वाद्य यंत्र
वाद्य यंत्र
- तत वाद्य ( tat instrument )
- सुषिर वाद्य ( sushir instrument )
- ताल वाद्य ( Rhythm instrument )
- घन वाद्य ( Ghan instrument )
तत वाद्य यंत्र ( tat instrument )
TRICK
नकारा राज का भरतार गुस्सा में सुसु की दो
- नकारा – चिकारा
- रा – रावणहत्था
- ज – जंतर
- का – कामायचा
- भ – भपंग
- र – रबाब
- ता – तंदुरा/ तम्बूरा/ बेनी/चौतारा/
- र – रबाज
- गु – गुजरी
- सा- सारँगी
- सु – सुरमढ़ल
- सु – सुरनाई
- दु – दुकाको
Out of trick – इकतारा
अवनद्ध वाद्य ( Avanaddh Instrument )
अवनद्ध (ताल) वाद्य:-चमड़े से मढ़े हुए लोक वाद्य )
मादल ( Madal )
मृदंग आकृति का
- क्षेत्र/वादक जाति/अवसर:- आदिवासी क्षेत्र – भील ,गरासिया,डांगिए द्वारा ।
- सरंचना- यह मृदंग आकृति का प्राचीन लोक वाद्य हैं जो मिट्टी का बना होता है । इसका एक मुंह छोटा व एक मुंह बड़ा होता है जिसे क्रमश नारी और नर कहते हैं। भील गवरी नृत्य के समय तथा गरासिया व डांगीए नृत्यों में काम लेते हैं ।भील लोग गवरी नृत्य में बजाते हैं। इसे शिव- पार्वती का वाद्य मानते हैं ।
पखावज या मृदंग ( Pakhavaj )
- क्षेत्र/वादक जाति/अवसर:- रावल,भवाई, राबिया लोग नृत्य में काम में लेते हैं । ज्यादातर धार्मिक स्थानों में उपयोग ।
- सरंचना- यह बीजा ,सवन ,सुपारी व बड़ के पेड़ के तने के पेड़ की लकड़ी पर बकरे की खाल से बनते हैं ।
डैरूं ( Darun )
- क्षेत्र/वादक जाति/अवसर – भील व गोगाजी के भोपा द्वारा
- सरंचना – आम की लकड़ी पर मढ़कर बनाया जाता है । डमरु का बड़ा रूप । इसे एक छोटी लकड़ी से बजाया जाता है।
खंजरी ( khanjari )
- क्षेत्र/वादक जाति/अवसर – कामड़ ,कालबेलिया भील ,बलाई नाथ ,द्वारा
- ढपनुमा वाद्य यंत्र जो आम की लकड़ी पर एक और मढ कर बनाया जाता है । दाहिने हाथ से पकड़ कर बाएं हाथ से बजाया जाता है ।
धौंसा ( Dhonas )
- क्षेत्र/वादक जाति/अवसर:- दुर्ग या बड़े मंदिरों में
- सरंचना – आम या फरास की लकड़ी के घेरे पर भैंस की खाल मढकर बनाते है । लकड़ी के डंडे से बजाते हैं ।
नौबत ( Naubat )
अवनद्ध वाद्य है जिसे प्रायः मंदिरों या राजा-महाराजाओं के महलों के मुख्य द्वार पर बजाया जाता था। इसे धातु की लगभग चार फुट गहरी अर्ध अंडाकार कूंडी को भैंसे के खाल से मढ़ कर चमड़े की डोरियों से कस कर बनाया जाता है। इसे लकड़ी के डंडों से बजाया जाता है।
नगाड़ा ( Nagada )
यह दो प्रकार का होता है- छोटा व बड़ा। छोटे नगाड़े के साथ एक नगाड़ी भी होती है। बड़ा नगाड़ा नौबत की तरह ही होता है। यह बड़े व भारी डंडों से बजाया जाने वाला कढाई के आकार का लोहे का एक बडा नगाडा होता है। इसे ‘बम, दमाम या टापक’ भी कहते हैं। नगाड़े को लोकनाट्यों व विवाह व मांगलिक उत्सव में शहनाई के साथ बजाया जाता है। इसे युद्ध के समय भी बजाया जाता था।
बम, कमट, टामक ( Bomb, commute, temac )
यह एक प्रकार का विशाल नगाड़ा है। इसका आकार लोहे की बड़ी कड़ाही जैसा होता है, जो लोहे की पटियों को जोड़कर बनाया जाता है। इसका ऊपरी भाग भैंस के चमड़े से मढ़ा जाता है। खाल को चमड़े की तांतों से खींचकर पेंदे में लगी गोल गिड़गिड़ी (लोहे का गोल घेरा) से कसा जाता है।
अवनद्ध वाद्यों में यह सबसे बड़ा व भारी होता है। प्राचीन काल में यह रणक्षेत्र एवं दुर्ग की प्राचीर पर बजाया जाता था। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले लिए लकड़ी के छोटी गाड़ी (गाडूलिए) का उपयोग किया जाता है। इसे बजाने के लिए वादक लकड़ी के दो डंडो का प्रयोग करते हैं।
कुंडी ( Kandi )
यह आदिवासी जनजातियों का प्रिय वाद्ययंत्र है, जो पाली, सिरोही एवं मेवाड़ के आदिवासी क्षेत्रों में बजाया जाता है। मिट्टी के छोटे पात्र के उपरी भाग पर बकरे की खाल मढ़ी रहती है। इसका ऊपरी भाग चार-छः इंच तक होता है।
कुंडी के उपरी भाग पर एक रस्सी या चमड़े की पट्टी लगी रहती है, जिसे वादक गले में डालकर खड़ा होकर बजाता है। वादन के लिए लकड़ी के दो छोटे गुटकों का प्रयोग किया जाता है। आदिवासी नृत्यों के साथ इसका वादन होता है।
पाबूजी के माटे ( Pabuji mate )
पाबूजी के माटे बनाने के लिए मिट्टी के दो बड़े मटकों के मुंह पर चमड़ा चढाया जाता है। चमड़े को मटके के मुँह की किनारी से चिपकाकर ऊपर डोरी बांध दी जाती है। दोनों माटों को अलग-अलग व्यक्ति बजाते हैं।
दोनों माटों में एक नर व एक मादा होता है, तदनुसार दोनों के स्वर भी अलग होते हैं। माटों पर पाबूजी व माता जी के पावड़े गाए जाते है। इनका वादन हथेली व अंगुलियों से किया जाता है। यह वाद्य मुख्य रुप से चुरू, बीकानेर, सीकर, जयपुर व नागौर क्षेत्र में बजाया जाता है।
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