Gupt Empire ( गुप्त साम्राज्य )
मौर्य विघटन के बाद लम्बे समय तक भारत विभिन्न राजवंशों के अधीन रहा। इस काल में कोई ऐसा राजवंश नहीं हुआ जो भारत को एक शासन के सूत्र में बांध सके। कुषाणों तथा सातवाहनों ने युद्ध में काफी हद तक स्थिरता लेन का प्रयत्न किया। किन्तु वे असफल रहै।
कुषाणों के पतन के बाद से लेकर गुप्तों के उदय के पूर्व का काल राजनैतिक दृष्टि से विकेंद्रीकरण तथा विभाजन का काल माना जाता है।
इस राजनीतिक संक्रमण को दूर करने के लिए भारत के तीनों कोने से तीन नए राजवंश का उदय हुआ। मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में नाग शक्ति, दक्कन में वाकाटक तथा पूर्वी भारत में गुप्त वंश के शासक उदित हुए।
Gupt Empire
गुप्तों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न विद्वानों के मत निम्न है।
विद्वान मत
1 के.पी. जायसवाल – शुद्र
2 एलन, अल्तेकर रोमिला थापर- वैश्य
3 हेमचंद्र राय चौधरी – ब्राह्मण
4 रमेश चंद्र मजूमदार, ओझा- क्षत्रिय
चंद्रगोमीन के व्याकरण में गुप्तो को जाट (जर्ट) कहा गया है। गुप्तों का आदि पुरुष श्रीगुप्त था उसका पुत्र घटोत्कच था। स्कंदगुप्त के सुपिया (रीवा) के लेख में गुप्त वंश को घटोत्कच वंश कहा गया है।
कालांतर में तीनों राजवंश वैवाहिक सम्बन्ध में बांध गए। आपसी द्वंद से अपनी शक्तियों का दमन करके इनो होने गुप्तों के नेतृत्व में भारत को एक शक्तिशाली शासन प्रदान किया। कुषाणों के उपरांत मध्य भारत का बड़ा हिस्सा मुकुण्डों के आधिपत्य में आया और उन्होंने 250 ई. तक राज्य किया, तत्पश्चात गुप्त शासन का अंत हुआ।
ऐतिहासिक अवलोकन के बाद ऐसा प्रतीत होता है की गुप्त लोग कुषाणों के सामंत थे। गुप्त लोगों के जन्म और निवास के बारे में कुछ कहना संभव नहीं है। प्राम्भ में वे भूस्वामी थे और मगध के कुछ हिस्सों पर उनका राजनीतिक अधिकार था। संभवतः गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्व वाला प्रांत था, क्योंकि आरंभिक गुप्त मुद्राएं और अभिलेख मुख्यतः उत्तर-प्रदेश में पाए जाते हैं।
कीर्तिकौमुदी नाटक में लिच्छवियों के मलेच्छ तथा चांदसेन (चन्द्रगुप्त प्रथम) को ‘फारस्कर’ कहा गया है। चंद्र्गोमिन के ‘व्याकरण’ नामक ग्रंथ में युद्धों को जर्ट अर्थात जाट कहा गया है। गुप्तवंशीय लोग धारण गोत्र के थे। इसका उल्लेख चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त के पूना ताम्रपत्र में मिलता है। उसका पति रुद्रसेन द्वितीय व
गरुण गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह था। प्रथम प्रशस्ति से पता चलता है की गुप्तों की राजाशाएं गरुण मुद्रा में अंकित हुआ करती थी। बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन रसायन और धातुविज्ञान का विद्वान् था। उसने यह प्रमाणित किया की सोना, चांदी, तांबा आदि खनिज पदार्थों के रासायनिक प्रयोग से रोगों का निवारण हो सकता है।
गुप्त काल में व्यापारियों तथा शिल्पियों के 4 संगठन थे- नियम, पूग, गण, तथा श्रेणी। देवगढ़ (झाँसी) का दशावतार मंदिर, भारतीय मंदिर निर्माण में शिखर का संभवतः पहला उदाहरण है। यह मंदिर विष्णु को समर्पित है।
रेशम का व्यापार वेजेन्टाईन से इतना बढ़ गया था की वहां के शासक जाटीनियन को रेशम मूल्य नियंत्रण हेतु पुरे राज्य में यह आदेश जारी करना पड़ा था की रेशम का एक पाउंड सोने के 8 टुकड़ों से ज्यादा नहीं होगा। गुप्त काल में चीनी रेशम को चिनांशुक तथा रेशों से निर्मित कपड़ों को ‘दुकूल’ कहा जाता था।
पुत्र के आभाव में पुरुष की संपत्ति पर उसकी पत्नी का अधिकार होता था। उसके बाद उसकी पुत्रियों के अधिकार का विधान था। दास मुक्ति के अनुष्ठान का विधान सर्वप्रथम नारद ने किया है। गुप्तकाल में दासों की स्थिति पूर्वकाल से अधिक दयनीय थी।
गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त था जिसने 275 ईसवी में गुप्त वंश की स्थापना की थी गुप्त वंश का प्रथम महत्वपूर्ण शासक चंद्रगुप्त प्रथम था लेकिन इसके पहले श्री गुप्त (240-285 ईसवी ) तथा घटोत्कच ( 280 -320 ईसवी ) का शासक के रूप में उल्लेख मिलता है
1 चंद्र प्रथम ने (319-350 ईस्वी)- चंद्रगुप्त प्रथम ने गुप्त वंश को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसे गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने एक नए संवत गुप्त संवत (319-20)को चलाया था गुप्त वंशावली में चंद्रगुप्त प्रथम पहला शासक था जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। श्रीगुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की थी।
चंद्रगुप्त ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लिच्छवी राजकुमारी कुमारीदेवी से विवाह किया था जो उस समय की एक महत्वपूर्ण घटना थी चंद्रगुप्त कुमार देवी प्रकार के सिक्कों से इस विवाह की पुष्टि होती है।
2 समुद्रगुप्त (350 – 375 ईसवी) – समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र था तथा इसे भारत का नेपोलियन कहा गया इतिहासकार वी ए स्मिथ के द्वारा विभिन्न अभियानों के कारण ये नाम दिया गया था समुद्र के द्वारा की गई विजयो और उसके बारे की जानकारी के स्त्रोत उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति तथा इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख के द्वारा प्राप्त है
समुद्रगुप्त की अनुमति से सिंहल (श्रीलंका) के राजा मेंघवर्धन ने बोधगया में एक बौद्ध मठ की स्थापित किया था समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है और इससे पता चलता है कि समुद्रगुप्त संगीत प्रिय था
समुद्रगुप्त ने 6 प्रकार के सिक्के जारी किए थे जो निम्न है-
1. गरुड़ध्वज आकृति वाले (ध्वजा धारी प्रकार)
2. धनुर्धारी आकृति वाले
3. युद्धक कुल्हाड़ी आकृति वाले (परसुधारी प्रकार)
4. शेर सहारक आकृति वाले (व्याघ्र निहंता प्रकार)
5. अश्वमेघ आकृति वाले
6. वीणा वादक आकृति वाले
3 चंद्रगुप्त द्वितीय (375 – 415 ईसवी) – चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल गुप्त काल में साहित्य और कला का स्वर्ण काल कहा जाता है चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी तथा चांदी के सिक्के चलाए थे चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399- 412 ई ) भारत आया था
चंद्रगुप्त के दरबार में नौ विद्वानों की मंडली थी जिसे नवरत्न कहा जाता था तथा इस नवरत्न में कालिदास अमर सिंह आदि जैसे महान विद्वान शामिल थे
4 कुमारगुप्त प्रथम (415 -455 ईसवी) – कुमारगुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी तथा इस विश्वविद्यालय को ऑक्सफोर्ड ऑफ महायान बौद्ध कहा जाता है इस विद्यालय में शिक्षा तो मुक्त ही थी साथ ही छात्रों को आवासीय सुविधा भी मुफ्त उपलब्ध कराई जाती थी परंतु 12 वीं सदी में इसे मोहम्मद गौरी के जनरल बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया था
5 स्कंद गुप्त (455 – 464 ईसवी)- गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी शासक स्कंदगुप्त था जिसने हूणों के आक्रमण को विफल किया था
इसके द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य के समय में निर्मित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था
Gupt Empire important facts-
- प्रथम गुप्त शासक जिसने परम भागवत की उपाधि धारण की ➡ चंद्रगुप्त द्वितीय
- इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख किस गुप्त शासक से संबद्ध है ➡ समुद्रगुप्त
- पृथिव्या प्रथम वीर उपाधि थी➡ समुद्र गुप्त
- कोन से राजवंश हूणों के आक्रमण से अत्यंत विचलित हुआ ➡ गुप्त
- किस अभिलेख से ज्ञात होता है कि स्कन्दगुप्त ने हूणों को पराजित किया था ➡ भितरी स्तम्भ लेख
- बीरसेन किसका सैन्य सचिव था➡ चन्द्रगुप्त द्वितीय का
- समुद्रगुप्त को किस अभिलेख मे कहा गया है की “” वह नाराज होने पर यम के समान और प्रशन्न होने पर कुबेर के समान था “” ➡ एरण अभिलेख मे
- हरिषेण किसका सैन्य सचिव था ➡ समुद्र गुप्त का
- समुद्र गुप्त के दक्षिण विजय को किसने धर्म विजय की संज्ञा दि है➡ हेम चंद्र राय चौधरी ने
- सारनाथ का धमेख स्तूप किस काल मे बना➡ गुप्त काल मे
- चन्द्रगुप्त प्रथम की पत्नी का क्या नाम था। ➡ लिच्छवि कन्या कुमारदेवी
- किस इतिहासकार ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है ➡ विंसेट स्मिथ ने अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया में
- समुद्रगुप्त के समकालीन किस लंका नरेश ने गया में बौद्ध मंदिर बनाने के लिए दूत भेजा था। ➡ मेघवर्मन ने
- चन्द्रगुप्त 2 ने शक मुद्राओ के आधार पर कौन से सिक्के चलाये। ➡ व्याघ्र सिक्के
- चन्द्रगुप्त के नवरत्न उसके किस दरबार को सुशोभित करते थे। ➡ उज्जैन को
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