रूस और यूक्रेन विवाद 2022 क्या है, कारण, क्यों है, (Russia Ukraine War 2022 in Hindi) (News, Update, Explained, Reason, UK)
दोस्तों रूस और यूक्रेन के मध्य चल रहा विवाद तूल पकड़ता जा रहा है। आज कल वैश्विक स्तर पर इस विवाद से जुड़ी खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं। गौरतलब है कि इस विवाद के चलते विश्व की महाशक्तियों के मध्य जंग छिड़ने तक की स्थिति आ गई।
आपको बता दे कि ब्रिटेन और अमेरिका जहां यूक्रेन की पीठ थपथपा रहे हैं वहीं रूस ने इस मुद्दे पर उन्हें कड़ी चेतावनी दे डाली थी। पहले रूस ने ये स्पष्ट किया था कि उसका हमला करने का कोई इरादा नहीं है। और रूस ने ये भी कहा था कि वेस्टर्न कंट्रीज यूक्रेन एवं भूतपूर्व सोवियत देशों को नाटो में शामिल ना करें।
किन्तु अब हालही में खबर आ रही है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम ये समझते हैं कि आखिर क्या है रूस और यूक्रेन का विवाद। उक्त जानकारी के लिए आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
रूस और यूक्रेन विवाद क्या है 2022 (Russia Ukraine War 2022 in Hindi)
बात साल 2014 की है। जब रूस ने यूक्रेन में स्थित क्रिमिया को हमला कर के अपनी सीमा में मिला लिया था। इसके बाद से रूस और यूक्रेन संबंधों में तनाव आ गए। आपको बता दे कि यूएसएसआर से साल 1991 में अलग होने के बाद भी यूक्रेन रूस के पक्ष में खड़ा रहता था।
रूस और यूक्रेन विवाद 2022 क्यों हो रहा है, कारण (Russia Ukraine War 2022 Reason)
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे वर्तमान विवाद की मुख्य वजह नाटो है। 4 अप्रैल,1949 को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानि नाटो का जन्म हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बने इस संगठन को अमेरिका द्वारा बारह देशों के समर्थन से बनाया गया था।
मूलतः नाटो वेस्टर्न कंट्रीज और यूएसए के बीच बना एक सैन्य गठबंधन है। इसका मूल उद्देश्य सोवियत संघ के खिलाफ एकजुट रहना और सोवियत संघ के विस्तार पर रोक लगाना था।
अब मौजूदा हालत ये है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनने की इच्छा रखता है पर रूस इस बात के विरुद्ध है। रूस का कहना है कि ये उसके लिए नागवार है कि उसका पड़ोसी राष्ट्र नाटो की सदस्यता ग्रहण करे।
नाटो क्या है (What is NATO)
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नोटों अमेरिका, ब्रिटेन जैसे 30 देशों का एक सैन्य समूह है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ने इसकी नींव रखी थी। तब इसका मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के विस्तार पर रोक लगाना था।
वर्तमान स्थिति ये है कि लातविया, इस्तोनिया जैसे देश नाटो में शामिल हो चुके हैं। अब यूक्रेन के नाटो से जुड़ जाने से रूस के लिए चुनौती बढ़ जाएगी। अमेरिका समेत पश्चिमी देश उस पर दवाब बना पाएंगे।
गौर करने वाली बात ये भी है कि अगर यूक्रेन नाटो से जुड़ा तो इस संगठन के समझौते के तहत इसके सभी सदस्य यानि तीस देश यूक्रेन को सैन्य बल देंगे और एक साथ मिल कर रूस पर हमला भी कर पाएंगे।
यूक्रेन के नाटो से जुड़ने की इच्छा के पीछे एक बड़ी वजह है। यूक्रेन कभी भी अपने बलबूते रूस का सामना नहीं कर पाएगा। यूक्रेन के पास रूस जैसी विशाल सेना और आधुनिक हथियार मौजूद नहीं हैं।
2.9. मिलियन से अधिक सैन्य बल वाले रूस का सामना करने के लिए यूक्रेन के पास साधन नही हैं। इसलिए अपनी स्वतंत्रता की खातिर यूक्रेन नाटो का सदस्य बनना चाहता है।
रूस और यूक्रेन विवाद में अमेरिका की भूमिका (Russia and Ukraine War 2022 UK)
रूस और यूक्रेन संबंधित विवाद में अमेरिका की बड़ी भूमिका है। रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिका ने तीन हज़ार सैनिक यूक्रेन की धरती पर भेजा है। कहा जा रहा है कि अमेरिका ने यूक्रेन की मदद करने की बात की है।
कुछ सूत्रों की माने तो अमेरिका अफगानिस्तान और ईरान में मिली नाकामी को भुनाने के लिए इस मुद्दे को तूल दे रहा है। अफगानिस्तान से सेना बुलाने के बाद अमेरिका के सुपर पावर इमेज को धक्का लगा है। इस प्रकरण के बाद अमेरिका अपनी छवि सुधारने में लगा है।
जैसा की हमने आपको बताया की रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे विवाद में अमेरिका का भी भूमिका है.
दरअसल हालही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने विश्व को संबोधित करते हुए ये कहा है कि रूस अब वेस्ट कंट्रीज के साथ व्यापार नहीं कर सकता है, और वहां से उसे जो सहायता मिलती है वह भी मिलनी बंद हो जाएगी. और साथ ही रूस की 2 वित्तीय संस्थानों में प्रतिबध भी लगा दिया गया है. और साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि रूस पीछे नहीं हटता है तो वह अगले फैसले के लिए तैयार रहे.
रूस और यूक्रेन की भौगोलिक स्थिति (Russia and Ukraine Graphical Situation)
रूस यूक्रेन से 28 गुना ज्यादा बड़ा है। जनसंख्या के मामले में भी यूक्रेन रूस से मात खाता है। रूस और यूक्रेन दोनो ही गैस और तेल संबंधी रिसोर्सेज में धनी हैं।
यूक्रेन बेलारूस, ब्लैक सी, सी ऑफ अजोव, हंगरी, मोल्दोवा, रोमानिया, रूस, पोलैंड और स्लोवाकिया से अपनी सीमाएं बांटता है। अतः इसकी लोकेशन काफी महत्वपूर्ण है।
रूस और यूक्रेन विवाद का विश्व पर असर (Russia and Ukraine War Impact on the World)
अमेरिका के अलावा ब्रिटेन एवं फ्रांस जैसे देशों ने यूक्रेन को अपना समर्थन दिया है। हालांकि यूरोपीय देशों का एक बड़ा वर्ग गैस संबंधी जरूरतों के लिए रूस पर आश्रित है। आगे रूस इन्हे गैस देने से मना कर देगा तो पावर क्राइसिस उत्पन्न हो जाएगी।
ऊर्जा संकट के उत्पन्न होने पर रूस फिर मनमाने दाम में गैस पहुंचा पाएगा। इसके साथ ही आपको बता दे कि यूक्रेन का सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर रूस है।
इन दोनो के मध्य उत्पन्न तनाव से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अगर युद्ध होता है तो गैस से जुड़ा संकट अवश्य देखने को मिलेगा।
रूस-यूक्रेन विवाद का इतिहास और वर्तमान संकट
वह 27 फरवरी, 2014 की रात थी। हथियारबंद लोगों ने क्रीमिया में संसद और मंत्रिपरिषद की इमारतों को अपने नियंत्रण में ले लिया और उन पर रूसी झंडे लहरा दिये।
अगली सुबह जल्दी ही अचिन्हित वर्दी में और अधिक लोगों ने सेवस्तोपोल और सिम्फ़रोपोल में हवाई अड्डों पर कब्जा कर लिया। एक रूसी नौसैनिक पोत ने सेवस्तोपोल के पास बालाक्लावा में बंदरगाह को अवरुद्ध कर दिया जहाँ यूक्रेनी समुद्री रक्षक सैनिक तैनात थे और रूसी सेना के लड़ाकू हेलीकॉप्टर यूक्रेन के क्रीमिया की ओर बढ़ चले।
अठारह दिन बाद आनन-फानन में आयोजित किये गए जनमत संग्रह के बाद व्लादिमीर पुतिन ने औपचारिक रूप से क्रीमिया को रूसी संघ में शामिल करने वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किये।
इस तरह 18 मार्च, 2014 को रूस और क्रीमिया के स्व-घोषित गणराज्य ने रूसी संघ में क्रीमिया गणराज्य और सेवस्तोपोल के परिग्रहण की संधि पर हस्ताक्षर किये।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तुरंत 68/262 प्रस्ताव पारित करके इसका उत्तर दिया कि जनमत संग्रह अमान्य था और यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता बनी रहनी चाहिए। इस प्रस्ताव के खिलाफ केवल रूस ने मतदान किया। हालाँकि इस प्रस्ताव को लागू नहीं किया जा सका।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लागू करने योग्य प्रस्तावों को पारित करने के प्रयासों को रूसी वीटो द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया था।
2014 में रूस द्वारा क्रीमिया का अधिग्रहण करने को आज के यूक्रेन संकट के साथ कैसे जोड़कर देखें? क्या इसमें कोई निरंतरता है? या कोई नवीन परिवर्तन? दो ऐसे देश जो दशकों तक एक ही संघ का अटूट हिस्सा रहे, और इतिहास के बड़े कालखंड में एक साम्राज्य का भाग रहे वो आज युद्ध की विभीषिका के बीच क्यों जा फंसे हैं? इन सवालों का जवाब देना जरूरी है ताकि हम घटित हो रहे संकट को ठीक से समझ सकें।
सोवियत संघ और यूक्रेनियन संघ
प्रथम विश्वयुद्ध के मध्य साम्राज्यवाद के साए से उभरते हुए यूक्रेनियन पीपल्स रिपब्लिक (यूएनआर) की स्थापना 1917 में हुई। जार के शासकीय पतन के बाद यूएनआर ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर लिया था।
लेकिन इसी क्रम में बोल्शेविक क्रांति (1917) के बाद हुए रूसी गृहयुद्ध (1917–22) के दौरान रूसी रेड्स और व्हाइट्स के बीच हुए घोर संघर्ष से यूएनआर बच नहीं सका क्योंकि दोनों ताकतों ने यूक्रेनी संप्रभुता को मान्यता नहीं दी थी।
लेकिन यूक्रेनी स्वतंत्रता की मिसाल ने बोल्शेविकों को एक सोवियत यूक्रेनी गणराज्य बनाने के लिए मजबूर किया जो 1922 में सोवियत संघ का एक संस्थापक सदस्य बना।
हालाँकि 1930 के दशक की शुरुआत में जोसेफ स्टालिन यूक्रेनी राजनीतिक राष्ट्र को कुचलने के अधूरे काम को पूरा करने की ठान चुके थे। यह राजनीतिक राष्ट्र जैसा कि ऊपर बताया गया है बोल्शेविक क्रांति की पृष्ठभूमि में विकसित हुआ था।
1932-33 के राज्य-प्रायोजित अकाल में लगभग 40 लाख यूक्रेनी किसान मारे गए जिसे यूक्रेन में ‘होलोडोमोर’ (यानी, भुखमरी के माध्यम से हत्या) के रूप में जाना जाता है और एक नरसंहार माना जाता है।
स्टालिन ने यूक्रेनी सांस्कृतिक अभिजात वर्ग को भी नष्ट कर दिया और जार के काल से प्रचलित धारणा कि यूक्रेनी रूसियों के “छोटे भाई” हैं इसे बढ़ावा देना शुरू कर दिया।इसी तरह पूरा यूक्रेन जबरन “छोटे भाई” की तरह सोवियत संघ का हिस्सा बना रहा।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद उसी साल दिसंबर में यूक्रेनी जनमत संग्रह ने खुद को सोवियत संघ से अलग कर लिया।
हालाँकि 1990 के दशक की शुरुआत में आर्थिक सुधारों के रुकने के साथ बोरिस येल्तसिन और अन्य रूसी हस्तियों ने यूक्रेनी सांस्कृतिक नीतियों की आलोचना करके और क्रीमिया के हस्तांतरण पर सवाल उठाकर घरेलू राष्ट्रवादियों को सोवियत साम्राज्य की याद दिलाना भी शुरू कर दिया था
।
1997 में रूस और यूक्रेन के बीच एक व्यापक संधि ने यूक्रेनी सीमाओं की अखंडता की पुष्टि की थी। इस संधि की गारंटी रूस और पश्चिमी परमाणु शक्तियों ने 1994 के बुडापेस्ट ज्ञापन में दी थी जब यूक्रेन अपने सोवियत-निर्मित परमाणु शस्त्रागार को आत्मसमर्पण करने के लिए सहमत हुआ था। यह संधि 31 मार्च, 2019 को समाप्त हो गई।
वर्तमान संकट और अमेरिकी भूमिका
1990 के दशक के मध्य से यूक्रेन नाटो ढांचे के बाहर अमेरिका का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार रहा है। इस स्थिति को यूएस-यूक्रेन चार्टर (2008; 2021 में फिर से नई संधि पर हस्ताक्षर हुए थे।) के अंतर्गत सामरिक साझेदारी में औपचारिक रूप दिया गया है।
वर्तमान चार्टर “रूसी आक्रमण का मुकाबला करने” में यूक्रेन की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है लेकिन इसमें सूचीबद्ध विशिष्ट उपाय केवल यूक्रेनी सेना में सुधार और डेटा-साझाकरण में अमेरिकी सहायता पर केंद्रित हैं। युद्ध के मामले में किसी भी मौजूदा संधि के लिए अमेरिका को यूक्रेन की रक्षा करने की आवश्यकता नहीं है।
नाटो में शामिल होने का उद्देश्य अब यूक्रेनी संविधान में निहित है और इसके सशस्त्र बल धीरे-धीरे नाटो मानकों में परिवर्तित हो रहे हैं। लेकिन 2008 में पिछली बार जब नाटो के सदस्यों ने यूक्रेन के परिग्रहण के विचार पर चर्चा की थी तो जर्मनी और फ्रांस ने इसे अवरुद्ध कर दिया ताकि था ताकि रूस को आक्रामक होने का मौका न मिले।
पिछले दो दशकों से यूक्रेन का लगातार पश्चिमी खेमे के साथ जाना व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक राष्ट्रवाद वाले रूस को रास नहीं आया है।
साल 2014 में जब यूक्रेन में एक लोकप्रिय क्रांति ने रूसी समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को सत्ता से बेदखल कर दिया और पश्चिमी समर्थक लोकतांत्रिक ताकतों को सत्ता में लाया तो क्रीमिया में एक घोर संकट पैदा हो गया।
जैसा कि ’द न्यू यॉर्कर’ को दिये साक्षात्कार में (फरवरी 23, 2022) यूक्रेनी इतिहासकार सेरही प्लोखी ने इस विचार पर कि यूक्रेन में एक जन समूह अभी भी रूसी साम्राज्यवाद से खुद को जोड़ता है पर कहते हैं, “निश्चित रूप से उस विचार को 2014 में क्रीमिया में कर्षण मिला। वहाँ की अधिकांश आबादी जातीयता से रूसी थी।
और इसे डोनबास में भी आबादी के एक हिस्से के मध्य कर्षण मिला था जिसकी एक लोकप्रिय सोवियत पहचान थी। वहाँ के लोग वास्तव में एक बहिष्करणीय पहचान के इस विचार से इनकार कर रहे थे और इसने इस विचार के लिए कुछ आधार बनाए कि हाँ, शायद हम यूक्रेनियन हैं, लेकिन हमारे बीच एक बड़ी रूसी भूमिका के लिए भी जगह है।”
डोनेट्स्क और लुहान्स्क पूर्वी यूक्रेन में स्थित दो राज्य हैं जो रूस के साथ सीमा साझा करते हैं। इन दो राज्यों के भीतर दो अलगाववादी क्षेत्र हैं जिन्हें डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (डीपीआर) और लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (एलपीआर) के नाम से जाना जाता है जो रूसी समर्थित अलगाववादियों द्वारा चलाए जा रहे हैं।
यह पूरा क्षेत्र जिसमें डोनेट्स्क, लुहान्स्क और उनके संबंधित अलगाववादी क्षेत्र शामिल हैं आम तौर पर ‘डोनबास’ क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। रूस ने लंबे समय से दावा किया है कि चूँकि ये मुख्य रूप से रूसी भाषी क्षेत्र हैं इसलिए उन्हें “यूक्रेनी राष्ट्रवाद” से संरक्षित करने की आवश्यकता है। सोवियत काल के दौरान द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई रूसी श्रमिकों को वहाँ भेजे जाने के कारण रूसी बोलने वालों की उपस्थिति वहाँ बढ़ती रही थी।
तो अब आप यह जान चुके होंगे कि यहाँ केवल सामरिक शक्ति या क्षेत्रीय आधिपत्य से कहीं अधिक राष्ट्रवाद के सांस्कृतिक मुद्दे हैं। साथ ही नाटो और पश्चिमी देशों के अड़ियल रवैए के कारण यह मुद्दे सुलझने की जगह और उलझते गए हैं।
सीरिया, इराक, लीबिया, लेबनान, वेनेजुएला, जैसे कई देशों में पश्चिमी राष्ट्रों ने उनके समर्थित सरकारों को बिठाकर उनके जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के निर्माण का जो हठ किया है उसका दुष्परिणाम बेहद गंभीर है।
शीत युद्ध में इसी तरह की विभीषिका कई बार यूरोप, एशियाई और अफ्रीकी देशों में देखने को मिले थे। जहाँ रूस और यूक्रेन अपने मुद्दों को अपने इतिहास और सांस्कृतिक भिन्नताओं में सुलझा सकते थे वहीं पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप और व्लादिमीर पुतिन को उनका एक ‘तानाशाह’ मानने की जिद ने इस संघर्ष को जटिल बना दिया।
चूँकि पुतिन एक अणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के नेता हैं तो उन्हें सद्दाम हुसैन या मुअम्मर गद्दाफी की तरह हटाया नहीं जा सकता।
रूस और यूक्रेन युद्ध की ताज़ा जानकारी
- हालही में ताजा खबर ये आ रही है कि कम से कम 2 लाख रुसी सैनिक यूक्रेन में तैनात हैं.
- रुसी सेना यूक्रेन में अलग – अलग सीमाओं से हमला कर रही है. यहाँ तक कि कहा जा रहा है कि रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव में हमला कर दिया है. कीव में एयर साइरन के जरिये लोगों को चेतावनी दी गई है. सुबह से कीव में धमाके की आवाजें सुनाई दे रही है
- रुसी सेना ने सैन्य एयर को निशाना लगाया है.
- कुल मिला कर अभी वहां की स्थिति यह है कि यूक्रेन को रूस की सेना ने चारों ओर से घेर लिया है.
- आपको बता दें कि पूरे यूक्रेन में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है.
- यूक्रेन की राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र से आपातकालीन बैठक की अपील की है
- यूक्रेन के राजदूत डॉ इगोर पोलिखा जो भारत में मौजूद है उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी से भी मदद मांगी है, और उनसे इसमें हस्तक्षेप करने के लिए आग्रह किया है
- ब्रिटेन ने भी इस हमले के लिए रूस की कड़ी निंदा की है और कहा है कि वे एक निर्णायक फैसला लेंगे.
- हालांकि यूक्रेन ने यह दावा किया है कि उसने 50 रुसी सैनिकों को मार गिराया है.
- यूक्रेन में रहने वाले क्रीमियाई तातार मुसलमानों को रुसी सेना से सबसे ज्यादा डॉ लग रहा है और उन्हें इससे खतरा महसूस हो रहा है.
रूस और यूक्रेन विवाद की ताज़ा खबर (Russia and Ukraine War News Update)
आपको बता दें कि ताज़ा खबर के मुताबिक रूस और यूक्रेन विवाद खाफी आगे बढ़ गया है. हालही में खबर आई है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला करना शुरु कर दिया है. यानि अब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया है. अब देखने वाली बात ये हैं कि इस युद्ध में अन्य देश भी शामिल होकर इसे विश्व युद्ध का रूप देते हैं या फिर ये युद्ध सिर्फ रुस और यूक्रेन युद्ध ही रहकर खत्म होता है.
रूस और यूक्रेन विवाद पर भारत की प्रतिक्रिया (Russia and Ukraine War India’s Reponse)
भारत के लिए ये स्थिति चुनौतीपूर्ण है। भारत रूस को नाराज़ करने की कोशिश नहीं करेगा पर पश्चिमी देशों से भी भारत की साझेदारी अच्छी है। रूस यूक्रेन विवाद के बीच S 400 एयर डिफेंस से संबंधित संकट भी उत्पन्न हो सकता है। भारत अपनी साठ प्रतिशत सैन्य आपूर्ति के लिए रूस पर आश्रित है। इसलिए भारत ने अभी खुल कर अपना पक्ष साझा नहीं किया है। अब देखने वाली बात ये है कि रूस यूक्रेन विवाद कितना आगे जाएगा और भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे।
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संक्षेप में
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