्य में साधारण तथा राजनीतिक अधिकारों का उपयोग कर सकता है और कर्तव्य का पालन करने के लिए तैयार रहता है।”
- डॉ.विलियम बॉयड- “नागरिकता कर्तव्यों के उचित क्रम निर्माण पर अवलंबित है।”
राष्ट्रीयता एवं नागरिकता में अंतर
- राष्ट्रीयता से तात्पर्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत उस विधि संबंध से है जो राष्ट्र तथा व्यक्ति के बीच उत्पन्न होता है।
- नागरिकता से तात्पर्य उस विधि से संबंध होता है जो व्यक्ति तथा राज्य विधि के बीच होता है।
- राष्ट्रीयता द्वारा किसी व्यक्ति के नागरिक, प्राकृतिक तथा अन्य अधिकार अंतरराष्ट्रीय विधि के अंतर्गत आते हैं, जबकि नागरिकता के आधारों का संबंध राज्य-विधि से हैं।
- नागरिक किसी देश-विदेश की राष्ट्रीयता वाले हो सकते हैं, परंतु यह आवश्यक नहीं कि वह सभी व्यक्ति किसी देश-विदेश वाले उस देश के नागरिक हो।
- नागरिक वे व्यक्ति होते है, जिनको उस देश में संपूर्ण राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं, किंतु वह व्यक्ति जिन्हें किसी देश विशेष कि केवल राष्ट्रीयता प्राप्त है,
- पूर्ण राजनीतिक अधिकारों को अपने अधिवासी देश में प्राप्त कर भी सकते हैं और नहीं भी।
नागरिकता के विभिन्न सिद्धांत ( Different Principles of Citizenship )
- मार्क्सवादी सिद्धांत- मार्क्सवाद के अनुसार, नागरिकता का प्रश्न वर्ग-संघर्ष की उपज है।
- मार्शल ने जहाँ नागरिकता का विकास सरल रेखीय बताया तो गिडेंस ने टेढा-मेढ़ा।
- बहुलवादी सिद्धांत- नागरिकता का बहुलवादी सिद्धांत अधिकारों तथा कर्तव्य में अभेद स्थापित करता है। प्रमुख विचारक- बी.एस. टर्नर, डेविड हेल्ड।
- समुदायवादी सिद्धांत- यह सिद्धांत स्वेच्छातंत्रवाद की प्रतिक्रियास्वरुप अस्तित्व में आया।
- नागरिक सहभागिता इसका मूलमंत्र है। इसके समर्थक विद्वान है- वाल्ज़र, हन्ना आरेंट और बार्कर।
- उदारवादी सिद्धांत- इस सिद्धांत का प्रवर्तक टी.एच.मार्शल है।
- उन्होंने अपने ग्रंथ ‘सिटीजनशिप एंड सोशियल क्लास’ 1950 में नागरिकता का मूलाधार नागरिक अधिकारों को माना है।
- स्वेच्छातंत्रवादी सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार बाजार-समाज ही नागरिक जीवन का आधार है।
नागरिकता प्राप्ति के तरीके ( Methods of citizenship )
- रक्त वंश सिद्धांत (Kinship Theory)
- जन्म स्थान सिद्धांत (Native Place Theory)
- द्वैध सिद्धांत (Daul Theory)
- देशीयकरण (Naturalization)
- निश्चित अवधि तक निवास (Stay for a Certain Duration)
- विवाह (Marriage)
- सरकारी सेवा (Government Service)
- संपत्ति अर्जन (Acquisition of Property)
- प्रार्थना पत्र द्वारा (By way of Application)
- गोद की प्रथा (Adoption)
- विजय (Victory)
- विद्वान (The men of Letters)
नागरिकता का लोप (Elimination of citizenship)
- नागरिकता का त्याग- अनेक राज्यों में इस प्रकार की व्यवस्था है
- कोई नागरिक स्वेच्छा से वहाँ की नागरिकता का परित्याग करके किसी दूसरे देश की नागरिकता को धारण करना चाहता है
- तो वैसा सरकार की आज्ञा से प्राप्त कर सकता है। जर्मनी में इसी प्रकार का नियम है।
- विदेशों से सम्मान प्राप्ति- अनेक देशों में इस प्रकार का नियम है
- वहां का नागरिक बिना सरकारी अनुमति के किसी अन्य देश से कोई उपाधि या सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता है।
- यदि वह इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।
- विदेशी सरकारी सेवा- जब कोई व्यक्ति विदेश में जाकर सरकारी नौकरी कर लेता है,
- तो ऐसी स्थिति में उसे अपने देश की _नागरिकता खोनी पड़ती है।
- राज्य के विरुद्ध अपराध- जब कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध देशद्रोह अथवा गंभीर अपराध करता है
- अथवा सेना से भागता है, तो यह अपराध भी _नागरिकता के लोप होने का कारण बन जाता है।
- पागलपन, फकीरी और सन्यास धारण करना भी _नागरिकता के लोप होने का कारण बन सकते हैं
भारत में नागरिकता (Citizenship in India)
भारत में एकल _नागरिकता की व्यवस्था की गई है।
- _नागरिकता के संबंध में भारतीय संविधान के भाग-2 तथा अनुच्छेद 5-11 में प्रावधान किया गया है।
- अनुच्छेद 11 द्वारा संसद को भविष्य में नागरिकता के संबंध में कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है।