चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
राजगोपालाचारी
चक्रवर्ती राजगोपालचारी का जन्म मद्रास के थोरपल्ली गांव में 10 दिसंबर 1878 को हुआ था। भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे रोजगोपालचारी ‘राजाजी’ के नाम से भी जाने जाते हैं। राजगोपालाचारी वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे
राजगोपालचारी को कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के रूप में भी चुना गया था। अंतिम गवर्नर माउंटबेटन के बाद राजगोपालचारी स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर बने थे। (21 जून 1948 से 26 जनवरी 1950 तक)
अपने अद्भुत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ‘राजाजी’ के नाम से प्रसिद्ध महान् स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, गांधीवादी राजनीतिज्ञ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को आधुनिक भारत के इतिहास का ‘चाणक्य’ माना जाता है
राजगोपालाचारी जी की बुद्धि चातुर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण जवाहरलाल नेहरू,महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे अनेक उच्चकोटि के कांग्रेसी नेता भी उनकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे।
प्रसिद्ध राष्ट्रवादी बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और सालेम नगर पालिका के सदस्य और फिर अध्यक्ष चुने गए। वह भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सदस्य बन गए इसकी गतिविधियों और आंदोलनों में भाग लेने लगे। उन्होंने कांग्रेस के कलकत्ता (1906) और सूरत (1907) अधिवेसन में भाग लिया
सन 1917 में उन्होंने स्वाधीनता कार्यकर्ता पी. वर्दाराजुलू नायडू के पक्ष में अदालत में दलील दी। वर्दाराजुलू पर विद्रोह का मुकदमा लगाया गया था। वह एनी बेसेंट और सी. विजयराघव्चारियर जैसे नेताओं से बहुत प्रभावित थे। जब महात्मा गाँधी स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय हुए तब राजगोपालाचारी उनके अनुगामी बन गए।
उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और अपनी वकालत छोड़ दी। वर्ष 1921 में उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य चुना गया और वह कांग्रेस के महामंत्री भी रहे। सन 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेसन में उन्हें एक नयी पहचान मिली। उन्होंने ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1919’ के तहत अग्रेज़ी सरकार के साथ किसी भी सहयोग का विरोध किया और ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल’ के साथ-साथ राज्यों के ‘विधान परिषद्’ में प्रवेश का भी विरोध कर ‘अपरिवर्तनवादी ‘के नेता बन गए।
‘अपरिवर्तनवादियो’ ने ‘परिवर्तनवादियो’ को पराजित कर दिया जिसके फलस्वरूप मोतीलाल नेहरु और चितरंजन दास जैसे नेताओं ने इस्तीफा दे दिया।
मुख्यमंत्री सन 1937 में हुए काँसिलो के चुनावों में चक्रवर्ती के नेतृत्व में कांग्रेस ने मद्रास प्रांत में विजय प्राप्त की। उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बनाया गया। 1939 में ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच मतभेद के चलते कांग्रेस की सभी सरकारें भंग कर दी गयी थीं। चक्रवर्ती ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
राजगोपालाचारी का द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम दिनों में महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना के बीच बातचीत शुरू कराने में अहम योगदान रहा था। राजगोपालाचारी ने पाकिस्तान की मांग करने वाले जिन्ना और मुस्लिम लीग से बातचीत का मार्ग बनाया था जिसे ‘सी आर फॉर्म्युला’ के नाम से भी जाना जाता है।
उन्होंने राजनीतिक समस्याओं के साथ-साथ सांस्कृतिक विषयों पर भी लेखन किया। रामायण(अग्रेजी) , महाभारत(अंग्रेजी) और गीता का अनुवाद अपने ढंग से किया। कई मौलिक कहानियां लिखने के साथ ही उन्होंने कुछ दिनों तक महात्मा गांधी के ‘ यंग इंडिया ’ का संपादन भी किया। साहित्य अकादमी (तमिल) द्वारा उन्हें पुस्तक ‘चक्रवर्ती थिरुमगम्’ पर सम्मान भी मिला।
राज्यपाल:- 1946 में देश की अंतरिम सरकार बनी। उन्हें केन्द्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया। 1947 में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
1950 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में इन्हें गृहमंत्री भी बनाया गया। 1952 में राजगोपालचारी ने मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में थपथ ली।
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर बाद तक देश की सेवा करने के लिए इन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार भारत रत्न 1954 में दिया गया। भारत रत्न पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे
कांग्रेस से अलग होकर इन्होंने अपनी एक अलग पार्टी बनाई, जिसका नाम ‘एंटी कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी‘ रखा गया। इन्होंने संस्कृत ग्रंथ ‘रामायण‘ का तमिल में अनुवाद किया। अपने कारावास के समय के बारे में उन्होंने ‘मेडिटेशन इन जेल‘ के नाम से किताब भी लिखी।
28 दिसम्बर 1972 को इनका निधन हो गया।