राजस्थान के दर्शनीय स्थल
दर्शनीय स्थल
बूंदी के दर्शनीय स्थल
चौरासी खम्भों की छतरी –
बूंदी शहर से लगभग डेढ किलोमीटर दूर कोटा मार्ग पर यह भव्य छतरी स्थित हैं। राव राजा अनिरूद्व सिंह के भाई देवा द्वारा सन् 1683 में इस छतरी का निर्माण करवाया गया था। चौरासी स्तम्भों की यह विशाल छतरी नगर के दर्शनीय स्थलों में से एक हैं।
तारागढ दुर्ग –
बूंदी शहर का प्रसिद्व दुर्ग जो पीले पत्थरों का बना हुआ हैं, तारागढ के दुर्ग के नाम से प्रसिद्व हैं। इसका निर्माण राव राजा बरसिंह ने 1354 में बनवाया था।
रामेश्वर-
बूंदी से 25 किलोमीटर दूर रामेश्वर प्रसिद्व पर्यटक स्थल हैं। यहाँ का जल प्रपात और शिव मंन्दिर प्रसिद्व हैं।
खटखट महादेव-
बूंदी नैनवा मार्ग पर खटखट महादेव का प्रसिद्व मंदिर स्थित हैं। यहाँ का शिवलिंग खटखट महादेव के नाम से प्रसिद्व हैं।
इन्द्रगढ-
यह पश्चिमी-मध्य रेल्वे के सवाईमाधोपुर-कोटा रेल खण्ड पर स्थित हैं। यहाँ से 20-25 किलोमीटर दूर इन्द्रगढ की माता जी का मंदिर स्थित हैं जहाँ प्रतिवर्ष एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता हैं।
नवलसागर-
तारागढ दुर्ग की पहाडी की तलहटी में स्थित नवलसागर तालाब प्रसिद्व हैं। इसके बीच में एक मंदिर तथा छतरी बनी हुई हैं। इसका निर्माण महाराव राज उम्मेद सिंह द्वारा करवाया गया ।
रानी जी की बावडी-
बूंदी को बावडियों का शहर भी कहते हैं। राव राजा अनिरूद्व सिंह की रानी नाथावती द्वारा 1699 में इस बावडी का निर्माण कराया था।
जैतसागर-
शहर के निकट जैतसागर तालाब स्थित है। इसका निर्माण जैता मीणा द्वारा करवाया गया था। इसकी पाल पर सुख् महल बना हुआ हैं। जिसका निर्माण राजा विष्णु सिंह ने करवाया था। तालाब के किनारे पहाडी ढलान पर एक मनोरम टेरेस गार्डन बना हुआ है । जैतसागर तालाब में पैडल बोट के द्वार नौका विहार का
आनन्द लिया जा सकता है।
फूलसागर-
बूंदी शहर से 7 किलोमीटर दूर स्थित फूलसागर तालाब स्थित हैं। इसका निर्माण राव राजा भोज सिंह की पत्नि फूल लता ने 1602 में करवाया था।।
भीरासाहब की दरगाह –
बूंदी शहर में निकट की पहाडी चोटी पर मीरा साहब की दरगाह बनी हुई हैं। यह दरगाह दूर से ही दिखाई देती हैं।
बाण गंगा-
बूंदी के उत्तर में शिकार बुर्ज के पास बाण गंगा एक प्रसिद्व धार्मिक स्थल हैं। यह स्थान कैदारेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता हैं।
क्षारबाग –
बूंदी राज्य के भूतपूर्व राजाओं की अनेक छतरियाँ जैतसागर औ शिकार बुर्ज के मध्य स्थित हैं। इन्हें क्षारबाग की छतरियों के नामे जाना जाता हैं।
शिकार बुर्ज –
जैतसागर से 3 किलोमीटर दूर शिकार बुर्ज स्थित हैं। इसका निर्माण शिकार खेलने के लिए करवाया गया था। शिकार बुर्ज के निकट ही चौथ माता का मन्दिर स्थित हैं।
भीमलत-
बूंदी से 24 किलोमीटर दूर भीमलत एक धार्मिक और प्रमुख पर्यटक स्थल हैं। यहाँ का जल प्रपात 150 फीट ऊंचा हैं। बरसात के दिनों में यहाँ का दृश्य बहुत ही मनोहारी होता हैं। नीचे एक शिव मंदिर बना हुआ हैं।
लाखेरी-
बूंदी से 60 किलोमीटर दूर पश्चिमी-मध्य रेल्वे के दिल्ली-मुम्बई रेलमार्ग पर स्थित हैं। राजस्थान की पहली सीमेंट फैक्ट्री 1912-13 में यहाँ स्थापित की गई थी। यहाँ से तुगलक कालीन सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।
केशोरायपाटन-
(46 किमी) यह एक प्राचीन शहर हैं जो चम्बल नदी के किनारे स्थित हैं।यहाँ जो लेख पाये जाते हैं वो 1 शताब्दी ईस्वी के हैं। नदी के किनारे केसरिया जी (विष्णु का स्वरूप) का प्रसिद्व मंदिर स्थित हैं। यहाँ एक चीनी मील कार्यरत हैं जो सहकारी क्षेत्र में स्थित हैं।
अभयारण्य –
बुन्दी जिले मे वन क्षेत्र राज्य के औसत 9 प्रतिशत से कहीं अधिक है। जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 5530 वर्ग किलामीटर में से 1569.28 वन क्षेत्र है जो कि लगभग 28 प्रतिशतहै। जिले में विन्ध्याचल एवं अरावली पर्वतमाला है, परन्तु ज्यादातर भाग विन्धयाचल पर्वतमाला का है। यहां के वन पतझड़ वाले शुल्क वन श्रेणी के है जिनमे मुख्य वृक्ष प्रजाति धोक है। मुख्य वनस्पति: धाके , पलाश, खेर, करे , सालर, विलायती बबलू है जबकि मुख्य वन्यप्राणी: तेन्दुआ, भालु, कृष्ण मृग, सांभर, चीतल, बिज्जु, काली पुछं का नेवला, जंगली सुअर है। मुख्य पक्षी: सारस, जंगली मुर्गा है।
जिले मे कुल तीन अभयारण्य है।
रामगढ़ –
रामगढ़ अभयारण्य: रामगढ़ अभयारण्य की स्थापना 20 मई 1982 को हुई। इसका क्षेत्रफल 307 वर्ग कि.मी. है। इसके मुख्य आर्कषण में सघन वन, रामगढ़ महल एंव मजे नदी है। बाघ यहां नब्बे के दशक तक था। उसका स्थान अब तेन्दुआ ने ले लिया है। रामगढ़ में कई ट्रेकिगं रास्ते है जिनके द्वारा इसकी जैव विविधता का आनन्द उठाया जा सकता है। इसमें प्रवेश के लिये फिलहाल टिकिट व्यवस्था मण्डल कार्यालय बुन्दी से ही है।
राष्ट्रीय घड़ियाल अभयारण्य :
चम्बल नदी के एक किमी. चोडी पट्टी मे यह अभयारण्य केशोराय पाटन से आरम्भ होकर
सवाईमाधोपुर की सीमा तक है। घडिय़ाल व मगर संरक्षण वास्ते इस क्षेत्र का अभयारण्य घोषित किया है।
जवाहर सागर –
जवाहर सागर अभयारण्य का नियंत्रण वन मण्डल कोटा (वन्यजीव) द्वारा होता है।
चितौडगढ के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Chittodgarh )
वास्तु की दृष्टि से राजस्थान स्थित चित्तौड़गढ़ का शुमार भारत के उन स्थलों में है जो अपने महलों, किलों और मौजूद वास्तुकला के कारण भारत के अलावा दुनिया भर के पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। यदि बात पर्यटन की हो तो शहर का प्रमुख आकर्षण चित्तौड़गढ़ किला है, जो 180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इस किले में कई स्मारक है, जिनमें से प्रत्येक के निर्माण के पीछे कुछ कहानी है।
यहां सांवरियाजी मंदिर, तुलजा भवानी मंदिर, जोगिनिया माता जी मंदिर और मत्री कुंडिया मंदिर, बस्सी वन्य जीवन अभ्यारण्य, पुरातत्व संग्रहालय और मेनाल प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
चित्तौड़गढ़ किला ( Chittorgarh Fort )
चित्तौड़गढ़ किला एक भव्य और शानदार संरचना है जो चित्तौड़गढ़ के शानदार इतिहास को बताता है। यह इस शहर का प्रमुख पर्यटन स्थल है। एक लोककथा के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्य ने 7 वीं शताब्दी के दौरान किया था। यह शानदार संरचना 180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और लगभग 700 एकड़ के क्षेत्र में फैली हुई है। यह वास्तुकला प्रवीणता का एक प्रतीक है जो कई विध्वंसों के बाद भी बचा हुआ है।
बस्सी वन्य जीवन अभ्यारण्य बस्सी
वन्य जीवन अभ्यारण्य बस्सी गांव के पास स्थित है जो 50 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। पश्चिम में विंध्याचल श्रेणियों द्वारा घिरा हुआ यह क्षेत्र प्रकृति प्रेमियों की खुशी के लिए एक सुरम्य दृश्य प्रस्तुत करता है। बहुत से जंगली जानवरों जैसे चीता, जंगली सूअर, नेवले और हिरणों का प्राकृतिक आवास होने के कारण यह स्थान वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए आकर्षक गंतव्य स्थान है।
मीरा मंदिर
मीरा मंदिर मीराबाई से जुड़ा हुआ एक धार्मिक स्थल है। उन्होंने राजसी जीवन की सभी विलासिता को त्याग कर भगवान कृष्ण की भक्ति में अपना जीवन व्यतीत किया। मीराबाई ने अपना सारा जीवन भगवान कृष्ण के भजन और गीत गाने में बिताया। मीरा मंदिर राजपूताना शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। यह कुम्भाश्याम मंदिर के निकट स्थित है। मंदिर के निर्माण में उत्तर भारतीय शैली का प्रयोग किया गया है।
पद्मिनी का महल
यह महल चित्तौड़गढ़ किले में स्थित है और रानी पद्मिनी के साहस और शान की कहानी बताता है। महल के पास सुंदर कमल का एक तालाब है। ऐसा विश्वास है कि यही वह स्थान है जहां सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के प्रतिबिम्ब की एक झलक देखी थी। रानी के शाश्वत सौंदर्य से सुलतान अभिभूत हो गया और उसकी रानी को पाने की इच्छा के कारण अंतत: युद्ध हुआ। इस महल की वास्तुकला अदभुत है और यहां का सचित्र वातावरण यहां का आकर्षण बढ़ाता है। पास ही भगवान शिव को समर्पित नीलकंठ महादेव मंदिर है। यह मंदिर भी काफी आकर्षक है। इस स्थान पर वर्षभर पर्यटकों का तांता लगा रहता है।
गोमुखकुंड
गोमुखकुंड, प्रसिद्द चितौड़गढ़ किले के पश्चिमी भाग में स्थित एक पवित्र जलाशय है। गोमुख का वास्तविक अर्थ ‘गाय का मुख’ होता है। पानी, चट्टानों की दरारों के बीच से बहता है व एक अवधि के पश्चात जलाशय में गिरता है। यात्रियों को जलाशय की मछलियों को खिलाने की अनुमति है। इस जलाशय के पास स्थित रानी बिंदर सुरंग भी एक विख्यात आकर्षण है
विजयस्तम्भ_
विजयस्तम्भ_का नाम मात्र सुनने भर से चित्तौड़गढ़ के अभेद्य दुर्ग पर स्थित इस अनूठी इमारत की कृति मानस पटल पर बन आती है | विश्वप्रसिद्ध विजयस्तम्भ मेवाड़ की दीर्घ कालीन राजधानी और वीरता व पराक्रम के प्रतीक चितौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित है |
विजयस्तम्भ (Victory Tower) के निर्माण की कहानी हमें इतिहास के पन्नों को पलटने को मज़बूर कर देती है | इतिहासकार बताते है कि विजय स्तम्भ का निर्माण 1437 में मेवाड़ नरेश राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय हासिल करने के बाद विजय प्रतीक (Victory Tower) के रूप में बनवाया था |
इतिहासकार बताते है कि राणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद को ना केवल युद्ध में हराया , बल्कि उसे चितौड़गढ़ में छह माह तक बंदी भी बनाकर रखा. “बाबरनामा” में इस प्रसंग का भी वर्णन मिलता है कि महाराणा सांगा को खानवा के मैदान में हराने के बाद बाबर ने उनके राजकोष से वह मुकुट भी प्राप्त किया जिसे राणा सांगा के दादा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान से जीता था.इतिहासकार बताते है कि विजयस्तम्भ के वास्तुकार राव जैता थे |
फतेह प्रकाश महल
राजपूत वास्तु शैली में यह महल, महाराणा फतेह सिंह द्वारा उनके निवास स्थान के रूप में बनाया गया था। उनकी रूचि कला और संस्कृति में थी और इसीलिए इस महल में बस्सी गाँव के लकड़ी के शिल्प, रष्मि गाँव की जैन अंबिका और इन्द्र की पूर्व मध्ययुगीन मूर्तियाँ, प्राचीन हथियार, वेश भूषा, पेंटिग्स, क्रिस्टल के बर्तन आदि का अनूठा संग्रह यहाँ रखा गया। अब इस महल को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।
कुंभ श्याम मंदिर
राणा कुंभा के शासन के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया गया था। उस समय की लोकप्रिय इंडो – आर्यन शैली में बने इस मंदिर का अटूट सम्बन्ध, राजकुमार भोजराज की पत्नी कवियित्री ’मीरां बाई’ से रहा है। मीरां बाई को, भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त और संगिनी के रूप में सारा जग जानता है।
नगरी
बेडच या बेराच नदी के तट पर स्थित नगरी गाँव है, जो कि चित्तौड़गढ़ से 18 कि.मी. उत्तर में स्थित है। यह प्राचीन युग में ’माझीमिका’ या माध्यमिका’ नाम से जाना जाता था। इसका उद्भव 443 ई. पू. माना जाता है। मौर्य काल में यह एक समृद्ध तथा विकसित नगर था तथा गुप्त काल तक इसी तरह रहा।
यहाँ की गई खुदाई में हिंदू तथा बौद्ध प्रभाव के ठोस संकेतों के रूप में कई पुराने सिक्के तथा पंचमार्क सिक्के पाए गए। नगरी या नागरी पर प्रथम शताब्दी में सिब्बी जनजातियों का शासन होने के प्रमाण स्वरूप ‘सिब्बी’ जनजाति के सिक्के मिले, जिन पर ‘‘मझिमिकाया सिबी जनपदासा’’ अंकित है। पुष्यमित्र शुंग के समकालीन पतंजलि ने अपने महाभाष्य में 150 ई.पू. मझिमिका पर यवन (ग्रीक) हमले में, सिब्बी जनजातियों को हराने का, उल्लेख किया है।
तत्पश्चात् दूसरी शताब्दी में नगारी क्षत्रियों के प्रभाव में आया। तीसरी शताब्दी में यहाँ मालवा शसक का अधिकार था। बाद में हूण राजा द्वारा इस पर विजय प्राप्त की गई। नागरी के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में, आकर्षक शिव मंदिर, हाथियों का बाड़ा और प्रकाश स्तम्भ शामिल हैं।
कीर्ति स्तम्भ
यह विशाल स्तम्भ, जैन तीर्थंकर तथा महान शिक्षाविद् आदिनाथ जी को समर्पित है। एक धनी जैन व्यापारी जीजा बघेरवाल तथा उसके पुत्र पुण्य सिंह ने, 13वीं शताब्दी में बनवाया था। यह 24.5 मीटर ऊँचा हिन्दू स्थापत्य शैली में बना, विजय स्तम्भ से भी पुराना है। इस 6 मंज़िले स्तम्भ पर जैन तीर्थांकरों की तथा ऊपरी मंजिलों में सैंकड़ों लघु मूर्तियां शिल्पांकित की गईं हैं।
जैन मन्दिर
चित्तौड़ के क़िले के अन्दर छह जैन मंदिर हैं। इनमें सबसे बड़ा भगवान आदिनाथ का मंदिर है जिसमें 52 देवकुलिकाएं हैं।
कालिका माता मंदिर
मूलरूप से सूर्य को समर्पित इस मंदिर को निर्माण राजा मानभंग ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। क्षैतिज योजना में मुदिर पंचरथ गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा मुख मंडप युक्त है। मंडप पारिश्व आलिन्द युक्त है। गर्भगृह की द्वार शाखा के उतरंग के मध्य ललाट बिम्ब में सूर्य की प्रतिमा है। मध्य काल में लगभग 14वीं शताब्दी में शाक्त मंदिर के रूप में परिवर्तित हो गया और यहां शक्ति और वीरता की प्रतीक देवी कालिका माता की उपासना की जाने लगी तभी से यह मंदिर कालिका माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
तुलजा भवानी मंदिर
यह मंदिर 16वीं सदी में चित्तौड़ के शासक विक्रमादित्य की हत्या कर सत्ता हस्तगत करने वाले बनवीर ने कुंभा महल से पहले स्थित अपनी आराध्य देवी दुर्गा माता को समर्पित इस मंदिर का निर्माण करवाया था। किवंदती के अनुसार बनवीर ने मंदिर बनवाने के लिए, अपने वज़न के बराबर स्वर्ण आभूषण दान दिए थे। इसीलिए इस मंदिर का नाम ’तुलजा मंदिर’ रखा गया।
रतन सिंह पैलेस
शाही परिवार का इस महल में सर्दियों के मौसम में निवास रहा करता था। पर्यटकों को यह पैलेस तथा थोड़ी दूरी पर स्थित झील काफी आकर्षित करते हैं।
राणा कुम्भा पैलेस
सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्मारक राणा कुम्भा पैलेस – अपने ऐतिहासिक महत्व और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। आज खण्डहर में तब्दील हुए इस महल में भूमिगत तहखाने हैं, जहाँ रानी पद्मिनी के साथ कई रानियों और राजपूत स्त्रियों ने ‘‘जौहर’’ (आत्म बलिदान) किया था।
कुंभ श्याम मंदिर
राणा कुंभा के शासन के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया गया था। उस समय की लोकप्रिय इंडो – आर्यन शैली में बने इस मंदिर का अटूट सम्बन्ध, राजकुमार भोजराज की पत्नी कवियित्री ’मीरां बाई’ से रहा है। मीरां बाई को, भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त और संगिनी के रूप में सारा जग जानता है।
मीरां बाई मंदिर
इस मंदिर का स्वरूप उत्तर भारतीय शैली में मीरां बाई के पूजा स्थल के रूप में किया गया था। इसकी विविधता, इसकी कोणीय छत है, जिसे दूर से ही देखा जा सकता है। यह मंदिर चार छोटे मंडपों से घिरा है और एक खुले आंगन में बनाया गया है।
भैंसरोडगढ़ फोर्ट
यह भव्य आकर्षक किला, 200 फुट ऊँची सपाट पहाड़ी की चोटी पर, चम्बल और ब्रह्माणी नदियों से घिरा हुआ है। उदयपुर से 235 कि.मी. उत्तर पूर्व तथा कोटा से 50 कि.मी. दक्षिण में यह क़िला बहुत शानदार और समृद्ध है। इस क़िले की सुन्दरता से अभिभूत होकर, ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स टॉड ने कहा था कि यदि उन्हें राजस्थान में एक जागीर (संपत्ति) की पेशकश की जाए तो वह ’भैंसरोड गढ़’ को ही चुनेंगे।
उल्लेखनीय इतिहास के अनुसार, इसे सलूम्बर के रावत केसरी सिंह के पुत्र रावत लाल सिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। 1783 ई. में मेवाड़ के महाराणा जगत सिंह द्वितीय द्वारा यह क़िला एक जागीर के रूप में लाल सिंह को दिया गया था। कोई सटीक जानकारी न मिलने के कारण, इस क़िले के निर्माण के सम्बन्ध में कुछ सही नहीं कहा जा सकता। हालांकि यह क़िला दूसरी शताब्दी में निर्मित किया गया, ऐसा माना जाता है। कई वंशों के अधीन रहने के बाद ऐसी मान्यता है
कि अलाउद्दीन खिलजी ने भी इस क़िले पर हमला किया था तथा यहाँ के सभी पुराने मंदिर और इमारतों को नष्ट कर दिया था। वर्तमान में इस क़िले को शाही परिवार द्वारा एक शानदार हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जा रहा है। तीन तरफ नदियों से घिरे तथा अरावली पर्वत माला व घने जंगलों के बीच स्थित इस क़िले की खूबसूरती, देशी व विदेशी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है।
सांवलिया जी मंदिर
राजस्थान और मध्यप्रदेश के सीमा पर विश्व प्रसिद्ध सांवलिया सेठ का यह मंदिर चित्तोड़गढ़ में मंडफिया में पड़ता है | यहा सांवलिया सेठ के तीन मंदिर है | चित्तौड़गढ़ से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांवलिया जी का मंदिर राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है।
दौसा के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Dausa)
चाँद बावड़ी – आभानेरी
राजा चंद्र द्वारा स्थापित, जयपुर-आगरा सड़क पर आभानेरी की चाँद बावड़ी, दौसा ज़िले का मुख्य आकर्षण है। इसका असली नाम ’आभा नगरी’ था, परन्तु आम बोल चाल की भाषा में आभानेरी हो गया। पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ प्रत्येक वर्ष सितम्बर-अक्टूबर में ‘आभानेरी महोत्सव’ आयोजित किया जाता है। यह दो दिन चलता है तथा पर्यटकों के मनोरंजन के लिए राजस्थानी खाना तथा लोक कलाकारों द्वारा विभिन्न गीत व नृत्य के कार्यक्रम होते हैं। उत्सव के दौरान गाँव की यात्रा ऊँट सफारी द्वारा कराई जाती है।
हर्षद माता मंदिर – आभानेरी
दौसा से 33 कि.मी. दूर, चाँद बावड़ी परिसर में ही स्थित, यह मंदिर हर्षद माता को समर्पित है। हर्षद माता अर्थात उल्लास की देवी। ऐसी मान्यता है कि देवी हमेशा हँसमुख प्रतीत होती है और भक्तों को खुश रहने का आशीर्वाद प्रदान करती है। देवी के मंदिर की स्थापत्य कला शानदार है।
झाझीरामपुरा
पहाड़ियों और जल स्त्रोतों से भरपूर, झाझीरामपुरा प्राकृतिक तथा आध्यात्मिक रूप से समृद्ध है। दौसा से 45 कि.मी. दूर, बसवा (बांदीकुई) की ओर स्थित है। यह स्थान रूद्र (शिव), बालाजी (हनुमान जी) और अन्य देवी देवताओं के मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है।
भांडारेज
महाभारत काल में यह स्थान ’भद्रावती’ के नाम से जाना जाता था। जब कच्छवाहा मुखिया दूल्हा राय ने बड़गुर्जर राजा को हराया और भांडारेज को जीत लिया, यह 11वीं शताब्दी की एतिहासिक घटना है। तभी से इसका इतिहास माना जाता है। इसकी प्राचीन सभ्यता यहाँ की मूर्तियाँ, सजावटी जालियाँ, टैराकोटा का सामान, बर्तन आदि को देखकर, इसकी समृद्ध संस्कृति का पता चलता है। जयपुर से लगभग 65 कि.मी. दूर, जयपुर आगरा राजमार्ग पर, दौसा से 10 कि.मी. दूरी पर भांडारेज स्थित है। यहाँ के क़ालीन दूर दूर तक प्रसिद्ध हैं।
लोट्वाड़ा
जयपुर से लगभग 110 कि.मी. दूर यह एक गढ़ है जो कि 17वीं शताब्दी में ठाकुर गंगासिंह द्वारा बनाया गया था। लोट्वाड़ा ग्रामीण पर्यटन का आकर्षण है, जहां की ग्रामीण संस्कृति और लहलहाती फसलें बड़ी सुहानी लगती हैं। वहां तक पहुंचने के लिए आभानेरी से बस द्वारा यात्रा कर सकते हैं।
बांदीकुई
दौसा से लगभग 35 कि.मी. की दूरी पर है। प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के लिए रोमन शैली का चर्च मुख्य यहां का आकर्षण है। बांदीकुई रेल्वे के बड़े भाग के लिए भी जाना जाता है जहां कि ब्रिटिश समय के निर्माण एवम् रेल्वे कर्मचारियों के बड़े बड़े घर हैं।
धौलपुर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Dholpur )
सिटी पैलेस
इसे धौलपुर महल के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन स्थापत्य कला से परिपूर्ण यह महल, शाही परिवार का निवास स्थान था। पूरा महल लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है तथा प्राचीन इतिहास और भव्यता को दर्शाता है। दक्षिण पूर्व में चंबल के बीहड़ वन और उत्तर पश्चिम में सुंदर आगरा शहर के होने के कारण, सिटी पैलेस में आने वाले पर्यटक, शाही युग की सैर के साथ साथ, प्राकृतिक छटा का भी आनन्द लेते हैं।
शाही बावड़ी
शहर में स्थित, निहालेश्वर मंदिर के पीछे, शाही बावड़ी स्थित है, जो कि सन् 1873 – 1880 के बीच निर्मित की गई थी। यह चार मंज़िला इमारत है तथा पत्थर की नक़्काशी और सुन्दर कलात्मक स्तम्भों के लिए प्रसिद्ध है।
निहाल टावर
राजा निहाल सिंह द्वारा सन् 1880 में शुरू किया गया यह टावर, स्थानीय घंटाघर के रूप में, 1910 के आस पास राजा रामसिंह द्वारा पूरा कराया गया। टाउन हॉल रोड पर बना यह घंटा घर 150 फुट ऊँचा है तथा 120 फुट के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें 12 समान आकार के द्वार हैं।
शिव मंदिर और चौंसठ योगिनी मंदिर
सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक, चोपरा शिव मंदिर, 19वीं सदी में बनाया गया था। प्रत्येक सोमवार को यहाँ भक्तों की भीड़ नजर आती है, क्योंकि सोमवार का दिन भगवान शिव का माना जाता है। इसकी स्थापत्य कला अनूठी है। मार्च के महीने में महा शिवरात्रि के अवसर पर, तीर्थयात्री दूर दूर से आते हैं तथा मेले में भाग लेते हैं।
शेरगढ़ क़िला
जोधपुर के महाराजा मालदेव ने शेरगढ़ क़िला, मेवाड़ के शासकों से रक्षा हेतु बनवाया था। 1540 ई. में दिल्ली के शेरशाह सूरी ने इसका पुननिर्माण करवाया तथा अपने नाम पर इसका नाम शेरगढ़ रखा। यह किला धौलपुर के दक्षिण में स्थित है तथा इसमें बड़ी बारीक़ वास्तुशैली से सुसज्जित, नक़्काशीदार छवियाँ, हिन्दू देवी देवताओं की तथा जैन मूर्तियाँ आकर्षण का केन्द्र हैं। जल स्त्रोतों से संरक्षित शेरगढ़ क़िला, एक ऐतिहासिक इमारत है।
मुचकुंड
सूर्यवंशीय साम्राज्य के 24वें शासक, राजा मुचुकुंद के नाम पर इस प्राचीन और पवित्र स्थल का नाम रखा गया। शहर से लगभग 4 कि.मी. की दूरी पर, यह स्थल भगवान राम से पहले, 19वीं पीढ़ी तक, राजा मुचुकुंद के शाही कार्यस्थल के रूप में रहा। प्राचीन धार्मिक साहित्य के अनुसार, राजा मुचुकुंद एक बार गहरी नींद में सोया हुआ था, तभी दैत्य कालयमन ने अचानक उसे उठा लिया। परन्तु एक दैवीय आशीर्वाद से दैत्य जलकर भस्म हो गया। इसी कारण यह प्राचीन पावन तीर्थ स्थल माना जाता है।
शेर शिखर गुरूद्वारा
मुचकुंड के पास, यह गुरूद्वारा, सिख गुरू हरगोविन्द साहिब की धौलपुर यात्रा के कारण, स्थापित किया गया था। शेर शिखर गुरूद्वारा, सिखधर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है तथा ऐतिहासिक महत्व व श्रृद्धा का स्थान रखता है। देश भर से सिख समुदाय के लोग यहाँ पर शीश झुकाने आते हैं।
मुग़ल गार्डन, झोर
मुग़ल सम्राट बाबर के ज़माने में बनाया गया, यह गार्डन, सबसे पुराना मुग़ल गार्डन माना जाता है तथा ’बाग़-ए-नीलोफर’ के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में बग़ीचे का मूल स्वरूप नहीं रहा, परन्तु किया गया निर्माण मौजूद है।
दमोह
यह एक सुंदर झरना है, परन्तु गर्मी के मौसम में यह सूख जाता है। सरमथुरा तहसील में, यह आगंतुकों के लिए, जुलाई से सितम्बर तक, बरसात आने के साथ ही बहना शुरू हो जाता है तथा हरियाली के साथ ही, जीव जंतु भी नज़र आने लगते हैं।
तालाब ए शाही
सन् 1617 ई. में यह तालाब के नाम से एक ख़ूबसूरत झील, शहज़ादे शाहजहाँ के लिए शिकारगाह के रूप में बनवाई गई थी। धौलपुर से 27 कि.मी. दूर और बाड़ी से 5 कि.मी. की दूरी पर, यह झील, राजस्थान की ख़ूबसूरत झीलों में से एक है। यहाँ पर सर्दियों के मौसम में कई प्रकार के प्रवासी पक्षी अपने घोंसले बनाने के लिए आते हैं जैसे – पिंटेल, रैड कार्स्टेड पोच, बत्तख़, कबूतर आदि।
वन विहार अभ्यारण्य
धौलपुर के शासकों के मनोरंजन के लिए यह अभ्यारण्य 24 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बनाया गया था। यह अभ्यारण्य माना जाता है पर्यटकों तथा विशेषकर प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र, यहाँ पाए जाने वाले साँभर, चीतल, नील गाय, जंगली सूअर, भालू, हाईना और तेंदुआ जैसे जीवों के साथ-साथ, विभिन्न वनस्पतियों का भण्डार है।
Dungarpur
उदय विलास पैलेस
अद्भुत, अभूतपूर्व और उत्कृष्ट संरचना – उदय विलास पैलेस। महाराजा उदयसिंह द्वितीय के नाम पर उदय विलास पैलेस का नाम रखा गया था। बेजोड़ राजपूत वास्तुशिल्प शैली पर आधारित इसका मंत्रमुग्ध करने वाला रेखांकन है, जिसमें छज्जे, मेहराब और झरोखों में विस्तृत चित्रांकन किया गया है। यहां पाए जाने वाले पारेवा नामक स्थानीय नीले ’धूसर’ पत्थर से बनाई गई संुदर कलाकृति झील की ओर मुखरित है। महल को रानीवास, उदय विलास और कृष्ण प्रकाश में विभाजित किया गया है जिसे ’एकथंभिया महल’ भी कहा जाता है। एकथंभिया महल राजपूत वास्तुकला का एक वास्तविक आश्चर्य है जिसमें जटिल मूर्तिस्तम्भ और पट्टिका, अलंकृत छज्जे, जंगला, कोष्ठक वाले झरोखे, मेहराब और संगमरमर में नक़्काशियों की सजावट शामिल है। उदय विलास पैलेस आज एक हैरिटेज होटल के रूप में पर्यटकों को आकर्षित करता है तथा शाही ठाट-बाट का असीम आनन्द देता है।
जूना महल
राजपूती शान का प्रतीक और महल के साथ साथ गढ़ के समान सुदृढ और सुरक्षित है जूना महल। 13वीं शताब्दी में निर्मित जूना महल (ओल्ड पैलेस) एक सात मंज़िला इमारत है। यह एक ऊँची चौकी पर ’पारेवा’ पत्थर से बनाया गया है जो बाहर से एक क़िले के रूप में प्रतीत होता है। शत्रु से रक्षा हेतु यथा संभव गढ़ की प्राचीरों, विशाल दीवारों, संकरे गलियारांे और द्वारों को विराट रूप में योजनाबद्ध तरीक़े से बनाया गया है। अंदरूनी भाग में बने सुंदर भित्ति चित्रों, लघु चित्रों और नाज़ुक काँच और शीशे की सजावट का काम पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। सन् 1818 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था। यह जगह डूंगरपुर प्रिसंली स्टेट की राजधानी थी।
गैब सागर झील
इस झील के प्राकृतिक वातावरण और कोलाहल से दूर होने के कारण यहाँ बड़ी संख्या में पक्षियों का बसेरा है। रमणीय झील गैप सागर डूंगरपुर का एक प्रमुख आकर्षण है इसके तट पर श्रीनाथ जी का मंदिर समूह है। इस मंदिर परिसर में कई अति सुंदर नक़्काशीदाार मंदिर और एक मूल मंदिर, ’विजय राजराजेश्वर’ मंदिर शामिल है। यहाँ भगवान शिव का मंदिर मूर्तिकारों के कुशल शिल्पकौशल और डूंगरपुर की बेजोड़ शिल्पकला को प्रदर्शित करता है। यहाँ के रमणीय परिवेश और ठण्डी बयार के बीच, झील में खिले हुए कमल के फूल और उन्मुक्त जल क्रीड़ा करते पक्षी मन्त्रमुग्ध करते हैं।
राजकीय पुरातात्विक संग्रहालय
डूंगरपुर के आमझरा गाँव में, जो कि शहर से 32 कि.मी. दूर है, पुरातात्पिक महत्व की सम्पदा को संजोकर रखा गया है इस संग्रहालय में। उत्खनन के दौरान यहाँ पर गुप्तकालीन संस्कृति के अवशेष पाए गए थे। मुख्य रूप से वागड़ क्षेत्र में यह संग्रहालय राजस्थान सरकार, पुरातत्व और संग्रहालय विभाग द्वारा एकत्र की गई मूर्तियों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। डूंगरपुर शाही परिवार ने संग्रहालय को भूमि और निजी संग्रह से प्रतिमाओं और अपने ऐतिहासिक महत्वपूर्ण शिलालेखों को देकर इसे स्थापित करने में मदद की। इस संग्रह में 6ठी शताब्दी की कई देवी देवताओं की मूर्तियां, पत्थर के शिलालेख, सिक्के और चित्र शामिल हैं। गाँव में उत्खनन के दौरान प्राप्त ’महिषासुरमर्दिनी देवी’ की मूर्ति अद्भुत है।
बादल महल
यह महल वास्तुकला के जटिल डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध है तथा गैप सागर झील के किनारे स्थित है। पारेवा पत्थर का उपयोग करते हुए बनाया गया बादल महल, डूंगरपुर का एक नायाब महल है। गैप सागर झील पर स्थित यह महल अपने विस्तृत आलेखन और राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली की एक मिली जुली संरचना के लिए प्रसिद्ध है। स्मारक में दो चरणों में तीन गुंबद और एक बरामदा महाराज पुंजराज के शासनकाल के दौरान पूरा किया गया था। अवकाश गृह या गैस्ट हाउस के तौर पर इस महल का, राज्य के मेहमानों को ठहराने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
बेणेश्वर मंदिर
सोम व माही नदियों में डुबकी लगाने के बाद, बेणेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने के लिए भक्तगण समर्पण के भाव से आते हैं। इस अंचल के सर्वाधिक पूजनीय शिवलिंग बेणेश्वर मंदिर में स्थित है।
सोम और माही नदियों के तट पर स्थित पांच फीट ऊँचा ये स्वयंभू शिवलिंग शीर्ष से पांच हिस्सों में बंटा हुआ है। बेणेश्वर मंदिर के पास स्थित विष्णु मंदिर, एक अत्यंत प्रतिष्ठित संत और भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले ’मावजी’ की बेटी, जनककुंवरी द्वारा 1793 ई. में निर्मित किया गया था।
कहा जाता है कि मंदिर उस स्थान पर निर्मित है जहां मावजी ने भगवान से प्रार्थना करते हुए अपना समय बिताया था। मावजी के दो शिष्य ’अजे’ और ’वाजे’ ने लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण किया। यद्यपि ये अन्य देवी देवता हैं, पर लोग उन्हें मावजी, उनकी पत्नी, उनके पुत्र वधू और शिष्य जीवनदास के रूप में पहचानते हैं।
इन मंदिरों के अलावा भगवान ब्रह्मा का मन्दिर भी है। माघ शुक्ल पूर्णिमा (फरवरी) यहाँ, सोम व माही नदियों के संगम पर बड़ा भारी मेला लगता है, जहाँ दूर दूर के गाँवों तथा शहरों से लोग तथा आदिवासी, पवित्र स्नान करने व मंदिर में पूजा करने आते हैं।
भुवनेश्वर
डूंगरपुर से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भुवनेश्वर पर्वत के ऊपर स्थित है और एक शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के समीप ही बनाया गया है। पहाड़ के ऊपर स्थित एक प्राचीन मठ की भी यात्रा की जा सकती है।
सुरपुर मंदिर
डूंगरपुर से लगभग 3 किलोमीटर दूर ’सुरपुर’ नामक प्राचीन मंदिर गंगदी नदी के किनारे पर स्थित है। मंदिर के आस पास के क्षेत्र में भूलभुलैया, माधवराय मंदिर, हाथियों की आगद और महत्वपूर्ण शिलालेख जैसे अन्य आकर्षण भी हैं।
विजय राजराजेश्वर मंदिर
भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित ’विजय राजराजेश्वर मंदिर’ गैप सागर झील के तट पर स्थित है। यह अपने समय की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प को प्रदर्शित करता है। मंदिर का निर्माण महाराज विजय सिंह द्वारा प्रारम्भ किया गया था एवं जिसे महारावल लक्ष्मणसिंह द्वारा 1923 ई. में पूरा किया गया। दक्षिण प्रवेश द्वार दो मंज़िला है। गर्भ गृह में एक ऊँचा गुबंद है। इसके सामने सभा मंडप है – जो 8 राजसी स्तंभों पर बनाया गया है। इसमें बीस तोरण थे जिनमें से चार अभी भी मौजूद हैं। अन्य सोम नदी में आई बाढ़ के पानी से नष्ट हो गए थे। तीर्थ यात्रियों के द्वारा कई शिलालेख हैं और सबसे पुराना 1493 ईस्वी के अंतर्गत आता है। कई योद्धाओं के अंतिम संस्कार मंदिर के समीप किए गए थे और उनके सम्मान में स्मारक बनाये गये थे। इस मंदिर की बहुत मान्यता है।
श्रीनाथ जी मंदिर
भगवान कृष्ण का यह मंदिर तीन मंजिला कक्ष मंे है, जो यहाँ स्थित तीनों मंदिरों के लिए गोध मंडप, एक सार्वजनिक कक्ष है। 1623 में महाराज पुंजराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसका प्रमुख आकर्षण श्री राधिकाजी और गोवर्धननाथ जी की मूर्तियां है। इसी परिसर में श्री बांकेबिहारी जी और श्री रामचन्द्र जी को समर्पित कई मंदिर भी हैं। पर्यटक यहाँ एक गैलेरी देख सकते हैं, जो मुख्य मंदिर में है।
गोध मंडप
गोध मंडप एक तीन मंजिला विशाल सभा मंडप है जो पास स्थित तीनों मंदिरों द्वारा आपसी उपयोग के लिए है। 64 पैरों और 12 खम्भों पर अवस्थित, यह विशाल सभा मंडप देखने योग्य है।
नागफन जी
डूंगरपुर रेल्वे स्टेशन से यह दिगम्बर जैन समुदाय का मंदिर, 35 कि.मी. की दूरी पर है। नागफनजी अपने जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जो न केवल डूंगरपुर के भक्तों को आकर्षित करते हैं बल्कि दूर दूर से यात्रा पर आये पर्यटक भी इसे देखने के लिए लालायित रहते हैं। यह मंदिर देवी पद्मावती, नागफनी पार्श्वनाथ और धरणेन्द्र के प्रतिमाओं के मंदिर हैं। नागफनजी शिवालय जो इस मंदिर के नजदीक स्थित है, यह भी एक पर्यटक आकर्षण है। इस स्थान पर गुरू पूर्णिमा पर विशेष आयोजन होता है।
गलियाकोट
दसवीं शताब्दी में बाब जी मौला सैयदी फख़रूद्दीन साहब का निवास था यहाँ। दाऊदी बोहरा समाज का पवित्र स्थान है ’गलियाकोट दरगाह’। डूंगरपुर से 58 किलोमीटर की दूरी पर माही नदी के किनारे स्थित, गलियाकोट नामक एक गांव है। यह स्थान सैयद फख़रूद्दीन की मज़ार के लिए जाना जाता है। वह एक प्रसिद्ध संत थे जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद गांव में ही दफन किया गया था। यह मज़ार श्वेत संगमरमर से बनायी गयी है और उनकी दी हुई शिक्षाएं दीवारों पर सोने के पानी से उत्कीर्ण हैं। गुंबद के अन्दरूनी हिस्से को खूबसूरत स्वर्णपत्रों से सजाया गया है, जबकि पवित्र कुरान की शिक्षाओं को कब्र पर सुनहरे पन्नों में उत्कीर्ण किया गया है। मान्यताओं के अनुसार इस गांव का नाम एक भील मुखिया के नाम पर पड़ा था, जिसने यहाँ राज किया था।
देव सोमनाथ
देवगाँव में स्थित यह मंदिर, अपनी बनावट के लिए प्रसिद्ध है। तीन मंज़िलों में बना यह मंदिर, 150 स्तम्भों पर खड़ा है। देव सोमनाथ के नाम पर 12वीं सदी में बना सोम नदी के किनारे पर एक पुराना और सुंदर शिव मंदिर है। सफेद पत्थर से बने, मंदिर में ऊँचे बुर्ज़ बनाये गये हैं। कोई भी मंदिर से आकाश को देख सकता है। यद्यपि चिनाई में प्रत्येक भाग अपने सही स्थान पर मजबूती से टिकाया गया है, फिर भी यह आभास देता है कि प्रत्येक पत्थर ढह रहा है। मंदिर में 3 निकास हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक गुंबद में एक नक़्काशीदार कमल खिले हैं, जबकि सबसे बड़े गुंबद में तीन कमल खिले हैं। सावन के महीने में यहाँ बड़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।
बोरेश्वर
1179 ईस्वी में महाराज सामंत सिंह के शासनकाल में ’बोरेश्वर महादेव’ मंदिर का निर्माण हुआ था। यह सोम नदी के तट पर स्थित है।
क्षेत्रपाल मंदिर
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला 200 वर्ष पुराना यह मंदिर ’खाडगढ़’ में स्थित है। इस मंदिर की लोकप्रियता भैरव देवी के मंदिर होने के कारण है। इस मंदिर के चारों ओर अन्य छोटे मंदिर हैं, जिनमें देवी गणपति, भगवान शिव, देवी लक्ष्मी और भगवान हनुमान स्थापित हैं।
गंगानगर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Ganganagar )
बरोर गाँव
इस गाँव में प्रसिद्ध प्राचीन सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यह गाँव अनूपगढ – रामसिंहपुर रोड पर स्थित है। उस समय के समृद्ध जीवन के सबूत-कलाकृतियाँ, कंकाल और खंडहर गाँव के आसपास के क्षेत्र में पाए गए हैं
लैला मजनूं का मज़ार
लैला मजनूं का मज़ार – अनूपगढ़ से 11 कि.मी. बिन्जौर गाँव में लैला मजनू का मज़ार यानी स्मारक स्थित है। एक किंवदंती के अनुसार लैला मजनू सिंध के थे यह ज़िला अब पाकिस्तान में है। लैला के माता पिता व भाई उसके प्रेम के खिलाफ थे, इसलिए उनसे बचने के लिए लैला-मजनू भाग कर यहा आकर बस गए तथा मृत्योपरांत दोनों को एक साथ यहाँ दफनाया गया था। यह मजार एक स्मारक बन गया है जो हमेशा अमर रहने वाले प्रेम का प्रतीक है। लोग इस मजार पर, इस प्रेमी युगल का आशीर्वाद पाने के लिए दूर-दूर से यहाँ आते हैं। प्रतिवर्ष यहाँ एक मेला आयोजित होता है जो मुख्यतः नवविवाहितों और युगलों को आकर्षित करता है।
अनूपगढ़ क़िला
पाकिस्तान की सीमा के निकट अनूपगढ शहर में स्थित अनूपगढ़ किला वर्तमाान में खंडहर है। यद्यपि अपने सुनहरे दिनों में किला एक भव्य रूप में था जो कि भाटी राजपूतों को खाडी में रहने में मदद करता था। क़िले का निर्माण 1689 में अनूपगढ को मुगल संरक्षण में रखने हेतु मुगल राज्यपाल द्वारा किया गया था।
हिंदुमालकोट सीमा
गंगानगर में स्थित हिंदुमालकोट सीमा भारत आौर पाकिस्तान को अलग करती है। बीकानेर के दीवान हिन्दुमल के सम्मान में नामित, और सीमा के पास स्थित यह पर्यटक आकर्षणों में से एक है। सीमा श्री गंगानगर से 25 किमी दूर स्थित है और यह प्रतिदिन 10.00 से 5.30 के बीच पर्यटकों के लिए खुली है।।
बुड्ढ़ा जोहड़ गुरूद्वारा
इस ऐतिहासिक गुरूद्वारे का निर्माण, 1740 में घटी एक महत्वपूर्ण घटना के कारण किया गया जिसमें मस्सा रंगहर के अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अपवित्रीकरण का दोषी पाए जाने पर सुक्खा सिंह और मेहताब सिंह द्वारा न्याय किया गया था। गंगानगर के डाबला गांव में स्थित यह पूजा स्थल ऐतिहासिक चित्रों और स्मारकों का संग्रह भी है।
पदमपुर
बीकानेर के शाही परिवार के राजकुमार पदम सिंह के नाम पर, इस नगर का नाम रखा गया था। गंगनहर के निर्माण के बाद, यहाँ की उपजाऊ मिट्टी में गेहूँ, बाजरा, गन्ना, दलहन, आदि की अच्छी फसलें होने पर, यह एक कृषि केन्द्र के रूप में माना जाता है। गंगानगर का कीनू (नारंगी जैसा फल) पूरे भारत में मश्हूर है तथा यहां भारी मात्रा में इसकी फसल होती है।
हनुमानगढ के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Hanumangarh )
भटनेर किला
भटनेर, भट्टी नगर का अपभ्रंश है, तथा उत्तरी सीमा प्रहरी के रूप में विख्यात है। भारत के सबसे पुराने किलों में से एक माना जाने वाला भटनेर किला या हनुमानगढ़ किला घग्घर नदी के तट पर स्थित है।
किले का महत्व इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अकबर ने आईने-ए-अकबरी में इसका उल्लेख किया है। किले का निर्माण लगभग 17 सौ साल पहले जैसलमेर के राजा भाटी के पुत्र भूपत ने किया था और समय और युद्ध के विनाश का सीना तान के सामना किया था।
तैमूर और पृथ्वीराज चौहान सहित कई साहसी शासकों ने किले पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन यह ऐसी ताकत थी कि सदियों से कोई भी इस क़िले को नहीं जीत पा रहा था। अंत में, वर्ष 1805 में, बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने भाटी राजाओं को पराजित किया और क़िले पर क़ब्जा कर लिया।
क़िले के कई दृढ ़ और शानदार द्वार हैं। यहां पर भगवान शिव और भगवान हनुमान को समर्पित मंदिर हैं। इसके ऊँचे दालान तथा दरबार तक घोड़ांे के जाने के लिए संकडे़ रास्ते बने हुए हैं।
श्री गोगा जी मंदिर
इस मंदिर को हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लोग मानते हैं। हिन्दू गोगाजी को गोगा जी देवता तथा मुस्लिम इन्हें गोगा पीर कहते हैं। हनुमानगढ़ से लगभग 120 किलोमीटर दूर, श्री गोगाजी का मंदिर स्थित है। किंवदंती प्रचलित है कि गोगाजी एक महान योद्धा थे जो आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करते थे उन्हें नागों के भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के स्थापत्य में मुस्लिम और हिन्दू शैली का समन्वय एक प्रमुख विशेषता है। मंदिर अद्भुत नक्काशियों के साथ चित्रित है जिसमें अश्व की पीठ पर हाथ में बरछा लिए हुए गोगाजी की एक सुन्दर प्रतिमा, जिसमें उनकी गर्दन के चारों और एक नाग है। सभी धर्मों के लोग, विशेष रूप से गोगामेड़ी पर्व के दौरान मंदिर में जाते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष भादवा शुक्लपक्ष की नवमी (जुलाई – अगस्त) को मेला लगता है, जिसमें भक्त लोग पीले वस्त्र पहनकर, मीलों दूर से दण्डवत करते हुए आते हैं।
गोगामेड़ी का दृश्य
गोगामेड़ी का दृश्य हनुमानगढ़ में स्थित गोगामड़ी गांव धार्मिक महत्व रखता है। श्री गोगाजी की स्मृति में आयोजित गोगामेड़ी मेला, ’गोगामेड़ी महोत्सव’ के दौरान स्थानीय लोगों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है। गोगामेड़ी का विशाल दृश्य फोटोग्राफी के लिए वास्तव में एक आश्चर्यजनक और प्रेरणादायक समां प्रस्तुत करता है।
काली बंगा
सिंधु नदी की घाटी पर बना यह क्षेत्र पुरातत्व सम्पदाओं को प्रदर्शित करता है। तहसील पीलीपंगा में, कालीबंगा एक प्राचीन व ऐतिहासिक स्थल है। कहते हैं कि 4500 वर्ष पूर्व यहाँ सरस्वती नदी के किनारे हड़प्पा कालीन सभ्यता फल फूल रही थी। पुरातत्व प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण स्थान कालीबंगा सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति स्थल के कारण प्रसिद्ध है। ये अवशेष 2500 वर्ष ईसा पूर्व के हड़प्पा और पूर्व हड़प्पा युग से संबंधित हैं। कालीबंगा में खुदाई से हड़प्पाकालीन सील, मानव कंकाल, अज्ञात स्क्रिप्ट तांबे की चूंड़ियाँ, मोती, सिक्के, टेराकोटा और सीप के खिलौने मिले हैं। यहां 1983 में स्थापित एक पुरातत्व संग्रहालय भी है, जिसे 1961-1969 के दौरान हड़प्पा स्थल पर खुदाई से निकले अवशेषों के लिए निर्मित किया गया था। यहां संग्रहालय में तीन दीर्घाएं हैं जिनमें एक दीर्घा ’पूर्व हड़प्पा काल’ और शेष दो दीर्घाएं हड़प्पा काल की कलाकृतियों के लिए समर्पित हैं।
माता भद्रकाली मंदिर
हनुमानगढ़ से 7 कि.मी. की दूरी पर माता भद्रकाली का मंदिर घग्घर नदी के तट पर स्थित है। देवी मंदिर देवी दुर्गा के कई अवतारों में से एक को समर्पित है। बीकानेर के छठे महाराजा राम सिंह के द्वारा निर्मित, इस मंदिर में पूरी तरह लाल पत्थर से बनी एक प्रतिमा स्थित है। मंदिर पूरे सप्ताह जनता के लिए खुला है। चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में यहाँ बड़ी धूमधाम रहती है।
जयपुर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Jaipur )
पूर्व का पेरिस, गुलाबी नगर तथा सी.वी. रमन के शब्दों मे रगश्री के द्रीप (Island of Glory) के नाम से प्रसिद्ध था। जयपुर की स्थापना – 18 नवम्बर,1727 को। शासक-: कछवाहा नरेश सवाई जयसिंह-|| द्रारा 9 खेड़ो का अधिग्रहण कर के किया गया।
- प्रमुख वास्तुकार :- श्री विधाधर चक्रवर्ती एवं आनंदराम मिस्त्री।
- सलाहकार :- मिर्जा इस्माइल थे।
- नगर की नींव:- पं. जगन्नाथ सम्राट के ज्योतिष ज्ञान के आधार पर लगवायी थी।
- बसावट:- ‘द एल्ट स्टडट एर्लग’ जर्मनी शहर के आधार पर।
- पूरा शहर चोपड़ पैटर्न ( 9 आड़ी रेखाओ व 9सीधी रेखाओ) पर अनेक वर्गाकार मे हैं।
- प्रिंस अल्बर्ट के आगमन पर जयपुर शहर को गुलाबी रंग मे रंगवाने का श्रेय सम्राट रामसिंह -|| 1835-80) को हैं।
नाहरगढ़ की वादियों मे तैयार होगा ‘ इंटरनेशनल गार्डन’, नाहरगढ़ वन्यजीव क्षेत्र राज्य क पहला इटरनेशनल गार्डन बनेगा। विभाग ने मसोदा तैयार कर.के 63 वर्ग km.क्षेत्र मे (जनवरी 2016)मे
नाहरगढ़ का किला:–
‘ सुदर्शनगढ़ ‘ के नाम से जाना जाता हैं।
- निर्माण:- 9 महल युक्त 1734ई.सवाई जयसिंह-||ने।
- वर्तमान रुप :-1868ई. सवाई रामसिंह द्रारा प्रदान किया।
- अरावली पर्वतमाला पर यह दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान है।
- सवाई माधोसिंह -|| ने अपनी 9 पासवानों के नाम पर 9 एक जैसे महल बनाये।
- बगरु प्रिन्ट :- जयपुर से 30 किलोमीटर छपाई के लिए।
जयगढ़ का किला:- इसका निर्माण सवाई जयसिंह-1 -1726 ई. तथा मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया। तोप ढालने का कारखाना व जयबाण तोप ( एशिया की सबसे बड़ी तोप हैं। 22 मील।
गोविद देवजी का मंदिर:- 1735ई. सवाई जयसिंह।
कुण्डा:- पर्यटन के लिए हाथी गांव स्थापना।
आमेर:-
नाम अम्बरीश ऋषि के नाम पड़ा। इसे अम्बरीशपुर या अम्बर भी कहा जाता हैं। जयपुर से 10 km. यह कछवाहा वंश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध हैं। आमेर दुर्ग को विश्व विरासत सूची मे 21 जून 2013 को यूनेस्कों ने राज.के छ जिलों के साथ गिरी दुर्ग को भी विशव सूची मे शामिल किया।काकिलदेव ने 1036 ई.मे आमेर के मीणा शासक भुट्टो से दुर्ग छीन लिया।
महाराजा मानसिहं के काल मे अनेक निर्माण हुए। 1707ई. मे सम्राट बहादुर शाह प्रथम ने हस्तगत कर के नाम ‘ मोमिनाबाद ‘ रखा था।सांयकाल यहां पर ‘ लाइट एण्ड साउण्ड शो चलता’ हैं।
गणेशपोल:- आमेर का विशव प्रसिद्ध प्रवेश द्रार हैं।
- निर्माण:- (1700-1743 ) 50 फीट ऊँचा 50 फीट चौड़ा मिर्जा राजा जयसिंह।
- सुहाग (सौभाग्य) मंदिर:- गणेशपोल की छत पर।
आमेर का महल:- मावठा झील के पास। शीशमहल :-‘ दीवाने खास ‘ नाम से प्रसिद्ध आमेर स्थिति जयमंदिर। महाकवि बिहारी ने इन्हें ‘ दर्पण धाम’ कहा। शिलादेवी का मंदिर यह आमेर के महल मे शिलादेवी कि प्रसिद्ध महल हैं।
जगत शिरोमणी मंदिर:- यह वैष्णव मंदिर कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद मे।
सिलोरा:- देश का पहला आधुनिक व अंतरराष्ट्रीय टैक्सटाइल पार्क हैं।
सिटी पैलेस(चन्द्रमहल) चाँदी के पात्र विश्व के सबसे बडे़ विश्व प्रसिद्ध हैं।
आरायश:- भितिचित्रो के लिए। स्थानीय भाषा मे ‘ आलागीला/मोराकसी’ कहा गया था।
शीतलामाता का मेला:- चाकसू तहसील शील डूँगरी पास।
गैटोर:- नाहरगढ़ तलहटी मे स्थिति जयपुर के दिवंगत राजाओं संगमरमर छतरियों के लिए।
राजेश्वर मंदिर:- आम जनता के लिए शिवरात्रि को ही खुलता।
हवामहल:-
1799ई. 5 मंजिला सवाई प्रतापसिंह। इमारत को लालचन्द कारीगर ने बनाया। राजकीय संग्रहालय मे परिवर्तित।
- जयपुर शैली:- सजावट के लिए प्रसिद्ध हैं।
- सिसोदिया रानी का महल एवं बाग:-जयसिंह द्रितीय की महारानी ने 1799ई. मे।
- पोथीखाना:- निजी पुस्तकालया एवं चित्रकला।
- कोटपुतली:- भारत का सबसे बड़ा दुग्ध पैकिंग स्टेशन।
ईसरलाट,बस्सी, जंतर-मंतर, गणेश मंदिर, रामनिवास बाग,मुबारक महल, गंधों का मेला, अल्बर्ट हाॅल संग्रहालय, जमुवा रामगढ़ अभयारण्य, रामगढ़ बाँध,आदि।
कानोता बाँध:- राजस्थान का सर्वाधिक मछली उत्पादक बाँध।
गलता,मोती डूँगरी, जगन्नाथ धाम गोनेर, चूलगिरी, चौमुँहागढ, जलमहल झील, बैराठ, कनक वृदांवन, संगीत कला, जवाहर.कला केन्द्र, बिडला मंदिर आदि जयपुर मे प्रसिद्ध हैं।
बिड़ला प्लेनिटोरियम:-17 मार्च, 1989 को जयपुर मे स्थापित था।
अलवर के दर्शनीय स्थल
- स्थापना:- 1770ई.राव प्रतापसिंह ने।
- इनमे विनय विलास,सफदरजंग, नीमराणा दुर्ग दृश्य हैं।
सिलीसेढ़ झील:- अलवर से 16 km.दूर है इसको राजस्थान का ‘ नंदनकानन ‘ कहा जाता हैं। झील के किनारे महाराजा विनयसिंह ने रानी शीला की अद्भुत महल बनाया। वर्तमान मे होटल लेक पैलेस हैं।
पाण्डुपोल:- सरिस्का के दक्षिण मे पूर्व मे स्थिति इस पर पाण्डुओ ने अज्ञातवास 10वर्ष बिताये।
मूसीमहारानी की छतरी:- अस्सी खम्भों वाली इस छतरी का निर्माण 1815 ई.मे विनयसिंह ने करवाया।
भर्तृहरि:- उज्जैन के राजा व महान् योगी भर्तृृहरि की तपोस्थली अलवर से 345 km.हैं इसे कनफटे नाथों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
सरिस्का अभयारण्य:- अलवर से 35किलोमीटर दूर-जयपुर राजमार्ग फर सरिस्का गाँव स्थिति हैं। 1990 मे राष्ट्रीय उद्दान घोषित किया गया। हरे कबूतरों के लिए प्रसिद्ध हैं। 27अगस्त,1982 को बाघ परियोजना के अंतर्गत शामिल किया।
बाला दुर्ग, कांकणबाड़ी का किला, नीलकण्ठ, जयसंमद,भिवाड़ी, रथ यात्रा सब अलवर मे पर्यटन के स्थल है।
बाड़मेर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Jaipur )
कपड़ो पर रंगीन छापो के लिए विख्यात इस नगर की स्थापना 13 वीं सदी मे परमार राजा धरणीधर के पुत्र बाहादा राव नेकी थी। भीमाजी रत्नावत ने विक्रम संवत् 1642 मे वर्त्तमान बाड़मेर को बसाया।
सिवाना दुर्ग:- जालोर से 30 km. दूर स्थित सिवाना मे राजा राजभोज के पुत्र श्री वीरनारायण द्रारा वि.सं.1011 मे छप्पन की पहाड़ियों मे निर्मित यह दुर्ग प्रसिद्ध हैं
कपालेश्वर महादेव का मंदिर:- बाड़मेर जिले के चौहटन की विशाल पहाडी के बीच स्यित हैं।13वी शताब्दी मे निर्मित किया गया था।
गरीबनाथ का मंदिर:-इसकी स्थापना व़िसं. 900 मे कोमनाथ ने की। राजस्थान का खजुराहो किराडू ।
पंचभदा् झील.:- इस झील से उतम किस्म के नमक का उत्पादन किया जाता हैं। यहां स्थित 5 प्राचीन मंदिरों मे सोमेश्वर, शिव, विष्णु व ब्रह्मा मंदिर प्रसिद्ध हैं।
नागणेची माता का मंदिर, आलमजी का धोरा,जसोल, कनाना/कानन गैर मेला, किलोण आदि दर्शनीय स्थल हैं। यह ‘ घोडों का तीर्थ स्थल ‘ के उपनाम से प्रसिद्ध स्थल हैं।
दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल दर्शनीय स्थल