राजनीति के विविध पक्षों के अस्तित्व एवं वैज्ञानिक अध्ययन को राजनीतिक सिद्धान्त कहा जाता है। … इस अर्थ में राजनीति नगर-राज्य तथा उसके प्रशासन का व्यवहारिक एवं दार्शनिक धरातल पर अध्ययन प्रस्तुत करती है। राजनीति को Polis नाम प्रसिद्ध ग्रीक विचारक अरस्तू द्वारा दिया गया है। अतः उन्हें ‘राजनीति विज्ञान का पिता‘ कहा जाता है।
Political theories ( Traditional and Modern ) राजनीतिक सिद्धान्त
राजनीतिक सिद्धान्त के विविध पक्षों के अस्तित्व एवं वैज्ञानिक अध्ययन को राजनीतिक सिद्धान्त कहा जाता है।
राजनीति के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द पॉलिटिक्स (politics) की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के तीन शब्दों ‘Polis'(नगर-राज्य), ‘Polity'(शासन) तथा ‘Politia'(संविधान) से हुई है। इस अर्थ में राजनीति नगर-राज्य तथा उसके प्रशासन का व्यवहारिक एवं दार्शनिक धरातल पर अध्ययन प्रस्तुत करती है।राजनीति को Polis नाम प्रसिद्ध ग्रीक विचारक “अरस्तू” द्वारा दिया गया है। अतः उन्हें ‘राजनीति विज्ञान का पिता’ कहा जाता है।
आधुनिक अर्थों में राजनीति शब्द को इन व्यापक अर्थों में प्रयुक्त नहीं किया जाता। आधुनिक समय में इसका संबंध राज्य ,सरकार, प्रशासन, व्यवस्था के तहत समाज के विविध संदर्भों व संबधों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान एवं अध्ययन से है।
प्लेटो, अरस्तू, सिसरो, ऑगस्टाइन व एक्वीनास राजनीति विज्ञान की परम्परागत विचारधारा के विचारक है। आधुनिक राजनीतिक विचारकों में चार्ल्स मेरियम, रॉबर्ट डहल, लासवेल, कैटलिन, मैक्सवेबर, लास्की, मैकाइवर का नाम उल्लेखनीय है।
राजनीतिक सिद्धान्त में ‘सिद्धांत’ के लिए अंग्रेजी शब्द Theory की उत्पत्ति यूनानी शब्द ‘Theoria'(थ्योरिया) से हुई है, जिसका अर्थ है- “समझने का विशिष्ट दृष्टिकोण”। यह वही समझ है जिससे किसी घटनाक्रम को तार्किक विवेचन द्वारा स्पष्ट किया जाए अर्थात किसी अवधारणा की व्याख्या कर उसे ‘सामान्यीकरण’ की ओर अग्रसर करना।
इस प्रकार, राजनीतिक सिद्धान्त का अभिप्राय राजनीति और उससे संबंधित समस्याओं का विभिन्न तथ्यों के आधार पर व्याख्या प्रस्तुत करने से है।
जॉर्ज एच. सेबाइन की चर्चित कृति राजनीतिक सिद्धान्त का इतिहास व डब्ल्यू.ए.डनिंग के राजनीतिक सिद्धान्त का इतिहास के अंतर्गत प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के राजनीतिक विचारों के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है।
राजनीतिक सिद्धान्त हमें सरकार की जरूरत क्यों है ? सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप कौन सा है ? क्या कानून हमारी स्वतंत्रता को सीमित करता है ? राजसत्ता कि अपने नागरिकों के प्रति क्या देनदारी होती है ? नागरिक के रूप में हमारे क्या दायित्व है ? आदि प्रश्नों की पड़ताल करता है और राजनीतिक जीवन को अनुप्रमाणित करने वाली स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है।
राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य—
राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नो के बारे में तर्कसंगत ढंग से सोचने और सामयिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीके से आँकने का प्रशिक्षण देना है।
राजनीति क्या है
लोग राजनीति के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं। यथा—
(1) राजनेता और चुनाव लड़ने वाले लोग अथवा राजनीतिक पदाधिकारी राजनीति को एक प्रकार की जनसेवा बताते हैं। राजनीति से जुड़े अन्य लोग राजनीति को दांव–पेच से जोड़ते हैं।
(2)कई अन्य के लिए राजनीति वही है जो राजनेता कहते हैं और जब वे राजनेताओं को दल-बदल करते हुए झूठे वादे करते हैं विभिन्न तबकौं से जोड़-तोड़ करते और निजी या सामूहिक स्वार्थ साधने के रूप में देखते हैं तो उसकी दृष्टि में राजनीति का संबंध किसी भी तरह से निजी स्वार्थ साधना के धंधे से जुड़ गया है।
लेकिन राजनीति के ये अर्थ त्रुटिपरक है।
राजनीतिक सिद्धान्त का अर्थ एवं प्रकृति
राजनीतिक सिद्धान्त ज्ञान की वह शाखा है जो राजनीति के अध्ययन का सामान्य ढांचा प्रस्तुत करती हैंऔर राजनीतिक मनुष्यों के सार्वजनिक जीवन से सम्बधित है। राजनीतिक सिद्धान्त के तीन भाग होते है_
- समालोचना
- पुनर्निर्माण
- व्याख्या
पहले दो कृत्य राजनीतिक दर्शन से संबंधित है जो मूल्यों पर बल देते हैं जबकि तीसरा करते राजनीतिक विज्ञान से संबंधित है जो तथ्यों पर बल देता है।
एंड्र्यू हैकर ने अपनी पुस्तक पोलिटिकल थ्योरी में राजनीतिक सिद्धांत के दो अर्थ बताएं है। परंपरागत राजनीतिक सिद्धान्त में अपने विचारों का इतिहास सम्मिलित है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त से राजनीतिक व्यवहार का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
बल्हम ने अपनी पुस्तक Theories of political system में बताया है कि राजनीतिक सिद्धान्त राजनीतिक व्यवस्था के लिए अमृत प्रतिमान प्रस्तुत करता है। राजनीतिक तथ्यों के आकलन एवं विश्लेषण के लिए एक निर्देशक का काम करता है।
1 परम्परागत दृष्टिकोण
छठी सदी से बीसवीं सदी में प्राय द्वितीय विश्व युद्ध से पहले तक जिस राजनीतिक दृष्टिकोण का प्रचलन रहा है उसे परंपरागत राजनीतिक दृष्टिकोण कहा जाता है। परंपरागत राजनीतिक दृष्टिकोण को शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धान्त आदर्शात्मक राजनीतिक सिद्धान्त भी कहा जाता है।
परंपरागत _राजनीतिक चिंतकों में sukrat, Plato, arastu, मान्टेस्कयू, हीगल, काण्ट तथा ग्रीन का नाम सम्मिलित है। आधुनिक युगीन विचारक जिन्होंने परंपरागत _राजनीतिक सिद्धांत का समर्थन किया। अल्फ्रेड कोबन, हन्ना, आरेण्ट, लियो स्टरास, आदि हैं।
परंपरागत _राजनीतिक दृष्टिकोण में _राजनीतिक सिद्धांत के निर्माण के लिए जिलाध्यक्ष पत्तियों को अपनाया उसमें दार्शनिक तार्किक नैतिक ऐतिहासिक आदि हैं।
परम्परागत दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को चार अर्थों में परिभाषित किया जाता हैं-
- राज्य के अध्ययन के रुप में
- सरकार के अध्ययन के रूप में
- राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में
- राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रुप में
परंपरागत राजनीति विज्ञान एवं _राजनीतिक सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएं—–
- दर्शनशास्त्र से प्रभावित अध्ययन।
- निगमनात्मक अध्ययन पद्धतियां।
- मुल्य प्रधान अध्ययन ।
- व्यक्तिनिष्ठ अध्ययन।
- अध्ययन विषय में निरंतरता।
- मुख्यतः संकुचित अध्ययन।
परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र??
- राजनीति_विज्ञान राज्य एवं सरकार दोनों का अध्यन है।
- राजनीति_विज्ञान मानव तत्व के संदर्भ में अध्ययन है।
1 राज्य के अध्ययन के रुप में-
ब्लंटसलि,गेरीस, गार्नर, तथा गेटल आदि लेखको ने राजनीति विज्ञान को राज्य के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया हैं।
1- ब्लंटसलि के सब्दो में – “राजनीति शास्त्र वह शास्त्र है जिसका सम्बन्द्ध राज्य से है, जोरजी की आधारभूत स्थितियो ,उसकी प्रकृति, तथा विविध स्वरूपों एवं विकास को समझने का प्रयत्न करता हैं।”
2- गैरिस के शब्दों में- “राजनीति शास्त्र राज्य को एक शक्ति शास्त्र के रूप में मानता है जो राज्य के समस्त संबंधो, उसकी उत्पत्ति, उसके स्थान, उसके उद्देश्य उसके नैतिक महत्व,उसकी आर्थिक समस्याओं, उसके वितिय पहलू आदि का विवेचन करता हैं।”
3- गार्नर के अनुसार – “राजनीति शास्त्र का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है।”
4- गैटल के शब्दों में- राजनीति शास्त्र राज्य के भूत ,भविष्य व वर्तमान का,राजनीति संग़ठन तथा राजनीति कार्यों का,राजनीती संस्थाओं का तथा राजनीति सिद्धान्तों का अध्ययन करता हैं।”
Political theories important facts –
- गिल्ड तथा पांपर – राजनीति ,शक्ति एवं सता के संबंधो मे अच्छी प्रकार की जा सकती है
- शक्ति का सिद्बात सम्पूणं राजनीति प्रक्रियाशाली के वितरण,प्रयोग एवं प्रभाव क अध्ययन है- लावेल
- राजनीतिविज्ञान सम्पूणं राजनीति व्यवस्था का अध्ययन है – ईस्टन व आमंड
- राजनीति_विज्ञान को निणंय निर्माण का विज्ञान मानते है- हबंर्ट साइमन
- राज नीति विज्ञान मूलतः एक नीति विज्ञान है – लांसवेल
- राज नीति विज्ञान महानतम विज्ञान – गिलक्राइस्ट
- राजनीति_विज्ञान सवौच्च विज्ञान – अरस्तु
- राजनीति_को विज्ञान नही मानने वाले विचारक – बक्ल काम्टे ,मेटलेंड,एमास ,बीयडं ब्रोजन व बकं
- राजनीति_विज्ञान को मानने वाले विचारक – बोदा, हाँब्स , मास्टेस्क्यु, ब्राइस, ब्लंटशली जेलिनेक, फाईनर व लांस्की
- जिस प्रकार हम सौदंर्य शास्त्र को विज्ञान की संज्ञा नही दे सकते उसी प्रकार राजनीति शास्त्र को विज्ञान नही कहा जा सकता है – बर्क
- जबमै राजनीति विज्ञान शीर्षक के अंतर्गत परीक्षा प्रशनो को देखता तो मुझे पप्रशनो पर नही अपितु शीर्षक के लिए खेद होता है- मैटलेंड
- प्रत्येक नये कानून का निर्माण प्रत्येक नही संस्था की स्थापना ओर प्रत्येक नही नीति की शुरुवात एक प्रयोग है – गार्नर
- राजनीति_विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक – केटलिन, लासवेल, डहल तथा फ्रोमेन
- राज.वि. एक व्यहारवादी विषय के रुप मे शक्ति को संवारने तथा मिल बांटकर प्रयोग करने का अध्ययन है- लासवेल एंव केटलिन
- ज्ञान की वर्तमिन अवस्था मे राज.वि .विज्ञान मानना तो दुर वह कलाओ मे भी सबसे पिछडी कला है- बक्ल
- राज.वि मे वैज्ञानिक तकनीक ओर प्रविधियो का विकास समय की सबसे बडी आवशयकता है– मेरियम
- राज. वा. मूलतः एक वाज्ञान.है और इसका संबंध राजनीतिक संस्थाऔ के वै ज्ञानिक विशलेषण से है – केटलिनन व लावेल