Public distribution system
Public distribution system (सार्वजनिक वितरण प्रणाली)
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act 2013)
हमारे खाद्य सुरक्षा उपायों में और अधिक सुधार लाने के लिए प्रमुख नीतिगत उपायों के रूप में, सरकार ने “10 सितंबर, 2013 को “”राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013″” (NFSA ) लागू” किया गया| इस अधिनियम में लोगों के अनाज और पोषक आहार सुरक्षा का प्रावधान किया गया है, इसके लिए लोगों को किफायती मूल्य पर बेहतर खाद्यान्न की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित की गई है ताकि वे समान्नपूर्वक जीवन जी सकें|
इस अधिनियम द्वारा खाद्य सुरक्षा के बारे में नजरिये को पूरी तरह बदल दिया है, अब यह कल्याणकारी कार्यकलाप की बजाय “लोगों का अधिकार” बन गया है| इस अधिनियम के तहत 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से रियायती मूल्य पर अनाज करने का प्रावधान है और इस तरह यह “देश की लगभग दो-तिहाई आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करता है|
पात्र व्यक्ति क्रमशः तीन, दो और एक रुपये की रियायती दरों पर चावल, गेहूं और मोटे अनाज के तौर पर प्रतिमाह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अनाज प्राप्त करने का हकदार होगा| अंत्योदय अन्न योजना में शामिल मौजूदा निर्धनतम परिवार प्रतिमाह प्रति परिवार 35 किलोग्राम अनाज प्राप्त करते रहेंगे|
Public distribution system
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public distribution system)
एक भारतीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली है। भारत में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन तथा भारत सरकार द्वारा स्थापित और राज्य सरकारों के साथ संयुक्त रूप भारत के गरीबों के लिए सब्सिडी वाले खाद्य और गैर खाद्य वस्तुओं वितरित करता है।
यह योजना एक जून को भारत में लॉन्च की गयी थी। 1997 में वस्तुओं,मुख्य भोजन में अनाज, गेहूं, चावल, चीनी, और मिट्टी का तेल को उचित मूल्य की दुकानों( जिन्हें राशन की दुकानों के रूप में भी जाना जाता है) के एक नेटवर्क जो देश भर में कई राज्यों में स्थापित है के माध्यम से वितरित किया गया।
भारतीय खाद्य निगम, जो एक सरकारी स्वामित्व वाली निगम है, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को संभालती है। कवरेज और सार्वजनिक व्यय में, यह सबसे महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा नेटवर्क माना जाता है। हालांकि, खाद्य राशन की दुकानों द्वारा जितना अनाज वितरित किया जाता है वह गरीबों की खपत जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं या घटिया गुणवत्ता का है।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अनाज की खपत का औसत स्तर प्रति व्यक्ति / माह केवल 1 किलो है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा शहरी पक्षपात और प्रभावी ढंग से आबादी के गरीब वर्गों की सेवा में अपनी विफलता के लिए आलोचना की गई है।
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली महंगी है और इसकी जटिल प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को जन्म देती है। आज भारत के पास चीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा अनाज स्टॉक है, जिस पर सरकार 750 अरब रूपये (13.6 अरब $) प्रति वर्ष खर्च करती है। जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1 प्रतिशत है तब भी अभी तक 21% कुपोषित हैं।
- देश भर में गरीब लोगों को राज्य सरकारों द्वारा खाद्यान्न का वितरण किया जाता है के लिए।
- आज की तारीख में भारत में 5,00,000 उचित मूल्य की दुकानों (एफपीएस) हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के उद्देश्य (Purpose of Public Distribution System)
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का मूल उद्देश्य उपभोक्ताओं को सस्ते और रियायती कीमतों पर आवश्यक उपभोग की वस्तुएं प्रदान करना है तांकि उन्हें वस्तुओं की बढती हुई कीमतों के प्रभाव से बचाया जा सके और जनसंख्या के न्यूनतम पोषण की स्थिति को भी बनाए रखा जा सके।
इस प्रणाली को चलाने के लिए सरकार खरीद मूल्य पर व्यापारियों/ मिलों और उत्पादकों के साथ बाजार का एक बिक्री योग्य अधिशेष खरीद लेती है। इस प्रकार अनाज (मुख्यत: गेहूं और चावल) को खरीदकर इसे ग्राहकों में वितरित करने के लिए उचित राशन दुकानों और / या बफर स्टॉक के एक नेटवर्क के माध्यम से उपभोक्ताओं को वितरित किया जाता है।
खाद्यान्न के अलावा, भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में खाद्य तेल, चीनी, कोयला, मिट्टी के तेल और कपड़े का भी वितरण किया जाता है।भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में वितरित की जाने वाली वस्तुओं में सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएं चावल, गेहूं, चीनी और मिट्टी का तेल है। भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरी आबादी को कवर करती है, जिसका यह अर्थ नहीं है कि इसका प्रत्यक्ष लक्ष्य कामकाजी लोग हैं।
राशन कार्ड उन सभी लोगों को जारी किए जाते हैं जिनके पास विश्वसनीय आवासीय पता हो। पीडीएस का सालाना व्यय लगभग तीस हजार करोड़ रुपये से अधिक का है जिसमें लगभग 160 लाख परिवार आते हैं और यह शायद दुनिया में अपनी तरह की वितरण वाला सबसे बड़ा नेटवर्क है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने वाली मुख्य एजेंसी “भारतीय खाद्य निगम (FCI)” की स्थापना 1965 में हुई थी निगम का प्राथमिक कार्य अनाजों और अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद, ब्रिकी, भंडारण, आंदोलन, सप्लाई, वितरण करना है।
इसका मुख्य मकसद सुनिश्चत कराना है कि एक तरफ किसान को उसकी उपज का सही मूल्य मिल सके है और दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को भारत सरकार द्वारा तयशुदा कीमतों पर केंद्रीय मूल्यों पर खाद्यान्न मिल सके।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कमियां लिखिए
कुछ आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार भारत की यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली, वस्तुओं की कीमतों में उछाल का प्रमुख कारण है क्योंकि सरकार द्वारा खाद्यान्न की बड़ी खरीद खुले बाज़ार में इसकी उपलब्धता को कम कर देती है।
इस प्रणाली के लाभों का वितरण देश में समरूप नहीं है। इसमें क्षेत्रीय विषमताएँ विद्यमान हैं। जैसे दक्षिण के राज्यों ने अपनी गरीब आबादी के एक बड़े हिस्से को इसका लाभ पहुँचाने में सफलता पाई जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में गरीबों की एक बड़ी आबादी इसके लाभों से वंचित रह गई।
भारतीय खाद्य निगम के संचालन में भी खामियाँ हैं। शांता कुमार समिति ने निगम की प्रचालनात्मक कुशलता और वित्तीय प्रबंधन हेतु कई सुझाव दिये थे, परंतु उन पर कोई उल्लेखनीय कदम अब तक नहीं उठाया गया है।लीकेज इस प्रणाली की एक और बड़ी समस्या रही है। इसमें खाद्यान्न हितग्राहियों तक न पहुँचकर सीधे खुले बाज़ार में पहुँचता है।