विधि आयोग
भारत का विधि आयोग एक गैर-वैधानिक परामर्शदायी निकाय है। इसका गठन समय-समय पर केंद्र सरकार के आदेश द्वारा एक निश्चित कार्यकाल के लिए किया जाता है। भारत के प्रथम विधि आयोग का गठन 1834 ई. में लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में तत्कालीन वायसराय लार्ड विलियम बैंटिक ने की थी।
स्वतंत्रता पश्चात् सन् 1955 में एम.सी. सीतलवाड़ की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया। ब्रिटिश शासन के दौरान 19वीं शताब्दी में 4 विधि आयोग गठित किए गए थे।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-372 यह प्रावधान करता है कि संविधान से पहले के कानून तब तक लागू बने रहेंगे जब तक कि उन्हें संशोधित या निरसित न कर दिया जाए। विधि आयोग का मूल कार्य कानूनों का समेकन और संहिता करण के उद्देश्य से विधायी उपायों की अनुशंसा करना है।
विधि आयोग की संरचना प्रत्येक आयोग के लिए भिन्न-भिन्न है। इस आयोग में एक अध्यक्ष, कुछ पूर्णकालिक सदस्य और एक सदस्य सचिव होता है। इसके अध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्य उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, वैधानिक विशेषज्ञ या किसी भारतीय विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर होते हैं।
20 वां विधि_आयोग उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश श्री डी. के. जैन भारत के 20वें विधि_आयोग की अध्यक्ष है । 20वां विधि_आयोग 1 सितंबर, 2012 को एक सरकारी आदेश के जरिए गठित किया गया था।
15 मार्च, 2016 को केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति डॉ. बलवीर सिंह चौहान को 21 वें विधि_आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया यह पद सितंबर, 2015 से रिक्त था इस समय वह कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण के अध्यक्ष हैं। वे मई, 2009 से जुलाई, 2014 के मध्य उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रहे।
आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा और यह 31 अगस्त,2015 को समाप्त होगा। 20वें विधि_आयोग के कार्यपुराने कानूनों की समीक्षा करना या रद्द करना
ऐसे कानूनों का पता लगाना जिनकी अब आवश्यकता नहीं है अथवा प्रासंगिक नहीं रहे और जिन्हें तत्काल रद्द किया जा सकता है।उन कानूनों का पता लगाना जो आर्थिक उदारीकरण की वर्तमान परिस्थितियों से सुसंगत नहीं हैं और उनमें परिवर्तन की आवश्यकता है।
उन कानूनों का पता लगाना जिनमें अन्यथा परिवर्तन अथवा संशोधन की आवश्यकता है और उनके संशोधन हेतु सुझाव देना। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के विशेज्ञ दलों द्वारा सुझाव/संशोधन के लिए किए गए सुझावों पर व्यापक दृष्टि से विचार करना, ताकि उनमें समन्वय स्थापित किया जा सके।
एक से अधिक मंत्रालयों/विभागों के कामकाज पर प्रभाव डालने वाले कानूनों के बारे में मंत्रालयों विभागों द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करना। कानून के क्षेत्र में नागरिकों की शिकायतों के शीघ्र निपटारे के लिए उपयुक्त उपाय सुझाना।