सुकरात की शिक्षण-पद्धति भी निराली थी । उसकी पद्धति का उद्देश्य सत्य को प्रस्तुत करना न होकर, सत्य का अन्वेषण करना था। सुकरात की शिक्षण-पद्धति वार्तालाप पर आधारित थी। सुकराती शिक्षण-विधि में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सभी अच्छे कार्यों के मूल में ज्ञान है।
सुकरात के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति होना चाहिए। सुकरात की दृष्टि में जीवन का उद्देश्य- भद्र आचरण करना है। भद्र का आचरण तब तक सम्भव नही, जब तक ज्ञान न हो-अतः ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। यह ज्ञान आत्म-परीक्षण से सम्भव होगा, अतः हर व्यक्ति में सोचने-विचारने की शक्ति का विकास करना होगा।
सुकरात पद्धति
सुकरात 469-399 B.C – आज से करीब 2300 साल पहले एथेंस के बहुत ही गरीब परिवार में सुकरात का जन्म हुआ ये युनान के ऐन्थेस का नागरिक था , ये दार्शनिक के अलावा एक शूरवीर सैनिक भी था, इन्होंने प्रश्नोत्तर विधि द्वारा शिक्षा देने का काम किया सुकरात वास्तविक विशेष सामान्य को मानते थे
सामान्य- एक ही जाति की अलग अलग वस्तु विशेषो में निहित सार गुणों को सामान्य कहा जाता है सुकरात ने सामान्य को संप्रत्यय कहा है
सुकरात के दर्शन का मूलमंत्र है :- अपने आप को पहचानो
संसार की सारी बातो के लिए सुकरात ने कहा :- मै कुछ नही जानता
सुकरात सभी मनुष्यों में सर्वाधिक बुद्धिमान है यह धर्म वाणी हुई थी, सुकरात द्वारा कोई पुस्तकें नहीं लिखी गई है इसका ज्ञान प्लेटो की रचनाओ से पता चलता है
गौतम बुद्ध की तरह सुकरात ने भी किसी ग्रंथ की रचना नहीं की बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवन काल में ही उद्देश्यों को कंठस्थ करना प्रारंभ किया था जिससे हम उनके उद्देश्यों को बहुत खुशी दे तो तो जान सकते हैं किंतु सुकरात के उद्देश्यों के बारे में यह भी सुविधा उपलब्ध नहीं है
सुकरात का दर्शन दो भागों में विभक्त किया जा सकता है पहला सुकरात का गुरु शिष्य यथार्थवाद तथा दूसरा अरस्तु का प्रयोगवाद
“”सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए; जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं
सुकरात के प्रमुख कथन
- मुझे अपने अज्ञान का ज्ञान है
- मैं कुछ नहीं जानता
- ज्ञान ही सद्गुण है
- ज्ञान ही सद्गुण है और सद्गुण ही ज्ञान है
सुकरात_की दार्शनिक पद्धति वार्तालाप की पद्धति कहलाती है इसे प्रसाविका अथवा धात्री विधि भी कहा जाता है प्रसाविका जिसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न होता है धात्रि अर्थात धारण करने वाली
सुकरात_के अनुसार सद्गुण पहलासद्गुण है ज्ञान परन्तु यहा ज्ञान से तात्पर्य आत्मज्ञान से है अर्थात ऐसा ज्ञान जिसे आत्मा को सन्तुष्टी मिले न की इन्द्रियो को
सुकरात की सॉक्रेटिक पद्धति
1- सॉक्रेटीस पद्धति एक संदेह की पद्धति है
2- सॉक्रेटीस पद्धति प्रश्न उत्तर पद्धति थी जिसका शिक्षात्मक महत्व था
3- सॉक्रेटीस पद्धति प्रत्यात्मक अथवा परिभाषा आत्मक है
4- इस पद्धति के मुख्य विशेषता हमारे प्रतिदिन के अनुभव से है
5- सॉक्रेटीस पद्धति आगमनात्मक के साथ निगमनात्मक भी है
सुकरात पद्धति के प्रमुख तत्व
- संदेह की पद्धति
- बातचीत / वार्तालाप की पद्धति
- द्वंद्वात्मक पद्धति
- निगमनात्मक पद्धति
- आगमनात्मक पद्धति
- परिभाषात्मक / धारणानात्मक पद्धति
1. संदेह की पद्धति
सुकरात अपने दर्शन का प्रारंभिक संदेह से करता था प्रत्येक तथ्य पर सुकरात के द्वारा संदेह किया जाता था कहा जाता है सुकरात के दर्शन का प्रारंभिक संदेह ऐसे होता है किंतु समाधान दिखलाई देता है
2 बातचीत / वार्तालाप पद्धति
सुकरात बातचीत / वार्तालाप की पद्धति को अपनाते हुए सही निष्कर्ष पर पहुंचते थे
3. द्वंदात्मक पद्धति
सुकरात की पद्धति वाद-विवाद समन्वय के रूप में अर्थात पक्ष प्रतिपक्ष तथा समन्वय के रूप में दिखाई देती है
4. निगमनात्मक पद्धति
सामान्य से विशेष का निष्कर्ष निकालना निगमनात्मक पद्धति कहलाती है जैसे सभी मनुष्य मरणशील है क्योंकि सुकरात एक मनुष्य है या राम एक मनुष्य है राम मरणशील है अतः सुकरात भी मरणशील है
5. आगमनात्मक पद्धति
विशेष से सामान्य की ओर निष्कर्ष निकालना आगमनात्मक पद्धति कहलाती है जेसे:- एक कौवा दो… तीन कौवा काले हैं अतः सभी को काले हैं
6. परिभाषात्मक/ धारणानात्मक पद्धति
सार्वभौमिक वस्तुनिष्ठ ज्ञान की प्राप्ति धारणात्मक अथवा परिभाषात्मक पद्धति के नाम से जानी जाती है इसी के आधार पर नैतिक पदों की रचना की जाती थी सुकरात सौंदर्य, न्याय, मनुष्यता इत्यादि सभी को परिभाषा या धरणा मानता था
उदाहरण – दया, सहानुभूति, न्याय आदि की सर्वप्रथम एक निरपेक्ष तथा सार्वभौमिक ज्ञान की प्राप्ति हेतु सर्वमान्य परिभाषा का प्रयोग किया जाता था सुकरात ज्ञान को सर्वोच्च सद्गुण मानते हैं और ज्ञान का अर्थ सार्वभौमिक निरपेक्ष वस्तुनिष्ठ ज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं
नोट:- ज्ञान की शिक्षा ली जा सकती है और ज्ञान से सदगुण प्राप्त किया जा सकता ह अतः ज्ञान और सदगुण दोनों प्राप्य ह
ज्ञान से तात्पर्य
बुद्धि का वह व्यापार है जो शुभ को अशुभ से उचित को अनुचित से यथार्थ को अयथार्थ से भेद कराता है_सुकरात दर्शन का उद्देश्य तत्व ज्ञान की प्राप्ति था सुकरात_नैतिक तथा व्यवहारिक जीवन को प्रयोजनमूलक बनाना चाहते थे
सुकरात_का दर्शन सैद्धांतिक पक्ष की अपेक्षा व्यवहारिक पक्ष को अधिक महत्व देता है सुकरात_सामान्य ज्ञान को अधिक महत्वपूर्ण स्वीकार करता है अर्थात विशेषो के मध्य से उसकी जाति अथवा सार्वभौतिक धर्म को स्वीकार करना सामान्य कहलाता है
उदाहरण :- मनुष्यों में मनुष्यत्व का ज्ञान प्राप्त करना
नोट:- सदगुणो की एकता का सिध्दान्त_सुकरात ने दिया था
Note :- अरस्तू के अनुसार सुकरात_का सद्गुण संबंधि मत अर्धसत्य है
विज्ञान वाद का सिद्धांत अपने मूल रूप से सॉक्रेटीस का है और प्लेटो ने इसका विकास करके इसे विशेष रूप दिया।
क्रिया पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
1- सुकरात_के अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून अरस्तु ने पूरा किया
2- सुकरात_के दर्शन को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
3- सुकरात_का विज्ञान वाद का सिद्धांत प्लेटो का फिडो से मिलता है
4- प्लेटो इंद्रिय जगत को विज्ञान जगत की अभिव्यक्ति कहना उचित समझते थे
5- सुकरात_तरुणों को बिगाड़ने का ,देव निंदा करने का, नास्तिक होने का आरोप लगा था
6- सुकरात_को जहर पीने की सजा दी गई थी
7- सुकरात_के समसामयिक से सूफी समझते थे
8- सुकरात_का कथन है ज्ञान के समान पवित्र तम कोई वस्तु नहीं है
9- सुकरात_के अनुसार जीवन का उद्देश्य है शुभ की खोज
10- सुकरात_के दर्शन का उद्देश्य था नैतिक पक्ष और वैज्ञानिक पक्षष