सल्तनत काल- गजनवी और गौर वंश
977 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सुबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाइयां लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थीं। सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद_गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा।
गजनवी
महमूद_गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किए। उसने भारत पर 1001 से 1026 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किए। महमूद गजनवी यमनी वंश का तुर्क सरदार गजनी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था।
महमूद गज़नवी ये मध्य आशिया का गझनी इस छोटे राज्य का तुर्की सुलतान था। इ.स. के पहले हजार की आखीर के तीस साल और दुसरे हजार के पहले तीस साल (970 से 1030) ये उनके जीवनकाल था। इस्लाम धर्म स्वीकार किये हुये और इराणी (पार्शियन) संस्कृति के प्रभाव के निचे आने-वाले तूर्क के लोगो ने मध्य आशियाई राजनीती में उस समय में वर्चस्व हासील किया था।
महमूद उसमे से एक था। ये सैनिक इ.स. 998 में सुलतान हुआ। समृद्ध भारत की तरफ जल्दी ही उसने अपना फ़ौज घुमायी। 1001 से 1027 इस युग में उसके आक्रमण के सतरा लहरे भारत पर आकर गिरी। पहले पेशा पर और पंजाब परिसर के हिंदू शाही राज्यकर्ताओ के खिलाफ उसने अभियान तैयार की। जयपाल और अगंनपाल इस हिंदुशाही राज्यकर्ताओं ने तुर्की आक्रमण का प्रतिकार किया।
लेकीन महमूद के आगे वो और उनसे हात मिलाने वाले मुलतानी मुस्लिम सत्ताधिश नहीं टिक पाये। हात में आये हुये और हारे हुये जयपाल को मुक्त करने का बड़ा दिल महमूद ने दिखाया। लेकीन जयपाल ने अपमान से ज्यादा आग में जाके मौत का स्वीकार किया। पंजाब – मुलतान प्रदेश महमूद गज़नवी / Mahmud of Ghazni के कब्जे में गया।
उसके बाद उत्तर भारत के बहोत से जगह आक्रमण करके उसने बहोत लूट हासिल की। स्थानेक्ष्वर कनोज, मथुरा यहाँ डाका डालकर उसने शहर और मंदिरों को लुटा। इन सारे आक्रमणों में महमूद के सैनिको पहाड़, सिंधु से गंगा तक नदिया, जंगल, पार करके जाना पड़ा। इंन्सानो की तरह प्रकृति का भी सामना करना पड़ा।
लेकीन पराक्रम और इच्छा शक्ती के बल पर इन सब पर उसने मात की। आखीर में महमूद ने गुजरात के सोमनाथ पर राजस्थान के रास्ते से स्वारी की। प्रभासपट्टण का सोमनाथ मंदीर ये बार ज्योतिर्लिंगों में से एक है। अमिर सोमनाथ के भक्तो की संख्या लाखो में पुजारियों की संख्या हजारों में थी। समुंदर के तट के इस वैभवशाली मंदीर को महमूद ने जी भरकर लूटा। पुरोदितों की प्रार्थना से ये लूट नही रुक पायी।
भारत पर आक्रमण करने बाला प्रथम मुस्लिम मुहम्मद बिन कासिम(अरबी) था जबकि भारत पर आक्रमण करने बाला प्रथम तुर्की मुस्लिम सुबुक्तगीन था।
अपने भारतीय आक्रमण के समय महमूद_गजनवी ने जिहाद का नारा दिया,साथ ही अपना नाम बुत शिकन रखा।। सर हेनरी इलियट ने महमूद गजनवी के 17 आक्रमण का वर्णन किया है।। वेहकी को इतिहासकार लेन पूल ने पूर्बीपेप्स की उपाधि प्रदान की।
महमूद_गजनवी के 17 आक्रमण :
- दूसरे आक्रमण में महमूद ने जयपाल को हराया। जयपाल के पौत्र सुखपाल ने इस्लाम कबूल कर लिया।
- 4 थे आक्रमण में भटिंडा के शासक आनंदपाल को पराजित किया।
- 5वें आक्रमण में पंजाब फतह और फिर पंजाब में सुखपाल को नियुक्त किया, तब उसे (सुखपाल को) नौशाशाह कहा जाने लगा।
- 6 ठे और 7 वें आक्रमण में नगरकोट और अलवर राज्य के नारायणपुर पर विजय प्राप्त की। आनंदपाल को हराया, जो वहां से भाग गया। आनंदपाल ने नंदशाह को अपनी नई राजधानी बनाया तो वहां पर भी गजनवी ने आक्रमण किया।
- 10 वां आक्रमण नंदशाह पर था। उस वक्त वहां का राजा त्रिलोचन पाल था। त्रिलोचनपाल ने वहां से भागकर कश्मीर में शरण ली। नंदशाह पर तुर्कों ने खूब लूटपाट ही नहीं की बल्कि यहां की महिलाओं का हरण भी किया।
- महमूद ने 11 वां आक्रमण कश्मीर पर किया,
- जहां का राजा भीमपाल और त्रिलोचन पाल था।
महमूद_गजनवी
_महमूद गजनवी सुबुक्तगीन का पुत्र था और अपने पिता की मौत के बाद 997 ई. में वह गजनी के सिंहासन पर बैठा ।
महमूद_गजनबी पहला शासक था जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की थी । उसे यह उपाधि बगदाद के खलीफा से मिली थी । महमूद गजनबी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था ।
- इतिहासकार जाफर ने कहा है कि -महमूद गजनबी के आक्रमण का उद्देश्य इस्लाम का प्रचार नहीं बल्कि धन लूटना था ।
- महमूद गजनबी के आक्रमण को उसके दरबारी इतिहासकार अल् -उत्बी ने जिहाद माना ।
- महमूद गजनबी के सिक्कों पर अमीर महमूद अंकित था ।
- बगदाद के खलीफा अल -कादिर -बिल्लाह ने महमूद को यमीन -उद् -दौला व अमीन -उल् -मिल्लत की उपाधि दी थी ।
- यमीन -उद् -दौला – साम्राज्य का दाहिनी हाथ ।
- अमीन -उल् -मिल्लत – मुस्लिमों का रक्षक ।
- महमूद मुस्लिम राजाओं के खिलाफ भी लड़ा था ।
महमूद ने हिन्दुशाही शासकों के खिलाफ आक्रमण कर संघर्ष आरम्भ किया ।1001 में हिन्दुशाही शासक जयपाल को हराकर महमूद ने उसे बन्दी बना लिया, लेकिन बाद में छोड़ दिया ।
जयपाल के दिल में पराजय का अपमान इतना चुभ गया कि उसने अपने आपको जलती चिता में जला दिया । हिन्दुशाही राजधानी बैहिन्द (पेशावर के करीब )में महमूद व आनन्दपाल के बीच निर्णायक युद्ध हुआ ।महमूद के घुड़सवार धनुर्धरों के हमले ने शत्रुसेना को तितर-बितर कर दिया व जीत महमूद की हुई । महमूद ने स्वयं को बुतशिकन (मुर्तिभंजक )के रूप में भी प्रस्तुत किया ।
महमूद के कुछ आक्रमण
- नगरकौट – 1006 ई.
- थानेश्वर – 1012 -13 ई.
- मथुरा, कन्नौज पर – 1016 -18 ई.
महमूद ने सबसे साहसिक व प्रबल आक्रमण 1018 में कन्नौज एवं 1025 में सोमनाथ पर किए ।गुजरात पर आक्रमण के समय वहाँ का शासक भीम प्रथम था ।अन्तिम आक्रमण जाटों पर 1027 ई. । महमूद की मौत के सैल्जुकों के शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना हुई ।