हिंदी भाषा का विकास और उत्पत्ति कैसे हुई व हिंदी भाषा का इतिहास की संपूर्ण जानकारी इस लेख के माध्यम से आपको इस लेख में मिल जाएगी !
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हिंदी भाषा का विकास
हिंदी के विकास की पूर्व पृष्ठभूमि में अभी तक यह बताया गया है कि विश्व की भाषाओं के परिवार में हिंदी का किस प्रकार भारोपीय— सतम् अर्थात् भारत-ईरानी > प्राचिन भारतीय आर्यभाषा – संस्कृत – मध्यकालीन आर्यभाषा (पालि) – प्राकृत – (अपभ्रंश) से व्युत्पत्तिगत संबंध है तथा यह शौरसेनी + मागधी + अद्धमागधी अपभ्रंश से विकसित हुई पाँच उपभाषाओं एवं बाईस के संकुल के रूप में स्थापित है।
इसके अतिरिक्त यह भी बतायागया है कि हिंदी की खड़ी बोली बांगरू ब्रज उर्दू आदि बोलियों के सहयोग से हिंदी का एक मानक रूप में विकसित हुआ है जो ऐतिहासिक कारणों से पिछले 200 वर्षों में विश्व की भाषाएं मानचित्र में अपना अंतरराष्ट्रीय स्थान भी बना चुका है।
हिंदी का यही रूप भारत की राष्ट्रभाषा एवं भारत संघ एवं 10 राज्यों की राजभाषा के रूप में पत्रकारिता एवं शिक्षा के माध्यम के रूप में मान्य है। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि हिंदी का उद्भव शौरसेनी, मागधी, अर्द्धमागधी, से होने के बाद पिछले 1000 वर्षों में इसका विकास किस प्रकार हुआ है।
हिंदी भाषा के विकास के इस 1000 वर्ष के इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया गया है प्रारंभिक काल,मध्यकाल,और आधुनिक काल।
प्रारंभिक काल (1000 ई. से 1500 ई.)
हिंदी के जन्मकाल का निर्धारण
मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओं की अंतिम कड़ी अपभ्रंश से आधुनिक आर्यभाषाओं हिंदी पंजाबी गुजराती बंगला मराठी आदि का जन्म कब हुआ और उसमें भी हिंदी का जन्म काल क्या रहा इस पर विद्वानों के अलग-अलग विचार तर्क और प्रमाण हैं।
हिंदी के उद्भव के संबंध में रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अपभ्रंश या प्राकृत भाषा हिंदी के पदों का सबसे पुराना पता तांत्रिक और योगमार्गी बौद्धों की सांप्रदायिक रचनाओं के भीतर विक्रम की सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में लगता है।
“ मुंज और भोज के समयमैं तो ऐसी अपभ्रंश या पुरानी हिंदी का पूरा प्रचार शुद्ध साहित्य काव्य रचनाओं में भी पाया जाता है।”
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार हेमचंद्राचार्य ने दो प्रकार की अपभ्रंश भाषाओं की चर्चा की है। दूसरी श्रेणी की भाषाओं को हेमचंद्र ने ग्राम्य में कहा है। वस्तुतः यही भाषा आगे चलकर आधुनिक देशी भाषाओं के रूप में विकसित हुई |
धीरेंद्र वर्मा के अनुसार 1000 ईसवी के बाद मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा के अंतिम रूप अपभ्रंश ने धीरे-धीरे बदलकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का रूप ग्रहण कर लिया।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी के अनुसार सातवीं से 11 वीं शताब्दी तक अपभ्रंश की प्रधानता रही | फिर वह पुरानी हिंदी में परिणत हो गई।
भोलानाथ तिवारी कहते हैं यूं तो हिंदी के कुछ रूप पाली में भी मिलने लगते हैं प्राकृत में उनकी संख्या और भी बढ़ जाती है तथा अपभ्रंश में उनमें और भी वृद्धि हो गई है किंतु सब मिलाकर इन का प्रतिशत कितना कम है कि 1000 ईसवी के पूर्व हिंदी का उद्भव नहीं माना जा सकता।
इस तरह यदि लगभग 1150 ईसवी के आसपास में हिंदी साहित्य मिले जो भी उस भाषा का आरंभ 1000 ईसवी के आसपास ही मानना पड़ेगा।
उपर्युक्त मतों से यह स्पष्ट है कि भाषा का जन्म अचानक नहीं होता वह एक सतत विकास के जरिए अपना रूप प्राप्त करती है या रूप होती है हिंदी के लक्षण पाली साहित्य में भले ही मिलने लगते हो और प्राकृतिक तथा अपभ्रंश में क्रमशः बढ़ते गए हो किंतु हिंदी की अपनी विशेषताओं का वह अनुपात 1000 ईसवी के आसपास इतना बड़ा प्रतीत होता है कि उसे अपभ्रंश से भिन्न हिंदी कहा जा सकता है।
भाषा विकास के प्रवाह मैं जन भाषा आगे चलती है, परिवर्तन पहले जन भाषा में होने लगते हैं उन परिवर्तनों के स्थाई होने पर फिर उनका प्रयोग साहित्य में होने लगता है
हिंदी के विकास में यदि सन 11 से 50 ईसवी के आसपास लिखे साहित्य में अपभ्रंश का अस्त होना और हिंदी का उदय होना झलकता है तो जन भाषा में यह परिवर्तन 1000 ईसवी के आसपास ही हो गए होंगे।
मध्यकाल ( 1500 ई. से 1800 ई.)
यह काल हिंदी प्रदेश में राजनीतिक दृष्टि से मुगलों एवं उनके अधीन सामंतों के शासनकाल का है तथा सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दृष्टि से भक्ति और रीतिपरक रचनाओं का है। इस युग में हिंदी की अवधि बृज तथा खड़ी बोली में अधिक रचनाएं लिखी गई।
अवधि में मुल्ला दाऊद जायसी कुतुबन तुलसीदास ब्रज में सूरदास नंददास तुलसीदास केशव बिहारी रसखान घनानंद खड़ी बोली तथा मिश्रित भाषा में कबीर रहीम आलम नागरी दास रैदास मीराबाई और उर्दू में वली , बुरहानुद्दीन , नुसरती, कुली, कुतुबशाह , आदि श्रेष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं ने हिंदी के मध्य काल को इतना समृद्ध किया है कि वह हिंदी साहित्य का उत्कृष्ट काल बन गया है तथा इसी के फलस्वरूप हिंदी आधुनिक काल में राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त कर सकी है।
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आधुनिक काल (1800 ई. से अब तक)
हिंदी के विकास की दृष्टि से आधुनिक काल बहुत महत्वपूर्ण है यद्यपि भारत की सांस्कृतिक एकता को व्यक्त करने वाली भाषा के रूप में तो हिंदी आधुनिक युग से पूर्व ही प्रतिष्ठित हो चली थी किंतु आधुनिक काल में अट्ठारह सौ ईसवी के बाद पहले ब्रिटिश शासन के प्रसार के फल स्वरुप और उसके बाद उसके विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष से भारत की सांस्कृतिक राजनीतिक प्रशासनिक अस्मिता को प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत की अन्य भाषाओं की तुलना में हिंदी एक अधिक सामर्थ्य वन एवं व्यवहारिक भाषा के रूप में स्थापित हुई इसलिए आधुनिक युग हिंदी के विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन लाता है।
अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद हिंदी ने विगत 200 वर्षों में जितना विकास किया है वह विश्व के भाषा विकास में बहुत महत्वपूर्ण है इस युग में जिन जिन रचनाकारों ने अपना योगदान किया है उसकी सूची बहुत लंबी है।
साहित्य के क्षेत्र में भारतेंदु युग से ही हिंदी में भाषा व्यवहार के हर क्षेत्र में अपना विकास करना प्रारंभ किया तथा वह द्वेदी काल छायावाद प्रगतिवाद प्रयोगवाद नई कविता से गुजरती हुई आज तक पहुंची है साहित्य पत्रकारिता अध्ययन अध्यापन शोध राज कार्य आदि के क्षेत्र में इसने बहुत प्रगति की है हिंदी भाषियों और अहिंदी भाषियों दोनों ने उनके विकास को समृद्ध किया है।
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और विकास
हिंदी भाषा की उत्पत्ति मूल रूप से शौरसेनी अपभ्रंश से हुई है ।वैसे तो हिंदी भाषा की आदी जननी संस्कृत मानी जाती है। हिंदी संस्कृत, पाली, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश / अवहट्ट से गुजरती हुई हिंदी का रूप ले लेती है।हिंदी भाषा को 5 उपभाषाओं में बाटा गया है जिसके अंतर्गत हिंदी की 17 बोलियां आती हैं ।
हिंदी भाषा का विकास क्रम
हिन्दी भाषा का विकास क्रम – संस्कृत-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ठ-प्राचीन/प्रारम्भिक हिन्दी है।हिंदी भाषा के विकास (Hindi bhasha ka Vikas) को जानने से पहले हम यह भी देख लेते हैं कि हिंदी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई है?
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हिंदी शब्द की उत्पत्ति
हिंदी शब्द की उत्पत्ति सिंधु शब्द से हुई है सिंधु का तात्पर्य सिंधु नदी से है ।जब ईरानी उत्तर पश्चिम से होते हुए भारत आए तब उन्होंने सिंधु नदी के आसपास रहने वाले लोगों को हिंदू कहा। ईरानी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ तथा ‘ध’ को ‘द’ उच्चारित किया जाता था।
इस प्रकार यह सिंधु से हिंदू बना तथा हिन्दू से हिन्द बना फिर कालांतर में हिन्द से हिंदी बना जिसका अर्थ होता है “हिंद का” – हिन्द देश के निवासी । बाद में यह शब्द ‘हिंदी की भाषा’ के अर्थ में उपयोग होने लगा ।
कई लोगों का यह सवाल होता है कि हिंदी शब्द किस भाषा का है। आपको बता दें कि हिंदी शब्द वास्तव में फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है हिंद देश के निवासी ।
हिंदी भाषा का विकास (Hindi bhasha ka Vikas)
हिंदी भाषा के विकास को हम 3 वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
- प्राचीन हिन्दी – (1100 ई०-1400 ई ० )
- मध्यकालीन हिन्दी – (1400 ई ० -1850 ई
- आधुनिक हिन्दी -(1850 ई ० – अब तक)
प्राचीन या पुरानी हिन्दी / प्रारंभिक या आरंभिक हिन्दी / आदिकालीन हिन्दी
- प्राचीन हिन्दी से अभिप्राय, अपभ्रंश – अवहट्ट के बाद की भाषा से है।
- यह काल हिन्दी भाषा का शिशु काल था । यह वह काल था जब अपभ्रंश-अवहट्ट का प्रभाव हिन्दी भाषा पर बचा हुआ था और हिन्दी की बोलियों के निश्चित और स्पष्ट रूप विकसित नहीं हो पाए थे।
मध्यकालीन हिंदी
- मध्यकाल में हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो गया और उसकी प्रमुख बोलियों का विकास होने लगा था ।
- इस अवधि के दौरान, भाषा के तीन रूप उभरे – ब्रजभाषा, अवधी और खड़ी बोली।
- ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ ।
- सूरदास नंददास रसखान मीराबाई आदि लोगों ने ब्रजभाषा को साहित्य विकास में अमूल्य योगदान दिया।
- इनके अलावा कबीर नानक दादू साहिब आदि लोगों ने खड़ी बोली के मिश्रित रूप का प्रयोग साहित्य में करते रहे।
- 18वीं शताब्दी में खड़ी बोली को मुस्लिम शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ और इसके विकास को एक नई दिशा मिली।
आधुनिककालीन हिन्दी
- हिन्दी के आधुनिक काल तक ब्रजभाषा और अवधी हम बोल-चाल तथा साहित्यिक क्षेत्र से दूर हो गई थी।
- 19वीं सदी के मध्य तक भारत में ब्रिटिश सत्ता का सबसे बड़ा विस्तार हो चुका था। जब ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक रूप आम भाषा से दूर हो गया, तो उनके बदले धीरे-धीरे खारी बोली का प्रयोग शुरू हो गया। ब्रिटिश सरकार ने भी इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।
- हिन्दी के आधुनिक काल में एक ओर उर्दू और दूसरी ओर ब्रजभाषा के प्रचार के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं शताब्दी तक कविता की भाषा ब्रजभाषा थी और गद्य की भाषा खड़ीखारी बोली थी। 20वीं शताब्दी के अंत तक, खड़ी बोली गद्य और कविता दोनों की साहित्यिक भाषा बन गई थी।
- विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों ने इस युग में खड़ी बोली की स्थापना में बहुत मदद की। परिणामस्वरूप, खड़ी बोली साहित्य की प्रमुख भाषा बन गई।
आधुनिककालीन हिंदी में खड़ी बोली को हम पांच वर्गो में विभक्त कर सकते हैं –
- पूर्व-भारतेंदु युग
- भारतेंदु युग
- द्विवेदी युग
- छायावाद युग
- प्रगतिवादी युग
- प्रयोगवादी युग
पूर्व भारतेंदु युग
खड़ी बोली का यह काल सन 1800 से प्रारंभ हुआ। खड़ी बोली गद्य के आरंभिक रचनाकार सदासुख लाल, इंशा अल्लाह खां, लल्लू लालजी, सदल मिश्र के नाम उल्लेखनीय है। किस काल की खड़ी बोली उर्दू से प्रभावित थी ।
भारतेंदु युग
यह काल 1850 से 1900 के बीच का है । इस युग में हिंदी गद्य साहित्य की विविध विधाओं का ऐतिहासिक कार्य हुआ और सही मायने में हिंदी गद्य के बहुमुखी रूप का विकास हुआ । इस युग के प्रमुख कवि भारतेंदु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण, राधाचरण गोस्वामी, जगमोहन सिंह आदि हैं। इस काल में भी मुख्य रूप से कविताएं ब्रज भाषा में ही लिखी जाती थी ।
द्विवेदी युग
द्विवेदी युग 1900 से 1920 के बीच का काल है। इस काल में 1903 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका के संपादक का कार्यभार संभाला।वे सरल एवं शुद्ध हिंदी भाषा के प्रयोग के पक्षधर थे।
इस काल में ब्रज भाषा तथा खड़ी बोली का विवाद समाप्त हो गया और खड़ी बोली में सुंदर सुंदर कविताएं लिखी जाने लगे। और ब्रजभाषा अब सीमित होकर बोली रह गई और खड़ी बोली अब भाषा बन गई जिसे हिंदी भाषा माना जाता है ।
इस काल के प्रतिनिधि कवि मैथिलीशरण गुप्त है इनके अलावा श्यामसुंदर दास, पूर्ण सिंह, चंद्रधर शर्मा गुलेरी आदि प्रमुख कवि हैं।
छायावादी युग
छायावादी युग 1918 से 1936 के बीच हड़ताल है जो खड़ी बोली हिंदी के साहित्यिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान रखता है ।
इस काल के प्रमुख कवि प्रसाद,हरिवंश राय बच्चन, पंत, निराला, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा आदि है ।
प्रगतिवादी युग
प्रगतिवादी युग 1936 से 1946 के बीच का काल है। कवि गण को न राष्ट्र की चिंता थी और न दीन दुखियों की उन्हें वास्तविक जीवन में निराशा दिखाई देती थी।दलितों, शोषित और अत्याचार पीड़ितों के प्रति सहानुभूति, आर्थिक विषमताओं तथा शोषण का वर्णन करके कवि सामाजिक क्रांति का आवाहन करने लगे ।
इस काल के प्रमुख कवि मुंशी प्रेमचंद्र, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, नरेंद्र शर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन आदी है।
प्रयोगवादी युग
प्रगतिवादी युग 1943 से प्रारंभ हुआ ।इस युग के प्रमुख कवि सच्चिदानंद हीरानंद अज्ञेय, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा, धर्मवीर भारती आदि है ।
हिंदी काव्य साहित्य का विकास को आप विस्तृत रूप यहां से पढ़ सकते हैं ।हिन्दी में साहित्य रचना का कार्य 1150 या इसके बाद आंरभ हुआ।
Hindi Bhasha Ka Udbhav Aur Vikas से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर [FAQ]
Q.1 हिंदी भाषा की लिपि क्या है ?
उत्तर – हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है ।
Q.2 हिंदी कितनी पुरानी भाषा है ?
उत्तर – हिंदी भाषा लगभग 1000 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
Q.3 हिंदी के जनक कौन है ?
उत्तर – आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को माना जाता है। आधुनिक काल में हिंदी गद्य साहित्य का ऐतिहासिक आरंभ भारतेंदु काल से हुआ है।
Q.4 हिंदी शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर – हिंदी शब्द का अर्थ होता है हिंद देश के निवासी। हिंदी फारसी शब्द है।
इस प्रकार हमने हिंदी भाषा का इतिहास (Hindi bhasha ka itihas) और हिंदी भाषा का विकास (Hindi bhasha ka Vikas) के बारे में पढ़ा तथा हमने यह भी जाना की हिंदी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, हिंदी शब्द किस भाषा का है तथा हिंदी भाषा का विकास क्रम क्या है।
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