संप्रभुता का शाब्दिक अर्थ, संप्रभुता क्या है, संप्रभुता की परिभाषा, संप्रभुता के प्रकार या स्वरूप, संप्रभुता की विशेषता या लक्षण आदि इन सब बिंदुओं पर पर आपको पूरी डिटेल से बताया गया है यह टॉपिक एग्जाम की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है (what is Sovereignty) और (types of sovereignty) आदि सब के बारे में विस्तार से बताया गया है !
संप्रभुता का शाब्दिक अर्थ
संप्रभुता एक पंजाबी शब्द है और अंग्रेजी में इसे Sovereignty कहा जाता है। संप्रभु शब्द लैटिन भाषा के वर्चस्व से लिया गया है। लैटिन में वर्चस्व शब्द का अर्थ है सर्वोच्च या सर्वोच्च शक्ति।
इस प्रकार संप्रभुता का अर्थ राज्य की सर्वोच्च शक्ति से लिया जाता है। जहां तक संप्रभुता की परिभाषा का सवाल है, यह अलग-अलग विद्वानों द्वारा अलग-अलग शब्दों में अपने-अपने विचारों के अनुसार व्यक्त किया गया है।
संप्रभुता क्या है (Samprabhuta kya hai)
samprabhuta meaning in hindi;संप्रभुता राज्य की सर्वोच्च इच्छा शक्ति का दूसरा नाम है। राज्य के सभी व्यक्ति और संस्थाएं संप्रभुता के अधीन है। संप्रभुता बाहरी तथा आंतरिक दोनों दृष्टि से सर्वोपरारि होति है।
सम्प्रभुता से तात्पर्य राज्य की उस शक्ति से है, जिसके कारण राज्य अपनी सीमाओं के अंतर्गत कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है। राज्य के अंदर कोई भी व्यक्ति अथवा समुदाय राज्य के ऊपर नही है। बाहरी दृष्टि से संप्रभुता का अर्थ है राज्य किसी बाहरी सत्ता के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष नियंत्रण से स्वतंत्र होता है।
संप्रभुता की परिभाषा (samprabhuta ki paribhasha)
- बोदां के अनुसार ” संप्रभुता राज्य की अपनी प्रजा तथा नागरिकों के ऊपर वह सर्वोच्च सत्ता है जिस पर किसी विधान का प्रतिबंध नही है। “
- ग्रोसियस के अनुसार ” सम्प्रभुता किसी को मिली हुई वह सर्वोच्च शक्ति है जिसके ऊपर कोई प्रतिबंध नही है, और जिसकी इच्छा की उपेक्षा कोई नही कर सकता है।
- सोल्टाऊ के अनुसार ” राज्य द्वारा शासन करने की सर्वोच्च कानूनी शक्ति सम्प्रभुता है। “
- बर्गेस के अनुसार ” राज्य के सब व्यक्तियों व व्यक्तियों के समुदायों के ऊपर जो मौलिक, सम्पूर्ण और असीम शक्ति है, वही संप्रभुता है।”
- डुग्वी के शब्दों मे ” सम्प्रभुता राज्य की वह सर्वोच्च शक्ति है जो राज्य-सीमा क्षेत्र मे निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी बन्धन के आज्ञा प्रदान करती है।
संप्रभुता की कुछ अन्य प्रमुख परिभाषाएँ
- प्रसिद्ध डच लेखक ग्रूसियस के शब्दों में, संप्रभुता किसी को सौंपी गई सर्वोच्च शक्ति है, जिसका कार्य किसी और के अधीन नहीं है और जिसकी कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता है।
- प्रख्यात फ्रांसीसी विद्वान प्रो: दिओगी के अनुसार, संप्रभुता राज्य की निर्णायक शक्ति है। यह एक राज्य के रूप में एक एकजुट राष्ट्र की इच्छा है। इसे राज्य के क्षेत्र में रहने वाले सभी व्यक्तियों को बिना शर्त आदेश जारी करने का अधिकार है।
- प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक श्री पोलक के अनुसार, संप्रभुता एक शक्ति है जो न तो अस्थायी है और न ही किसी और के द्वारा दी गई है, और न ही किसी विशेष नियम के अधीन है जिसे वह खुद नहीं बदल सकता है और न ही वह पृथ्वी पर किसी अन्य शक्ति के लिए जिम्मेदार है।
- अंग्रेजी विद्वान प्रो : लास्की के अनुसार, संप्रभुता प्रत्येक व्यक्ति और समूह से कानूनी रूप से सर्वोच्च है और दूसरों को दबाने की सर्वोच्च शक्ति प्राप्त है।
- डोनाल्ड एफ. रसेल के शब्दों में, संप्रभुता राज्य में सर्वशक्तिमान और सर्वोच्च शक्ति है, जो कानून द्वारा सीमित नहीं है क्योंकि अगर यह सीमित है, तो यह न तो सर्वशक्तिमान हो सकता है और न ही सर्वोच्च।
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई संप्रभुता की उपर्युक्त परिभाषाओं पर विचार करने के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संप्रभुता राज्य की सर्वोच्च, सर्वव्यापी और निर्विवाद शक्ति है जिसके आधार पर राज्य कानून बनाता है और सभी व्यक्तियों और समुदायों पर अपने आदेश थोपता है और संगठनों पर लागू होता है।
अकेले संप्रभुता के कारण राज्य पर किसी भी प्रकार का कोई आंतरिक या बाहरी बंधन नहीं हो सकता है। यदि राज्य की इस सर्वोच्च शक्ति पर कोई प्रतिबंध है, तो वे केवल राज्य की इच्छा के अनुसार हो सकते हैं और राज्य की इच्छा के खिलाफ राज्य पर कोई कानूनी बाध्यता नहीं हो सकती है। (संप्रभुता का शाब्दिक अर्थ)
संप्रभुता के प्रकार या स्वरूप (Samprabhuta ke Prakar or Swaroop)
1. नाममात्र की अथवा वास्तविक संप्रभुता
नाममात्र की और वास्तविक संप्रभुता का अभिप्राय शक्ति के प्रयोग की यथार्थ और वास्तविक स्थिति से है। नाममात्र की संप्रभुता शब्द का प्रयोग उस राज्य के राजतंत्रीय शासक के लिये किया जाता है जो किसी समय वास्तव मे संप्रभु था, किंतु अब पर्याप्त समय मे वह संप्रभु नही है। इस प्रकार शासक संप्रभुता का प्रयोग नही करता, वरन् उसके मंत्री अथवा वहां की संसद उसका प्रयोग करती है
शासन का समस्त कार्य उसके नाम से अवश्य किया जाता है और संविधान द्वारा उसको समस्त कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार प्राप्त है। इंग्लैंड का सम्राट इसी प्रकार का संप्रभु है। संयुक्त राज्य अमेरिका मे यह भेद नही है। औपचारिक और वास्तविक संप्रभुता का भेद संसदात्मक शासन प्रणाली मे ही देखा जाता है, अध्यक्षात्मक मे नही देखा जाता।
2. कानूनी और राजनीतिक संप्रभुता
कानूनी संप्रभु एक संवैधानिक संकल्पना है, जिसका अर्थ है कानून बनाने और उसका पालन कराने की सर्वोच्च शक्ति जिस सत्ता के पास है वह कानूनी संप्रभु है। कानून की दृष्टि मे संप्रभुता की सत्ता का उपयोग करने वाले व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को लेकर कोई शंका नही हो सकती। कानूनी संप्रभुता, पूर्ण व्यापक होता है उसके पास अपने कानून और आदेश को कार्यान्वित करने की लिए पर्याप्त शक्तियाँ होती है।
गार्नर का कहना है,” कानूनी संप्रभु वह निश्चित व्यक्ति है जो राज्य के उच्चतम आदेशों को कानून के रूप मे प्रकट कर सके, वह शक्ति जो ईश्वरीय नियमों या नैतिकता के सिद्धांत तथा जनमत के आदेशों का उल्लंघन कर सके।” इंग्लैंड मे संसद सहित सम्राट कानूनी संप्रभु है। इसके विपरीत राजनीतिक संप्रभुता की संकल्पना अस्पष्ट और भ्रमित करने वाली है। यह बताया जाता है कि कानून संप्रभु के पीछे राजनीतिक संप्रभु होता है, जिसका कानूनी संप्रभु शिरोधार्य करता है।
प्रो. डायसी ने इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है,” कानूनी संप्रभु के पीछे एक-दूसरा संप्रभु विद्यमान है जिसके सामने कानूनी संप्रभु को भी झुकना पड़ता है। यह दूसरा संप्रभु ही राजनीतिक संप्रभ है। राजनीतिक संप्रभुता कानूनन मान्यता प्राप्त नही है। इसकी पहचान बहुत मुश्किल कार्य है। यह कानूनी संप्रभु को प्रभावित और नियंत्रित करती है।
3. लोकप्रिय संप्रभुता
मध्य युग के विचारक जो राजा की शक्ति के विरोधी थे। उन्होंने लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। अठारहवीं शताब्दी मे इसका प्रतिपादन फ्रांस के दार्शनिक रूसो ने बड़े जोरदार शब्दों मे किया। उन्नीसवीं शताब्दी मे इस सिद्धांत का प्रचार तथा विकास प्रजातंत्र के विकास के साथ-साथ आरंभ हुआ। यदि वैधानिक संप्रभुता जनता की इच्छा है और यह जनता की इच्छा का विरोध करती है तो वह अधिक समय तक कार्य नही कर सकती है और उसका शीघ्र अन्त कर दिया जाता है।
जनता वैधानिक संप्रभुता के आदेशों का पालन इसलिये करती है, क्योंकि उसके आदेश जनता की इच्छानुसार होते है। प्रोफेसर रिची ने लोक संप्रभुता का समर्थन खुले शब्दों मे किया। उनके अनुसार जनता प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचन द्वारा संप्रभुता का प्रयोग करती है और परोक्ष रूप से विद्रोह करने के अधिकार द्वारा दबाव, आदि के कारण संप्रभुता का प्रयोग करती है, जनता के हाथ मे शारीरिक बल होता है और उसके द्वारा यह सरकार को उलट सकती है।
4. यथार्थ संप्रभुता
जब राज्य सत्ता किसी व्यक्ति मे निहित हो, किंतु उसके अधिकारों का प्रयोग अन्य कोई व्यक्ति करता है, तो प्रयोग करने वाली सत्ता यथार्थ संप्रभुता कहलाती है। इंग्लैंड मे संसद यथार्थ संप्रभुता का उदाहरण है।
5. विधि-सम्मत और वास्तविक संप्रभुता
कभी-कभी किसी राज्य मे दो-दो सत्ता या शासक हो जाते है। इनमे एक वास्तविक शासक होता है, जिसकी आज्ञा का पालन जनता भी करती है। लार्ड ब्राइस के अनुसार, ” व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह जो अपनी इच्छा को मनवा सकता है, चाहे वह कानून के अनुसार हो या कानून के विरूद्ध वह वास्तविक शासक हैं ” तथा दूसरा शासक वह होता है, जिससे सत्ता छीन ली गयी है, पर वह स्वयं को वास्तविक शासक ही मानता है, यहि विधि सम्मत संप्रभु है।
कई बार जब विधि-सम्मत संप्रभु का अस्तित्व मिटने लगता है, तब वास्तविक शासक ही विधि सम्मत शासक बन जाता है। गार्नर के शब्दों मे, ” वह संप्रभु जो अपनी शक्ति को बनाये रखने मे सफल होता है, थोड़े ही समय मे वैध संप्रभु बन जाता है। यह क्रिया या तो जनता की सहमति से होती है या राज्य के पुनर्गठन द्वारा। यह वास्तव मे कुछ ऐसी ही है, जैसा निजी कानून मे वास्तविक अधिकार पुरातनता द्वारा वैध स्वामित्व का रूप ग्रहण कर लेता है!
संप्रभुता की विशेषताएं या लक्षण (samprabhuta ki visheshta)
1. असीमता
सम्प्रभुता का पहला और अंतिम लक्षण उसका सर्वोच्च और असीम होना है। राज्य की संप्रभुता निरंकुश और असीम होती है। इसका तात्पर्य यह है कि वह विधि के द्वारा भी सीमित नही की जा सकती है। संप्रभुता के ऊपर अन्य किसी शक्ति का प्रभुत्व या नियंत्रण नही होता है।
वह आन्तरिक और बाहरी विषयों मे पूर्णतया स्वतंत्र है। वह किसी अन्य शक्ति की आज्ञाओं का पालन करने के लिये बाध्य नही है, वरन् देश के अंतर्गत निवास करने वाले समस्त व्यक्ति उसकी आज्ञाओं का पालन करते है। यदि कोई शक्ति संप्रभुता को सीमित करती है तो सीमित करने वाली शक्ति ही संप्रभुता बन जाती है।
2. स्थायित्व
संप्रभुता कुछ समय के लिए रहती है और कुछ समय के लिए नही रहती ऐसा नही होता। राज्य की संप्रभुता मे स्थायित्व होता है। प्रजातांत्रिक राज्यों मे सरकार के बदलने से संप्रभुता पर कोई अंतर नही आता क्योंकि संप्रभुता राज्य का गुण है सरकार का नही। संप्रभुता के अंत का अभिप्राय राज्य के अंत से होता है।
3. मौलिकता
संप्रभुता की तीसरी विशेषता यह की संप्रभुता राज्य की मौलिक शक्ति है अर्थात् उसे यह शक्ति किसी अन्य से प्राप्त नही होती, बल्कि राज्य स्वयं अर्जित करता है और स्वयं ही उसका प्रयोग भी करता है। जबकि संप्रभुता ही सर्वोच्च शक्ति होती है। वह न तो किसी को दी जा सकती है और न ही किसी से ली जा सकती है।
4. सर्वव्यापकता
देश की समस्त शक्ति एवं मानव समुदाय संप्रभुता की अधीनता मे निवास करते है। कोई भी व्यक्ति इसके नियंत्रण से मुक्त होने का दावा नही कर सकता। राज्य अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति विशेष को कुछ विशेष अधिकार प्रदान कर सकता है!
अथवा किसी प्रान्त को स्वायत्त-शासन का अधिकार दे सकता है। राज्य विदेशी राजदूतों से विदेशी राजाओं को राज्योत्तर संप्रभुता प्रदान करता है, किन्तु इससे राज्य के अधिकार व उसकी शक्ति परिसीमित नही हो जाती। वह ऐसा करने के उपरांत भी उतना ही व्यापक है जितना कि वह इससे पूर्व था।
5. अविभाज्यता
संप्रभुता की एक अन्य विशेषता उसकी अविभाज्यता है। इसे विभाजित करके बाँटा नही जा सकता। एक राज्य मे एक ही संप्रभुता हो सकती है। संप्रभुता का अर्थ ही होता है- सर्वोच्च शक्ति और यदि इसे विभाजित कर दिया जाता है, तो वह सर्वोच्च नही रह जायेंगी।
6. अनन्यता
संप्रभुता अनन्य मानी गई है। इसका अर्थ यह है कि राज्य मे केवल एक ही संप्रभुता शक्ति हो सकती है, दो नही। संप्रभुता का अपने क्षेत्र मे कोई प्रतिद्वंद्वी नही होता है।
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निष्कर्ष :-
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