भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। इस तरह के परिवर्तन भारत की संसद के द्वारा किये जाते हैं। इन्हें संसद के प्रत्येक सदन से पर्याप्त बहुमत के द्वारा अनुमोदन प्राप्त होना चाहिए और विशिष्ट संशोधनों को राज्यों के द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया
संविधान के भाग-20 के अंतर्गत अनुच्छेद-368 में संविधान संशोधन से संबंधित प्रक्रिया का विस्तृत उपबंध है। यह संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है। इसे राज्य विधायिका में पेश नहीं किया जा सकता
बिल एक मंत्री या एक निजी सदस्य के द्वारा पेश किया जा सकता है। संसद के किसी भी सदन में विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है
बिल अलग-अलग सदनों द्वारा पारित होना चाहिए। दोनों सदनों के पारित करने के बाद बिल राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो जहां उसके पास हस्ताक्षर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। हालांकि, राष्ट्रपति के लिए बिल पर कारवाई करने के लिए समय अवधि निश्चित नहीं की गई है।
जब एक बार राष्ट्रपति अपनी सहमति दे देता है, तो बिल एक अधिनियम बन जाता है।
संविधान संशोधन की तीन विधियों को अपनाया गया है:
- साधारण विधि द्वारा संशोधन
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा
- संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान-मंडलों की स्वीकृति से संशोधन
1⃣ साधारण विधि द्वारा: संसद के साधारण बहुमत द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर कानून बन जाता है। निम्न संशोधन किए जा सकते हैं:
- नए राज्यों का निर्माण
- राज्य क्षेत्र, सीमा और नाम में परिवर्तन
- संविधान की नागरिकता संबंधी अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियों की प्रशासन संबंधी तथा केंद्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रों की प्रशासन संबंधी व्यवस्थाएं
ऐसे उपबंध निम्नलिखित हैं: –
- अनुच्छेद 2, 3 और 4 जो संसद को कानून द्वारा यह अधिकार दिलाते हैं
- कि वह नए राज्यों को प्रविष्ट कर सके, सीमा परिवर्तन द्वारा नए राज्यों का निर्माण कर सकें और तदनुसार प्रथम एवं चतुर्थ अनुसूची में परिवर्तन कर सकें।
- अनुच्छेद 73(2) जो संसद की किसी अन्य व्यवस्था के होने तक राज्य में कुछ सुनिश्चित शक्तियां निहित करता है।
- अनुच्छेद 100(3) जिसमें संसद की नई व्यवस्था के
- होने तक संसदीय गणपूर्ति का प्रावधान है।
- अनुच्छेद 75, 97, 125, 148, 165(5)
- तथा 221(2) जो द्वितीय अनुसूची में परिवर्तन की अनुमति देते है।
- अनुच्छेद 105(3) संसद द्वारा परिभाषित किएजाने पर संसदीय विशेषाधिकारों की व्यवस्था करता है।
- अनुच्छेद 106 जो संसद द्वारा पारित किए जाने पर
- संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्तों की व्यवस्था करता है।
- अनुच्छेद 118(2) जो संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत किए जाने पर प्रक्रिया से संबंधित विधि की व्यवस्था करता है।
- अनुच्छेद 120(3) जो संसद द्वारा किसी नयी व्यवस्था के न किए जाने पर
- 15 वर्षो के उपरान्त अंग्रेजी को संसदीय भाषा के रूप में छोडने की व्यवस्था करता है।
- अनुच्छेद 124(1) जिसमें यह व्यवस्था है कि संसद द्वारा
- किसी व्यवस्था के न होने तक उच्चतम न्यायालय में सात न्यायाधीश होंगे।
- अनुच्छेद 133(3) जो संसद द्वारा नई व्यवस्था न किए जाने तक उच्च न्यायालय के एक
- न्यायाधीश के द्वारा उच्चतम न्यायालय को भेजी गई अपील को रोकता है।
- अनुच्छेद 135 जो संसद द्वारा किसी अन्य व्यवस्था को न किए जाने तक
- उच्चतम न्यायालय केलिए एक सुनिश्चित अधिकार खेत्र नियत करता है।
- अनुच्छेद 169(1) जो कुछ शर्तो के साथ विधान परिषदों को भंग करने की व्यवस्था करता है।
2⃣ विशेष बहुमत द्वारा संशोधन:
यदि संसद के प्रत्येक सदन द्वारा कुल सदस्यों का बहुमत तथा उपस्थिति और मतदान में भाग लेनेवाले सदस्यों के 2/3 मतों से विधेयक पारित हो जाएं तो राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही वह संशोधन संविधान का अंग बन जाता है।
- न्यायपालिका तथा राज्यों के अधिकारों तथा शक्तियों जैसी कुछ विशिष्ट बातों को छोड़कर संविधान की अन्य सभी व्यवस्थाओं में इसी प्रक्रिया के द्वारा संशोधन किया जाता है।
3⃣ संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान-मंडलों की स्वीकृति से संशोधन:
संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिए विधेयक को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत तथा राज्यों के कुल विधान मंडलों में से आधे द्वारा स्वीकृति आवश्यक है।
इसके द्वारा किए जाने वाले संशोधन के प्रमुख विषय हैं:
- राष्ट्रपति का निर्वाचन (अनुच्छेद 54)
- राष्ट्रपति निर्वाचन की कार्य-पद्धति (अनुच्छेद 55)
- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
- राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
- केंद्र शासित क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
- संघीय न्यायपालिका
- राज्यों के उच्च न्यायालय
- संघ एवं राज्यों में विधायी संबंध
- सांतवी अनुसूची का कोई विषय
- संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व
- संविधान संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित उपबंध
Important Constitutional Amendment
पहला संविधान संशोधन अधिनियम 1951-. सामाजिक और आर्थिक तथा पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष प्रबंध बनाने हेतु राज्य को शक्ति प्रदान की गई| कानून की रक्षा के लिए संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था
भूमि सुधार एवं न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानून को 9वी सूची में स्थान
सातवां संशोधन अधिनियम 1956- राज्यों के चार वर्गों की समाप्ति जैसे भाग A भाग् B भाग् C और भाग् D
- इसके स्थान पर 14 राज्य एवं 6 केंद्र शासित प्रदेशों को स्वीकृति|
- केंद्र शासित प्रदेशों में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश का विस्तार
- 2 या उससे अधिक राज्यों के बीच सामूहिक न्यायालय की स्थापना
- उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश एवं कार्यकारी न्यायाधीश की नियुक्ति की व्यवस्था
11 वां संशोधन अधिनियम 1961- उप राष्ट्रपति के निर्वाचन प्रणाली में परिवर्तन संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय निर्वाचक मंडल की व्यवस्था | राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त निर्वाचक मंडल में रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है|
15 वां संशोधन अधिनियम 1963- उच्च न्यायालय को किसी व्यक्ति या प्राधिकरण के खिलाफ राज्यों के बाहर भी रिट दायर करने का अधिकार यदि इसका कारण उसके क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ हो | उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष |
19 वा संशोधन अधिनियम 1966- निर्वाचन अधिकारियों की व्यवस्था समाप्त और उच्च न्यायालयों को निर्वाचन याचिका पर सुनवाई की शक्ति प्राप्त
24 वां संशोधन अधिनियम 1971 – संसद को यह अधिकार कि वह संविधान के किसी भी हिस्से का चाहे वह मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती हैं राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक संशोधन विधेयक को मंजूरी दी जानी जरूरी
25 वां संशोधन अधिनियम 1971-
संपत्ति के मूल अधिकार में कटौती | अनुच्छेद 39 वा अध्याय में वर्णित नीति निदेशक तत्वों को प्रभावित करने के लिए बनाई गई किसी भी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती थी अनुच्छेद 14 19, 31 अभी निश्चित अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती