बंगाल में ब्रिटिश शक्ति की स्थापना
बंगाल
मुगलकालीन बंगाल में आधुनिक पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, बिहार और उड़ीसा शामिल थे। बंगाल में डच, अंग्रेज व फ्रांसीसियों ने व्यापारिक कोठीयां स्थापित की थी जिनमें हुगली सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। 1651 ईस्वी में शाहशुजा से अनुमति लेकर इस इंडिया कंपनी ने बंगाल में हुगली में अपने प्रथम कारखाने की स्थापना की।
1670-17०० ईसवी के बीच बंगाल में अनधिकृत अंग्रेज व्यापारियों जिन्हें इंटरलाॅपर्स कहा जाता था,ने कंपनी नियंत्रण से मुक्त होकर व्यापार किया जो अंग्रेज और मुगलों के बीच संघर्ष का कारण बना।
जॉब चारनाक नामक एक अंग्रेज ने कालिकाता, गोविंदपुर और सूतानाती को मिलाकर आधुनिक कलकत्ता की नींव डाली। कोलकाता में 1700 ई. में फोर्ट विलियम की स्थापना की गई। फोर्ट विलियम का प्रथम गवर्नर चार्ल्स आयर को बनाया गया। इसी समय बंगाल को मद्रास से स्वतंत्र कर अलग प्रेसीडेंसी बना दिया गया।
बंगाल के नवाब
मुर्शीद कुली खां (1717 ई. से 1727 ई.)
बंगाल प्रांत, मुग़ल कालीन भारत का सबसे समृद्ध प्रांत था। औरंगजेब ने मुर्शीद कुली खाँ को बंगाल का दीवान नियुक्त किया था, लेकिन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर 1717 ई. में इसने स्वयं स्वतंत्र घोषित कर दिया।
1717 ई. में मुग़ल सम्राट फर्रूखसियर ने एक फरमान द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल में व्यापार करने की रियायत दे दीं। इस फरमान द्वारा बंगाल में 3000 रु. वार्षिक कर अदा करने पर कंपनी को उसके समस्त व्यापार में सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया गया। साथ ही कोलकाता के आसपास के 38 गांवों को खरीदने का अधिकार मिल गया।
फरूखसियर का यह फरमान अंग्रेजो के लिए तो मील का पत्थर साबित हुआ लेकिन बंगाल के नवाबों के लिए यह सिरदर्द बन गया।
अंग्रेजो ने इस विशेषाधिकार का दुरुपयोग शुरु किया, तो मुर्शीद कुली खाँ ने इसका विरोध किया। मुर्शीद कुली खाँ ने फरूखसियर द्वारा दिए गए फरमान का बंगाल में स्वतंत्र प्रयोग नियंत्रित करने का प्रयत्न किया। मुर्शीद कुली खाँ ने बंगाल की राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद स्थानांतरित किया।
1726 ई. में मुर्शीद कुली खाँ की मृत्यु के बाद उसके दामाद शुजाउद्दीन ने 1727 से 1739 तक बंगाल पर शासन किया। 1739 में शुजाउद्दीन की मृत्यु के बाद सरफराज खां ने सत्ता हथिया ली।
अलीवर्दी_खां
अलीवर्दी खां, सरफराज खां को गिरिया के युद्ध में पराजित कर 1740 में बंगाल का नवाब बना।
अली वर्दी खां ने यूरोपियों की तुलना मधुमक्खियों से की थी
और कहा था यदि उन्हें छेड़ा न जाए तो वे शहद देंगी और यदि छेड़ा जाए तो वे काट-काट कर मार डालेंगी।
सिराजु द्दौला
सिराजुद्दौला के शासनकाल में बंगाल अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की आपसी प्रतिद्वंदिता के कारण अशांत था।
फरूखसियर द्वारा प्रदान किये विशेष अधिकार फरमान का, कम्पनी के कर्मचारियों द्वारा दुरूपयोग से सिराजुद्दौला अंग्रेजों से नाराज था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने बंगाल में स्थान-स्थान पर किलेबंदी शुरू कर दी थी।
सिराजुद्दौला ने अंग्रेजो और फ्रांसीसियों को तत्काल किलेबंदी रोकने का आदेश दिया।
फ्रांसीसियों ने तो नवाब का आदेश मानकर किलेबंदी का काम रोक दिया किन्तु अंग्रेजो ने ऐसा नहीं किया। परिणामस्वरूप सिराजुद्दौला ने कासिम बाजार स्थित अंग्रेजो के किले पर आक्रमण कर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए बाध्य किया।
20 जून, 1756 को फोर्ट विलियम ने आत्मसमर्पण कर दिया कुछ शहर छोड कर फुल्टा द्वीप भाग गए। कहा जाता है कि 146 अंग्रेजों को 18 फुट लंबे तथा 14 फुट 10 इंच चौड़े एक कमरे मेँ बंद कर दिया गया था, जिसमें से सिर्फ 23 अंग्रेज ही बच पाए थे। जून, 1756 में घटी यह घटना इतिहास में ब्लैक होल के नाम से विख्यात है।
जनवरी 1757 में राबर्ट क्लाइव और एडमिरल वाटसन ने कोलकाता पर पुनः अधिकार कर लिया। फरवरी 1757 में अंग्रेजो और सिराजुद्दौला के बीच कोलकाता में एक संधि हुई, जिसे अलीनगर की संधि के नाम से जाना जाता है। इस संधि द्वारा अंग्रेजो ने बंगाल में किलेबंदी और सिक्के ढालने की अनुमति प्राप्त की। अलीनगर की संधि द्वारा अंग्रेज और आक्रामक हो गए।
मार्च 1757 में अंग्रेजो ने फ़्रांसिसी क्षेत्र चंद्रनगर पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजो ने सिराजुद्दौला के विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा जिसमें सिराजुद्दौला के सेनापति मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने का आश्वासन देकर शामिल किया गया था। अंग्रेजो की गतिविधियो से नाराज होकर सिराजुद्दौला युद्ध की तैयारी करने लगा।
23 जून 1757 को अंग्रेजो और सिराजुद्दौला की सेनाओं के बीच प्लासी नामक स्थान पर एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें सिराजुद्दौला की हार हुई।प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की सेना का नेतृत्व मीर जाफर, लतीफ खां, राय दुर्लभ, मीर मदान और मोहन लाल कर रहे थे।
इसमें मीरजाफर और राय दुर्लभ अंग्रेजो से मिले हुए थे। प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को बंदी बनाकर बाद में गोली मार दी गई।
मीर जाफर (1757 ई. से 1760 ई.)
प्लासी के युद्ध में विजय के बाद अंग्रेजो ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया। नवाब बनने के बाद मीर जाफर ने पुरस्कार स्वरूप अंग्रेजो को 24 परगना की जमींदारी प्रदान की। साथ ही कंपनी को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा में मुक्त व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया।
कालांतर में मीर जाफर के अंग्रेजो से संबंध खराब हो गए। इसका कारण प्रशासनिक कार्यों में अंग्रेजो का बढ़ता हस्तक्षेप था। अंग्रेजों की लूटपाट से तंग आकर मीर जाफर ने अक्टूबर 1760 में अपने दामाद मीर कासिम के पक्ष में सिंहासन त्याग दिया।
मीर कासिम (1760 ई. से 1763 ई.)
मीर कासिम ने नवाब बनने के बाद अंग्रेजो को मिदनापुर, बर्दवान तथा चटगांव के तीन जिले सौंप दिए। मीर कासिम ने राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित कर दिया। फरुखसियर के 1717 के फरमान के अनुसार कंपनी को पारगमन शुल्क से मुक्त कर दिया गया था। इस तरह की छूट कंपनी के कर्मचारियों के लिए नहीँ थी।
कंपनी के कर्मचारियों द्वारा इस फरमान का दुरुपयोग किया जा रहा था। मीर कासिम ने क्रुद्ध होकर भारतीय व्यापारियों के लिए भी चुंगी समाप्त कर दी। 1763 में मीर कासिम और अंग्रेजो के बीच कई युद्ध हुए, जिसमें अंततः पराजित हुआ और भाग गया।
मीर जाफर (1763 ई. से 1765 ई.)
मीर कासिम के बाद एक बार फिर मीरजाफर बंगाल के सिंहासन पर बैठा। मीर जाफर ने अंग्रेजो की सेना के रखरखाव के लिए बर्दवान, मिदनापुर और चटगांव प्रदान किए तथा बंगाल में उन्मुक्त व्यापार का अधिकार दिया।
1764 में मीरजाफर ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय को मिलाकर बक्सर नामक स्थान पर अंग्रेजो से युद्ध किया इस युद्ध में अंग्रेजो की विजय हुई।
बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल के गवर्नर लार्ड क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के साथ इलाहाबाद की संधि की। इलाहाबाद की संधि द्वारा मुग़ल सम्राट को कड़ा और इलाहाबाद का क्षेत्र मिला। मुग़ल सम्राट ने कंपनी को बंगाल बिहार की दीवानी का अधिकार दिया।
कंपनी ने उसके बदले 26 लाख रूपये मुग़ल सम्राट को देना स्वीकार किया। शुजाउद्दौला द्वारा कंपनी को युद्ध हर्जाने के रुप में 50 लाख रुपए चुकाने के बाद उसके क्षेत्र पर अधिकार कर लिया गया।
5 फरवरी 1765 को मीर जाफर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र नाजीमुद्दौला को बंगाल के नवाब बनाया गया।
द्वैध शासन (1765 ई. से 1772 ई.)
अंग्रेजों ने बंगाल में 1765 में द्वैध शासन की शुरुआत की, जो लगभग 1772 ई. तक चला। लियो कार्टिस को द्वैध शासन का जनक माना जाता है। द्वैध शासन के समय बंगाल से 1760-67 के बीच 2,24,67,500 रुपए की वसूली की गई।
इससे पूर्व राजस्व की वसूली मात्र 80 लाख थी। शासन के समय बंगाल में 1770 ई. में भयंकर अकाल पड़ा, जिसमें करीब एक करोड़ लोगों की भुखमरी के कारण मृत्यु हो गई। 1772 ई. में कोर्ट डायरेक्टर्स ने बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त करके प्रशासन का उत्तरदायित्व अपने अधिकार में लेने का आदेश जारी किया।
बंगाल का अंतिम नवाब मुबारक उद्दौला (1770 से 1775) था।
स्मरणीय तथ्य
- बंगाल में अंग्रेजी व्यापार की मुख्य वस्तुएं थीं – रेशम, सूती कपड़े, शोरा और चीनी।
- 1757 में कलकत्ता को जीतने के बाद सिराजुद्दौला ने उसका नाम अलीनगर रख दिया था।
- 1765-1772 तक बंगाल में चले द्वैध शासन को बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने समाप्त किया।
- द्वैध शासन के समय कंपनी ने दीवानी कार्यों के लिए राजा सिताब राय को बिहार तथा मोहम्मद रजा खाँ को बंगाल का नवाब दीवान नियुक्त किया।
- प्लासी के युद्ध में अंग्रेजो का सेनापति क्लाइव तथा नवाब का सेनापति मीरजाफर थे।
- फरवरी 1760 में क्लाइव कुछ महीने के लिए गवर्नर का दायित्व हॉलवेल को सौंप कर इंग्लैण्ड वापस चला गया।
- हॉलवेल ने मीरजाफर को पदच्युत करने की योजना बनाई।
- अल्फ्रेड लायल के अनुसार, “प्लासी में क्लाइव की सफलता ने बंगाल में युद्ध तथा राजनीति का एक अत्यंत विस्तृत क्षेत्र अंग्रेजों के लिए खोल दिया।“
- मुर्शिदाबाद में मीर जाफर को कर्नल क्लाइव का गीदड़ कहा जाता था।
- मीर जाफर के काल में ‘अंग्रेजो ने बांटो और राज करो’ की नीति को जन्म देते हुए एक गुट को दूसरे गुट से लड़ाने की शुरुआत की।
- बक्सर के युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो ने किया।
- पी. ई. रोबर्ट्स ने बक्सर के युद्ध के बारे में कहा था कि, “प्लासी की अपेक्षा बक्सर को भारत में अंग्रेजी प्रभुता की जन्मभूमि मानना कहीं उपयुक्त है।”
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