- देखिए साथियों व मित्रों राजस्थान में किसान आंदोलन यह टॉपिक परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए आप ध्यान से इस टॉपिक को पढ़ें देखिए आपको मजा आएगा राजस्थान के बहुत ही महत्वपूर्ण किसान आंदोलन हुए हैं। जिनमें जनजातीय आंदोलन या आदिवासी आंदोलन बहुत ही महत्वपूर्ण है। सबसे पहले राजस्थान में किसान आंदोलन की रूपरेखा देखेंगे किस तरह से यह आंदोलन आगे बढ़ा इसको आप ध्यान से पढ़ें इसमें आपको कंप्लीट जानकारी मिलेगी।
राजस्थान में किसान आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
- भारत की रियासत में कृषि योग्य भूमि का मालिक जमीदार को माना गया। परंतु इस जमीन पर उगे अनाज का मालिक शासक को माना गया। इस अनाज पर कर लगाने का व इसे वसूलने का अधिकार शासक को दिया गया है। परंतु शासक सामान्यतः इस कर को जमीदार के माध्यम से वसुलता था।
- इसलिए शासक व जमीदार के संबंध अच्छे बने रहते थे। परंतु राजपूताना स्टेट काउंसिल इस स्थापना के बाद कंपनी अपने कर्मचारियों के माध्यम से लगान वसूल करने लगी। इसलिए जमीदार का महत्व कम हो गया।
- इसी कारण से कई जमीदारों ने 1857 की क्रांति में कई जमीदारों ने क्रांतिकारियों को सहयोग प्रदान किया।
- क्रांति के बाद अंग्रेजों ने जमीदार को किसानों पर लाग-बाग लगाने का अधिकार दे दिया।
- अंग्रेजों की मौद्रिक नीति के कारण किसानों को अपनी आय का तीन चौथाई पैसा कर के रूप में देना होता था।
- एक रिपोर्ट के अनुसार बिजोलिया के किसान अपनी कुल आय का 89% पैसा कर के रूप में देते थे। क्योंकि किसानों से प्रत्यक्ष कर की वसूली जमीदारों के द्वारा वसूल की जाती थी इसलिए प्रारंभिक किसान आंदोलन जमीदारों के विरुद्ध हुई ना की राज्य व अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध ।
राजस्थान के प्रमुख व महत्वपूर्ण किसान आंदोलन
राजस्थान के प्रमुख व महत्वपूर्ण किसान आंदोलन निम्नलिखित हैं जोकि सबसे पहले आपको नाम बता देते हैं फिर आपको विस्तार से इन आंदोलनों के बारे में पढ़ेंगे।
- बिजोलिया किसान आंदोलन
- बीकानेर किसान आंदोलन
- बेगू किसान आंदोलन
- बूंदी का किसान आंदोलन
- शेखावाटी किसान आंदोलन
- अलवर किसान आंदोलन
- दुधवा-खारा किसान आंदोलन
- सीकर किसान आंदोलन
- भरतपुर किसान आंदोलन
- लसाडिया आंदोलन
- मारवाड़ किसान आंदोलन
- मातृकुंडिया किसान आंदोलन
- झुंझुनू किसान आंदोलन
- सीकर शेखावाटी किसान आंदोलन
- मंडोर किसान आंदोलन
देखें सबसे पहले इन किसान आंदोलन के बारे में विस्तार से जानेंगे फिर आगे आपको राजस्थान के महत्वपूर्ण जनजाति या आदिवासी और कुछ गोलीकांड व हत्याकांड के बारे में जानेंगे तो आप इस टॉपिक से जुड़े सभी सवाल आपको इसी में मिलेंगे।
1. बिजोलिया किसान आंदोलन
- संबंधित – गिरधारीपुरा गांव शाहपुरा (भीलवाड़ा)
- ठिकाना – बिजोलिया
- नेतृत्व – साधुसीताराम दास ने
- प्रमुख जागीर – ऊपरमाल जागीर (मेवाड़ की A श्रेणी की जागीर)
- Note :- 17 March 1527 ईस्वी को मेवाड़ के शासक सांगा ने खानवा का युद्ध के समय यह जागीर सहयोगी अशोक परमार को उपहार स्वरूप भेट कर दी थी।
- तात्कालिक जागीरदार – राव कृष्ण सिंह परमार (इन्होंने प्रमुख लाग-बाग 84 प्रकार की लगाई थी व 32 कर का उन्मूलन मानिक लाल वर्मा के आदेश पर किया था। )
चर्चित कर
- चवरी कर (कन्या के विवाह पर)
- तलवार बंधाई कर।
- उत्तराधिकार शुल्क।
- विजय सिंह पथिक को राज्य आने का आमंत्रण सान्याल के निमंत्रण पर।
सामाजिक संगठन
विद्या प्रचारिणी सभा (1914)
- स्थान – चित्तौड़गढ़
- संस्थापक – विजय सिंह पथिक
- उद्देश्य – जन जागृति लाना
- संरक्षिका – नारायण देवी पथिक (शिक्षिका)
- Note – विजय सिंह पथिक के दो पत्नी थी। 1. जानकी बाई पथिक 2. नारायण देवी पथिक
- विजय सिंह पथिक (भूपसिंह) 1916 में बिजोलिया किसान आंदोलन में प्रवेश करते हैं।
क्षेत्रीय संगठन – ऊपरमाल पंच बोर्ड (1917)
- संस्थापक – विजय सिंह पथिक
- प्रथम अध्यक्ष – मन्ना पटेल
- सहयोगी – 1. ब्रहमदत्त चारण 2. फतेहकर्ण चारण 3. नानक जी पटेल 4. ठाकरी जी पटेल
- उपरोक्त संगठन में हरियाली अमावस को उमाजी का खेड़ा नामक स्थान से आंदोलन प्रारंभ किया।
- नोट:- 1919 कोई क्षेत्रीय संगठन को समझाने के लिए बिंदुलाल आचार्य का गठन और कार्य किया गया।
राजनीतिक संगठन – राजस्थान सेवा संघ (1919)
- स्थान – वर्धा (महाराष्ट्र)
- संस्थापक – हरिभाई किंकर
- उद्देशय – पत्र-पत्रिकाओं को राजनीतिक संरक्षण देना।
- संगठन के भामाशाह :-
- जमुनालाल बजाज
- विजय सिंह पथिक
- दामोदर लाल व्यास
- केसरसिंह बाराहट
संरक्षित पत्र
- कानपुर से – प्रताप
- वर्धा (महाराष्ट्र) – राजस्थान केसरी
- उदयपुर से – राजस्थान संदेश
- अजमेर से – नवीन राजस्थान
- 1920 में राजस्थान में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना अजमेर में विजय सिंह पथिक के द्वारा की गई।
- 1924 में गांधी के आदेश पर नवीन कार्यकर्ताओं के प्रवेश हुए जो निम्न है। :-
- जमनालाल बजाज
- हरिभाई उपाध्याय
- रामनारायण चौधरी
- 1924 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन बेलगांव में महात्मा गांधी के नेतृत्व में आयोजित हुआ।
- नोट :- गांधी जी ने 1940 – 41 में कस्तूरबा गांधी के लिए निजी सचिव महादेव देसाई आंदोलन का सर्वेक्षण करने के लिए भेजा और उन्होंने मेवाड़ के शासक महाराणा भूपाल सिंह को ज्ञापन दिया।
- महाराणा भूपाल सिंह के आदेश पर आंदोलन समाप्त कर दिया गया
- यह आंदोलन भारत का सबसे बड़ा अहिंसात्मक आंदोलन कहा जाता है।
- जॉन स्मिथ के शब्दों में रक्तहीन क्रांति के नाम से चर्चित है।
बिजोलिया किसान आंदोलन का इतिहास
- मेवाड़ रियासत की ऊपरमाल जागीर का प्रशासनिक अधिकरण बिजोलिया था। बिजोलिया के अंतर्गत 79 गांव आते थे तथा 60% आबादी धाकड़ जाति के किसानों की थी।
- खानवा के युद्ध के बाद अशोक परमार को सांगा ने ऊपरमाल की जागीर प्रदान की।
- 1894 में कृष्ण सिंह बिजोलिया के जमीदार बने इनके समय किसानों से 1/2 भू राजस्व व 84 प्रकार की लाग-बाग ली जाती थी।
- 1897 ईस्वी में बिजोलिया के किसान गिरधरपुरा (भीलवाड़ा) में गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यु भोज के अवसर पर एकत्रित हुए व बिजोलिया के सरकारी पुस्तकालय कक्ष साधु सीताराम दास की सलाह पर ठाकरे पटेल व नानक पटेल को कृष्णसिंह की शिकायत करने के लिए मेवाड़ के शासक फतेह सिंह के पास भेजा गया।
- फतेह सिंह ने हामिद हुसैन नामक जांच अधिकारी को बिजोलिया भेजा। जिसने किसानों के पक्ष में रिपोर्ट भेजी परंतु फतेह सिंह ने कृष्ण सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं की।
- इस कारण से कृष्ण सिंह ने दोनों व्यक्तियों को जागीर से निष्कासित कर दिया।₹5 का जुर्माना वसूलने के बाद में उन्हें जागीर में प्रवेश दिया गया
- 1903 में कृष्ण सिंह ने किसानों पर चवरी कर लगाया। इसके विरोध में 1905 तक बिजोलिया में किसी की भी शादी नहीं हुई।
- बिजोलिया के किसान ग्वालियर जाने लगे तथा कृष्ण सिंह ने समझौता करके चवरी कर को आधा कर दिया गया।
- 1996 में पृथ्वी सिंह बिजोलिया के जमीदार बने। इन्होंने तलवार बंधाई शुल्क का भार किसानों पर लगा दिया।
- राजस्थान में केवल जैसलमेर रियासत को छोड़कर सभी रियासतों के राजा जमीदारों से यह कर वसूलते थे ।
बिजोलिया किसान आंदोलन का आगे का इतिहास
- 1913 में बिजोलिया के किसानों ने भूमि को परती रखा।
- इसके लिए किसानों को प्रेरित करने का कार्य है पंडित भीमदेव शर्मा, फतेहकरण चारण, व सीताराम दास ने किया।
- 1914 में प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ। इस समय ब्रिटिश सरकार प्रत्येक भारतीय से कर के रूप में ₹14 वसूल कर रही थी। तथा नारायण सिंह पटेल नामक किसान ने यह पैसा देने से इनकार कर दिया इस कारण इसे गिरफ्तार करके बिजोलिया की जेल में रखा गया।
- लगभग 2000 किसानों ने नारायण सिंह को जेल से रिहा करवाया इसकी रिहाई इस आंदोलन में किसानों की प्रथम विजई मानी गई।
- 1914 में पृथ्वी सिंह की मृत्यु हुई तथा उसका नन्ना मुन्ना केसरी सिंह जमीदार बना।
- इस कारण बिजोलिया में (court of wards ) का गठन किया गया।
- अमर सिंह राणावत को बिजोलिया का प्रशासक बनाया गया तथा डूंगर सिंह भाटी इसके सहायक अधिकारी बनाए गए।
विजयसिंह पथिक का किसान आंदोलन में प्रवेश
- विजय सिंह पथिक का वास्तविक नाम – भूपसिंह
- निवासी – उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के गुठावली गांव के निवासी थे।
- 1857 की क्रांति के 50 साल पूर्ण होने के उपलक्ष में पूरे भारत में क्रांति योजना बनाई गई थी। इसके लिए विजय सिंह पथिक को राजस्थान भेजा गया।
- 1914 ईस्वी में प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ था तथा रासबिहारी बॉस ने पूरे भारत में विद्रोह की योजना बनाई।
- राजस्थान में इसका नेतृत्व विजय सिंह पति को सौंपा तथा खेरवा (अजमेर) के जमीदार गोपाल सिंह इनके सहयोगी बनाए गए।
- परंतु अंग्रेजों को योजना का पता चल गया था तथा पति को खेरवा के जंगलों से गिरफ्तार करके टॉडगढ़ दुर्ग में नजरबंद करके रखा गया । यहां से फरार होकर विजय सिंह पथिक चित्तौड़ की है ओछड़ी गांव में पहुंचे और हरिभाई किंकर के साथ मिलकर विद्या प्रचारिणी सभा बनाई
- 1916 में इस सभा के सम्मेलन में बिजोलिया के साधु सीतारामदास व मंगल सिंह भाग लेने आए। जिन के आग्रह पर विजय सिंह पथिक इस आंदोलन में शामिल हुए।
- विजय सिंह पथिक ने बिजोलिया के निकट उमा जी का खेड़ा गांव को अपना मुख्यालय बनाया।
- 1917 में बारीसाल गांव (भीलवाड़ा) में 13 सदस्यों वाले ऊपरमाल पंच बोर्ड का गठन किया। जिसके अध्यक्ष मन्ना पटेल बनाए गए।
- इस बोर्ड का कार्य था किसानों को लगान न देने के लिए प्रेरित करना वह किसानों के आपसी मुकदमों की सुनवाई करना।
- 1918 में विजय सिंह पथिक ने मुंबई जाकर गांधी जी से मुलाकात की गांधी ने विजय सिंह पथिक को राष्ट्रीय पथिक व अपने निजी सचिव महादेव देसाई को बिजोलिया भेजा।
- महादेव देसाई ने मेवाड़ के प्रधानमंत्री रामाकांत मालवीय से मुलाकात की तथा मालवीय ने अप्रैल 1918 में 3 सदस्य बिंदुलाल भट्टाचार्य आयोजन का गठन किया इसके अन्य सदस्य निम्न है। :-
- अमर सिंह राणावत
- हकीम अजमल
- इन्होंने भी किसानों के पक्ष में रिपोर्ट दी।
- 1919 में कांग्रेस का अधिवेशन अमृतसर में आयोजित हुआ जिसमें विजय सिंह पथिक ने भाग लिया।
- तिलक ने इस आंदोलन का मुद्दा उठाया परंतु गांधी व मालवीय को तिलक का समर्थन नहीं किया।
- 1919 में ही वर्धा (महाराष्ट्र) मैं राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की।
- 1920 में कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन हुआ इसमें बिजोलिया किसान आंदोलन से संबंधित एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
बिजोलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित करने का श्रेय
- इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित करने का श्रेय कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा प्रकाशित प्रताप नामक समाचार पत्र के माध्यम से किया इसके अलावा प्रयाग से प्रकाशित व कोलकाता से प्रकाशित भारत मित्र व तिलक ने मराठा नामक समाचार पत्र से इस आंदोलन को प्रकाशित किया था।
- रामनारायण चौधरी व विजय सिंह पथिक के द्वारा ऊपर माल डंका नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया।
- असहयोग आंदोलन के समय सरकार के दबाव में आकर ए .जी .जी रॉबर्ट हॉलैंड व मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट विलकिंग्सन को बिजोलिया भेजा था। 11 फरवरी 1922 को उन्होंने किसानों के साथ समझौता किया।
- इस समझौते में किसानों की ओर से रामनारायण चौधरी, माणिक्य लाल वर्मा, व ऊपर माल पंच बोर्ड अध्यक्ष मोतीचंद के द्वारा भाग लिया गया।
- इस समय 74 लाग- बाग की सूची दी गई जिनमें से 33 को माफ कर दिया गया
बिजोलिया से संबंधित अन्य तथ्य
- विलियम ट्रेंच को बिजोलिया का भूमि बंदोबस्त अधिकारी बनाया गया।
- मेवाड़ के जमीदारों ने इस समझौते का विरोध किया।
- सितंबर 1923 में विजय सिंह पथिक को बेगू किसान आंदोलन में गिरफ्तार किया गया।
- 1927 में रिहा किया गया था। पथिक रिहा होकर बिजोलिया आने पर बिजोलिया के किसानों को जमीदारों से भूमि किराए पर न लेने की सलाह दी। परंतु इस भूमि को धाकड़ के अलावा अन्य जाति के किसान व ग्वालियर के किसानों ने किराए पर ले लिया
- विजय सिंह पथिक व चौधरी में मतभेद हो गए।
- 1929 तक विजय सिंह पथिक इस आंदोलन से पूरी तरह से अलग हो गए।
- रामनारायण चौधरी की पत्नी अंजना देवी चौधरी सविनय अवज्ञा आंदोलन में गिरफ्तार की गई।
- राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम में गिरफ्तार होने वाली प्रथम महिला थी।
- जमनालाल बजाज, हरिभाई उपाध्याय के द्वारा भी इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।
- उपाध्याय की पत्नी रामादेवी इस आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व प्रदान किया।
- यह आंदोलन 1941 में समाप्त हुआ। जब मेवाड़ के प्रधानमंत्री T.राघवचारी ने अपने राजस्व अधिकारी मोहन सिंह मेहता को बिजोलिया भेजा।
- मेहता ने मानिक लाल वर्मा की मध्यस्था से किसानों के साथ समझौता किया।
- मानिक लाल वर्मा ने इस आंदोलन के दौरान पंछीड़ा नामक गीत लिखा था।
- इस आंदोलन का जन्मदाता साधु सीताराम दास को माना जाता है।
- राजस्थान में किसान आंदोलन का जन्मदाता विजय सिंह पथिक को मानते हैं।
विजय सिंह पथिक की पुस्तक
- विजय सिंह पथिक के निम्नलिखित पुस्तक है जो कि निम्न है। :-
- What are the Indian states
- अजमेरू
- प्रमोदिनी
• गेथेट के अनुसार” यह एशियाई का सर्वाधिक लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन है।
• इस आंदोलन का संदेशवाहक तुलसीभील था।
- भंवरलाल ने अपने सॉन्ग के माध्यम से इस आंदोलन को रूसी क्रांति के सामान का तथा फतेह सिंह को जार कहा।
- यह आंदोलन प्रारंभ हुआ उस समय फतेह सिंह मेवाड़ के शासक थे और समाप्ति के समय भुपालसिंह शासक थे।
2. बीकानेर किसान आंदोलन
- बीकानेर के शासक के गंगासिंह ने 1925 में गंगनहर का निर्माण प्रारंभ करवाया। यह नहर 1927 में बनकर पूर्ण हुई थी।
- इसके निर्माण पर जितना भी व्यय हुआ पूरा गंगासिंह ने दिया था। परंतु इसके पश्चात सिंचाई हेतु पूरा पानी उपलब्ध नहीं करवाया गया। तथा इस सिंचाई सुविधा के बदले वसूले जाने वाले कर को पूरी शक्ति के साथ वसूल किया जाता था।
- गंगासिंह जब दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गए जब चंदनमल बहर ने द्वारा लिखित बीकानेर एक दिग्दर्शिका नामक पुस्तिका के माध्यम से गंगा सिंह की आलोचना की।
- गंगासिंह गोलमेज सम्मेलन बीच में ही है छोड़ कर लौटे तथा 1932 में सार्वजनिक सुरक्षा कानून लागू किया।
सार्वजनिक सुरक्षा कानून नियम के प्रावधान
- सार्वजनिक सुरक्षा कानून नियम में निम्नलिखित प्रावधान थे जोकि निम्न प्रकार से :-
- किसी भी व्यक्ति को यह संदेश हो कि वह राज्य विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो तो उसे रियासत से निष्कासित किया जा सकता था।
- किसी अपराध में गिरफ्तार होने पर लंबी अवधि तक के जमानत नहीं मिलती थी व कर्ज़ को ना देने पर अपराध मान लिया गया
• इसे काला कानून कहा गया।
- गांधीजी ने इसकी तुलना रोलेट एक्ट से की है।
- नेहरू ने कहा कि जिस रियासत में कुमकुम पत्रिका सेंसर होती हो उस रियासत का शासक है इंसान नहीं हैवान है।
- 1937 में उदासर गांव से जीवन लाल चौधरी के द्वारा प्रथम संगठित किसान आंदोलन प्रारंभ किया गया।
- 1941 में रघुवर दयाल ने बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की स्थापना की।
- इसके कार्यकर्ताओं के द्वारा 30 जून से 1 जुलाई 1946 को रायसिंहनगर में किसानों का एक सम्मेलन बुलाया गया। जिसकी प्रशासन ने अनुमति दे दी थी।
- केवल झंडे के प्रयोग को प्रतिबंधित किया गया था परंतु कुछ लोग झंडे ले आए जिस कारण से गोलाबारी में बीरबल सिंह नामक व्यक्ति मारा गया। इसकी स्मृति 6 जुलाई को किसान दिवस व 17 जुलाई को बीरबल दिवस मनाया जाता है।
3. बेगू किसान आंदोलन
- बेगू किसान आंदोलन के बारे में सबसे पहले महत्वपूर्ण तथ्यों को देखेंगे।
बेगू किसान आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- सम्बन्ध – मेनाल गांव (भीलवाड़ा)
- नेतृत्व – रामनारायण चौधरी
- दायित्व देने वाले – विजय सिंह पथिक
- समर्थन करने वाले – जयनारायण व्यास
- आंदोलन की विषय वस्तु या कारण – 1. स्थाई कर 2. बंदोबस्त कर
- किसान नेता – रूपाजी व कृपाजी (बूंदी से)
- समकालीन जागीरदार – रावअनूप सिंह के काल की घटना
- सत्याग्रह – 13 जुलाई 1923 को (गोविंदपुरा, चित्तौड़गढ़)
- नेतृत्व – रूपाजी व कृपाजी (सत्याग्रह का)
- समझाने के लिए कमीशन – ट्रेंच आयोग कमीशन
- गोलीकांड – मि. ट्रेंच नामक अंग्रेज ने
- शहीद – रूपाजी व कृपाजी
- सरकारी रिपोर्ट के आधार पर – 120 महिला-पुरुष व बच्चे मारे गए
- घटना को नामित – बोल्शेविक क्रांति
- नामित करने वाले – 1. महात्मा गांधी 2. मेवाड़ नरेश महाराणा फतेह सिंह
बेगू किसान आंदोलन का इतिहास या घटना
- बेगू (चित्तौड़) मेवाड़ रियासत की जागीर थी।
- यहां के अधिकांश किसान धाकड़ जाति के थे व बिजोलिया के किसानों से संबंध थे।
- बिजोलिया आंदोलन से प्रभावित होकर 1922 में मेनाल (भीलवाड़ा) में एकत्रित हुए व अजमेरा आकर विजय सिंह पथिक से मुलाकात की व आंदोलन का नेतृत्व ग्रहण करने का आग्रह किया।
- क्योंकि विजय सिंह पथिक का मेवाड़ रियासत में प्रवेश पर प्रतिबंध था इसलिए पथिक ने रामनारायण चौधरी को इन किसानों के साथ चौधरी ने मेवाड़ के दीवान दामोदर लाल व पॉलिटकल एजेंड विलकिंनसन से मुलाकात की परंतु इन दोनों के कानों में जूं तक नहीं रेगी।
- इस कारण से बेगू में किसानों ने हिंसक विद्रोह कर दिया। दबाव में आकर बेगू का जमीदार अनूपसिंह अजमेर आया।
- June 1942 को राजस्थान सेवा संघ की अध्यक्ष से किसानों के साथ समझौता किया। परंतु सरकार ने इस समझौते को मानने से इंकार कर दिया। इस समझोते को बोल्शेविक समझौता कहा गया।
- अनूप सिंह को उसके पद से हटाकर बेगू में मुसरमात का गठन कर दिया गया व अमृतलाल को बेगू का प्रशासनिक किया गया।
• किसानों की समस्या की जांच हेतु ट्रेंच आयोग का गठन किया गया।
•13 July 1923 को बेगू के जमीदार गोविंदपुरा (भीलवाड़ा) गांव में एकत्रित हुए थे व ट्रेंच के आदेश से गोली चलाई गई।
- इसमें रूपाजी धाकड़ व कृपाजी धाकड़ व्यक्ति मारे गए।
- सितंबर 1923 में विजय सिंह पथिक इसी आंदोलन में गिरफ्तार हुए थे इसलिए आंदोलन समाप्त हो गया।
- इस आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी के द्वारा किया गया।
4. बूंदी का बरड किसान आंदोलन
- ऊपरमाल से सटे हुए बूंदी के पठारी क्षेत्र को बरड कहा जाता है।
- इस क्षेत्र की मुख्य आबादी गुर्जर थी जिसकी आजीविका पशुपालन थी।
- गुर्जरों ने जानवरों को हाका देने की परंपरा जब भी क्षेत्र में अंग्रेज अधिकारी या शासक शिकार के लिए आते थे गुर्जर जानवरों को घेरकर एक ही स्थान पर इकट्ठा हो जाते थे इसमें गुर्जरों की स्वयं के पशु भी मारे जाते थे।
- पठारी भूभाग होने के कारण कृषि कम होती थी तथा वह भी इस शिकार में नष्ट हो जाती थी।
- 1921 में साधु सीताराम दास की सलाह पर बरड किसान सभा का गठन किया गया इसके अध्यक्ष हरला भड़क को बनाया गया।
- प्रारंभ में केवल हाका देने का विरोध हुआ परंतु बिजोलिया में हुए समझौते के बाद भू राजस्व या लागबाग देने से मना कर दिया गया।
- गुर्जरों का नेतृत्व पंडित नयनू शर्मा व महिलाओं का नेतृत्व सत्यभामा के द्वारा किया गया।
- सत्यभामा को गांधी का मानस पुत्री कहा जाता है।
डाबी (बूंदी) की घटना
- 2 अप्रैल 1923 को गुर्जर डाबी (बूंदी) में एकत्रित हुए व पुलिस अधिकारी इकराम हुसैन के आदेश से गोली चलाई गई। इसमें देव गुर्जर व नानक भील मारे गए।
- नानक भील की स्मृति में माणिक्य लाल वर्मा ने अर्जीवन नामक कविता लिखी थी जिसे इनके दाह संस्कार पर भंवरलाल प्रज्ञाच के द्वारा पढ़कर सुनाया गया।
- 1936 में सरकार पशु गणना करवा रही थी तथा गुर्जरों को लगा कि पशुओं पर कोई लाख बाग लगाई जाएगी अतः ये गुर्जर हिंडोली के हूंडेश्वर महादेव मंदिर में एकत्रित हुए परंतु प्रजामंडल आंदोलन सक्रिय होने के कारण गुर्जरों को उचित नेतृत्व नहीं मिल पाया।
- स्त्रियों का सर्वाधिक योगदान इसी आंदोलन में था।
5. शेखावाटी किसान आंदोलन
- शेखावाटी में एकमात्र रियासत सीकर थी परंतु यह जयपुर की अर्द स्वायत्त रियासत थी। अर्थात कुछ ही मामलों में स्वतंत्रता थी बाकी मामलों में उसे जयपुर पर निर्भर रहना पड़ता था।
- सीकर के अंतर्गत 436 गांव आते थे। यहां के किसान जाट जाति से थे व जमीदार राजपूत थे।
- इनका प्रारंभ एक किसान आंदोलन के रूप में प्रारंभ हुआ परंतु बाद में यह वर्गों की जातीय श्रेष्ठता में परिवर्तित हो गया। बाकी जातियों ने जाटों को सहयोग किया इसलिए छुआछूत शेखावाटी में सर्वप्रथम समाप्त माना गया।
- 1922 में कल्याण सिंह सीकर के शासक बने तथा इन्होंने लगान में 25 से 50 परसेंट वृद्धि कर दी थी।
- सीकर के किसानों ने अजमेर जाकर रामनारायण चौधरी को इस समस्या के बारे में बताया।
- चौधरी ने लंदन से प्रकाशित हेराल्ड नामक समाचार पत्र में सीकर के किसानों पर मुद्दा उठाया।
- जयपुर के शासक सवाई मानसिंह -ll ने बेब नामक अधिकारी को सीकर भेजा जिसने सीकर को भूमि बंदोबस्त करके लगान की दरें निश्चित की। परंतु बेब के जयपुर लौटते ही कल्याण सिंह ने बढ़ा हुआ लगान वसूलना शुरू कर दिया।
कटराथल (सीकर) की घटना
- 25 April 1924 को कटराथल (सीकर) मैं जाट महिलाओं का सम्मेलन बुलाया गया।
- धारा 144 लगे होने के बावजूद भी 10,000 महिलाएं इस सम्मेलन में शामिल हुई।
- इस सम्मेलन की अध्यक्षता किशोरी देवी के द्वारा की गई व प्रमुख वक्ता उत्तमा देवी थी।
- इस सम्मेलन को कोलकाता से प्रकाशित विश्वमित्र व भारतमित्र में प्रकाशित किया गया।
डूंडलोद (झुंझुनू) की घटना
- 21 जून 1934 को डूंडलोद (झुंझुनू) के जमीदार हरनाथ सिंह के भाई ईश्वरसिंह ने जयसिंहपुरा गांव में खेत में काम कर रहे चारों किसानों को गोली मारकर हत्या कर दी गई इस कारण से उन पर मुकदमा चलाया गया।
- सजा पाने वालों में प्रथम राजपूत जमीदार थे।
- इस हत्याकांड को मंदसौर से प्रकाशित अर्जुन नामक समाचार पत्र में प्रकाशित किया गया।
- कुंदन, वलथाना, खूड इस आंदोलन के प्रमुख केंद्र थे।
- House of commons के सदस्य पेथिक लॉरेंस के द्वारा भी इस आंदोलन का मुद्दा उठाया गया।
- राजस्थान के अंतिम ए .जी .जी ए.सी लेथियन ने भी इस आंदोलन के बारे में लिखा है।
6. अलवर किसान आंदोलन
- अलवर में जमींदार प्रथा कम थी। अलवर की 80% भूमि खालसा थी अर्थात सीधे राज्य के नियंत्रण में थी।
- मात्र 20% भूमि पर ही जमीदारों को प्रभाव था इन जमीदारों को विश्वेश्वरदास कहते थे।
- किसान खालसा भूमि को किराए पर लेते और कृषि करता था
- खालसा भूमि पर से लगान की वसूली जमीदार करके राज्य को देता था।
- 1921 में अलवर के शासक जयसिंह ने लगान की दरों में वृद्धि कर दी थी। किसानों ने बढ़ा हुआ लगान देने से इनकार कर दिया।
- 14 मई 1925 को अलवर के बानसूर तहसील की नींमुचण गांव में किसान व जमीदार एकत्रित हुए।
- पुलिस अधिकारी गोपाल सिंह व कमांडर छज्जू सिंह (राजस्थान का जनरल डायर) के आदेश पर गोली चलाई गई। इसमें कुल 156 व्यक्ति मारे गए।
- गोलीबारी के समय सीता देवी नामक महिला भाषण दे रही थी।
- लाहौर से प्रकाशित रियासत नामक अखबार में इसकी तुलना जलियांवाला बाग से की है।
- गांधी ने यंग इंडिया नामक समाचार पत्र जिसे डबल डायिरीजम डीस्टीलड अर्थात दोहरी डायर शाही कहां गया।
नींमुचण(अलवर) की घटना
- कालक्रम – 14 मई 1925 से 24 मई 1925 के मध्य
- संबंधित क्षेत्र – बानसूर तहसील (अलवर)
- नेतृत्व – महेश मेव
- समकालीन जागीरदार – राव अनूप सिंह
- आंदोलन के रचनात्मक कारण – 1. मादा पशुओं के क्रय विक्रय पर प्रतिबंध। 2. जंगल से लकड़ी प्राप्त करने पर प्रतिबंध 3. मांस व्यापार पर प्रतिबंध 4. जंगली पशुओं के शिकार पर प्रतिबंध
सूअर विरोधी गतिविधि (अलवर)
- सूअर विरोधी अभियान के तहत पुलिस निरीक्षक छाजू सिंह ने मेव किसान वर्ग पर गोली कांड किया जिसमें सीता देवी मेव शहीद हुई और 60 अन्य कार्यकर्ता मारे गए।
- महात्मा गांधी ने इस घटना को दोहरी डायर नीति अर्थात डबल डायर नीति व राजस्थान का दूसरा जलियांवाला कांड कहा।
- महात्मा गांधी ने इस घटना का जिक्र न्यू इंडिया नामक पत्र में उजागर किया।
7. मातृकुंडिया किसान आंदोलन (चित्तौड़गढ़)
- यह आंदोलन 22 जून 1980 में हुआ था जोकि एक जाट किसान आंदोलन था। इसका मुख्य उद्देश्य नई भू राजस्व व्यवस्था थी। इस समय मेवाड़ के शासक महाराणा फतेहसिंह था।
8. दुधवा-खारा किसान आंदोलन
- यह आंदोलन बीकानेर रियासत के चूरू में हुआ था। यहां के किसानों ने जागीरदारों के अत्याचार व शोषण के विरुद्ध आंदोलन किया इस समय बीकानेर का शासक सार्दुल सिंह जी थे।
- इस आंदोलन का नेतृत्व रघुवर दयाल गोयल, हनुमान सिंह आर्य के द्वारा किया गया।
9. मारवाड़ में किसान आंदोलन
- मारवाड़ की किसानों पर बहुत ही अत्याचार हुए थे। 1923 ईस्वी में जयनारायण व्यास ने मारवाड़ में हितकारी सभा का गठन किया और किसानों को आंदोलन के लिए प्रेरित किया परंतु सरकार ने इस सभा को गैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया सरकार ने इस आंदोलन को ध्यान में रखते हुए मारवाड़ किसान सभा नामक संस्था का गठन किया परंतु इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई।
- आजादी के बाद भी जागीरदार किसानों पर अत्याचार करते रहे परंतु राज्य में लोकप्रिय सरकार के गठन के बाद किसानों को भूमि के अधिकार मिल गए।
किसान आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
Q.1 राजस्थान के किस क्षेत्र में कृषक आंदोलन प्रारंभ करने की पहल की ?
उत्तर – मेवाड़
Q. 2 राजस्थान का प्रथम किसान आंदोलन कौन सा था ?
उत्तर – बिजोलिया
Q.3 बेगू किसान आंदोलन का नेतृत्व किसने किया था ?
उत्तर – रामनारायण चौधरी
Q. 4 रूपाजी व कृपाजी किसान नेताओं का संबंध किस आंदोलन से है ?
उत्तर – बेगू किसान आंदोलन से
Q. 5 बूंदी किसान आंदोलन की शुरुआत कब हुई ?
उत्तर – 1926-27
Q.6 मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक पुस्तक किसने लिखी ?
उत्तर – माणिक्य लाल वर्मा
Q. 7 पूर्व मेवाड़ परिषद की स्थापना की गई ?
उत्तर – 1922
Q.8 कांगड़ा कांड किस प्रजामंडल में गठित हुआ
उत्तर – बीकानेर प्रजामंडल
Q. 9 बोल्शेविक समझौता किस आंदोलन से है ?
उत्तर – बेगू आंदोलन से
Q.10 जोधपुर में लिजियन का गठन कब हुआ ?
उत्तर – 1836
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