मिश्र की प्राचीन सभ्यता (Ancient civilization of Misra )
नील
मिश्र की प्राचीन सभ्यता का उद्भव एवं विकास नील नदी की घाटी में हुआ था। मिश्र अफ्रीका महाद्विप के उत्तर-पश्चिम में नील नदी द्वारा सिंचित एक देश है।इसे “नील नदी का वरदान”कहते है। मिश्र में राजनितिक एकता का प्रादुर्भाव “मिनीज” नामक राजा ने किया था। मिश्र के समाज में शासक को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।यहाँ शासक को “फ़रोहा” कहा जाता था।
मिश्र का समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभक्त था-:
- कुलीन वर्ग
- मध्यम वर्ग
- निम्न वर्ग
मिश्र के समाज की इकाई परिवार था,जिसमें माता-पिता,भाई-बहिन,पुत्र-पुत्री आदि एक साथ रहते थे। मिस्र की सभ्यता में स्त्रियों को बहुत अधिक सम्मान प्राप्त था। उन्हें पर्याप्त सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। मिस्र के लोग भोजन में गेहूं व चावल, तिलहन, मांस एवं विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उपयोग करते थे।
मिस्र की सभ्यता में संगीत, नृत्य, नटबाजी मल्लयुद्ध, पशुयुद्ध,पासे के खेल आदि मनोरंजन के साधन थे। प्राचीन मिस्र के लोगों के जीवन में धर्म प्रमुख स्थान रखता था। मिस्र वासियों के प्रमुख देवता एमन- रे (सूर्य) और ओसिरिस (सूर्य का पुत्र) तथा सिन (चंद्रमा)थे।
मिस्रवासियों का विश्वास था की मृत्यु के बाद शव में आत्मा निवास करती है,अतः वे शव को विशेष मसालों की सहायता से सुरक्षित रखते थे जिन्हें ममी कहा जाता था। मिस्र वासियों द्वारा शवों की सुरक्षा हेतु समाधियां बनाई जाती थी जिन्हें पिरामिड कहा जाता है।
मिस्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
प्रमुख कृषि फसलें:- गेहूं,जौ, मटर, सरसों,अंजीर, जैतून, खजूर, सन,फ्लेक्स व अंगूर आदि थी।
मिस्र के लोग गाय, बैल,खच्चर, घोड़ा, बकरी, भेड़, गधे, मुर्गे, सूअर और बत्तख भी पालते थे।
मिस्र का व्यापार नील नदी के माध्यम से होता था।
मिश्र के शासक सूर्य देवता के प्रतिनिधि माने जाते थे।इन्हें फराहो को कहा जाता था।
इनके कार्यों में सहायता के लिए “सरु” नामक एक परिषद होती थी।
मिस्र के पिरामिडों में खूफु द्वारा गीजा में बनाया गया पिरामिड विश्व प्रसिद्ध है।
मिस्र में मूर्तिकला का भी पर्याप्त विकास हुआ गीजा के पिरामिड के सामने स्थित विशाल स्फिग्स (नर्सिंह मूर्ति)
विश्व की विशालतम मूर्ति है।मिस्र की प्राचीन चित्राक्षर लिपि को हाइरोग्लाफिक कहा जाता है।
मिस्र के लोगों ने तारों व सूर्य के आधार पर अपना केंद्र बना दिया था तथा 360 दिन की गणना कर ली थी । मृत शवों को औषधियों का लेप लगाकर सुरक्षित रखने का विज्ञान मिश्र में प्रचलित था।
मिस्र की प्राचीन लिपि को पढ़ने वाला विद्वान फ्रांस का शाम्पिलियो था। हेरोडोटस ने मिस्र को नील नदी का वरदान कहा है। हेरोडोटस के अनुसार अनेक जातियों के सम्मिश्रण से मिस्र की सभ्यता का निर्माण हुआ।
काल विभाजन
- 3400 B.C. – 2475 B.C. – इस कॉल को मिस्र में पुरातन युग या पिरामिडों का युग भी कहा जाता है।
- 2475 BC -1788 BC- इस कॉल को मिस्र में मध्य राज्य युग या सामंतवाद का युग भी कहा जाता है।
- 1788 BC -1580 BC- इस काल में मिस्र में हिक्सास नामक विदेशी आक्रमणकारियों का आधिपत्य रहा।
- 1580 BC-1090 BC – इस काल को मिस्र में साम्राज्यवाद का युग कहा जाता है । हिक्सास को खदेड़ने के बाद मिस्र के 18वें राजवंश ने साम्राज्यवाद की नीति प्रारंभ कर दी।
- 1090 BC – 663 BC- इस काल में मिस्र में विदेशी आक्रमण प्रारंभ हो गए।
- 663 BC -525 BC- इस काल को मिस्र में नवीन साम्राज्यवाद भी कहा जाता है।
मेसोपोटामिया की सभ्यता (Mesopotamian Civilization )
‘मेसोपोटामिया’ विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता वाला स्थान है। इसे कांस्ययुगीन सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। इराक़, उत्तर-पूर्वी सीरिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की तथा ईरान का क़ुज़ेस्तान प्रांत सम्मिलित क्षेत्र है।
मेसोपोटामिया की सभ्यता के अंतर्गत – सुमेरियन ,बेबीलोन तथा असीरियन की सभ्यताओं का विकास हुआ। मेसोपोटामिया एक नगरीय सभ्यता थी। प्रारम्भ में यहाँ नगर राज्य थे परन्तु बाद में सारगन प्रथम , हेम्मूराबी, सारगन द्वितीय, सेनाक्रीब तथा असुर बनीपाल जैसे सम्राटों के काल में विशाल साम्राज्यों की भी स्थापना हुई।
मेसोपोटामिया के लोग अपने भोजन में गेहूँ तथा जौ की रोटी , दूध , दही, मक्खन ,फल आदि का प्रयोग करते थे। वे खजूर से आटा, चीनी, तथा पीने के लिए शराब तैयार करते थे। वे लोग माँस-मछली का भी सेवन करते थे।
वे सूती , ऊनी तथा भेड़ की खाल से बने वस्त्र पहनते थे। पुरुषों के वस्त्रों में लुंगी प्रमुख थी। उच्च वर्ग की स्त्रियां विलासिता का जीवन व्यतीत करती थी।आभूषणों में सोने- चाँदी के बने हार,कंगन तथा बालियां आदि का प्रयोग स्त्रियां पर्याप्त मात्रा में करती थीं।
यहाँ के लोग रहने के लिए पक्की ईटों के मकान का प्रयोग करते थे। ईंटें चिकनी मिट्टी की बनी होती थी। मकानों का गन्दा पानी निकालने के लिए बनी नालियां मोहंजोदडो और हड़प्पा के नगरों के सामान थीं। मकान की दीवारों पर उभरे हुए चित्र भी बनाये जाते थे। कुम्हार के चाक का प्रयोग सर्वप्रथम इसी सभ्यता में हुआ।
पर्दा प्रथा राज-परिवारों तक ही सीमित थी। दहेज़ का प्रचलन था परन्तु विवाह में पिता से प्राप्त दहेज़ पर वधू का ही अधिकार होता था। विधवा को पति की सम्पति बेचने का अधिकार था।। वेश्यावृत्ति और बहुविवाह ( केवल उच्च वर्ग के लिए) भी प्रचलित था।
भूमि उपजाऊ होने की वजह से यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि था। गेंहू ,जौ और मक्का की खेती अधिक की जाती थी। फल और सब्जी की भी खेती होती थी। सिचाई नदियों तथा नहरों द्वारा होती थी। यहाँ के लोगो का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। रथ खीचने के लिए बैल पाले जाते थे।
मेसोपोटामिया के लोगो का भारत और चीन के साथ घनिष्ट व्यापारिक सम्बन्ध थे। सिक्को का प्रचलन न होने की वजह से चाँदी या सोने के टुकड़े का प्रयोग विनिमय के लिए होता था। जल तथा थल लोगो माध्यम से व्यापार होता था। बेबीलोन , पश्चिमी देशो का प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था। बाद में यहाँ के लोगो ने लेन देन व व्यापार के लिए सिक्के बनाये और नाप तौल के लिए अनेक प्रकार के बांटो का आविष्कार किया।
नगर के संरक्षक देवता के लिए नगर के पवित्र क्षेत्र में किसी पहाड़ी या ईटो के बने चबूतरे पर मंदिर का निर्माण किया जाता था। जिसे ‘ जिग्गूरात ‘ कहते थे| इस सभ्यता के लोग नैतिकपूर्ण जीवन जीते थे। झूठ बोलना, घमण्ड करना, तथा दूसरो के अप्रसन्न करना इत्यादि दुर्गुणों से वे लोग दूर रहते थे।
मेसोपोटामिया की सभ्यता द्वारा संसार को दिया गया सबसे बड़ा देन कीलाक्षर ( कीलाकार) लिपि है। इस लिपि में 250 से भी अधिक शब्द थे । प्रारम्भ में इनकी लिपि चित्रों पर आधारित थी,जो बाद में ध्वनि पर आधारित हो गयी। लिखने के लिए नरम मिट्टी की बनी तख्तियों पर सरकण्डे की कलम का प्रयोग किया जाता था। जिन्हें आग में पकाकर सुरक्षित रख दिया जाता था। इसके साक्ष्य निनवेह की खुदाई के दौरान मिले है। जिन पर कहानियां, महाकाव्य , गीतिकाव्य तथा धार्मिक उपदेश संकलित है।
गणित के क्षेत्र में उन्होंने सब से पहले 1, 10,और 100 के चिन्हों की खोज की थी। इन्होंने बुध, शुक्र, मंगल, गुरु तथा शनि ग्रहो का पता लगा लिया था। उन्होंने आकाश के नक्षत्रों को 12 राशियों में बाँट कर उनके नामकरण भी कर दिए थे। उन्होंने एक पंचांग भी बनाया था और सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण के कारणों का भी पता कर लिया था। और समय देखने के लिए धूप घड़ी और सूर्य घड़ी का भी आविष्कार कर लिया था। मेहराबों , स्तंभों और गुम्बदों के निर्माण में भी मेसोपोटामिया के लोगों ने संसार को नई दिशा प्रदान की।
मेसोपोटामिया की सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता थी या नहीँ , यह एक विवादग्रस्त प्रश्न है। अधिकांश विद्वानों का मत है कि मेसोपोटामिया की सभ्यता ही सबसे प्राचीन सभ्यता थी , जबकि पेरी का कहना है कि पृथ्वी पर मिस्र में ही सर्वप्रथम सभ्यता का विकास हुआ और वहाँ से संसार के अन्य लोगों ने सभ्यता सीखी।
नील नदी की घाटी ( मिस्र की सभ्यता ) और दजला-फरात की घाटी(मेसोपोटामिया की सभ्यता) में बहुत सी मुहरें , मिट्टी के बर्तन तथा पशुओँ की मूर्तियां बनाने का काम पहले प्रारम्भ हो चुका था, लेकिन चित्रकला और मूर्तिकला के क्षेत्र में मेसोपोटामिया की सभ्यता मिस्र की सभ्यता से पीछे थी। पर कौन सी सभ्यता सबसे प्राचीन थी ये कहना कठिन है।
चौथी शताब्दी ई. पू. के अंत तक मेसोपोटामिया में राज्यों की स्थापना हो चुकी थी और ‘दजला और फ़रात’ नदियाँ जहाँ क़रीब आ जाती हैं, वहाँ बेबीलोन नगर बस चुका था। बेबीलोन में 1792 ई. पू. में ‘हम्मूराबी’ नामका एक शासक हुआ था, जिसने 1750 ई. पू. तक शासन किया। अपने आप को वह देवता समझता था और इस बात का उसे बहत गर्व था। उसने अपनी प्रजा के लिये एक क़ानून संहिता बनाई थी, जो इतिहास में ‘हम्मूराबी संहिता’ के नाम से बहुत प्रसिद्ध है।
रोम की सभ्यता
रोम की सभ्यता पाश्चात्य सभ्यता की जननी है। रोम की सभ्यता प्राचीन और आधुनिक सभ्यताओं के मध्य एक पुल के समान है। रोम ने ही सर्वप्रथम राष्ट्रीयता परख सभ्यता का विकास किया और पूर्णत: भौतिकवादी सभ्यता की नींव रखी।
भौगोलिक स्थिति
एक और यह आल्पस पर्वत से तथा तीन और समुद्र से घिरा है। उत्तर में आल्पस पर्वत जो इसे शेष यूरोप से अलग करता है। दक्षिण पश्चिम में भूमध्य सागर पूर्व में एड्रियाटिक सागर है। इसके मध्य में उत्तर से दक्षिण तथा अल्पेनाइन पर्वतमाला जो इसे पूर्वी और पश्चिमी दो भागों में विभक्त करती है।
सबसे बड़ी नदी पो है, जो उत्तर में आल्पस पर्वत से निकलकर पूर्व की ओर एड्रियाटिक सागर में गिरती है पश्चिम मैदान में टाइबर नदी अल्पेनाइन पर्वतमाला से निकलकर भूमध्य सागर में गिरती है। रोम इसी नदी के किनारे बसा हुआ है।
प्रागैतिहासिक इटली
इटली में मानव सभ्यता का उदय पुरातन प्रस्तर युग में हो चुका था। 2000 ईसा पूर्व में आर्य जाति का आगमन हुआ इनमें लैटिन और ओस्कन लोग प्रमुख थे। यह इटली का कांस्य युग था 1000 ईसा पूर्व से 600 ईसापूर्व तक इटली में अन्य जातियों का प्रवेश हुआ जिनमें एट्रस्कन और यूनानी जाति प्रमुख थी।
900 ई. पूर्व में एट्रस्कन जाति की एक शाखा ने आर्यों को पराजित करके लोटियम और रोम पर अधिकार कर लिया। विश्व के इतिहास में इससे पूर्व आर्य जाति किसी अन्य जाति से पराजित नहीं हुई थी। रोम इटली प्रायद्वीप पश्चिमी भाग में टाइबर नदी के उत्तरी तट से 15 मील दूर सात पहाड़ियों पर बसा है। इसीलिए रोम को सात पहाड़ियों का देश भी कहते हैं।
रोम नगर की स्थापना 753 ईसा पूर्व रोमुलास द्वारा की गई। रोमुलास ने अपने भाई ऐमस की हत्या कर शासक बना। रोमुलास ने अपनी जातियों के सात ग्रामों का एक संघ बनाया जिसे ‘सेफ्टीमोनोटियम’ (लीग ऑफ द सेवन हिल्स) कहा जाता था।
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