बजट निर्माण‘ का अर्थ है- बजट अनुमानों का, अर्थात प्रत्येक वित्त वर्ष के संबंध में भारत सरकार के व्यय और प्राप्तियों (आय) के अनुमानों का विवरण तैयार करना । … दूसरे शब्दों में, बजट में योजना की प्राथमिकताओं को सम्मिलित कराने के लिए वित्त मंत्रालय योजना आयोग से निकट संपर्क बनाए रखता है ।
बजट निर्माण
बजट का तात्पर्य किसी अर्थव्यवस्था के अनुमानित खर्चों और प्राप्तियों के विवरण से है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में वार्षिक वित्तीय विवरण का उल्लेख है। इसके अनुसार राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में भारत सरकार के लिये उस अवधि हेतु प्राक्कलित प्राप्तियों और व्ययों का विवरण रखवाएंगे।
बजट का संबंध एक वित्तीय वर्ष होता है, जो 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है ।
केंद्रीय, राज्य स्थानीय सरकार प्रत्येक स्तर पर बजट तैयार करती है । इस लोक कल्याण के लिए सरकार की व्यापक नीतियों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है ।
इस प्रकार सरकार के बजट की 3 विशेषताएं है –
- यह सरकार के अनुमानित व्यय और राजस्व के स्रोतों का समेकित वितीय है ।
- यह वित्तीय वर्ष से संबंधित है ।
- व्ययों एवं सरकार के राजस्व के स्रोतों की योजना सरकार की घोषित नीति उद्देश्य के अनुसार बनाई जाती है ।
वित्तमंत्री संसद में बजट प्रस्ताव रखते हुए विभिन्न तरह के कर और शुल्क के माध्यम से होने वाली आमदनी और योजनाओं व अन्य तरह के खर्चों का लेखा पेश करते हैं,उसे आमतौर पर बजट_आकलन कहा जाता है।
बजट का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। इसके निर्माण से संबंधित सिद्धांतों को निम्न रूप में देखा जा सकता है-
1. वार्षिकी का सिद्धांत ( Theory of annuity )
इसका तात्पर्य है कि बजट प्रत्येक वर्ष तैयार किया जाना चाहिए। एक वर्ष बजट के लिये आदर्श समय माना जाता है क्योंकि वह एक इष्टतम समय है जो विधायिका द्वारा कार्यपालिका को दिया जाता है। इसके अलावा कार्यपालिका को भी बजट के प्रस्तावों को प्रभावी रूप से क्रियान्वन के लिये पर्याप्त समय मिल जाता है।
2. विलय अथवा समाप्त हो जाने का नियम ( Rule of merger or expiration )
वार्षिकता का सिद्धांत यही दर्शाता है कि एक वर्ष के लिये आवंटित धन को निर्धारित समय अवधि में नहीं खत्म किया जा सका तो उसे सरकार के लिये अनुपलब्ध समझा जाए, जब तक की सरकार द्वारा इसे पुनः अगले वर्ष के लिये आवंटित नहीं किया जाता। इससे सरकार समयबद्ध रुप से आवंटित धन का प्रयोग करने के लिये प्रेरित होती है और योजनाओं का क्रियान्वयन उचित समय पर हो पाता है। इस प्रकार यह_बजट नियंत्रण का एक प्रभावी उपकरण है।
3. राजकोषीय अनुशासन ( fiscal discipline )
इसका तात्पर्य यह है कि आय तथा व्यय की दृष्टि से बजट संतुलित होना चाहिए। आय से अधिक व्यय करने पर वित्तीय घाटा बढ़ता है जिससे देश की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। वही आय से कम खर्च किये जाने पर बजट_का इष्टतम प्रयोग नहीं हो पाता। राजकोषीय अनुशासन वित्तीय घाटों को समाप्त करने के साथ-साथ वित्तीय अधिशेष को समायोजित करने में भी मदद करता है।
4. समावेशिता ( Inclusiveness )
बजट व्यापक होना चाहिए और इसमें विभिन्न_बजट अनुमानों का समावेश होना चाहिये। एक समावेशी बजट में सरकार के सभी राजस्व और व्यय का लेखा-जोखा शामिल होता है जो व्यापार तथा अन्य आर्थिक गतिविधियों के मूल्यांकन में सहायक होता है। एक समावेशी बजट_समाज के असुरक्षित समूह के लिये पर्याप्त धन आवंटित कराकर सामाजिक कल्याण को भी प्रोत्साहित करता है।
5. सटीकता ( ACCURACY )
बजट में आने वाले वर्ष की प्राप्तियों तथा खर्चों का अनुमान लगाकर उसके अनुसार धन का आवंटन किया जाता है। सटीकता का तात्पर्य इस बात से है कि ये अनुमान वास्तव में कितने सही होते हैं। बजट_अनुमानों की सटीकता सरकारी योजनाओं की प्रभाविता के लिये आवश्यक है।
6. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व ( Transparency & Accountability )
पारदर्शिता और उत्तरदायित्व संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित सुशासन के 8 संकेतकों में शामिल किये गए हैं। इसका तात्पर्य है कि सरकार बजट_के आँकड़ों को सार्वजनिक करेगी। पारदर्शिता के लिये बजट_के राजस्व और पूंजी खाते को अलग-अलग कर दिखाया जाता है। भारत में संसद के माध्यम से बजट के उत्तरदायित्व को सुनिश्चित किया जाता है।
बजट_निर्माण के इन सिद्धांतों का पालन करके एक अच्छे बजट_का निर्माण किया जा सकता है।
Budget ( बजट )
बजट दो प्रकार के होते हैं—
राजस्व बजट (Revenue budget) और पूंजी बजट (capital budget)।
राजस्व बजट ( Revenue budget )
में सरकार के नियमित खर्चों (regular expenses) का आकलन (estimation) किया जाता है, जैसे कि कर्मचारियों का वेतन, रेलों का संचालन, सुरक्षा खर्चे, दूतावास खर्चे (embassy expenses) रक्षा तैयारियां वगैरह। loans पर ब्याज का Payment भी राजस्व खर्च (revenue expenditure) में शामिल किया जाता है।
सरकार इन खर्चों को taxes से इकट्ठा करती है। taxes से जो आमदनी होती है, उसे उस साल के सरकारी खर्चों में लगाया जाता है। सरकार को चलाने के लिए revenue budget आवश्यक होता है।
ऐसे खर्चे, जो परिसंपत्तियों (assets) का निर्माण नहीं करते, उन्हें राजस्व खर्च (revenue expenditure) कहा जाता है। केंद्र सरकार (union government) राज्य सरकारों (states) या अन्य पक्षों को जो अनुदान (grant) देती है, वह भी राजस्व खर्चों (revenue expenditure) में ही आता है। हालांकि इनसे कुछ मात्रा में परिसंपत्तियों (assets) का निर्माण भी होता है।
पूंजी बजट ( capital budget )
capital budget का उपयोग राष्ट्र निर्माण nation-building के लिए होता है। इस बजट के तहत सरकार दीर्घकालिक बुनियादी परियोजनाओं (long-term infrastructure projects) का हिसाब लगाती है। जैसे कि सड़कें, रेल मार्ग, Power grid, बांध (dams), Broadband cables वगैरह।
इन projects पर जो investment होते हैं, उन्हें पूंजी व्यय (capital expenditure) कहते हैं। इनके अलावा शेयरों, कंपनियों, loans वगैरह पर होने वाला investment भी capital expenditure के तहत होता है। इन पूंजीगत खर्चों (capital expenditure) के लिए धन की व्यवस्था सरकार या तो पूंजी संपत्तियां (capital asset) को बेचकर करती है, या फिर उधार (borrowings) लेकर।
सरकार सामान्य जनता से Bonds के माध्यम से बड़ी मात्रा में पैसा एकत्र करती है। यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (financial institutions) जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्वबैंक (world bank) एशियाई विकास बैंक (ADB) वगैरह से भी पैसा उधार लेती है।
जीरो बेस बजट ( Zero base budget )
जीरो बेस बजट के प्रवर्तन का श्रेय अमेरिका के piter A payr 1969 को जाता है जबकि इसके विकास का श्रेय ब्रिटिश अर्थशास्त्री हिल्टन यंग को जाता है यह बजट खर्चों पर अंकुश लगाने का एक बेहतर तरीका है इस बजट को सर्वप्रथम अमेरिका के जॉर्जिया प्रांत में बनाया गया था
इसके अंतर्गत पूर्व में किए गए समस्त हुए को ध्यान में नहीं रखा जाता बल्कि इस बात को ध्यान रखा जाता है कि आगे आने वाले कार्यों के लिए वह किए जाएं लेने के जाने वाले तार्किक मदो धनराशि का ध्यान रखा जाता है जीरो बेस बजट को (सूर्यास्त बजट प्रणाली )सनसेट बजट सिस्टम भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि वित्तीय वर्ष के सूर्यास्त से पूर्व प्रत्येक विभाग को एक शून्य आधारित बजट प्रस्तुत करना होता है जिसमें उसके प्रत्येक क्रियाकलाप और उपलब्धियों का लेखा-जोखा रहता है
जीरो बेस बजट के नंबर लिखित विशेषताएं
- यह निचली वरीयता के कार्यक्रमों को घटाता या न्यूनतम कर देता है
- यह कार्यक्रम की प्रभावशीलता को बढ़ा देता है
- इसेमैं कर वर्दी में कमी आती है
- इस में अधिक प्रभावी कार्यक्रमों को अधिक धन मिलता है
- यह योजनाओं की आलोचनात्मक समीक्षा को आसान बनाता है
- बजट की तैयारी में यह संबंध कार्मिकों की भागीदारी को बढ़ाता है
- इसमें वर्ष के दौरान बजट समायोजन शीघ्र होता है
IMP FACTS- भारत में जीरो बेस बजटिंग प्रणाली की शुरुआत सीएसआईआर CSIR द्वारा की गई थी
अंतरिम बजट या वोट आॅन अकाउंट ( Interim budget or vote and account )
जब सरकार, अपना अगला वित्तीय वर्ष (financial year), पूरा करने की स्थिति में, नहीं होती तो यह अपना पूर्ण बजट (full budget) पेश नहीं करती। इसकी बजाय, वह अल्पकालिक बजट (shorter period) पेश करती है। इस अल्पकालिक बजट (shorter period) के प्रावधान ( provision) तब तक के लिए लागू होते हैं, जबतक कि अगली सरकार, अपना पूर्ण बजट (full budget) पेश नहीं करती। इसे अंतरिम बजट (interim budget) कहते हैं।
पूर्ण बजट की तरह, अंतरिम बजट (interim budget) में भी अगले कुछ महीनों के लिए कमाई और खर्चों का estimate होता है।अंतरिम बजट के बाद 6 महीने के अंदर पूर्ण बजट पेश कर दिया जाना चाहिए। इसलिए अंतरिम बजट 6 महीनों से ज्यादा का नहीं होता।सरकार, अंतरिम बजट में, लोगों को लुभाने वाली कल्याणकारी योजनाओं (populist welfare schemes) की घोषणा नहीं कर सकती। चुनाव आयोग का इस संबंध में स्पष्ट निर्देश है।
पूरक बजट ( Supplementary budget )
कभी-कभी सरकार का बनाया बजट भी बिगड़ जाता है। साल पूरा होने से पहले ही पैसा कम पड़ जाता है या फिर कुछ नए खर्चे निकल आते हैं। ऐसे में सरकार को अतिरिक्त पैसे की जरूरत होती है। लेकिन संसद की इजाजत के बगैर सरकार एक रुपया भी अतिरिक्त नहीं खर्च कर सकती है। ऐसे में सरकार को पूरक बजट (Supplementary Budget) लाना पड़ता है।
जब सरकार अतिरिक्त खर्च (Additional expense) के लिए वक्त से पहले छोटा बजट पेश करती है तो उसे पूरक बजट या पूरक अनुदान मांग (supplementary grants) कहा जाता है। इस बजट की प्रक्रिया भी कमोबेश आम बजट (General Budget) जैसी ही होती है।
बजट निर्माण व विधेयक ( Budget creation and bill )
1. वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक ( Finance bill and appropriation bill )
वित्त विधेयक
हर साल जब बजट आता है तो जरूरतों के हिसाब से सरकार टैक्स की दरों (tax rates) में कुछ ना कुछ बदलाव करती है। अब इन बदलावों को लागू करने के लिए कानून में बदलाव करना पड़ता है। लेकिन कानून में बदलाव तभी हो पाता है जब सरकार संसद से विधेयक (bill )पास कराए। और इसीलिए हर साल के बजट को वित्त विधेयक (finance bill) के तौर पर पेश किया जाता है।
वित्त विधेयक में कर ढांचे (tax structure) में बदलाव और दूसरे नियमों में बदलाव दर्ज होते हैं। संसद इन बदलावों को जब पास करती है तभी बजट के नए proposals लागू होते हैं।
संसद को 75 दिन के अंदर finance bill पास करना होता है। हालांकि ये पूरी प्रक्रिया उसके काफी पहले ही पूरी हो जाती है। 2017 से सरकार 31 मार्च के पहले वित्त विधेयक को पास करा लेती है। इससे नए वित्त विर्ष नए बजट के प्रस्ताव लागू हो जाते हैं।
विनियोग विधेयक
विनियोग विधेयक का सीधा अर्थ यह है कि तमाम तरह के उपायों के बावजूद सरकारी खर्चे पूरे करने के लिए सरकार की कमाई नाकाफी है और सरकार को इस मद के खर्चे पूरे करने के लिए संचित निधि से धन की जरूरत है। एक तरह से वित्तमंत्री इस विधेयक के माध्यम से संसद से संचित निधि से धन निकालने की अनुमति मांगते हैं।
सरकार को बजट के सिलसिले में विनियोग विधेयक (appropriation bill) भी लाना पड़ता है। क्योंकि बिना संसद के इजाजत के सरकार, समेकित निधि (Consolidated fund of India) से कुछ भी खर्च नहीं कर सकती है। इसलिए इस पैसे का इस्तेमाल करने के लिए विनियोग विधेयक लाना पड़ता है।
राजस्व सरप्लस
यदि राजस्व प्राप्तियां राजस्व खर्च से अधिक हैं,तो यह अंतर राजस्व सरप्लस की श्रेणी में होगा।
बजट पास कराना जरूरी ( Need to pass budget )
आमतौर पर हर विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनो से पास कराना होता है उसके बाद हो कोई विधेयक law बन पाता है। लेकिन पैसे-कौड़ी के मामले में इससे छूट दी गई है ताकि लोकसभा और राज्यसभा की अलग राय होने पर देश का system ठप ना हो जाए। अभी कुछ दिन पहले ऐसे ही टकराव के चलते अमेरिका की सरकार कुछ दिनों के लिए ठप हो गई थी। हमारे यहां इसकी संभावना ही खत्म कर दी गई है।
अगर कोई विधेयक पैसे से जुड़ा होगा यानी money bill होगा तो लोकसभा से पास होने के बाद इसे parliament से पास मान लिया जाएगा। वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक के मामले में भी यही होता है। इन्हे राज्यसभा से पास कराने की जरूरत नहीं होती है। हालांकि बजट के सभी पहलुओं पर राज्यसभा में बहस उतनी ही जोरदार होती है।
लोकसभा से पास होने के बाद राष्ट्रपति दोनों बिल को अपनी approval देते हैं। उसके बाद एक अप्रैल से नए बजट के प्रस्ताव लागू हो जाते हैं।
बजट निर्माण व प्रस्ताव ( Budget creation and proposal )
1. कटौती प्रस्ताव (Cut Motion) –
संसद में बजट की प्रक्रिया जिस एक प्रमुख स्तर से गुजरती है। वह है, लोकसभा में अनुदान की मांगों पर मतदान। इस दौरान संसद के सदस्य इन मांगों पर बहस भी करते हैं। सदस्य अनुदान मांगों पर कटौती के लिए प्रस्ताव भी ला सकते हैं। इस प्रकार के प्रस्ताव को कटौती प्रस्ताव (Cut Motion) कहा जाता है।
जो निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
(i) नीति कटौती प्रस्ताव ( Disapproval of Policy Cut ) – इस प्रकार का कटौती प्रस्ताव मांग की नीति के प्रति असहमति (Disapproval) को प्रदर्शित करता है। इसमें कहा जाता है कि मांग की राशि 1 रुपये कर दी जाय। सदस्य कोई वैकल्पिक नीति भी पेश कर सकते हैं।
(ii) आर्थिक कटौती प्रस्ताव ( Economy Cut Motion ) – इस प्रकार के प्रस्ताव में इस बात का उल्लेख किया जाता है कि प्रस्तावित व्यय से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है। इसमें यह प्रस्ताव किया जाता है कि मांग की राशि को एक निश्चित सीमा तक कम किया जाय। यह या तो मांग में एकमुश्त कटौती (Lumpsum Reduction) हो सकती है या फिर पूर्ण समाप्ति या मांग की किसी मद में कटौती हो सकती है।
(iii) सांकेतिक कटौती प्रस्ताव ( Token Cut ) – यह प्रस्ताव भारत सरकार के किसी दायित्व से संबंधित होता है। इसमें कहा जाता है कि मांग में 100 रुपये की कमी की जाय।
एक कटौती प्रस्ताव का महत्त्व इस बात में है कि-
- (अ) अनुदान मांगों पर चर्चा का अवसर मिलता है।
- (ब) उत्तरदायी सरकार के सिद्धांत को कायम रखने के लिए सरकार के कार्यकलापों की जाँच करना।
पारम्परिक या आम बजट ( Aam Budget )
वर्तमान समय के “आम बजट” का प्रारंभिक स्वरूप “पारम्परिक बजट (Traditional Budget) कहलाता है| आम बजट का मुख्य उद्देश्य “विधायिका” और “कार्यपालिका” पर “वित्तीय नियंत्रण” स्थापित करना है|
इस बजट में सरकार की आय और व्यय का लेखा-जोखा होता है| इस बजट में सरकार अगले वित्त वर्ष में किस क्षेत्र में कितना धन खर्च करेगी, उसका उल्लेख तो करती है लेकिन इस खर्च से क्या-क्या परिणाम होंगे उनका ब्यौरा नहीं दिया जाता है| अतः इस प्रकार के बजट का उद्देश्य सरकारी खर्चों पर नियंत्रण करना तथा विकास कार्यों को लागू करना था न कि तीव्र गति से विकास करना था|
अतः पारम्परिक बजट की अवधारणा स्वतंत्र भारत की समस्याओं को सुलझाने तथा विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रही परिणामस्वरूप भारत में “निष्पादन बजट (Performance Budget)” की आवश्यकता और महत्व को स्वीकार किया गया और इसे पारम्परिक बजट के “पूरक” के रूप में पेश किया जाता है|
निष्पादन बजट ( Performance Budget ):
किसी कार्य के परिणामों को आधार मानकर बनाये जाने वाले बजट को “निष्पादन बजट (Performance Budget)” कहते हैं| विश्व में सर्वप्रथम “निष्पादन बजट” की शुरूआत संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी| अमेरिका में 1949 में प्रशासनिक सुधारों के लिए “हूपर आयोग” का गठन किया गया था| इसी आयोग की सिफारिश के आधार पर अमेरिका में “निष्पादन बजट” की शुरूआत हुई थी|
“निष्पादन बजट” में सरकार जनता की भलाई के लिए क्या कर रही है? कितना कर रही है? और किस कीमत पर कर रही है? जैसी सभी बातों को शामिल किया जाता है| भारत में “निष्पादन बजट” को उपलब्धि बजट या कार्यपूर्ति बजट भी कहा जाता है|
शून्य आधारित बजट ( Zero Based Budget ):
भारत में इस बजट को अपनाने के दो प्रमुख कारण है:
- देश के बजट में लगातार होने वाला घाटा
- निष्पादन बजट प्रणाली का सफल क्रियान्वयन न हो पाना
शून्य आधारित बजट में पिछले वित्त वर्षों में किए गए व्ययों पर विचार नहीं किया जाता है और न ही पिछले वित्त वर्षों के व्यय को आगामी वर्षों के लिए उपयोग किया जाता है| बल्कि इस बजट में इस बात पर जोर दिया जाता है कि व्यय किया जाय या नहीं अर्थात व्यय में वृद्धि या कमी के बजाय व्यय किया जाय या नहीं इस पर विचार किया जाता है|
शून्य आधारित बजट में प्रत्येक कार्य का निर्धारण “शून्य आधार” पर किया जाता है अर्थात पुराने व्यय के आधार पर नए व्यय का निर्धारण नहीं किया जाता है बल्कि प्रत्येक कार्य के लिए नए सिरे से नीति-निर्धारण किया जाता है| इस बजट को “सूर्य अस्त बजट (sun set budget)” भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले प्रत्येक विभाग को शून्य आधारित बजट पेश करना पड़ता है जिसमें विभाग के प्रत्येक क्रियाकलाप का लेखा-जोखा रहता है|
शून्य आधारित बजट का जन्मदाता “पीटर ए पायर” को माना जाता है जिन्होंने 1970 में इसका प्रतिपादन किया था| इस प्रणाली का सर्वप्रथम प्रयोग 1973 में अमेरिका के जार्जिया प्रान्त के बजट में तत्कालीन गवर्नर “जिमी कार्टर” द्वारा किया गया था| बाद में 1979 में अमेरिका के राष्ट्रीय बजट में भी इस प्रणाली को अपनाया गया|
भारत में शून्य आधारित बजट की शुरूआत एक प्रमुख शोध संस्थान “वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद्” (Council of Scientific and Industrial Research) द्वारा किया गया था और केन्द्र सरकार ने 1987-88 के बजट में इस प्रणाली को अपनाया था|
परिणामोन्मुखी बजट ( Outcome Budget ):
भारत में हर वर्ष बड़ी संख्या में विकास से संबंधित योजनाएं, जैसे- मनरेगा, एनआरएचएम, मध्याहन भोजन योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आदि शुरू होती हैं| इन योजनाओं में हर वर्ष भारी-भरकम धनराशि खर्च की जाती है| लेकिन ये योजनाएं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कहां तक सफल रहीं इसके मूल्यांकन के लिए हमारे देश में कोई खास पैमाना निर्धारित नहीं है|
कई बार योजनाओं के लटके रहने से लागत में कई गुना की बढ़ोतरी हो जाती है| अतः इन कमियों को दूर करने के लिए 2005 में भारत में पहली बार “परिणामोन्मुखी बजट (Outcome Budget)” पेश किया गया था जिसके अंतर्गत आम बजट में आवंटित धनराशि का विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों ने किस प्रकार उपयोग किया उसका ब्यौरा देना आवश्यक था|
परिणामोन्मुखी बजट (Outcome Budget) सभी मंत्रालयों और विभागों के कार्य प्रदर्शन के लिए एक मापक का कार्य करता है जिससे सेवा, निर्माण प्रक्रिया, कार्यक्रमों के मूल्यांकन और परिणामों को और अधिक बेहतर बनाने में मदद मिलती है|
लैंगिक बजट ( Gender Budget ):
किसी बजट में उन तमाम योजनाओं और कार्यकमों पर किया गया खर्च जिनका संबंध महिला और शिशु कल्याण से होता है, उसका उल्लेख लैंगिक बजट (Gender Budget) माना जाता है| लैंगिक बजट_के माध्यम से सरकार महिलाओं के विकास, कल्याण और सशक्तिकरण से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए प्रतिवर्ष एक निर्धारित राशि की व्यवस्था सुनिश्चित करने का प्रावधान करती है|
Rajasthan Budget Important Facts-
सड़क( road ):-
- ग्रामीण गौरव पथ योजना के द्वितीय चरण के तहत आगामी वर्ष में 2000 और ग्राम पंचायत मुख्यालय पर ग्रामीण गौरव पथ एवं मिसिंग लिंक सड़कों के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया जाएगा ।
- आगामी 2 वर्षों के प्रधान प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 250 से 350 तक की आबादी 1468 बसावटों को 4303 किलोमीटर लंबाई की सड़कों से जोड़ने का कार्य किया जाएगा ।
- भरतपुर में गोवर्धन ओवर बृज 84 कोस की परिक्रमा मार्ग पर आवागमन को सुगम बनाने के यात्रियों को विविध सुविधाएं उपलब्ध करवाने हेतु कार्य किया जाएगा ।
- रामदेवरा( पोकरण) तक पैदल चलने वाले श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धालुओं के लिए जोधपुर से रामदेवरा तक 4 मीटर चौड़ाई का कच्चा मार्ग बनाया जाएगा ।
राज्य में निम्न चार नए राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया जाएगा
- राष्ट्रीय राजमार्ग 48 दूदू के समीप से नरेना -सांभर -नारायणपुरा- कुचामन सिटी- बुधसु एंव छोटीखाटू तक ।
- मंदसौर प्रतापगढ़ धरियावद सलूंबर एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 927 के समीप डूंगरपुर ।
- राष्ट्रीय राजमार्ग के समीप फलोदी से नागौर तरनाऊ राष्ट्रीय राजमार्ग 458 राष्ट्रीय राजमार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग के समीप खाटू तक ।
- राष्ट्रीय राजमार्ग 752 के समीप कवि से छबड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग 46 के समीप सदा कॉलोनी तक ।
उद्योग ( Industry )
- रीको द्वारा वर्ष 2015 16 के बजट_के क्रियान्वन में राज्य में 6800 हेक्टेयर भूमि का लैंड Bank बनाया जा चुका है । आगामी वर्ष में लैंड बैंक को 10000 हेक्टर भूमि तक बढ़ाया जाएगा ।
- राज्य में प्रदूषण मुक्त उद्योगों की स्थापना को सुगम बनाने के लिए रीको द्वारा विकसित होगी क्षेत्रों में प्लग एंड प्ले सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी ।
- प्रदेश में राजस्थान स्टार्टअप पॉलिसी- 2015 लागू की गई है । इसके तहत राज्य में युवा उद्यमियों को स्वय का उधम स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी । इस हेतु वर्ष 2016 -17 में 10 करोड़ 85 लाख रुपए का प्रावधान प्रस्तावित है ।
- इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एवं विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने के लिए रीको द्वारा करौली द्वारा औद्योगिक क्षेत्र भिवाड़ी में 122 एकड़ भूमि क्षेत्र पर “ग्रीन फील्ड इलेक्ट्रॉनिक मैनुफैक्चरिंग क्लस्टर” स्थापित किया जाएगा ।
- टेक्सटाइल छेत्र में लगभग 11000 युवकों को “इंटीग्रेटेड स्किल डेवलपमेंट स्कीम “के तहत कौशल प्रशिक्षण दिया जाएगा ।
- विश्व बैंक नीति एवं संवर्धन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार “इस (ease) ऑफ डूइंग बिजनेस” में राजस्थान प्रदेश में छठे स्थान पर है । वर्तमान में संभावित सिंगल विंडो व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया जाएगा ।
- राज्य सरकार द्वारा कृषि आधारित उद्योगों में निवेश हेतु नवंबर 2016 “गोल्डन राजस्थान एग्रीटेक मीट 2016 “का आयोजन किया जाएगा । राज्य में कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने हेतु राजस्थान एग्रो प्रोसेसिंग एंड मार्केटिंग प्रमोशन पॉलिसी- 2015 जारी की गई है ।
वन एंव पर्यावरण ( Forest and environment )
- शहरी क्षेत्रों में हरियाली बढ़ाने हेतु राज्य में नगर वन उद्यान योजना लागू की जाएगी । प्रथम चरण में जयपुर या अजमेर में कम से कम 20 हेक्टेयर भूमि पर नगर वन उद्यान विकसित किए जाएंगे । जिनमें स्थानीय प्रजातियों के वृक्ष औषधीय वृक्ष जोइनिंग ,ट्रैक्टर साइकिल ट्रैक आदि की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी।
- मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के तहत वन क्षेत्रों वन्यजीवों तथा गैर वन क्षेत्रों में जल संग्रहण क्षमता बढ़ाने हेतु राज्य के 17 जिलों यथा अलवर भरतपुर, दौसा धौलपुर ,करौली सवाई माधोपुर, टोंक ,अजमेर बूंदी बारां, कोटा, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, राजसमंद, उदयपुर एवं सिरोही में विशेष योजना क्रियान्वित की जाएगी।
- रणथंभोर टाइगर प्रोजेक्ट की सुरक्षा हेतु स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की तरह सरिस्का टाइगर प्रोजेक्ट के लिए भी टीम का गठन किया जाएगा ।इन 2 नए STPF के लिए पुलिस की जगह फ़ोर्स गार्ड नियुक्त किए जाएंगे ।
- राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा पर्यावरण संबंधी विषयों पर कौशल विकास के उद्देश्य से उत्कर्ष संस्थाओं के सबसे उत्कृष्ट केंद्र की स्थापना की जाएगी ।