सुभाष चंद बोस
सन् 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे। यूरोप में सुभाष ने अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए अपना कार्य बदस्तूर जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। आयरलैंड के नेता डी वलेरा सुभाष के अच्छे दोस्त बन गये। जिन दिनों सुभाष यूरोप में थे
सुभाष चंद बोस
उन्हीं दिनों जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाष ने वहाँ जाकर जवाहरलाल नेहरू को सान्त्वना दी।जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात बर्लिन में सुभाष सर्वप्रथम रिबेन ट्रोप जैसे जर्मनी के अन्य नेताओं से मिले। उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतन्त्रता संगठन और आज़ाद हिन्द रेडियो.की स्थापना की। इसी दौरान सुभाष नेताजी के नाम से जाने जाने लगे।
द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के बाद सरकार ने सुभाष चंद्र बोस को कलकत्ता में नजरबंद कर लिया। 17 जनवरी 1941 को सुभाष चंद्र बोस कलकत्ता से गायब हो गए तथा काबुल होते हुए रूस पहुचे।
सुभाष चंद्र बोस कोलकाता से एक मौलवी के भेष में गोमेह पहुंचे गोमेह से एक बीमा एजेंट के रूप में पेशावर पहुंचे पेशावर से जिउद्दीइन पठान के नाम से काबुल पहुंचे काबुल से वे ओरलोण्डो मैसोट्टा नामक इटालियन नाम से पासपोर्ट लेकर रूस पहुचे।
काबुल से मास्को व बर्लिन की यात्रा किसी इटालियन पासपोर्ट पर की। रूस पर जून 1941 में जर्मनी ने आक्रमण कर दिया तो रूस मित्र राष्ट्रों में शामिल हो गया इसलिए सुभाष चंद्र बोस को रूस से जर्मनी जाना पड़ा। जर्मनी में बॉस नर हिटलर से मुलाकात कर भारतीय आजादी की लड़ाई में हिटलर से सहयोग मांगा।
जर्मन सरकार के एक मन्त्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाष के अच्छे दोस्त बन गये। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इन्डियन नेशनल आर्मी(INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया गया।
जर्मनी में ही भारतीयों द्वारा सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधि दी गई। जर्मनी में सुभाष चंद्र बॉस ने फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की जहां पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने जय हिंद का नारा दिया।
जून 1943 में रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का बैंकॉक में एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लेकर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व सौंपने का निर्णय लिया गया।
4 जुलाई 1945 को रास बिहारी बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज के सेनापति बने इस समय सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का नारा दिया।
सिंगापुर में ही सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार का गठन किया सिंगापुर के अलावा रंगून में भी अस्थाई सरकार का मुख्यालय बनाया गया जापान और जर्मनी सहित धुरी राष्ट्रों ने अस्थाई सरकार को मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।
इस अस्थाई सरकार में h c चटर्जी वित्त मंत्री m a अय्यर प्रचार मंत्री तथा लक्ष्मी स्वामीनाथन महिलाओं की मंत्री थी। मलेशिया में सैनिकों से आह्वान करते हुए बोस ने कहा तुम मुझे खून दो में तुम्हे आजादी दूंगा।
21 मार्च 1944 को ‘चलो दिल्ली’ के नारे के साथ आज़ाद हिंद फौज का हिन्दुस्थान की धरती पर आगमन हुआ।
1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।
इसकी संरचना रासबिहारी बोस ने जापान की सहायता से टोकियो में की 6 जुलाई 1944 को बोस ने आजाद हिन्द रेडियो के प्रसारण द्वारा महात्मा गांधी से भारतीय स्वतंत्रता के अंतिम युद्ध के लिए आशिर्वाद मांगा। इसी प्रसारण में बोस ने ग़ांधी जी के लिए पहली बार राष्ट्रपिता शब्द संबोधन किया। आज़ाद हिन्द फौज़ द्वारा लड़ी जा रही इस निर्णायक लड़ाई की जीत के लिये उनकी शुभकामनाएँ माँगीं।
जवाहर लाल नेहरू ने बोस को भारतीय देशभक्ति की ज्वलंत तलवार कहा। 18 अगस्ट 1945 को बोस की ताइवान के ताइकु हवाई अड्डे पर हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गयी।
उपलब्धियां–
- सुभाष चंद बोस ने‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ जैसे प्रसिद्द नारे दिए,
- भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की,
- 1938 और 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए,
- 1939 में फॉरवर्ड ब्लाक का गठन किया,
अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ की स्थापना की सुभाष चंद बोस को ‘नेता जी’ भी बुलाया जाता है। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रख्यात नेता थे| हालाँकि देश की आज़ादी में योगदान का ज्यादा श्रेय महात्मा गाँधी और नेहरु को दिया जाता है मगर सुभाष चंद बोस का योगदान भी किसी से कम नहीं था|
स्वतन्त्रता –
आन्दोलन में भाग ले रहे महान नेताओं को छोड़ कर केवल _सुभाष -बाबू को ही यह खिताब दिया गया था और वह इसके सच्चे अधिकारी भी थे जनता _सुभाष बाबू की तकरीरें सुनने क़े लिये बेकरार रहती थी उनका एक-एक शब्द गूढ़ अर्थ लिये होता था
जब उन्होंने कहा”तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा” तब साधारण जनता की तो बात ही नहीं ब्रिटिश फ़ौज में अपने परिवार का पालन करने हेतु शामिल हुए वीर सैनिकों ने भी उनके आह्वान पर सरकारी फ़ौज छोड़ कर नेताजी का साथ दिया था
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