राजस्थान में जनजाति आंदोलन
:- राजस्थान में मुख्य रूप से तीन जनजातीय या आदिवासी आंदोलन हुए इनमें प्रमुख आंदोलन निम्न है।
- भील जनजातीय आंदोलन
- मीणा जनजातीय आंदोलन
- मेव जनजातीय आंदोलन
• राजस्थान में जनजाति या आदिवासी आंदोलनों में इन आंदोलनों के अलावा और भी बहुत छोटे-छोटे आंदोलन हुए हैं। तथा राजस्थान में प्रमुख जन आंदोलन एवं क्रांतिकारी घटनाएं भी हुई हैं। इन आंदोलन और घटनाओं के बारे में हम विस्तार से आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे इसलिए आप ध्यान से इस लेख को पढ़ें।
राजस्थान के जनजातीय या आदिवासी आंदोलन
भील आंदोलन या विद्रोह (Bhil Movement or Rebellion)
- भील समाज के 2 वर्ग होते थे।
- पहला वर्ग :- ये प्राचीन भील थे व जंगलों में निवास करते थे।
- दूसरा वर्ग :- दूसरे वर्ग के अंतर्गत गरासिया जनजाति आती थी। इन्हें मेवाड़ केेेे शासकों के द्वारा भूमि का ग्रास तथा टुकड़ा प्रदान कियाा गया तथा ये कृषि के माध्यम से अपनी आजीविका चलाते थे।
• 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मेवाड़ के शासक भीम सिंह से सहायक संधि की व जेम्स टॉड को मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट नियुक्त किया गया।
- भोमिया भील व्यापारी के सामान जंगलों के रास्तों में सुरक्षा प्रदान करते थे इसके बदले में बोलाई नामक कर वसूला जाता था। इसे जेम्स टॉड समाप्त कर दिया।
- गरासिया भील पहाड़ की ढलानो व मैदानी भागों में चिमता व र दजिया प्रकार की स्थानांतरण कृषि करते थे।
- इसमें जंगलों को जलाकर साफ किया जाता था क्योंकि पेड़ों की राख अच्छे उर्वरक का कार्य करती थी। परंतु अंग्रेजों का मानना था कि वन संसाधन उनकी संपत्ति है अतः जेम्स टॉड इस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
- भील महुआ के वृक्ष के फूल से शराब का उत्पादन करते थे इस पर भी जेम्स टॉड के द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया।
- 1813 के चार्टर में ईसाई प्रचार को भारत में ईसाई धर्म फैलाने की स्वतंत्रता या अनुमति दी गई ज्यादा से ज्यादा भील ईसाई धर्म को ग्रहण करने लगे।
• सुरजी भगत को इस बात का श्रेय दिया गया है कि उसने भील जनजाति के द्वारा ईसाई धर्म को अपनाया जा रहा था उस पर सुरजी भगत ने रोक लगाई। सुरजी भगत को ही भीलो का प्रथम समाज सुधारक माना गया है।
2. भील आंदोलन अथवा भगत आंदोलन (Bhil movement or Bhagat movement)
- भगत आंदोलन का नेतृत्व स्वामी गोविंद गिरी ने किया था।
• स्वामी गोविंद गिरी के बारे में
- जन्म – 1858
- कहां पर हुआ – डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव में बंजारा परिवार में हुआ।
- गुरु – राजगिरी
• 1881 में दयानंद सरस्वती उदयपुर की यात्रा पर आए थे। गोविंद गिरी ने उनसे मुलाकात की व इनसे प्रेरित होकर 1883 में सिरोही में सम्प सभा की स्थापना की।
- इस सभा के कुल 10 नियम थे जिनकी पालना गोविंद गिरी की अनुयायियों को करनी होगी इसलिए गोविंद गिरी के संप्रदाय को दशनामी संप्रदाय का गया।
- सम्प गुजराती भाषा का शब्द है जिसका अर्थ एक समान बंधुत्व अथवा भाईचारा होता है।
- 1903 में सम्प का पहला अधिवेशन मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा) मैं आयोजित किया गया।
- इसके बाद गोविंदगिरी पर बागड़ रियासत में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया तथा गोविंदगिरी सूथ व ईडर (गुजरात) में चले गए। व सूथ के उकरेली गांव में एक हाली के रूप में काम किया।
- 1908 में गोविंद गिरी लौटे और बेडसा गांव में भगत पंथ की स्थापना की। इसके बाद पुनः गोविंद गिरी पर प्रतिबंध लगाया गया अक्टूबर 1913 में गोविंद गिरी लौटे व मानगढ़ पहाड़ी पर अपनी धूनी स्थापित की।
• सभी भील इस पहाड़ी पर एकत्रित होने लगे।
- सरकार ने इनकी गतिविधियों की जांच हेतु गुल मोहम्मद नामक सिपाही को भेजा जिसकी भीलो ने हत्या कर दी। अतः 10 नवंबर 1913 को मेवाड़ भील कोर 34 वी राजपूत बटालियन व वेलेजली राइफल के सैनिकों ने इस पहाड़ी को घेर लिया।
- 17 नवंबर के दिन गोलाबारी की गई। इसमें 1500 से 2000 भील मारे गए।
- सर्वप्रथम पूंजा भील ने आत्मसमर्पण किया इसी ने गोविंद गिरी को आत्मसमर्पण के लिए राजी किया था।
- अहमदाबाद न्यायालय में इन पर मुकदमा चलाया गया व 15 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।
- गोविंद गिरी ने अपना शेष जीवन गुजरात के कंबोई नामक स्थान पर व्यतीत किया।
3. सम्प सभा आंदोलन का इतिहास एक नजर में (History of Samp Sabha movement at a glance )
- स्थापना – 1883 में
- संस्थापक – स्वामी गोविंद गिरी
- प्रथम अध्यक्ष – स्वामी दयानंद सरस्वती
- समकालीन जागीरदार – राव अभय सिंह के काल की घटना
- अधिवेशन केंद्र – मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा)
- घटना चक्र – 17 नवंबर 1913
- उपस्थिति गाण – 15000 लोग (भील समाज के)
- गोलीकांड – सार्जेंट नामक अंग्रेज ने
- क्षतिग्रस्त – 1500 भील मारे गए
- घटना नामित – 1913-1920 तक मानगढ़ कांड
• note :- 1. 1889 मैं अजमेर शहर से जारी राजस्थान समाचार पत्र (प्रथम हिंदी राजनीतिक दैनिक) के संपादक मुंशी समर्थनाथ चारण ने 1920 के अंत में मानगढ़ कांड को प्रथम जलियांवाला कांड नामित किया है।
2. 2012 को मानगढ़ कांड का शताब्दी वर्ष अशोक गहलोत की अध्यक्षता में मनाया गया जिसमें 12 करोड़ रुपए की लागत जनजातीय विकास के खर्चे करने का ऐलान किया।
3. मानगढ़ धाम में प्रतिवर्ष अश्विन पूर्णिमा के दिन इन शहीदों की याद में विशाल मेला लगता है।
4. एकी आंदोलन अथवा भोमट (Eki movement or Bhomat movement )
- नेतृत्व – मोतीलाल तेजावत (आदिवासियों का मसीहा)
- आंदोलन का प्रारंभ – 1. 1920 मातृकुंडिया चित्तौड़ से। 2. 1921 झामरकोटडा उदयपुर से।
- आंदोलन की विषय वस्तु/कारण – 1. 1893 का अफीम राइफ एक्ट 2. झूमिंग खेती पर प्रतिबंध
- झूमिंग खेती के उपनाम – 1. वालर कृषि 2. चिमाता कृषि
- कृषि का उपयोग करने वाले भील व गरासिया जाति के लोग थे।
- मोतीलाल तेजावत का दृष्टिकोण – गांधीवादी दृष्टिकोण
• सामान्य जनता की मांगों को सरकार के सामने रखने के लिए पत्र जारी किया गया- मेवाड़ की पुकार जो कि मेवाड़ी भाषा में लिखा गया।
- आंदोलन में योगदान देने वाली संस्था :- मेवाड़ भील कोर संघ
- स्थान – चित्तौड़
- संस्था का समय – 1841
- संस्थापक – धीर भाई भील
- समकालीन गवर्नर जनरल – लॉर्ड डलहौजी (आधुनिक भारत का निर्माता)
- संगठन को संरक्षण – 1853 में जे. सी. बुकर के द्वारा।
नोट :- 1. उपरोक्त संगठन को सहयोग मोतीलाल तेजावत आंदोलन के तहत प्राप्त होने लगा।
2. मोतीलाल तेजावत 1929 से 1936 तक ईडर पुलिस के पास बंधक रहा। अतः 12 मार्च 1930 को गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग नहीं ले सका।
3. 1944 में लॉर्ड वेवेल को तेजावत ने ज्ञापन दिया लॉर्ड वेवेल ने प्रतिबंध हटा लिए तथा मोतीलाल तेजावत ने इस आंदोलन की समाप्ति की घोषणा की।
एकी या भोमट आंदोलन का इतिहास
- मोतीलाल तेजावत के आंदोलन को एकी इसलिए कहा गया है कि उन्होंने भीलो के दोनों वर्ग भोमिया व गरासिया को एक करने के लिए यह आंदोलन चलाया।
- 1921 में तेजावत के नेतृत्व में भील चित्तौड़ की राशमी तहसील मातृकुंडिया नामक स्थान पर एकत्रित हुए
- सरकार के समक्ष 21 मांगे प्रस्तुत की जिन्हें मेवाड़ की पुकार कहा गया। इनमें से तीन मांगे अस्वीकार कर दी गई फिर भी तेजावत ने अपना आंदोलन जारी रखा।
- इसलिए तेजावत पर मेवाड़ रियासत में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसलिए तेजावत गुजरात चले गए।
- 7 March 1922 को मोतीलाल तेजावत के कहने पर भील किसान नींमडा गांव में एकत्रित हुए जहां स्थानीय जागीरदारों ने इस सम्मेलन पर गोली चलवाई इस गोलीकांड में 1220 भील मारे गए। इसके बाद तेजावत सिरोही रियासत आ गए
• 7 April 1922 को सिरोही के रोहिड़ा गांव में रुके हुए थे दत्त अंग्रेज अधिकारी सेटरन ने गांव को घेर कर गोलीबारी की इससे तेजावत घायल हो गए। बाद में गांधी के कहने पर तेजावत ने खेडब्रह्मा नामक स्थान पर समर्पण कर दिया था
- तेजावत को कुंभलगढ़ के दुर्ग में नजर बंद करके रखा गया।
- भील तेजावत को बड़े पिता के नाम से पुकारते थे।
- मोतीलाल तेजावत को आदिवासियों का मसीहा कहां गया।
5. मीणा आंदोलन (meena protest)
- नेतृत्व – ठक्कर बप्पा
- प्रारंभ क्षेत्र – 1. जयपुर 2. सीकर 3. सवाई माधोपुर
- आंदोलन का कारण – 1. जयराम पेशवा कानून 1918 2. क्रिमिनल एक्ट 1923-24
- मीणा समाज का जन नेता – पंडित बंशीधर शर्मा
- संगठन – मीणा क्षेत्रीय सभा (1920)
- स्थान – जयपुर में
- उद्देशय – मीणा समाज का नेतृत्व करना
प्रथम सत्याग्रह – 1933 में जयपुर में विफल रहा।
दूसरा सत्याग्रह – 1944 में नीम का थाना सीकर
- आयोजक – पंडित बंशीधर शर्मा
- नेतृत्व – जैन मुनि मगन सागर ने
- ज्ञापन दिया – 1944 में जैन मुनि ने लॉर्ड वेवेल को
- लॉर्ड वेवेल ने जयराम पेशवा कानून के अंतर्गत मीणा समाज के स्त्री व बच्चों को छूट दी।
नोट :- 1. 1952 में पंडित नेहरू के आदेश पर राज्य के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल ने जयराम पेशवा कानून का अंत कर दिया था।
2. जैन मुनि मगन सागर ने मीणा समाज पर आदि मीन पुराण साहित्य लिखा जिसमें मीणा जाति की 5200 शाखाओं का उल्लेख है।
मीणा आंदोलन का इतिहास
- जैन मुनि मगन सागर जी के द्वारा मीणा पुराण नामक पुस्तक लिखी गई इसमें लिखा गया कि मीणा प्रारंभ में शासक हुए तथा इनका राज्य ढूंढाड मैं था।
- मीणा ने दोसा के बड़ गुर्जरों के विरुद्ध आमंत्रण देकर नरवर (मध्य प्रदेश) से कच्छावा वंश के शासक तेजकरण या दूल्हे राय को बुलाया।
- प्रारंभ में उन्होंने बड़ गुर्जरों को पराजित किया परंतु बाद में कछवाहो ने मीणा को ही पराजित कर दिया।
- जिन मीणाओं की खेती योग भूमि थी उन्हें जमीदार मीणा कहा गया। तथा जिनको रियासत की सुरक्षा सौंपी उन्हें चौकीदार मीणा कहा गया
- रियासत में कोई भी चोरी होने पर उसका भुगतान चौकीदार मीणाओं को ही करना होता था। बाद में चौकीदार मीणाओं ने चोरी करना प्रारंभ कर दिया था।
• 1924 में क्रिमिनल tribal act लागू हुआ
• 1920 में जयपुर रियासत के द्वारा जयराम पेशा कानून लागू किया गया इसके तहत 12 वर्ष से अधिक आयु के सभी मीणाओं को आपने निकटवर्ती स्थानों सुबह शाम उपस्थित होकर हाजिरी देनी होती थी।
- इसके विरोध में 1933 में मीणा क्षेत्रीय सभा गठित की गई अप्रैल 1944 को चौकीदार मीणा का सम्मेलन नीमकाथाना सीकर में आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता मुनि मगन सागर जी ने की थी।
- इसी सम्मेलन में जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति गठित की गई जिसके अध्यक्ष पंडित बंशीधर शर्मा बनाए गए।
- 31 दिसंबर 1945 व 1 जनवरी 1946 को उदयपुर में अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद का अधिवेशन आयोजित हुआ। इसकी अध्यक्षता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी।
- पिछड़ी जातियों के मसीहा के नाम से प्रसिद्ध ठक्कर बाप्पा ने नेहरू से मुलाकात की व इस एक्ट के बारे में बताया
- नेहरू ने जयपुर के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल को पत्र लिखा।
- 1946 में बच्चे व महिलाओं को इस एक्ट के तहत उपस्थित होने से छूट प्रदान की गई तथा 1952 में इसे पूरे एक्ट को समाप्त कर दिया गया।
6. मेव आंदोलन(Meo Movement)
- औरंगजेब के समय हिंदुओं को इस्लाम धर्म में परिवर्तित किया गया तथा यह परिवर्तित मुसलमान मेल कहलाए।
- मत्स्य क्षेत्र में शासक शिकार के लिए जंगली सूअरों को पालते थे ये सूअर मेवों की फसल को बर्बाद करते थे। इसी कारण से मेवों के द्वारा सूअर का शिकार किया जाता था।
- जिस पर 1927 में अलवर के शासक जयसिंह ने प्रतिबंध लगा दिया।
- करौली के युवक मदन पाल ने इसके लिए भूख हड़ताल भी रखी।
- 1932 में मोहम्मद हादी ने भरतपुर में अंजुमन खालिद अल इस्लाम नामक संस्था बनाई इसके बाद इसका नेतृत्व गुड़गांव के नेता चौधरी यासीन खान के द्वारा किया गया।
- जिस कारण से यह हिंदू व मेव के मध्य सांप्रदायिक दंगों में बदल गया।
- 1933 में तिजारा (अलवर) मैं सांप्रदायिक दंगे भड़के जिन्हें रोकने के लिए जयसिंह नाकाम रहा इसलिए इसे भारत से निष्कासित कर दिया गया।
राजस्थान में प्रमुख जन आंदोलन एवं क्रांतिकारी घटनाएं
- तोल आंदोलन( tol movement)
- यह आंदोलन जोधपुर रियासत में चांदमल सुराणा के नेतृत्व में चलाया गया था।
- यह आंदोलन 1920-21 ईसवी में जोधपुर रियासत द्वारा 100 तोल के सेर को 80 तोल के सेर में बदलने के विरोध में चलाया गया था।
2. शुद्धि आंदो लन(Purification movement)
- संबंध – भरतपुर (1928)
- नेतृत्व – गोकुल जी वर्मा के द्वारा
- घटना – 1. जबरन धर्म परिवर्तन की घटना 2. मानव तस्करी को प्राथमिकता 3. मांस व्यापार को प्राथमिकता
- घटना के समय समकालीन जागीरदार – राव कृष्ण सिंह
- शुद्धिकरण के लिए आमंत्रण – स्वामी दयानंद सरस्वती को
नोट :- भारत में शुद्धि आंदोलन के प्रणेता स्वामी दयानंद सरस्वती थे जिन्होंने 1881-82 में शुद्धि आंदोलन को प्रारंभ किया।
- 1921 ईसवी में महाराजा कृष्ण सिंह द्वारा राजस्थान में यह आंदोलन चलाया गया।
3. मेयो कॉलेज बम कांड(Mayo College Bomb Scandal)
- 1934 ईस्वी में भारत के वायसराय लोड वेलिंगटन की अजमेर यात्रा के दौरान ज्वाला प्रसाद और फतेह चंद जैसे क्रांतिकारी ने उनकी हत्या की योजना बनाई परंतु पुलिस की सक्रियता के कारण या योजना असफल हो गई।
- मेयो कॉलेज की स्थापना 1875 ईसवी में अजमेर में की गई थी जिसका मुख्य उद्देश्य राजकुमारों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजों को प्रति स्वामी भक्त बनाना था।
- मेयो कॉलेज में सर्वप्रथम अलवर महाराजा मंगल सिंह ने प्रवेश लिया था।
4. तसिमो कांड(Tasimo scandal)
- 11 अप्रैल 1946 के दिन धौलपुर रियासत के तसिमो गांव मैं कांग्रेस के एक सभा के दौरान तिरंगे की रक्षा के लिए ठाकुर छतर सिंह और ठाकुर पंचम सिंह रियासती पुलिस की गोले का शिकार हुए।
5. नीमेजआरा हत्याकांड
- 1914 ईस्वी में केसरी सिंह बारहठ, अर्जुन लाल सेठी तथा मोती चंद्र ने मिलकर निमेजआरा मैं डकैती की योजना बनाई।
- इस डकैती के दौरान महंत की हत्या कर दी गई।
- इस हत्याकांड के आरोप में मोतीचंद को फांसी की सजा सुनाई गई तथा अर्जुन लाल सेठी को 7 वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई।
6. डाबड़ा कांड(Dabra scandal)
- 13 मार्च 1947 को डाबड़ा गांव में मारवाड़ लोक परिषद द्वारा एक किसान सम्मेलन आयोजित किया गया।
- डाबड़ा के जागीरदारों ने इस सम्मेलन पर गोली चलवाई इस गोलीकांड में चुन्नीलाल शर्मा सहित 4 किसान मारे गए।
7. पूनावाड़ा कांड
- मई 1947 ईस्वी में डूंगरपुर रियासत के पुनवाड़ा गांव में पाठशाला की इमारत को रियासती सैनिक द्वारा नष्ट कर दिया गया तथा इस पाठशाला के अध्यापक शिवराम भील को बुरी तरह से पीटा गया।
8. रास्तापाल कांड
- घटना – 19 जून 1947 की
- प्रमुख – काली बाई भील
काली बाई भील के बारे में
- गांव – रास्तापाल
- पंचायत समिति – सीमलवाडा
- तहसील – सागवाड़ा
- जिला – डूंगरपुर
- काली बाई के आदर्श – नाना भाई भील
- काली बाई के शिक्षक – सेंगा भाई
• समकालीन जागीरदार – राव अभय सिंह के काल की घटना
- घटना का विषय – सेंगा भाई को जमीदार के आदेश से सेहू गांव डूंगरपुर में लाया गया और गाड़ी के बांधकर कठोर यातनाएं दी गई
- काली बाई भील ने रस्सी काट कर अपने गुरु की जान बचाई परंतु खुद शहीद हो गई और उन्हें बचाते हुए नाना भाई भील भी शहीद हो गए।
- दोनों के स्मारक के गैप सागर झील के किनारे बनाए गए हैं। स्मारक का उद्घाटन 1956 में मोहनलाल सुखाड़िया के द्वारा किया गया
- उपरोक्त घटना के समय डूंगरपुर रियासत के शासक रावल लक्ष्मण सिंह थे।
9. हार्डिग बम कांड
- 23 दिसंबर 1912 को भारतीय गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग के जुलूस पर दिल्ली के चांदनी चौक में राजस्थान के क्रांतिकारी जोरावर सिंह बारहठ व प्रताप सिंह बारहठ ने बम फेंका इस बम कांड में लॉर्ड हार्डिंग बच गए परंतु उनका अंगरक्षक मारा गया।
- प्रताप सिंह बारहठ को गिरफ्तार करके बरेली जेल में रखा गया जहां 27 मई 1918 के दिन जेल में यातना सहते हुए प्रताप सिंह की मृत्यु हो गई
- अंग्रेज अधिकारी चार्ल्स क्लीवलैंड ने प्रताप से कहा था कि ” तेरी मां तेरे लिए दिन रात रोती है”
राजस्थान के जनजाति आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
Q. 1 किस पंचायत की स्थापना 1916-17 में की गई उस संगठन का नाम था ?
उत्तर – बिजोलिया
Q.2 मेवाड़ का बिजोलिया आंदोलन किसके नेतृत्व में हुआ था ?
उत्तर – विजय सिंह पथिक
Q. 3 बेगू किसान आंदोलन में कौन नेता शहीद हुए ?
उत्तर – कृपा जी
Q. 4 जयपुर में सर्वप्रथम जन चेतना का सूत्रपात किसने किया ?
उत्तर – अर्जुन लाल सेठी
Q. 5 बिजोलिया आंदोलन में कौन से जाति के किसान सर्वाधिक संख्या में थे ?
उत्तर – धाकड़ जाति
Q. 6 मोतीलाल तेजावत का एकी आंदोलन कहां से प्रारंभ हुआ ?
उत्तर – चित्तौड़गढ़ से
Q. 7 रूपा जी व कृपा जी किसान नेता का संबंध किस आंदोलन से है ?
उत्तर- बेगू
Q. 8 नींमडा हत्याकांड किस से संबंधित है?
उत्तर- एक के आंदोलन से
Q. 9 सूअर आंदोलन किस राज्य से संबंधित था ?
उत्तर- अलवर किसान आंदोलन से
Q. 10 राजस्थान में भील आंदोलन के मुख्य कौन थे ?
उत्तर – गुरु गोविंद गिरी
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राजस्थान के जनजाति आंदोलन
राजस्थान के जनजाति आंदोलन
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