सूर्यताप व पृथ्वी का उष्मा बजट ( Sunlight and earth’s heat budget)
पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करके उसे अंतरिक्ष में विकृत कर देती है, इसी कारण ना तो पृथ्वी ज्यादा गर्म और और ना ज्यादा ठंडी होती है, पृथ्वी के प्रत्येक भाग पर ताप की मात्रा अलग-अलग होती है और इसी वजह वायुमंडल के दाब में भिन्नता पाई जाती है इसी कारण पवनों के द्वारा ताप का स्थानांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है
पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का अधिकतम भाग लघु तरंग धैर्य के रूप में आता है पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को “आगामी सौर विकिरण या छोटे रूप में”, सूर्य तप कहते हैं वायुमंडल की सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा प्रतिवर्ष थोड़ी परिवर्तित होती है यही कारण है पृथ्वी व सूर्य के बीच दूरी के लिए
सूर्य के चारों ओर परिक्रमा के दौरान पृथ्वी से सूर्य की दूरी, इस स्थिति को” अपसौर “का जाता है
पृथ्वी की सतह पर सूर्यताप में भिन्नता
सूर्य ताप की तीव्रता की मात्रा में प्रतिदिन हर मौसम और प्रतिवर्ष परिवर्तन होता है
सूर्यताप में होने वाले कारक
1.अक्षांशीय वितरण
2.समुद्र तल से ऊंचाई
3.समुद्र तट से दूरी
4.समुद्री धाराएं
5.प्रचलित पवनें
6.धरातल की प्रकृति
7.भूमि का ढाल
8.वर्षा एवं बादल
पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों ओर परिक्रमा की समतल कक्षा में 66 पॉइंट 5 डिग्री का कोण बनाता है जो विभिन्न अक्षांशों पर प्राप्त होने वाले सूर्यताप की मात्रा को बहुत प्रभावित करता है I
तापमान का प्रतिलोमन या व्युत्क्रमण
सामान्य स्थिति में ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता है। परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटने के स्थान पर बढ़ने लग जाता है। इसे ही “तापमान का व्युत्क्रमण” कहते हैं।??
कारक- स्वच्छ आकाश, लंबी रातें, शांत वायु, शुष्क वायु, हिम आदि की परिस्थितियां प्रमुख कारक है।??
वायु की निचली परतों से ऊष्मा का हास विकिरण द्वारा तेज गति से होता है, परंतु ऊपर की वायु का विकिरण द्वारा ऊष्मा का हास तुलनात्मक रुप से कम गति से होता है। अतः निचली वायु की परतें ठंडी और ऊपरी वायु की परतें अपेक्षाकृत गरम रहती है। यह परिस्थितियां पर्वतीय घाटियों में शीत ऋतु की रात्रि में अधिक देखने को मिलता है। इसीलिए वहां बस्तियां घाटियों पर ना होकर पर्वती ढलान पर होती हैं।
पृथ्वी का ऊष्मा बजट
पृथ्वी ना तो ऊष्मा को संचय करती है और ना ही हा, पृथ्वी तापमान को स्थिर रखती है संभवत ऐसा तभी होता है, जब सूर्य विकिरण द्वारा सूर्य ताप (ऊर्जा का छोटा रूप) के रूप में प्राप्त ऊष्मा व पार्थिव विकिरण द्वारा अंतरिक्ष में संचरित ताप बराबर हो
सूर्यताप /पार्थिव विकिरण= अंतरिक्ष में संचालित ताप
ऊर्जा वायुमंडल से गुजरते हुए आती है तो ऊर्जा का कुछ अंश परावर्तित, प्रकीणित व अवशोषित हो जाती है इस सौर विकिरण की इस परावर्तित मात्रा को पृथ्वी का “एल्बिडो” कहते हैं
पृथ्वी पर ऊर्जा का स्रोत सूर्य है जिसकी पृथ्वी से औसत दूरी 15 करोड किलोमीटर है। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट 20 सेकंड का समय लगाता है। सूर्य की किरणें इस दूरी को 300000 किलोमीटर प्रति सेकंड की दर से तय करती है।
सूर्य ताप
- सूर्य की बाहरी सतह 6000 डिग्री सेल्सियस का तापमान रहता है। सूर्य में लगातार ऊर्जा बनने की प्रक्रिया नाभिकीय संलयन द्वारा प्राप्त होती है। सूर्य से हमारी पृथ्वी तक लघु तरंगों के रुप में ऊर्जा पहुंचती है।
- पृथ्वी सौर विकिरण का मात्र 2 अरब वां हिस्सा ही प्राप्त कर पाता है। पृथ्वी पर पहुंचने वाली सौर्य विकिरण सूर्यताप कहलाती है। पृथ्वी का धरातल 2 Cal/Cm2/min. दर से ऊर्जा प्राप्त करता है। इसे सौर स्थिरांक भी कहते हैं।
यही सौर विकिरण हमारी पृथ्वी का औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस बरकरार रखती हैं। सूर्य ताप का मापन पाइरेलियो मीटर (Pyrheliometer) द्वारा किया जाता है।
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आतपन को प्रभावित करने वाले कारक
भूपृष्ठ और उसके वायुमंडल को गरम करने में धूप का विशेष महत्व है। किंतु आतपन, अर्थात् किसी स्थान के भूपृष्ठ को गरम करने, में धूप का अंशदान दिवालोक की अवधि के अतिरिक्त अनेक अन्य बातों पर भी निर्भर करता है, जिनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं :
क्षितिज के समतल पर सूर्यकिरणों की नीति
आतपन सौर उच्चता, या सौर किरणों द्वारा क्षितिज पर बनाए हुए कोण, पर निर्भर करता है। किसी क्षैतिज पृष्ठ पर आतपन की तीव्रता इस कोण की ज्या (sine) की अनुलोमानुपाती होती है। भूअक्ष के झुकाव के कारण ज्यों ज्यों कोई गोलार्ध सूर्य के सम्मुख होता जाता है, त्यों त्यों किसी स्थान पर सौर किरणों द्वारा क्षितिज पर बनाया गया यह कोण वर्ष भर, प्रत्येक क्षण बदलता रहता है।
सूर्य से पृथ्वी की दूरी
दीर्घवृत्ताकार पथ पर परिक्रमा करते समय पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी वर्ष भर बदलती रहती है। जनवरी में पृथ्वी सूर्य के निकटतम और जुलाई में दूरतम होती है। स्पष्ट है पृथ्वी पर आतपन की तीव्रता जनवरी में जुलाई की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए। आतपन में वृद्धि तो होती है, लेकिन बहुत कम। बहुधा यह वृद्धि, आतपन को कम करनेवाले कुछ अन्य कारकों से, क्षतिपूरित हो जाती है।
वायुमंडल में पारेषण, अवशोषण एवं विकिरण
वायुमंडल में पारेषण (ट्रांसमिशन), अवशोषण (एब्जॉर्ब्सन) तथा विकिरण (रेडिएशन) घटनाओं की परस्पर जटिल क्रिया होती है। सूर्यकिरणों की तरंग लघुदैर्ध्य के आपतित विकिरण का लगभग 42 प्रति शतअंश पृथ्वी के वायुमंडल की बाह्य सीमा से ही अंतरिक्ष को तत्काल लौट जाता है। शेष विकिरण का लगभग 15 प्रतिशत वायुमंडल द्वारा और 43 प्रतिशत भूपृष्ठ द्वारा सीधे अवशोषित हो जाता है। इस अवशोषित विकिरण के आठ प्रति शत को भूपृष्ठ पुन: दीर्घतरंगों के रूप में विकिरण करता है और 35 प्रतिशत को वायुमंडल में पारेषित करता है। पारेषण द्वारा प्राप्त विकिरण को वायुमंडल दीर्घतरंग ऊष्मा विकिरण के रूप में अंतरिक्ष को पुन: विकीर्ण करके, आगामी लघुतरंग और प्रगामी दीर्घतरंग विकिरणों में संतुलन करता है। इस प्रकार धूप में हेरफेर होने पर भी भूपृष्ठ का माध्य ताप व्यवहारत: लगभग एक सा रहता है।