भारतीय लोकतंत्र एवं चुनोतियाँ
राजनीतिक व्यवस्था एक सामाजिक संस्था है जो किसी देश के शासन से संव्यवहार करती है और लोगों से इसका संबंध प्रकट करती है। राजनितिक कुछ मूलभूत सिद्धांतों का समुच्चय है जिसके इर्द-गिर्द राजनीति और राजनीतिक संस्थान विकसित होते हैं या देश को शासित करने हेतु संगठित होते हैं।
राजनीतिक व्यवस्था में ऐसे तरीके भी शामिल होते हैं जिसके अंतर्गत शासक चुने या निर्वाचित होते हैं, सरकारों का निर्माण होता है तथा राजनीतिक निर्णय लिए जाते हैं। समाज में राजनीतिक पारस्परिक विमर्श तथा निर्णय-निर्माण की संरचना एवं प्रक्रिया सभी देशों की राजनीतिक व्यवस्था में समाहित होते हैं।
व्यक्ति की बहुविध जरूरतों की पूर्ति हेतु राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण हुआ है। संविधानवाद की अवधारणा एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है जो एक संविधान के अंतर्गत शासित होती है और जो आवश्यक रूप से सीमित सरकार और कानून के शासन को प्रतिबिम्बित करती है तथा एक मध्यस्थ, कुलीतंत्रीय, निरंकुश तथा अधिनायकवादी व्यवस्था के विपरीत होती है।
किसी देश का संविधान राजनीतिक व्यवस्था के आधारभूत ढांचे की स्थापना करता है जिसके द्वारा लोग शासित होते हैं। यह विभिन्न अंगों-विधानमण्डल, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की स्थापना के साथ-साथ उनकी शक्तियों, जिम्मेदारियों एवं उनके एक-दूसरे के साथ और लोगों के साथ संबंधों को विनियमित करती है।
इसलिए संवैधानिक सरकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के लिए अपरिहार्य है।
लोकतंत्र की चुनौतियाँ ( Challenges of democracy )
चुनौती का मतलब कोई भी चुनौती केवल एक समस्या नहीं होती है। उसी समस्या को चुनौती का नाम दिया जाता है जो महत्वपूर्ण.हो और जिसे पार पाया जा सके। जिस समस्या में आगे बढ़ने के अवसर छुपे हुए होते हैं उसे हम चुनौती कहते हैं। एक बार जब हम किसी चुनौती पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो हम पहले से कहीं अधिक आगे बढ़ते हैं।
लोकतंत्र
लोकतंत्र की मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:-
- आधार तैयार करने की चुनौती
- विस्तार की चुनौती
- लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना
1. आधार तैयार करने की.चुनौती
अलग अलग देशों को अलग अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अभी विश्व का एक चौथाई हिस्सा लोकतंत्र से अछूता है। दुनिया के ऐसे कोनों में लोकतंत्र की चुनौती बिलकुल साफ है।
2. विस्तार की चुनौती:-
ज्यादातर स्थापित लोकतंत्र में विस्तार की चुनौती होती है। इसका मतलब है कि किसी देश के हर क्षेत्र में लोकतांत्रिक सरकार के मूलभूत सिद्धांतों को लागू करना और उसके प्रभाव को समाज के हर वर्ग और देश की हर संस्था तक पहुँचाना।
स्थानीय स्वशाषी निकायों को अधिक शक्ति प्रदान करना, संघ के हर इकाई को संघवाद के प्रभाव में लाना, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से जोड़ना
3. लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना
लोकतंत्र को गहराई तक मजबूत करने की चुनौती का सामना हर लोकतंत्र को करना पड़ता है। इसका मतलब है लोकतंत्र की प्रक्रियाओं और संस्थानों को मजबूत करना। ऐसा इस तरह से करना होगा जिससे लोगों को लोक_तंत्र से अपनी अपेक्षाओं के बारे में सही जानकारी मिले।_
लोकतंत्र से साधारण लोगों की अपेक्षाएँ अलग अलग समाज में अलग अलग तरह की होती हैं।