गीता का निष्काम कर्म
गीता
गीता_महाभारत_के भीष्म पर्व का एक भाग है इसे भगवद गीता के नाम से पुकारा गया है
गीता_ही एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें दर्शनशास्त्र धर्म और नीतिशास्त्र का संतुलित समन्वय हुआ है
गीता_में जीवन का एकमात्र उद्देश्य बताया गया है- ब्रम्ह में लीन होना अथवा ईश्वर की निकटता प्राप्त करना यही अवस्था मोक्ष है
गीता_के नैतिक विचारों में 3 विभागों का निर्माण होता है ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग
गीता_का मुख्य विषय कर्म योग कहा जा सकता है
गीता_में सत्य की प्राप्ति के लिए कर्म करने का आदेश दिया गया है
गीता_के अनुसार अचेतन वस्तु भी अपना कार्य संपादित करते हैं
गीता_के अनुसार मानव की सबसे बड़ी दुर्बलता= कर्म के परिणामों के संबंध में चिंतनशील रहना
मानव कर्म का त्याग कर देता है= अशुभ परिणाम पाने की आशंका से
गीता ने मानव को अपने जीवन का आदर्श बनाने का निर्देश किया है= निष्काम कर्म को
निष्काम कर्म का अर्थ है= कर्म को बिना किसी फल की अभिलाषा से करना
गीता में वास्तविक त्यागी कहा है= जो कर्म फल को छोड़ देता है
कर्म करने में सफलता मिले या असफलता दोनों में समता की जो मनोवृति है उसे कहा है= कर्म योग
योग कर्मसु कौशलम् अर्थात समत्व बुद्धि योग ही कर्मों में चतुरता है
समत्व बुद्धि योग अर्थात कर्मबंधन से छूटने का उपाय