हमने इस लेख में कबीरदास का जीवन परिचय, कबीर दास का साहित्यिक परिचय, कबीर का जन्म व जन्म स्थान, कबीर दास के माता पिता का नाम, कबीर की विशेषताएं, कबीर की साहित्यिक रचना का नाम इत्यादि पर चर्चा की है इसलिए आप अंत तक जरूर पढ़ें।
इस इकाई में हम भक्तिकाल के प्रमुख कवि कबीरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विशेषताओं की चर्चा करेंगे कबीरदास का व्यक्तित्व ने केवल संत कवियों में अपितु पूरे हिंदी साहित्य में विशिष्ट है वह भक्ति काल में निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रई कवि हैं ! भक्ति काल के कवियों में कबीर दास का व्यक्तित्व सर्वाधिक प्रतिभाशाली एवं महिमामंडित है !
इस इकाई में हम आपको कबीर की अनुभूति एवं अभिव्यक्ति पक्ष के विभिन्न संदर्भों की जानकारी देंगे जिनके अंतर्गत कबीर की भक्ति भावना उनके दार्शनिक सिद्धांतों तथा रहस्यवाद तथा सामाजिक चेतना के साथ-साथ कबीर की भाषा उनका शब्द भंडार प्रतीक योजना अलंकार एवं संविधान पर विस्तार से चर्चा की गई है जिससे आप कबीर दास के कुछ दोहे एवं पदों का वाचन एवं व्याख्या करना सीख पाएंगे आइए हम कबीर साहित्य के विविध स्वरूप पर चर्चा करें !
कबीर दास का जीवन परिचय संक्षेप में
SN | बिंदु | कबीरदास परिचय |
---|---|---|
1 | जन्म | 1440 वाराणसी |
2 | मृत्यु | 1518 मघर |
3 | प्रसिद्धी | कवी, संत |
4 | धर्म | इस्लाम |
5 | रचना | कबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ, बीजक |
कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित, जीवन परिचय व जयंती
कबीर शब्द का अर्थ इस्लाम के अनुसार महान होता है. वह एक बहुत बड़े अध्यात्मिक व्यक्ति थे जोकि साधू का जीवन व्यतीत करने लगे, उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण उन्हें पूरी दुनिया की प्रसिद्धि प्राप्त हुई. कबीर हमेशा जीवन के कर्म में विश्वास करते थे वह कभी भी अल्लाह और राम के बीच भेद नहीं करते थे.
उन्होंने हमेशा अपने उपदेश में इस बात का जिक्र किया कि ये दोनों एक ही भगवान के दो अलग नाम है. उन्होंने लोगों को उच्च जाति और नीच जाति या किसी भी धर्म को नकारते हुए भाईचारे के एक धर्म को मानने के लिए प्रेरित किया. कबीर दास ने अपने लेखन से भक्ति आन्दोलन को चलाया है.
कबीर पंथ नामक एक धार्मिक समुदाय है, जो कबीर के अनुयायी है उनका ये मानना है कि उन्होंने संत कबीर सम्प्रदाय का निर्माण किया है. इस सम्प्रदाय के लोगों को कबीर पंथी कहा जाता है जो कि पुरे देश में फैले हुए है.
कबीरदास का परिचय एवं रचनाएं
कबीर दास का व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे कबीर वैचारिक एवं सामाजिक चेतना की संवेदनशीलता के कारण अपने युग के समाज में इस कदर बसे हुए थे कि उन्हें हिंदू एवं मुसलमान सभी समान रूप से पूज्य मानते थे।
कबीर समाज सुधारक हिंदू मुस्लिम धर्म में समन्वय स्थापित करने वाले गरीब एवं कमजोर वर्ग के हितेषी मानव धर्म को सर्वोपरि मानने वाले समाज में व्याप्त विसंगतियों के विरोधी क्रांतिकारी और सामाजिक न्याय एवं समरसता के प्रबल समर्थक थे।
उनके अनुयायियों ने उन्हें अवतार कहा है मध्ययुगीन अन्य संत कवियों की भांति कबीर के जीवन वृत्त को लेकर मतभेद है कबीर दास कबीर चरित्र बोध एवं कबीर कसौटी ग्रंथों के आधार पर कबीर का जन्म संवत/ कबीर का जन्म कब हुआ था 1455 में जेष्ठ मास की पूर्णिमा को काशी में हुआ था।
कबीर के पिता का नाम— नीरू
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी इसी संवत को कबीरदास का जन्म संवत माना है कबीरदास का पालन पोषण जुलाहा दंपत्ति नीरू और कबीर के माता का नाम नीमा द्वारा किया गया कबीरदास ग्रस्त संत थे। कबीर दास की पत्नी का नाम लोही था उनकी दो संतानें कमाल एवं कमाली थी संवत 1575 में मगहर में उनका निधन हुआ।
कबीर के गुरु कौन थे—
स्वामी रामानंद कबीर के दीक्षा गुरु थे कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन मसि कागज छुयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ इस स्वीकारोक्ति करने वाले कबीर अद्भुत ज्ञान एवं प्रतिभा संपन्न थे उनका व्यक्तित्व मस्त मौला फक्कड़ एवं विद्रोही था वह परम संतोषी स्वतंत्र चेतना सत्यवादी निर्मित आडंबर विरोधी तथा अदम्य साहसी थे कबीर दास का योग सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से बड़ा अशांत था।
समाज में धार्मिक द्वेष ऊंच-नीच अंधविश्वास जाती पाती तथा वर्ग वेशम्य में आदि व्याप्त था कबीर ने इनका डटकर मुकाबला किया कबीर दास का काव्य क्षमता एवं न्याय का काव्य है। सुकरात के समान वह सामाजिक एवं धार्मिक अवस्थाओं का डटकर विरोध करते रहे।
कबीर दास ने पुस्तकिय ज्ञान को महत्व देने वालों को पाखंडी कहा वेद शास्त्र वेद में होते हुए भी बहुसूत्र थे उस समय तक प्रचलित विभिन्न साधना संप्रदायों की जो बातें उन्हें अनुकूल लगी उन्हें उन्होंने अपना लिया कबीरदास के आत्मा परमात्मा मुख से सृष्टि और माया संबंधित दार्शनिक विचारों पर सहस्ररो आध्यात्मिक चिंतन का प्रभाव है।
कबीरदास की रचनाएं/ कबीरदास का साहित्यिक परिचय
कबीरदास के उपलब्ध साहित्य के विषय में विद्वान एकमत नहीं है यद्यपि कबीर नहीं मसि कागज का स्पर्श तक नहीं किया। तथापि उनके नाम से प्रबुद्ध साहित्य उपलब्ध हैं कुछ विद्वानों ने कबीर के ग्रंथों की संख्या 57 से 61 तक मानी है किंतु इस संबंध में प्रामाणिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
कबीर दास की रचनाओं का बहुत सा भाग उनके अनुयायियों ने रचा और कबीर के नाम से प्रचारित कर दिया इसलिए कबीर के नाम से प्रसिद्ध रचनाओं में कबीर की वास्तविक रचना को खोज पाना कठिन है कबीर दास की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास द्वारा बीजक नाम से किया गया ।
कबीरदास की संपूर्ण रचनाओं का संकलन डॉक्टर श्यामसुंदर दास द्वारा कबीर ग्रंथावली के नाम से नागरी प्रचारिणी सभा काशी प्रकाशित किया गया बीजक कबीर की प्रमाणिक रचना मानी जाती है कबीरपंथी इसे वेद तुल्य मानते हैं कबीरदास के दार्शनिक सिद्धांतों का सार तो बीजक में ही उपलब्ध होता है बीजक का अर्थ है गुप्त धन बताने वाली सूची इस संबंध में कबीर ने कहा है कि :—
- बीजक बित बतावई, जो कित गुप्ता होय ।
- सब्द बतावे जीव को, बुझे बिरला कोय ।।
जो वित्त या धन गुप्त होता है अर्थात कहीं पृथ्वी में गार्ड कर या अन्य जगह छिपा कर रखा जाता है उसका पता केवल बीजक से लगता है उसी प्रकार जीव के गुप्त धन अर्थात वास्तविक स्वरूप को गुरु द्वारा प्रदत ज्ञानरूपी बीजक बतलाता है कबीर का साहित्य तीन रूपों में विभक्त है साखी, सब्द या पद और रमैनी
साखी, सब्द या पद और रमैनी के अतिरिक्त कबीर के नाम से कहा है वसंत, वैली, हिंडोला, चौतीसी आदि अन्य काव्य रूपों का साहित्य भी मिलता है जैसा कि प्रारंभ में कहा जा चुका है कि स्वयं कबीर दास द्वारा लिपिबद्ध ने किए जाने के कारण तथा उनके अनुयायियों द्वारा भक्ति एवं प्रेम बस कबीर के नाम से प्रचुर मात्रा में साहित्य एकत्र कर दिया है अभी इस क्षेत्र में विद्वानों द्वारा शोध कार्य जारी है ताकि कबीर दास का कुछ और प्रमाणिक साहित्य उपलब्ध हो सके।
कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित (Kabir ke Dohe Meaning in Hindi)
1. जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.
अर्थ : जब मेने इन संसार में बुराई को ढूढा तब मुझे कोई बुरा नहीं मिला जब मेने खुद का विचार किया तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली . दुसरो में अच्छा बुरा देखने वाला व्यक्ति सदैव खुद को नहीं जनता . जो दुसरो में बुराई ढूंढते है वास्तव में वहीँ सबसे बड़ी बुराई है
2. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.
अर्थ : उच्च ज्ञान प्राप्त करने पर भी हर कोई विद्वान् नहीं हो जाता . अक्षर ज्ञान होने के बाद भी अगर उसका महत्त्व ना जान पाए, ज्ञान की करुणा को जो जीवन में न उतार पाए तो वो अज्ञानी ही है लेकिन जो प्रेम के ज्ञान को जान गया, जिसने प्यार की भाषा को अपना लिया वह बिना अक्षर ज्ञान के विद्वान हो जाता है.
3. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय.
अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस दुनियाँ में जो भी करना चाहते हो वो धीरे-धीरे होता हैं अर्थात कर्म के बाद फल क्षणों में नहीं मिलता जैसे एक माली किसी पौधे को जब तक सो घड़े पानी नहीं देता तब तक ऋतू में फल नही आता.
धीरज ही जीवन का आधार हैं,जीवन के हर दौर में धीरज का होना जरुरी है फिर वह विद्यार्थी जीवन हो, वैवाहिक जीवन हो या व्यापारिक जीवन . कबीर ने कहा है अगर कोई माली किसी पौधे को 100 घड़े पानी भी डाले, तो वह एक दिन में बड़ा नहीं होता और नाही बिन मौसम फल देता है . हर बात का एक निश्चित वक्त होता है जिसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में धीरज का होना आवश्यक है .
4. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान.
अर्थ : किसी भी व्यक्ति की जाति से उसके ज्ञान का बोध नहीं किया जा सकता , किसी सज्जन की सज्नता का अनुमान भी उसकी जाति से नहीं लगाया जा सकता इसलिए किसी से उसकी जाति पूछना व्यर्थ है उसका ज्ञान और व्यवहार ही अनमोल है . जैसे किसी तलवार का अपना महत्व है पर म्यान का कोई महत्व नहीं, म्यान महज़ उसका उपरी आवरण है जैसे जाति मनुष्य का केवल एक शाब्दिक नाम.
5. ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर
अर्थ : कबीरदास जी ने बहुत ही अनमोल शब्द कहे हैं कि यूँही बड़ा कद होने से कुछ नहीं होता क्यूंकि बड़ा तो खजूर का पेड़ भी हैं लेकिन उसकी छाया राहगीर को दो पल का सुकून नही दे सकती और उसके फल इतने दूर हैं कि उन तक आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता . इसलिए कबीर दास जी कहते हैं ऐसे बड़े होने का कोई फायदा नहीं, दिल से और कर्मो से जो बड़ा होता हैं वही सच्चा बड़प्पन कहलाता हैं!
कबीरदास की काव्य समीक्षा एवं सारांश
कबीरदास भक्ति काल के उच्च कोटि के संत कवि हैं उनकी वाणी में धार्मिक एवं आध्यात्मिकता का पुट अधिक है काव्यत्व का पुट आशिक। उन्होंने काव्य को साधन बना कर जन-जन तक मानव जीवन के उद्देश्य को पहुंचाने की कोशिश की प्रभावशाली तरीके से समाज में व्याप्त विसंगतियों को मिटाने का प्रयास करते रहे ऐसे में वे एक सच्चे मार्गदर्शक की तरह समाज को दिशा निर्देशित करते रहे ।
यद्यपि उन्हें काव्यशास्त्र का विधिवत ज्ञान नहीं था तथापि उनकी कविता इतनी अनुपम और उनके काव्य अनुभूति इतनी उत्कृष्ट है कि वह केवल कवि नहीं महाकवि हैं उनकी वाणी गुदगुदाती है। और एक नया मार्ग भी सुझाती है ।
कबीर दास जी की रचनाएं – भाग 1
- चांणक का अंग
- नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार
- मोको कहां
- रहना नहिंदेसबिराना है
- साधो, देखो जग बौराना
- कथनी-करणी का अंग
- करम गति टारैनाहिंटरी
- राम बिनु तन को ताप न जाई
- हाँ रे! नसरलहटिया उसरी गेलै रे दइवा
- हंसा चललससुररिया रे, नैहरवाडोलम डोल
- अबिनासीदुलहा कब मिलिहौ, भक्तन के रछपाल
- दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ
- सहज मिले अविनासी
कबीर दास जी की रचनाएं – भाग 2
- अवधूतायुगनयुगन हम योगी
- रहली मैं कुबुद्ध संग रहली
- कबीर की साखियाँ
- बहुरिनहिंआवना या देस
- समरथाई का अंग
- पाँच ही तत्त के लागलहटिया
- बड़ी रे विपतिया रे हंसा, नहिरागँवाइल रे
- अंखियां तो झाईं परी
- कबीर के पद
- सोना ऐसनदेहिया हो संतो भइया
- जीवन-मृतक का अंग
- नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार
- धोबिया हो बैराग
- बीत गये दिन भजन बिना रे
- चेत करु जोगी, बिलैयामारै मटकी
- तोर हीरा हिराइल बा किचड़े में
- घर पिछुआरीलोहरवा भैया हो मितवा
कबीर दास जी की रचनाएं – भाग 3
- मधि का अंग
- सतगुर के सँग क्यों न गई री
- उपदेश का अंग
- करम गति टारैनाहिंटरी
- भ्रम-बिधोंसवा का अंग
- पतिव्रता का अंग
- मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
- चितावणी का अंग
- कामी का अंग
- मन का अंग
- जर्णा का अंग
- सुगवापिंजरवाछोरि भागा
- ननदी गे तैं विषम सोहागिनि
- भेष का अंग
- सम्रथाई का अंग
- निरंजन धन तुम्हरो दरबार
कबीर दास जी की रचनाएं – भाग 4
- बेसास का अंग
- सुमिरण का अंग
- केहिसमुझावौ सब जग अन्धा
- मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा
- भजो रे भैया राम गोविंद हरी
- का लैजैबौ, ससुर घर ऐबौ
- सुपने में सांइ मिले
- माया का अंग
- काहे री नलिनी तू कुमिलानी
- गुरुदेव का अंग
- नीति के दोहे
- मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै
- तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के
- मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै
- साध-असाध का अंग
- दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ
- माया महा ठगनी हम जानी
कबीर दास जी की रचनाएं – भाग 5
- रे दिल गाफिल गफलत मत कर
- सुमिरण का अंग
- मन लाग्योमेरो यार फ़कीरी में
- कौन ठगवा नगरियालूटल हो
- रस का अंग
- संगति का अंग
- झीनी झीनी बीनी चदरिया
- रहना नहिंदेसबिराना है
- साधो ये मुरदों का गांव
- विरह का अंग
- राम बिनु तन को ताप न जाई
- तेरा मेरा मनुवां
- भ्रम-बिधोंसवा का अंग
- साध का अंग
कबीरदास का सारांश
प्रस्तुत इकाई में आप कबीर दास का जीवन परिचय एवं उनकी रचनाओं के साथ कबीर की भक्ति भावना के विविध पहलुओं को जान पाए हैं साथ ही अनुभूति पक्ष के अंतर्गत कबीर दास का रहस्यवाद दार्शनिक विचारों के विविध सोपानो एवं उनके सामाजिक चेतना पक्ष को विस्तार पूर्वक समझ सके हैं कबीर दास का समस्त काव्य आध्यात्मिक रस से सरोवर अमृत रस की गागर जैसा है जो भी उसे पड़ेगा निश्चित रूप से अमृत पान कर पाएगा।
इस इकाई में आप कबीर की भाषा प्रतीक विधान अलंकार एवं छंद विधान को भी समझ सके हैं यद्यपि कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन उनमें अनुभूति की सच्चाई थी उन्होंने बिना किसी लाग लपेट और अलंकारों की सजावट के बिना जीवन के सत्य को सरल शब्दों मैं व्यक्त कर दिया।
इसलिए कबीरदास सीधे हृदय पर प्रभाव डालने वाले महान कवि हैं रहस्यवाद के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं है वह आधी रहस्यवादी कवि हैं वास्तव में कबीर नव क्रांति के जनक श्रेष्ठ मार्गदर्शक और भक्ति काल के सर्वोच्च कवि हैं।
FAQ
Q.कबीर दास जी का जन्म कब हुआ था?
कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी को काशी में एक विधवा ब्राह्मणी की कोख से हुआ था।
किवदंती के अनुसार, विधवा माता ने लोक-लाज के भय से नवजात शिशु को लहरतारा तालाब के किनारे पर टोकरी में छोड़ दिया।
Q.कबीर दास जी की रचनाएं क्या हैं?
कबीर दास की सभी रचनाओं का संकलन बीजक में किया गया है जिनमें तीन भाग हैं – साखी, सबद, रमैनी। कबीर दास की सभी रचनाएं उनके शिष्य धर्मदास के द्वारा लिखी गई हैं।
Q.कबीर दास जी का जन्म स्थान?
वाराणसी
Q.कबीर दास का मृत्यु कब हुआ?
सोलहवीं सदी के महान संत कबीरदास वाराणसी में पैदा हुए और लगभग पूरा जीवन उन्होंने वाराणसी यानी काशी में ही बिताया लेकिन जीवन के आख़िरी समय वो मगहर चले आए और अब से पांच सौ साल पहले वर्ष 1518 में यहीं उनकी मृत्यु हुई
कबीर ने अंतिम समय में अपना शरीर त्यागा?
संत कबीर दास ने अपना पूरा जीवन काशी में बिताया लेकिन जीवन का अंतिम समय मगहर में बिताया था. मगहर संत कबीर नगर जिले में छोटा सा कस्बा है. मगहर के बारे में कहा जाता था कि यहां मरने वाला व्यक्ति नरक में जाता है. कबीर दास ने इस प्रचलित धारणा को तोड़ा और मगहर में ही 1518 में देह त्यागी
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