अजमेर के चौहान
चौहानों की उत्पति के संबंध में विभिन्न मत हैं। पृथ्वीराज रासौ (चंद्र बरदाई) में इन्हें ‘अग्निकुण्ड’ से उत्पन्न बताया गया है, जो ऋषि वशिष्ठ द्वारा आबू पर्वत पर किये गये यज्ञ से उत्पन्न हुए चार राजपूत – प्रतिहार, परमार,चालुक्य एवं चौहानों (हार मार चाचो – क्रम) में से एक थे। मुहणोत नैणसी एवं सूर्यमल मिश्रण ने भी इस मत का समर्थन किया है।
प. गौरीशंकर ओझा चौहानों को सूर्यवंशी मानते हैं। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति ब्राह्मण वंश से हुई है।
अजमेर के चौहान
चौहानों की उत्पति के विभिन्न मत:-
- अग्निकुल – पृथ्वीराज रासौ, नैणसी एवं सूर्यमल्ल मिश्रण।
- सूर्यवंशी – पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महाकाव्य, हम्मीर रासो, सर्जन चरित्र,चौहान प्रशस्ति, बेदला शिलालेख इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा भी इन्हें सूर्यवंशी मानते हैं।
- इन्द्र के वंशज – रायपाल का सेवाडी अभिलेख।
- विदेशी मत –(शक-सीथियन)- कर्नल जेम्स टाॅड, डाॅ.वी.ए. स्मिथ एवं विलियम क्रुक।
- ब्राह्मणवंशी मत –डाॅ.दशरथ शर्मा, डाॅ. गोपीनाथ शर्मा, कायम खां रासो,बिजौलिया शिलालेख।
- चंद्रवंशी मत – हांसी शिलालेख, अचलेश्वर मंदिर का लेख।
अजमेर के चौहान वंश के कई नाम है- जैसे जांगल प्रदेश के चौहान, सपादलक्ष की चौहान, शाकंभरी के चौहान आदि।
सांभर चौहान वंश
राजस्थान में चौहानों के मूल स्थान सांभर (शाकम्भरी देवी – तीर्थों की नानी, देवयानी तीर्थ) के आसपास वाला क्षेत्र माना जाता था इस क्षेत्र को सपादलक्ष (सपादलक्ष का अर्थ सवा लाख गांवों का समूह) के नाम से जानते थे?
प्रारम्भिक चौहान राजाओं की राजधानी अहिच्छत्रपुर (हर्षनाथ की प्रशस्ति) थी जिसे वर्तमान में नागौर के नाम से जानते हैं। गोपीनाथ शर्मा के अनुसार वासुदेव चौहान ने 551 ई में चौहान वंश की नींव डाली। आसपास जांगल प्रदेश में चौहान सत्ता स्थापित की। चौहान राज्य में कुल सवा लाख थे अतः सपादलक्ष चौहान का कहलाये।
कुछ विद्वानों के अनुसार सांभर इनकी राजधानी थी। यहीं पर वासुदेव चौहान ने चौहान वंश की नीव डाली। इसने सांभर ( सांभर झील के चारों ओर रहने के कारण चौहान कहलाये ) को अपनी राजधानी बनाया। सांभर झील का निर्माण ( बिजोलिया शिलालेख के अनुसार ) भी इसी शासक ने करवाया। इसकी उपाधि महाराज की थी। अतः यह एक सामंत शासक था।
वासुदेव के उत्तराधिकारी “गुवक प्रथम’ ने सीकर में हर्षनाथ मंदिर को निर्माण कराया इस मंदिर मे भगवान शंकर की प्रतिमा विराजमान है, जिन्हें श्रीहर्ष के रूप में पूजा जाता है।
गुवक प्रथम के बाद गंगा के उपनाम से विग्रहराज द्वितीय को जाना जाता है सर्वप्रथम विग्रहराज द्वितीय ने भरूच (गुजरात) के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया तथा भरूच गुजरात में ही आशापुरा देवी के मंदिर का निर्माण कराया इस कारण विग्रहराज द्वितीय को मतंगा शासक कहा गया इस शासक की जानकारी का एकमात्र स्त्रोत सीकर से प्राप्त हर्षनाथ का शिलालेख है, जो संभवतयः 973ई. का है।
इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक पृथ्वीराज प्रथम था जिसकी उपाधि महाराजाधिराज थी। पृथ्वीराज प्रथम के मंत्री हट्ड ने सीकर में जीण माता के मंदिर का निर्माण करवाया।
पृथ्वीराज चौहान शाकंभरी माता की आराधना करता था अतः शाकंभरी चौहान कहलाये, सर्वाधिक प्रसिद्धि अजमेर में मिली, अतः अजमेर के चौहान कहलाये, इन की कुलदेवी सीकर की जीण माता तथा कुल देवता हर्षनाथ को माना गया
मान्यता है कि चौहान गुर्जर प्रतिहारों के सामन्त थे। लगभग 10 वीं शताब्दी में सिंहराज चौहान प्रतिहारों से मुक्त हुआ तथा स्वतंत्र शासक बना।आगामी शासक अजयपाल चौहान से क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त होता है
अजयराज (1105 – 1133)
पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र का नाम अजयराज था। अजयराज को चाँदी के सिक्कों पर ‘श्री अजयदेव’ के रूप में प्रदर्शित किया गया था। अजयराज की रानी सोमलेखा के भी हमें सिक्के प्राप्त हुए हैं, इससे ज्ञात होता है कि सोमलेखा ने भी अपने नाम के चाँदी के सिक्के चलवाए।
अजयराज ने 1113 ई. में अजयमेरू दुर्ग का निर्माण कराया, इस दुर्ग को पूर्व का जिब्राल्टर कहा जाता है।
अजमेर को अपनी राजधानी के रूप में स्वीकार किया मेवाड़ के शासक पृथ्वीराज ने अपनी रानी तारा के नाम पर अजयमेरू दुर्ग का नाम तारागढ़ दुर्ग रखा बाद में यही अजयमेरू/तारागढ़/ गढ़बीठली के रूप में जाना जाने लगा।
अजयराज ने इस दुर्ग का निर्माण अजमेर की बीठली पहाड़ी पर कराया था जिसे कारण इसे गढ़बीठली कहा गया।
अजयराज की उपलब्धि यह थी कि इसने चौहानों को एक संगठित भू-भाग प्रदान किया जिसे अजमेर के नाम से जाना गया है।
अर्णोराज/अर्णाराज(1133- 1155 ई)-
इस शासक ने सर्वप्रथम तुर्कों को पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, तुर्कों पर विजय के उपलक्ष्य में अर्णोराज ने अजमेर शहर के बीचों-बीच आनासागर झील का निर्माण (1137 ई.) कराया था।
जयानक ने अपने ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय में लिखा है कि “अजमेर को तुर्कों के रक्त से शुद्ध करने के लिए आनासागर झील का निर्माण कराया था’ क्योंकि इस विजय में तुर्का का अपार खून बहा था।
जहांगीर ने यहां दौलत बाग का निर्माण करवाया। जिसे शाही बाग कहा जाता था। जिसे अब सुभाष उद्यान कहा जाता है। इस उद्यान में नूरजहां की मां अस्मत बेगम ने गुलाब के इत्र का आविष्कार किया।
शाहजहां ने इसी उद्यान में पांच बारहदरी का निर्माण करवाया। अर्णांराज ने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके दरबारी कवि देवबोध व धर्म घोष थे
गुजरात के चालुक्य शासक कुमारपाल ने अर्णाराज पर आक्रमण किया लेकिन इस आक्रमण को अर्णोराज ने विफल कर दिया यह जानकारी हमें मेरूतुंग के प्रबंध चिन्तामणि नामक ग्रन्थ से मिलती है।
अर्णोराज के पुत्र जगदेव ने इनकी हत्या कर दी इस कारण इसे चौहानों का पितृहंता भी कहा जाता है।
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