यूरोपीय कंपनियों का भारत मे आगमन
15वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी के बीच निम्नलिखित यूरोपीय कम्पनियाँ क्रमशः भारत आयी- पुर्तगीज, डच, अंग्रेज, डेनिश, फ्रांसीसी परन्तु इन कम्पनियों के स्थापना का क्रम थोड़ा सा भिन्न था। ये निम्नलिखित क्रम में स्थापित हुई-
यूरोपीय कंपनियों
पुर्तगीज-अंग्रेज-डच-डेनिश-फ्रांसीसी।
पुर्तगीज सबसे पहले भारत पहुँचे, बाकी सभी कम्पनियाँ प्रारम्भ में भारत न आकर दक्षिण पूर्व एशिया की ओर गई
युरोप और भारत के बीच समुद्री मार्ग की तलाश 1498 मे पुतर्गाली नाविक वास्कोडिगामा के द्रारा की गई। वास्कोडिगामा सर्वप्रथम भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर स्थिति कालीकट पहुँचा और वहाँ के शासक जमोरिन के द्रारा वास्कोडिगामा को सभी प्रकार की व्यापारिक सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई।
पुर्तगाली ( Portuguese )
नये रास्ते की खोज में सर्वप्रथम प्रयास पुर्तगीजों ने प्रारम्भ किये। बार्थोलोम्यूडियाज ने 1487 ई0 में केप आॅफ गुड होप (उत्तमाशा अन्तरीप, या तूफानी अन्तरीप) तक की यात्रा की। 1494 ई0 में स्पेन के कोलम्बस ने भारत खोजने के क्रम में अमेरिका की खोज कर दी। 1499 में पिन्जोन ने ब्राजील की खोज की। मैगलेन ने यूरोप के पश्चिमी देशों की यात्रा करते हुए सम्पूर्ण पृथ्वी की यात्रा की।
वास्कोडिगामा समुद्री रास्ते से भारत आने वाला प्रथम पुर्तगाली व यूरोपियन यात्री था। वह अब्दुल मनिक नामक गुजराती प्रदर्शक की सहायता से भारत आया । कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया। किंतु अरब व्यापारियों ने उसका विरोध किया।
जमोरिन कालीकट के हिंदू शासकों की उपाधि थी। भारत से वापस जाते समय वास्कोडिगामा जहाज में कालीमिर्च भरकर ले गया जिस पर उसे 60 गुना फायदा हुआ। इससे अन्य पुर्तगाली व्यापारियों को प्रोत्साहन मिला।
1500 ई में वास्कोडिगामा के बाद दूसरा पुर्तगाली यात्री पेट्रो अल्ब्रेज क्रेबाल कालीकट (भारत) आया। 1502 ईस्वी में वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत आया। पुर्तगालियों ने 1503 ईसवी में कोचीन में अपनी पहली व्यापारिक कोठी स्थापित की। पुर्तगीज अपने को ’’समूद्रों का स्वामी कहते’’ थे
पुर्तगाली कंपनी का नाम एसतादे दे इंडिया था। भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय फ्रांसिस्को डी अल्मीडा था जिसने ब्लू वाटर पॉलिसी (नीले पानी की नीति) अपनायी। वह 1505 से 09 ई. तक गवर्नर रहा
अल्बुकर्क को भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। भारत में पुर्तगालियों की संख्या बढ़ाने के लिए इसने पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं से विवाह करने के लिए प्रेरित किया।
अल्बुकर्क ने गोवा में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया। अल्बुकर्क ने 1511 ईस्वी में दक्षिण पूर्वी एशिया की व्यापारिक मंडी मलक्का और हरमुज पर अधिकार कर लिया। पुर्तगाली वायसराय नीलू डी कुन्हा ने 1530 ईस्वी में कोचिंन की जगह गोवा को राजधानी बनाया।
पुर्तगालियों ने हिंद महासागर से होने वाले व्यापार पर एकाधिकार कर लिया उन्हें कार्टेज पद्धति द्वारा बिना परमिट के भारतीय अरबी जहाजों का अरब सागर में प्रवेश वर्जित कर दिया।
पुर्तगालियों ने भारत में तंबाकू की खेती तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत की 1556 ईसवी में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना हुई। व भारतीय जड़ी-बूटियों पर वनस्पति पर प्रथम पुस्तक 1563 ईस्वी में गोवा से प्रकाशित हुई। पुर्तगालियो ने भारत में गोथिक स्थापत्य शैली की शुरुआत की।
पुर्तगीज व्यापार की विधि:-
पुर्तगीज भारतीय क्षेत्र को एस्तादो-द-इंडिया नाम से पुकारते थे। हिन्द महासागर के व्यापार को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने परमिट व्यवस्था प्रारम्भ की। उनकी नौ सैनिक शक्ति भी उस समय श्रेष्ठ थी।
अकबर ने भी पुर्तगीजों से व्यापार के लिए परमिट ली थी। पुर्तगीज अपने को ’’सागर के स्वामी’’ कहते थे। पुर्तगीजों का पतन इसलिए हुआ क्योंकि वे अन्य यूरोपीय शक्तियों से प्रतिद्वन्दिता से पिछड़ गये। दूसरे ब्राजील का पता लग जाने पर उन्होंने वहीं उपनिवेश बसाने पर जोर दिया।
पुर्तगीज आधिपत्य का परिणाम पुर्तगीजों ने धर्म परिवर्तन पर बहुत जोर दिया। 1560 में गोवा में ईसाई धर्म न्यायालय की स्थापना की। 1542 में पुर्तगीज गर्वनर मार्टिन डिसूजा के साथ प्रसिद्ध सन्त जेवियर भारत आया। जापान के साथ व्यापार प्रारम्भ करने का श्रेय पुर्तगीजों को प्राप्त है।
पुर्तगीजों ने सर्वप्रथम प्रिटिंग प्रेस की शुरुआत की। पुर्तगीजों को भारत में आलू, तम्बाकू, अन्नानास, अमरुद, अंगूर, संतरा, पपीता, काजू, लीची, बादाम, मूंगफली, शकर कंद आदि को लाने का श्रेय दिया जाता है।
भारत में अन्तिम गर्वनर जनरल-जोआ-द-कास्त्रों था। गोथिक स्थापत्य कला पुर्तगाली लाये।
पुर्तगालियो के भारत मे आने के उद्देश्य
1. अरबो और वेनिस के व्यापारियों का भारत से प्रभाव समाप्त करना।
2. ईसाई धर्म का प्रचार करना।
पुर्तगालियो के भारत से पतन के कारण :-
1. भारतीय जनता के प्रति धार्मिक असहिष्णुता की भावना।
2. गुप्त रूप से व्यापार करना तथा डकैती और लूटमार को अपनी नीति का हिस्सा बनाना।
3. नए उपनिवेश ब्राजील की खोज।
4. अन्य यूरोपियन व्यापारिक कंपनियो से प्रतिस्परधा ।
5. अपर्याप्त व्यापारिक तकनीक
6. पुर्तगाली वायसरायों पर पुर्तगाली राजा का अधिक नियंत्रण।
अंग्रेज
इंग्लैंण्ड की महारानी एलिजाबेथ-प्रथम के समय में 1600 ई0 में एक कम्पनी की स्थापना हुई जिसका नाम The Governer of the Company of Marchents of London Trading in to the East Indiese रखा गया। इसे पूर्व के साथ 15 वर्षों के लिए व्यापार की अनुमति प्रदान की गई। इसने अपने प्रारम्भिक अभियान द0 पू0 एशिया में किये।
1688 में एक नयी कम्पनी न्यू कम्पनी को भी पूर्व के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान की गयी। 1698 ई0 में दो और कम्पनियों General Soceity तथा English Company trading in to the East को भी इसी तरह की अनुमति दी गयी।
1702 में इन कम्पनियों ने आपस में विलय का निश्चय किया। 1708 में इन कम्पनियों का विलय हो गया तब इसका नाम The United Company of Merchant of England trading in to the East Indiese रखा गया। 1833 ई0 के अधिनियम के द्वारा इसका नाम छोटा करके East India Company रख दिया गया।
भारत में फैक्ट्रियाँ:-
पूर्व के साथ व्यापार की अनुमति मिलने के बाद इंग्लैण्ड के शासक जेम्स प्रथम ने अपने एक राजदूत हॉकिन्स को अकबर के नाम का पत्र लेकर भेजा। हॉकिन्स ने मध्य-पूर्व में तुर्की और फारसी भाषा सीखी।
1608 ई0 में हेक्टर नामक जहाज से वह सूरत पहुँचा। जहाँगीर ने उसे फैक्ट्री खोलने की अनुमति दे दी परन्तु पुर्तगीजों के दबाव से शीघ्र में अनुमति रद्द कर दी गयी। तब अंग्रेज ने दक्षिण जाकर 1611 ई0 में मसली-पट्टम में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। इसी बीच 1611 ई0 में स्वाल्ली के प्रसिद्ध युद्ध में अंग्रेजों ने पुर्तगीजों को पराजित कर दिया तब 1612 में उन्हें पुनः सूरत में फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी गयी।
- 1608 – सूरत (अनुमति रद्द)। (टामस एल्डवर्थ)
- 1611 – मसूली पट्टम।
- 1611 – स्वाल्ली का युद्ध।
- 1612 – सूरत (किलेबन्द फैक्ट्री)
दक्षिण में फैक्ट्रियाँ
- 1611 – मसूली पट्टम
- 1626 – अर्मागाँव (कर्नाटक)
- 1632 – Golden Ferman -गोलकुण्डा के शासक के द्वारा जारी किया गया। इसके 500 पगोज सलाना कर के बदले अंग्रेजों को गोलकुण्डा राज्य के बन्दरगाहों से व्यापार करने की छूट प्राप्त हो गयी।
- 1639 – फोर्ट सेंट जार्ज की स्थापना। फ्रांसिस-डे ने चन्द्रगिरि के राजा से मद्रास को पट्टे पर लिया और वहाँ एक किला बन्द कोठी बनवायी। इसी का नाम फोर्ट सेंट जार्ज पड़ा।
बम्बई का द्वीप
- 1661 ई0 में इंग्लैण्ड के राजा चार्ल्स -द्वितीय का विवाह पुर्तगीज राजकुमारी कैथरीन मेवों के साथ हुआ। जिसके फलस्वरूप पुर्तगीजों ने बम्बई का द्वीप दहेज में चार्ल्स -द्वितीय को दे दिया।
चार्ल्स -द्वितीय ने 1668 ई0 में 10 पौंड वार्षिक किराये पर यह द्वीप ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया। 1669 ई0 में जेराल्ड औंगियार सूरत और बम्बई का गर्वनर बना।
उसने कहा ’अब समय का तकाजा है कि हम अपने हाथों में तलवार लेकर व्यापार का प्रबन्ध करें।’’ 1688 ई0 में इसी नीति का पालन करते हुए सर जॉन चाइल्ड ने कुछ मुगल बन्दरगाहों पर घेरा डाला। परन्तु औरंगजेब की सेना द्वारा उन्हें पराजित होना पड़ा तथा माफी मांगनी पड़ी एवं हर्जाने के रूप में 1.5 लाख रूपये देना स्वीकार किया।
बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का विकास:- 1651 ई0 में बंगाल के सूबेदार शाहसुजा ने 3,000 रूपये वार्षिक कर के बदले अंग्रेजों को बंगाल बिहार और उड़ीसा से व्यापार करने की अनुमति प्रदान की। यह अनुमति इसलिए प्रदान की गयी क्योंकि ग्रेबियन बॉटन नामक चिकित्सक ने शाहसुजा की किसी बीमारी का इलाज किया।
- 1656 – पुनः मंजूरी मिल गयी।
- 1680 – औरंगजेब ने आदेश जारी किया कि अंग्रेजों से 1.5% जजिया कर लिया जाय।
- 1686 – अंग्रेजों ने हुगली को लूटा परन्तु बुरी तरह पराजित किये गये और एक ज्वर ग्रसित द्वीप में पहुँचे। यहीं से जॉब चार्नोंक ने समझौते की शुरुआत की। बहुत अनुनय विनय के बाद इन्हें वापस लौटने की अनुमति मिल गयी।
- 1690 – जॉब चार्नोक ने सूतानाती में एक फैक्ट्री खोली, जो आगे चलकर कलकत्ता बना। इसी कारण चार्नोक को कलकत्ता का जन्मदाता माना जाता है।
- 1698 – बंगाल के नवाब अजीमुशान ने जमीदार इब्राहिम खाँ से तीन क्षेत्रों की जमीदारी सूतानाती, कालीकाता और गोबिन्दपुर अंग्रेजों को प्रदान की।
यहीं पर 1700 ई0 में फोर्ट विलियम की नींव रखी गयी। चार्ल्स आयर इसका पहला प्रेसीडेन्ट बना।
मुगल दरबार में मिशन:-
मुगल दरबार में अंग्रेजों के निम्नलिखित दो मिशन प्रमुख रूप से हुए-
1. नारिश मिशन:- 1698 इंग्लैंण्ड के राजा विलियम -तृतीय ने एक अन्य कम्पनी इंग्लिश कम्पनी टेर्डिंग इन-टू-द ईस्ट की स्थापना की। इस कम्पनी ने व्यापारिक सुविधायें प्राप्त करने के लिए सर विलियम नारिश की अध्यक्षता में एक मिशन औरंगजेब के दरबार में भेजा। किन्तु इसका कोई फल न हुआ।
2. जॉन सरमन मिशन:-1715- कलकत्ता से ईस्ट-इंडिया कम्पनी ने 1715 में जॉन सरमन की अध्यक्षता में फर्रुख-सियर के दरबार में एक दूत-मण्डल भेजा। इस मण्डल में-
रोहूर्द:- आरमेनियन दुभाषिया था।
हैमिल्टन:-
यह अंग्रेज चिकित्सक था जिसने फर्रुखसियर की फोडे की बीमारी का इलाज किया। इससे प्रसन्न होकर फर्रुखसियर ने 1717 ई0 में एक फरमान जारी किया जिसके द्वारा-
- 3,000 रू0 वार्षिक कर के बदले में कम्पनी को बंगाल में मुक्त व्यापार की छूट मिल गयी।
- 10,000 रू0 वार्षिक कर के बदले में सूरत से व्यापार करने की छूट मिल गयी।
- बम्बई में कम्पनी द्वारा ढाले गये सिक्कों को सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य में चलाने की छूट मिल गयी।
ब्रिटिश इतिहासकार और्म ने इसे कम्पनी का मैग्नाकार्टा कहा। वस्तुतः इस व्यापारिक छूट से कम्पनी को बंगाल में अपने पाँव जमाने में सहूलियत मिली।
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