प्रमुख आर्थिक समस्याएं
भारत की वर्तमान समस्या
1. रोजगार की बड़ी समस्या ( Biggest Employment Problems )
प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक नीतियों में रोजगार सृजन नहीं कर पाना एक बड़ी समस्या बना हुआ है। हालांकि अधिकांश विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालीन समस्या है, उन्हें उम्मीद है कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकार रोजगार को लेकर 2018 में क़दम उठाएगी।
चिनॉय कहते हैं, “हमें उम्मीद है कि सरकार कृषि और निर्माण जैसे छोटे बिज़नेस और सेक्टर में कुछ रोज़गार पैदा करेगी.”
मुंबई स्थित ब्रोकरेज फर्म एंजेल ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष मयूरेश जोशी के मुताबिक, कच्चे तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी और छोटे स्तर पर निजी निवेश का कम होना सरकार के सामने एक और बड़ी चुनौती है उनका कहना है कि बढ़ती कच्चे तेल की क़ीमतों का सरकार के वित्त पर असर पड़ेगा और इससे मुद्रास्फीति भी बढ़ सकती हैं, जो पिछले कुछ सालों से लगातार रिजर्व बैंक के लक्ष्य के अनुसार 4 फ़ीसदी से कम रही है।
घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारत अपने 70% तेल का आयात करता है। अब जबकि वैश्विक स्तर पर लगातार कच्चे तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, तो सरकार के पास दो विकल्प हैं- एक यह खुदरा क़ीमतें बढ़ा सकती है और दूसरा इसके फ़र्क का भुगतान वो खुद करे।
सबनवीस कहते हैं, “लोकसभा चुनाव केवल एक साल बाद हैं, इसलिए सरकार बढ़ी हुई पूरी क़ीमतों को सीधे ग्राहकों से नहीं वसूलना चाहेगी। यह एक अलोकप्रिय क़दम होगा.”
अगले साल आर्थिक विकास की संभावनाएं अच्छी दिख रही हैं, लेकिन सरकार के लिए सबसे बड़ी बाधा नौकरी का सृजन करना है। भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है ,जिसे हर साल 1.2 करोड़ नौकरियों के सृजन करने की ज़रूरत है।
कृषि, निर्माण और छोटे उद्यम भारत में सबसे बड़े रोजगार देने वाले क्षेत्र हैं, क्योंकि इनमें बड़े पैमाने पर श्रम शक्ति का इस्तेमाल किया जाता है।लेकिन ये तीनों क्षेत्र पिछले कुछ सालों से रोजगार पैदा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
2. कृषि की समस्या (Problem of agriculture)
साल 2017 में पूरे देश में किसानों ने कई विरोध प्रदर्शन किए। पिछले कुछ सालों से अस्थिर विकास के कारण कृषि क्षेत्र खेती से आमदनी को लेकर संघर्ष कर रहा है। आधी से अधिक भारतीय आबादी कृषि पर निर्भर है।
इस दौरान लाखों किसान कर्ज नहीं चुका सके जिससे परेशानियां बढ़ी हैंकुछ राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने किसानों के लिए कर्ज माफ़ी की घोषणा की लेकिन इसे लागू करने में समस्याएं हैं।
सबनवीस ने कहा, “मोदी सरकार वास्तव में इस पर कुछ नहीं कर सकती क्योंकि कृषि राज्य का विषय है और इसकी समस्या राज्य सरकार ही सुलझा सकती है। हालांकि आम जनों में इसे लेकर धारणा है कि यह केंद्र के अधीन है.”
भारत की आर्थिक समस्याएँ (India’s economic problems)
प्रमुख आर्थिक समस्याएं
1. हमारी अर्थव्यवस्था के लिए पहली चुनौती यह है कि देश में इस वक्त बजट घाटा व राजकोषीय घाटा सकल घरेलू आय के प्रतिशत के रूप में काफी बढ़ गया है। राजनीति से प्रेरित लोकलुभावन वादों के कारण उस पर अंकुश लगाना कठिन हो रहा है।
इस बजट घाटे का असर मुद्रास्फीति पर तो पड़ेगा ही अन्ततोगत्वा बजट को संतुलन करने के लिए जनहित की कई महत्वपूर्ण योजनाएं स्थागित करनी भी पड़ सकती हैं। इससे साधारणजन की क्षमता और आय पर विपरीत प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है।
हालांकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसमें कमी होती दिखाई दे रही है। इसलिए अब यह आवश्यक हो गया है कि सरकार को अनुपयोगी, लोकलुभावन घोषणाओं पर लगाम लगानी चाहिए और बजट को संतुलित करने के लिए ठोस प्रयत्न करने चाहिए।
2. दूसरी चुनौती केन्द्र और राज्यों में बढ़ते हुए व्यापारिक ऋण की समस्या है। यद्यपि बजट को संतुलित रखने के लिए और व्यापारिक ऋण की हद बांधने के लिए कई प्रस्ताव पारित किए गए हैं, जिनमें से कइयों को कानूनी दर्जा भी दे दिया गया है,
फिर भी केन्द्र और राज्यों की सरकारें निरंतर बड़े प्रमाण में बाजार से ऋ ण ले रही हैं और इसके कारण केन्द्र और राज्य के बजटों का बड़ा भाग ब्याज चुकाने में ही खर्च हो रहा है।
3. तीसरी चुनौती उद्योगों की मंद विकास गति है। केन्द्र और राज्य सरकारें देश और विदेश से बड़े उद्योगपतियों को बुलाकर उनसे निवेश की अपेक्षा कर रहे हैं। ‘मेक इन इण्डिया’ के तहत बड़े उद्योगों को कई सुविधाएं और प्रलोभन देकर हर राज्य आमंत्रित कर रहा है।
अधिकतर बहुराष्ट्रीय कम्पनियां और देश के बड़े उद्योगपति भी, भारत में सस्ता उत्पादन कर विदेश में निर्यात करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। परंतु हकीकत में देश से औद्योगिक निर्यात बहुत कम हो पाया है, क्योंकि विश्वभर में औद्योगिक पदार्थों की मांग कम हो रही है।
फलस्वरूप अनेक प्रलोभनों के बाद भी औद्योगिक उत्पादन में आशातीत वृद्धि नहीं हो रही है। इस नीति की दूसरी कमी है कि बहुत कम प्रमाण में रोजगार सृजन किया जा रहा है जो भारत जैसे देश में, जहां दिनोंदिन बढ़ती हुई संख्या में युवा रोजगार की तलाश में है, एक संकट पैदा कर सकता है।
स्पष्टत: जब तक छोटे और मझले उद्योगों को भी उतना ही प्रोत्साहन नहीं दिया जाएगा जितना कि बड़े उद्योगों को मिल रहा है, भारत की अर्थव्यवस्था की यह कमजोरी दूर नहीं हो पाएगी।
4. चौथी चुनौती जो सबसे गंभीर है वह कृषि उत्पादन में आया हुआ स्थगन है। पिछले तीन वर्षों में कृषि में दो-तीन प्रतिशत की वृद्धि भी नहीं हो रही है। इसका सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है, क्योंकि उनकी आय बढ़ नहीं पा रही है खेती के उत्पादन में वृद्धि के लिए अब तक किए गए निवेश का पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है।
मसलन, सिंचाई पर खर्च की गई रकम के प्रमाण में सिंचित क्षेत्र की वृद्धि नहीं है और जिसे हम सिंचित क्षेत्र कहते हैं, वहां भी सिंचाई के स्रोतों की फसल में पानी देने की क्षमता कम है। इसी प्रकार कृषि प्रौद्योगिकी की उपलब्धियों की बार-बार घोषणा की जाती है परंतु अब तक किसी भी बड़ी फसल में चमत्कारिक वृद्धि नहीं हुई है।
छोटे किसानों की बदहाली और बड़ी संख्या में हो रही किसानों की आत्महत्या स्पष्ट करती है कि इस क्षेत्र में हमारी नीतियां सफल नहीं हो रही हैं। वैश्विक मंदी का मुकाबला करने और सतत आर्थिक विकास करने में हम तभी सक्षम होंगे जब ऊपर बताई गई कमजोरियों को दूर कर सकेंगे।
प्रमुख आर्थिक समस्याएं, प्रमुख आर्थिक समस्याएं, प्रमुख आर्थिक समस्याएं