राष्ट्रवाद-Nationalism राष्ट्रवाद वह भावना है। जो लोगों को एक साथ एकता के सूत्र में बांधती है व स्वराज के प्रति एक ठोस आधार प्रदान करती है। यह लोगों में चेतना प्रदान करने में समाज सुधार को, राष्ट्रवादी नेताओं, व राजनीतिक संस्थाओं, शिक्षा प्रणाली आदि तत्वों का योग रहा है।
कुछ महत्वपूर्ण शब्द
- राष्ट्रवाद
- समाज सुधारक
- शिक्षा प्रणाली
- समाचार पत्र
- राष्ट्रीय आंदोलन
भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण और विकास- CAUSES OF THE RISE OF NATIONALISHM
- भारत में राष्ट्रीय उदय के कारण और विकास में अनेक कारणों का योग रहा है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इन कारणों को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है जो कि निम्न प्रकार से है। :-
आर्थिक नीतियां
- 1901 ईस्वी में रमेशचंद्र दत्त ने इकोनॉमिक्स हिस्ट्री ऑफ इंडिया नामक पुस्तक लिखी थी। जिसमें 3 चरणों का उल्लेख किया गया था। इन तीनों चरणों में अंग्रेजों ने भारत का आर्थिक शोषण किया।
(A). सीधी लूट (1757-1813) :-
- प्लासी के युद्ध में विजय के पश्चात बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित हो गया था।
- कंपनी अब बंगाल के नवाब को बनाने लगी थी इसके बदले हमसे अत्यधिक रिश्वत लेने लगी तथा व्यापार में भी हिस्सेदारी मांगने लगी।
- कंपनी कम कीमत में सूती रेशमी वस्त्र व गर्म मसालों को खरीद कर इंग्लैंड व यूरोप के बाजारों में महंगी कीमत पर बेचने लगी। जिससे कंपनी की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई।
- इसी चरण में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हो चुकी थी। मशीनों से उत्पादन अधिक होने लगा इसलिए वहां के पूंजीपतियों ने वहां की सरकार पर दबाव डाला कि उन्हें भी भारत में व्यापार करने की अनुमति दी जाए।
(B). स्वतंत्र व्यापारिक पूंजीवाद (1813-1858) :-
- 1813 के चार्टर में ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया था कंपनी को केवल चाय व चीन देश के साथ व्यापार पर एकाधिकार रहा।
- इस चरण में इंग्लैंड की कई कंपनियां भारत आई। यहा से कच्चा माल इंग्लैंड ले जाकर उत्पाद के रूप में परिवर्तित करती और पुन: भारत लाकर बेच दिया जाता था
- इसी चरण में भारत का हथकरघा उद्योग समाप्त हो गया। क्योंकि भारतीय बुनकरों के पास कच्चा माल ही उपलब्ध नहीं हो पाया।
- बंगाल के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिंग ने कहा था कि भारतीय बुनकरों की हड्डियां भारत के मैदानों में बिखरी पड़ी हैं।
- इसी चरण में 1857 की क्रांति हो चुकी थी।
(C). वित्तीय पूंजीवाद (1858-1940) :-
- 1 नवंबर 1958 को ईस्ट इंडिया का शासन समाप्त कर दिया गया था।
- भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन को सौंपा गया तथा इसमें यह भी लिखा गया कि क्राउन भारत का शासन इंग्लैंड की संसद के द्वारा चलाएगा।
- इसी चरण में इंग्लैंड की सरकार ने वहां के पूंजीपतियों को प्रस्ताव दिया। भारत में निवेश करने पर 5% शुद्ध लाभ की गारंटी दी जाएगी अत: कई निवेशकों ने भारत में निवेश किया।
- सर्वाधिक निवेश रेलवे में किया गया इसके अलावा निम्न क्षेत्रों में निवेश किया गया :-
- बीमा
- बैंकिंग
- मेडिकल
- जॉन सुलीववान ने कहा था कि हमारी व्यवस्थाए स्पंज की तरह काम करती है जो गंगा नदी से सभी अच्छी वस्तु को सौंप कर टेम्स (लंदन) के किनारे निचोड़ देती है।
धन निष्कासन का सिद्धांत :-
- सर्वप्रथम दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 में लिखे गए अपने लेख”England Debit to India” मैं धन निष्कासन का सिद्धांत दिया था। तथा इसकी विस्तारित व्याख्या अपनी पुस्तक” पॉवरटी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया”में की थी।
- इसके अलावा दादा भाई नौरोजी ने ऑन द कॉमर्स ऑफ इंडिया तथा The wants and means rule in India नामक पुस्तक लिखी।
- रमेशचंद्र दत्त ने इस धन के निष्कासन को”भारतीयों के सीने पर एक बहता हुआ घाव बताया”
- 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में इस धन निष्कासन के सिद्धांत को मान्यता दी गई।
2. कृषि पर प्रभाव
- भारत में राष्ट्रवाद के उदय और विकास से कृषि पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े जो कि निम्न प्रकार से है आइए इन्हें देखते हैं। :-
(A). स्थाई बंदोबस्त :-
- 1793 में इसे कार्नवालिस के द्वारा निम्न क्षेत्रों में लागू किया गया। :-
- बंगाल
- बिहार
- उड़ीसा
- वाराणसी
- उत्तरी कर्नाटक के जिले
- यह ब्रिटिश भारत के 19% भूभाग पर विस्तृत थी इसमें 1/11 भाग जमीदार को व 10/11 भाग कंपनी को मिलता था।
- इस व्यवस्था में सूर्यस्त कानून था। अगर जमीदार समय पर राजस्व जमा नहीं करवा पाता था तो उससे जमीदारी छीन ली जाती थी।
- सबसे ऊंची बोली लगाने वाले जमीदार को जमीदारी शॉप दी जाती थी।
- राजा राममोहन राय ने इसका समर्थन किया था।
(B). रैयतवाड़ी :-
- इसमें रैयत अर्थात किसान के साथ समझौता किया जाता था।
- ब्रिटिश भारत के 57 परसेंट भूभाग पर विस्तृत थी इसमें उपज का 33 से 55 परसेंट वसूल किया जाता था।
- सर्वप्रथम 1792 में कैप्टन रीड ने इसे तमिलनाडु के बारामहल जिले में लागू किया था।
- मुंबई में एलफिंसटन व मद्रास में मुनरो के द्वारा इसे लागू किया गया।
(C) महालवाड़ी :-
- इसमें गांव के समूह के साथ समझौता किया गया।
- ब्रिटिश भारत के 30 परसेंट भूभाग पर विस्तृत थी व उपज का 66 परसेंट वसूल किया जाता था।
- इसे आगरा, अवध, पंजाब के क्षेत्रों में लागू किया गया।
- उत्तरी भारत की कृषि व्यवस्था का जनक Martin बर्ड को माना जाता है ।
3. प्रशासनिक नीतियां :-
- 1857 की क्रांति में हिंदुओं तथा मुसलमानों ने समान रूप से भाग लिया।इसके बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई।
- William hunter ने अपनी पुस्तक”इंडियन मुसलमान मैं लिखा है कि-अगर अंग्रेजों को भारत में लंबे समय तक राज्य करना है तो मुसलमानों को अपने पक्ष में करना होगा।
- अंग्रेजों ने सैयद अहमद आगा खां को मुसलमान का नेतृत्व सौंपा
- इन्होंने 1875 में अलीगढ़ स्कूल खुलवाकर दी तथा 1877 में इसे कॉलेज बना दिया गया।
- आरचीबोल्ड इसी कॉलेज के प्रिंसिपल थे जिन्होंने पृथक निर्वाचन क्षेत्र का प्रारूप तैयार किया था। इसी प्रारूप को लेकर अक्टूबर 1906 को सैयद अहमद आगा खां के नेतृत्व में कुछ मुस्लिम प्रतिनिधि शिमला गए तथा वायसराय मिंटो-ll से मुलाकात की व मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र मांगा।
मार्ले मिंटो अधिनियम 1909
- 1909 के मार्ले मिंटो अधिनियम में मुसलमानों को पृथक निर्वाचन क्षेत्र प्रदान कर दिया गया।
- मार्ले इस समय भारत सचिव था तथा इसने वायसराय मिंटो को पत्र भी लिखा था की हम चांगदल के बीज बो रहे हैं इसके परिणाम अत्यंत घातक होंगे।
- 1876 के शाही राजसी अधिनियम के तहत इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित किया गया।
- इस कारण से 1877 में वायसराय लिंटन ने दिल्ली के दरबार का आयोजन किया, जिस पर बहुत अधिक पैसा खर्च किया गया था जबकि इस समय भारत में अकाल की स्थिति थी।
वर्नाकुलर प्रेस एक्ट :-
1878 में लिटन ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लागू किया जिसके तहत देसी भाषाओं के समाचार पत्रों को सेंसरशिप लागू कर दी गई। अर्थात इस समाचार पत्र को प्रकाशित होने से पहले सरकार के पास भेजा जाता था अगर शासन विरोधी कोई बात लिखी होती तो इसका प्रकाशन नहीं हो पाता था।
- 1883 में वायसराय रिपन के समय मुख्य न्यायाधीश इल्बर्ट ने एक बिल पारित किया इसके अनुसार कोई भी भारतीय न्यायधीश किसी भी यूरोपीय व्यक्ति के मुकदमे की सुनवाई कर सकता था।
- इसका संपूर्ण यूरोप में विरोध हुआ और इल्बर्ट को अपना बिल वापस लेना पड़ा।
4. जातीय भेदभाव :-
- जातीय भेदभाव की भावना ने भारतीयों को राष्ट्रीय रूप में एक होने को प्रेरित किया। जातिभेद के आधार पर अंग्रेज भारतीयों से घृणा करते थे और उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे
- अंग्रेज केवल अपने कोई नहीं बल्कि समस्त यूरोपीय जाति को एशियाई जाति से ऊंचा मानते थे तथा वे चाहते थे कि भारतीय भी इस बात को स्वीकार करें अंग्रेज जातीय और सांस्कृतिक रूप से ऊंचे हैं। इस व्यवहार के कारण ही भारतीयों को एक होने को मजबूत किया था।
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