लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण से तात्पर्य लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का अर्थ है कि शासन-सत्ता को एक स्थान पर केंद्रित करने के बजाय उसे स्थानीय स्तरों पर विभाजित किया जाए, ताकि आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित हो सके और वह अपने हितों व आवश्यकताओं के अनुरूप शासन-संचालन में अपना योगदान दे सके।
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
भारत में स्वायत शासन का उल्लेख सबसे पहले प्राचीन भारत में मौर्यकाल एवं पुन: पुरात्तवीय प्रमाण के चोल काल में उत्तरमेरू अभिलेख (परांतक प्रथम 919 से 921 ई0 के) में मिलता है
आधुनिक भारत में प्रथम भारत सरकार के एक प्रस्ताव से 1864 में मिलता है जिसमें स्थानीय स्वशासन मान्यता दी गयी। एवं 1870 में मेयो ने पंचायतों को कार्यात्मक रूप में वित्तीय स्वायत्ता दी गयी। रिपन ने 1882 में एक प्रस्ताव से स्थानीय स्वशासन को मान्यता दी जिसे स्थानीय स्वशासन का मैग्नाकार्टा कहा जाता है। जिसमें उपखंड व जिला बोर्ड बनाने का सुझाव दिया गया।
स्थानीय स्वशासन की स्थिति की जांच हेतु 1907 में CEH हॉबहाउस की अध्यक्षता में जांच के लिए राजकीय विकेन्द्रीकरण आयोग/ शाही आयोग की नियुक्ति की गयी। जिसने 1909 में रिपोर्ट दी जिसमें स्वायत्तशासी संस्थाओं के विकास पर बल दिया गया। 1919 के मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार में या अधिनियम में स्थानीय स्वशासन के बारे में स्पष्ट प्रावधान थे। इस प्रणाली में द्वैध शासन प्रणाली में स्थानीय स्वशासन को हस्तान्तरित विषय बना दिया गया।
हस्तान्तरित विषय:- का शासन गवर्नर अपने भारतीय मंत्रियों की सलाह से करता था। जो प्रान्तीय विधानसभा के प्रति उत्तरदायी थे। 1920 में संयुक्त प्रांत, असम,बंगाल, बिहार, मद्रास और पंजाब में पंचायतों की स्थापना की गयी। 1935 के अधिनियम द्वारा स्थानीय स्वशासन को पूर्णतया राज्य का विषय बना दिया गया।
स्वतंत्रता के बाद हमारे संविधान में पंचायती राज्य व्यवस्था
भाग 9, अनुच्छेद 243, 243D, 243E, 243… अनुच्छेद 40, 11 वीं अनुसूची, 73 वां 1992 लागू हुआ (संक्षिप्त में) 24 अप्रैल 1993 को प्रभावी हुआ।
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पंचायती राज्य व्यवस्था का विकास:-
आजादी के पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय बनाया गया जिसके मंत्री एस.के.डे को बनाया गया। 2 अक्टूबर 1952 को प्रधानमंत्री नेहरू की पहल पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programe) शुरू किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आर्थिक विकास एवं सामाजिक विकास का पुनरुद्धार करना था।
लेकिन जनता को अधिकार नहीं दिया गया, जिस कारण से यह सरकारी अधिकारियों तक सीमित रह गया असफल हो गया। असफलता का कारण जनता में अशिक्षा का होना था इस प्रकार पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु समय समय पर समितियों का गठन किया गया जिनमें….
- बलवंत राय मेहता समिति 1957
- अशोक मेहता समिति 1977
- डॉ. पी.वी.के. राव समिति 1985
- डॉ. एल.एम.सिंघवी समिति 1986
- पी.के.थुंगन समिति 1988