सल्तनत काल- इल्वारी वंश
इल्वारी वंश
प्रथम इल्बरी वंश (1211-66 ई)
संस्थापक- इल्तुतमिश
अंतिम शासक- नसीरुद्दीन महमूद
द्वितीय इल्बरी वंश (1266-90)
संस्थापक-बलबन
उपनाम- जिल्ले इलाही (ईश्वर का प्रतिनिधि)
इल्बारी वंश की स्थापना इल्तुतमिश (1210- 1236 ई.) ने की थी, जो एक इल्बारी तुर्क था। खोखरों के विरुद्ध इल्तुतमिश की कार्य कुशलता से प्रभावित होकर मुहम्मद ग़ोरी ने उसे “अमीरूल उमर” नामक महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किया था।
अकस्मात् मुत्यु के कारण कुतुबद्दीन ऐबक अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था। अतः लाहौर के तुर्क अधिकारियों ने कुतुबद्दीन ऐबक के विवादित पुत्र आरामशाह, जिसे इतिहासकार नहीं मानते, को लाहौर की गद्दी पर बैठाया। दिल्ली के तुर्क सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश, जो उस समय बदायूँ का सूबेदार था, को दिल्ली आमंत्रित कर राज्यसिंहासन पर बैठाया गया।
राजगद्दी पर अधिकार को लेकर आरामशाह एवं इल्तुतमिश के बीच दिल्ली के निकट ‘जड़’ नामक स्थान पर संघर्ष हुआ, जिसमें आरामशाह को बन्दी बनाया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गयी। ऐबक वंश के आरामशाह की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत में अब ‘इल्बारी वंश’ का शासन प्रारम्भ हुआ।
इल्तुतमिश ने अपने 40 वफादार गुलामों का समूह तैयार किया जिसे तुर्कान ए चहलगानी कहा जाता है। इल्तुतमिश ने मुद्रा व्यवस्था में भी काफी सुधार किया वह पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परंपरा शुरू की इल्तुतमिश ने चांदी का टांका 175 ग्रेन एवं तांबे का जीतल भी प्रारंभ किया।
इल्तुतमिश का आरिजे मुमालिक इमादुल मुल्क नामक गुलाम था इल्तुतमिश ने इस दास की योग्यता से प्रभावित होकर उसे रावत-ए- अर्ज की उपाधि से सम्मानित किया। इल्तुतमिश का वजीर मोहम्मद जुनेद था इल्तुतमिश ने नागौर राजस्थान में अतारकीन का दरवाजा बनाया। इल्तुतमिश के शासनकाल में राजनीयक सिद्धांत और राजकीय संघटन की कला पर फखे मुदबिब्र ने आदाब अल अरब नामक प्रथम भारतीय मुस्लिम ग्रंथ तैयार किया गया ।
बनियान आक्रमण पर जाते समय इल्तुतमिश बीमार पड़ा वह दिल्ली लौट आया किंतु दिल्ली में 29 अप्रैल 1236 ई . को उसकी मृत्यु हो गई। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसके पुत्र रुकनुद्दीन फिरोज शाह को गद्दी पर बैठाया गया इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत किया।
इल्तुतमिश दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने
1. सुल्तान पद की स्वीकृति किसी गौर के साथ शासक से न लेकर खलीफा से प्राप्त की।
2. लाहौर के स्थान पर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
3. दिल्ली शासन व्यवस्था की ओर ध्यान दिया।
4. भारत में मकबरे की परंपरा का सूत्रपात किया।
5. अपने जीवन काल में ही अपना उत्तराधिकारी (रजिया को) नियुक्त किया।
6. टका (चांदी का सिक्का 175 ग्रेन का) व जीतल ( तांबे का सिक्का) नामक शुद्ध अरबी सिक्के चलाए।
7. सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखने की परंपरा को भारत में प्रचलित किया।
8 मध्यकालीन इस्लामी मुद्रा व्यवस्था का जन्मदाता था।
ग्यासुद्दीन बलबन (1266 से 1286 ईस्वी तक)
मूल नाम- बहाउद्दीन
पूरा नाम- गियासुद्दीन बलबन
वंश की स्थापना- द्वितीय इल्बारी वंश
उपाधि- उलूग खॉं (नासीरुद्दीन मोहम्मद द्वारा), जिल्ले इलाही (ईश्वर का प्रतिबिंब )स्वयं धारण की, गियासुद्दीन( राज्यारोहण के बाद ),नियामत-ए-खुदाई
बलबन का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था वह इस्लामिक तुर्क था गद्दी पर बैठने के पश्चात उसने एक नवीन राजवंश बलबनी वंश अर्थात द्वितीय इल्बारी वंश की नींव डाली
उसके पिता या पितामाह इल्बारी तुर्क के 1 बड़े कबीले के मुखिया थे दुर्भाग्यवश बलवंत किशोरावस्था में ही मंगोलों द्वारा बंदी बना लिया गया था मंगोल उसे बगदाद ले आए जहां एक गुलाम के रूप में ख्वाजा जमालुद्दीन बसरी नामक व्यक्ति के हाथों में बेच दिया
जमालुद्दीन बसरी ने उसे अन्य तुर्क दासों के साथ दिल्ली लाया और वहां इल्तुतमिश ने 1233 ईस्वी में ग्वालियर विजय के बाद उसे खरीदा
शीघ्र ही इल्तुतमिश ने बलवन को चालीसा दल में शामिल कर लिया।
बलबन की चालीसा दल में स्थिति सबसे नीचे थी, लेकिन अपनी योग्यता और कार्यशैली के आधार पर वह सबसे उच्च था
रजिया के शासनकाल में वह “अमीर- ए -शिकार” के पद पर नियुक्त हुआ।
रजिया और बहरामशाह के मध्य हुए सत्ता के लिए संघर्ष में उसने बहरामशाह का पक्ष लिया फलस्वरुप उसे “अमीर- ए-आखुर” का पद प्राप्त हुआ
अलाउद्दीन मसूद शाह को सिहासन से हटाकर नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनाने में बलबन का प्रमुख योगदान रहा
नासिरुद्दीन महमूद का काल बलबन का उत्कर्ष का काल था। उस के समय में संपूर्ण शक्ति बलबन के हाथों में केंद्रित थी
अगस्त1249 ई. को बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन से कर दिया। इस अवसर पर उसे “उलूग खां”की उपाधि और नायब एवं मामलिकात का पद दिया गया
1266 ईस्वी में नासिरुद्दीन की मृत्यु के बाद बलवंत गद्दी पर बैठा
बलबन के समय में यह कथन प्रसिद्ध है कि– ”एक मलिक होते हुए भी वह खान हो गया और फिर सुलतान बन गया”
बलवंत के सम्मुख दो समस्याएं प्रमुख थी
1. प्रथम समस्या– सुल्तान की शक्ति और प्रतिष्ठा को स्थापित करना और जनसाधारण में सुल्तान के प्रति भय और सम्मान की भावना जागृत करना था
2. दूसरी और तत्कालिक समस्या कानून और व्यवस्था की थी।जो केवल एक स्थाई सुव्यवस्थित सेना और पुलिस शासन द्वारा ही स्थापित की जा सकती थी
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