मौद्रिक नीति
मौद्रिक नीति सरकार तथा देश के केंद्रीय बैंक की उस नियंत्रण नीति को कहा जाता है जिसके अंतर्गत मुद्रा के मूल्य में स्थायित्व लाने एवं अन्य कुछ निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मुद्रा एवं साख की मात्रा, उसकी लागत (अथार्थ ब्याज दर) तथा उसके उपयोग को नियंत्रित करने के उपाय किए जाते हैं|
देश का केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) मुद्रा बाजार में संतुलन स्थापित करने हेतु प्रायः मुद्रा आपूर्ति को एक उपकरण के रूप में प्रयुक्त करता है, अथवा बाजार ब्याज दर को प्रभावित करने के लिए अपनाता है| केंद्रीय बैंक की इसी नीति को जिससे वह देश के मुद्रा बाजार में संतुलन स्थापित करने अथवा बाजार ब्याज दर को प्रभावित करने (अर्थव्यवस्था में संवृद्धि तथा स्थिरता लाने हेतु) हेतु अपनाता है, “मौद्रिक नीति” कहते हैं| यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की जाती है
संक्षिप्त शब्दों में कहें तो मौद्रिक नीति से अभिप्राय केंद्रीय बैंक की साख नियंत्रण नीति से हैं
पॉल एनजिग के अनुसार- “मौद्रिक नीति में वे सब मौद्रिक निर्णय तथा उपाय, जिनके उद्देश्य मौद्रिक हों अथवा अमौद्रिक तथा वे सब मौद्रिक निर्णय एवं उपाय जिनका उद्देश्य मौद्रिक प्रणाली पर प्रभाव डालना होता है, सम्मिलित होते हैं।”
जी. के. शॉ के शब्दों में “मौद्रिक नीति से हमारा अभिप्राय उन सोच-विचारकर की जाने वाली क्रियाओं से हैं, जो मौद्रिक अधिकारियों द्वारा मुद्रा की लागत या उपलब्धता या मात्रा में परिवर्तन के लिए की जाती है|
डी.सी. अस्टन के अनुसार “मौद्रिक नीति का संबंध ब्याज की दर तथा साख की उपलब्धि को नियंत्रित कर कुल मांग के स्तर तथा संरचना को प्रभावित करने से हैं|
किन्स के विचार में मंदी एवं स्फिति दोनों दशाओं के नियंत्रण में राजकोषीय नीति अधिक प्रभावी होती है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मौद्रिक नीति के अंतर्गत मुद्रा की मात्रा तथा लागत आदि को प्रभावित करने वाले उपायों के अतिरिक्त ऐसी अमौद्रिक नीतियां एवं उपाय भी सम्मिलित किए जाते हैं जिनका प्रभाव देश में मौद्रिक स्थिति पर पड़ता है|
मौद्रिक नीति के उद्देश्य ( Objectives of Monetary Policy )
मौद्रिक नीति एक महत्वपूर्ण साधन है जिसकी सहायता से समस्टिपरक आर्थिक नीति के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है| यह उल्लेखनीय है कि किसी देश में मौद्रिक नीति का निर्माण तथा कार्यान्वयन देश का केंद्रीय बैंक करता है|
भारत जैसे कुछ देशों में केंद्रीय बैंक (भारत का केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक हैं) सरकार की और से कार्य करता है तथा उसके आदेशों तथा वृहत दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करता है| राजकोषीय नीति के समान ही मौद्रिक नीति का भी वृहत उद्देश्य उत्पादन के पूर्ण रोजगार स्तर पर साम्य की स्थापना करना तथा अर्थव्यवस्था में कीमत स्थिरता को सुनिश्चित करना है| .
मौद्रिक नीति समग्र मांग के स्तर को प्रभावित करके पूर्ण रोजगार अथवा संभावी उत्पादन स्तर पर अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने के उद्देश्य से मुद्रा की पूर्ति तथा ब्याज दर में परिवर्तन करने से संबंधित होती है|
अधिक स्पष्ट रूप से,, मंदी के समय मौद्रिक नीति के अंतर्गत कुछ ऐसे मौद्रिक उपायों को अपनाया जाता है जो मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करते हैं तथा ब्याज दर में कमी करते हैं ताकि अर्थव्यवस्था में समग्र मांग प्रोत्साहित हो एवं मंदी की स्थिति से उबरा जा सके|
इसके विपरीत मुद्रास्फीति के समय मौद्रिक नीति मुद्रा की पूर्ति को कठोरता से नियंत्रित करके तथा ब्याज दरों में वृद्धि को समग्र व्यय को कम करने का प्रयास करती है, ताकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सके|
इस प्रकार विकासशील देशों के लिए मौद्रिक नीति के निम्नलिखित तीन महत्वपूर्ण उद्देश्य होते हैं——-
- पूर्ण रोजगार या उत्पादन के संभावी स्तर पर आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करना|
- मुद्रास्फीति तथा मुद्रा अपस्फीति को नियंत्रित करके कीमत स्थिरता प्राप्त करना|
- अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना|
मौद्रिक नीति के उपरोक्त लक्ष्यों का समर्थन करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक की “”मौद्रिक नीति का लक्ष्य कीमत स्थिरता के साथ विकास होता है”|
कुछ विशेष दरें ( Some special rates )
रेपो रेट ( Repo rate )
- बैंक, केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेने का विकल्प अपनाते हैं।
- इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।
- रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और तब ही बैंक ब्याज दरों में भी कमी करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके।
रिवर्स रेपो दर (Reverse repo rate )
- रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट से उल्टा होता है।
- बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है।
- बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है।
- जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।
कैश रिजर्व रेशियो (Cash Reserve Ratio – CRR )
- मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान अक्सर इस पर भी कॉल ली जाती है।
- यहां बता दें कि सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें।
- इसे नकद आरक्षी अनुपात यानी कि कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) कहते हैं।
- ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।
स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो (Statutory Liquidity Ratio – SLR )
- एसएलआर यानी, स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो।
- वाणिज्यिक बैंकों के लिए अपने प्रतिदिन के कारोबार के आखिर में नकद, सोना और सरकारी सिक्यॉरिटीज में निवेश के रूप में एक निश्चित रकम रिजर्व बैंक के पास रखनी जरूरी होता है।
- इस रकम का इस्तेमाल किसी भी आपात देनदारी को पूरा करने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- अब वह रेट जिस पर बैंक यह पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे ही एसएलआर कहते हैं।
- इसके तहत अपनी कुल देनदारी के अनुपात में सोना आरबीआई के पास रखना होता है।
मौद्रिक नीति की वर्तमान दर ( Current rate of monetary policy )
मार्च 2018
- Repo Rate(रेपो रेट)- 6.00%
- Reverse Repo Rate(रिवर्स रेपो रेट)- 5.75%
- Marginal Standing Facility Rate (मार्जिनल स्टैंडिग फैसिलिटी) – 6.25%*
- Bank Rate – 6.25%
- Reserve Ratio(आरक्षित अनुपात)
- CRR(नकद आरक्षित अनुपात) – 4%
- SLR (वैधानिक तरल कोषानुपात) – 19.5%
- Lending / Deposit Rates Base Rate(बेस रेट)- 8.70% – 9.45%
Monetary Policy Important Facts-
- मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में तरलता तथा साख की उपलब्धता, निवेश ,मूल्य स्तर, रोजगार तथा उत्पादन को प्रभावित कर सकती है ।
- साख नियंत्रण मौद्रिक नीति का एक महत्वपूर्ण भाग है
- मुद्रा और साख की पूर्ति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए जो नीति अपनाई जाती है उसे मौद्रिक नीति कहा जाता है।
- स्वर्णमान में विनिमय दर में स्थिरता बनाए रखना मौद्रिक नीति का प्रमुख उद्देश्य था।
- तटस्थ मुद्रा का विचार सर्वप्रथम विक्सटिड ने प्रस्तुतकिया तथा हायक तथा रॉबर्टसन ने इस विचार का समर्थन किया।
- मौद्रिक नीति के विभिन्न उद्देश्य एक दूसरे के पूरक न होकर परस्पर विरोधी हैं ,जिनमें सामंजस्य बनाकर ही वांछित उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।
- आर्थिक विकास और कीमत स्थिरता के उद्देश्यों में विरोधाभास है। आर्थिक विकास में कीमतों की वृद्धि आवश्यक रूप से होती है।
- मौद्रिक नीति का अर्थ केंद्रीय बैंक का मुद्रा की पूर्ति पर नियंत्रण करना है।
- गुणात्मक साधनों में चयनात्मक साख नियंत्रण का मुख्य रूप से समावेश होता है, जो विशिष्ट प्रकार की साख को नियंत्रित करते हैं
- मौद्रिक नीति द्वारा मांग प्रेरित मुद्रा प्रसार को ही नियंत्रित किया जा सकता है लागत प्रेरित मुद्रा प्रसार को नहीं ।
SBI का इतिहास
(1) बैंक ऑफ बंगाल 1806 (2) Bank Of मुंबई 1840 (3) बैंक ऑफ मद्रास 1843 उपरोक्त तीनों प्रेसीडेंसी बैंक कहलाती थी
1921 ईस्वी में उपयुक्त तीनों बैंक का विलय करके इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया नाम दिया गया। 1955 ईस्वी में इनका आशिक राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और नया नाम SBI (स्टेट बैंक ऑफ इंडिया) दिया गया 1959 ईस्वी रियासती बैंकों को SBI सहायक बैंक नाम दिया गया।
1961 ईस्वी बीकानेर जयपुर बैंक को मिला दिया गया= SBBJ, 2008 में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र का एसबीआई में विलय कर दिया गया। 2010 ईस्वी में बैंक ऑफ इंदौर को एसबीआई में विलय कर दिया गया। 2008 में SBI को भारत सरकार ने आरबीआई से खरीद लिया।
राष्ट्रीयकृत बैंक ( Nationalized bank )
1969 में इंदिरा गांधी सरकार ने 14 सबसे बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया, जिनकी पूंजी 50 करोड़ या उससे अधिक थी। 1980 में छह अन्य बैंकों का इंदिरा सरकार ने राष्ट्रीयकरण किया जिनकी पूंजी 200 करोड़ या इससे अधिक थी। 1993 न्यू बैंक ऑफ इंडिया का विलय PNB में किया गया। वर्तमान में राष्ट्रीयकृत बैंक 19 है।
नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) बैंक की स्थापना 1982 में हुई।
सहकारिता बैंक ( Co-operative bank )
इसे समझने के लिए दो भागों में विभाजित कर रहा हु
1.वाणिज्य बैंक
संसदीय अधिनियम के द्वारा स्थापना होती है। यह बैंक एक स्तरीय ढांचा होता है। इनका कार्य क्षेत्र निर्धारित नहीं होता है। शीर्ष संस्था RBI है।
2. सहकारी बैंक
राज्य विधानसभा के द्वारा पारित अधिनियम से स्थापना। त्रिस्तरीय ढांचा होता है—-
- राज्य, APEX BANK
- जिला स्तर-केंद्रीय बैंक
- ग्रामपंचायत–सहकारी समिति
इनका कार्य क्षेत्र निर्धारित होता है. संस्था नाबार्ड हैं|
3.अनुसूचित बैंक
वह बैंक जिनका उल्लेख आरबीआई अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची में किया गया है। अनुसूचित बैंक चेक बुक जारी कर सकता है।आरबीआई से किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता ले सकता है। RBI के सभी नियमों का पालन होता है। इस बैंक को स्थापित करने के लिए 500 करोड़ की पूंजी आवश्यक है।
4. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ( Regional rural bank – RRB )
इनकी स्थापना 2 अक्टूबर 1975 को की गई। इनका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा उपलब्ध करवाना है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार व वाणिज्यिक बैंक की सहायता से स्थापना होती है।
हिस्सेदारी वर्तमान, प्रारम्भिक
गोवा व सिक्किम में एक-एक बैंक की स्थापना की गई। कालांतर में “200 RRB” की स्थापना हुई। सिक्किम व गोवा में RRB नहीं है।
इनका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाना हैं। लेकिन अधिकांश आरआरबी घाटे में चल रही थी अतः इनका विलय “कमर्शियल बैंकों” में कर दिया।
NOTE
यूनिवर्सल बैंकिंग- वह बैंक जो अपने ग्राहकों को वित्तीय सहायता के अलावा भी अन्य सहायता उपलब्ध करवाती हो जैसे विपणन, तकनीकी, प्रबंधन क्षेत्र आदि|
नैरो बैंक- ऐसा बैंक जो केवल सुरक्षित क्षेत्र में ही निवेश करता हो, उसे RRB की मान्यता प्रदान करना!