1 विशाल एवं विस्तृत अर्थव्यवस्था A Great Economy
- भारतीय अर्थव्यवस्था विशाल अर्थव्यवस्था है
- जो विश्व के उत्तरी गोलार्ध में 8.4′ डिग्री से 37.6 अक्षांश
- तथा 68.17′ डिग्री से 97.2 पूर्वी देशांतर के बीच में फैली हुई है
- ओखा से अरुणाचल तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक
- पहले भारत का क्षेत्रफल 32.900000 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या 125 करोड़ से अधिक है
- क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवां तथा जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा स्थान है यह इसकी विशालता का परिचायक है
2 विकासशील अर्थव्यवस्था Developing Economy
- भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी किंतु विकासशील अर्थव्यवस्था है
- अर्थव्यवस्था में आर्थिक पिछड़ापन एवं दरिद्रता है
- पूंजी निर्माण की गति धीमी व्यापक बेरोजगारी तकनीकी ज्ञान का अभाव जनसंख्या का अत्यधिक बार और भुखमरी आदि के समापन के लिए
- योजनाबद्ध विकास द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था अब निरंतर आर्थिक विकास की ओर अग्रसर हो रही है
- औद्योगिकरण कृषि विकास परिवहन एवं संचार के विकास से विकास का मार्ग प्रशस्त हो रहा है
3 कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था
- भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है जिसमें कृषि राष्ट्रीय आय का प्रमुख स्रोत रोजगार का आधार
- जीवन यापन का प्रमुख साधन ही नहीं वरन औद्योगिक की कच्चे माल का स्रोत एवं निर्मित माल का बाजार भी है
- दो हजार तीन चार में सम को के अनुसार 1993 94 की कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग
- 22.1 प्रतिशत भाग कृषि तथा संबंधित क्षेत्र से प्राप्त होता है
- जो 64% जनसंख्या के रोजगार एवं जीवन यापन का आधार है
- उद्योगों के लिए कच्चा माल गन्ना पटसन तिलहन खाद्यान्न सब कृषि से ही प्राप्त होते हैं
4 औद्योगिक पिछड़ापन एवं असंतुलित विकास
- भारतीय अर्थव्यवस्था में विकसित देशों की तुलना में काफी औद्योगिक पिछड़ापन है
- उद्योगों से राष्ट्रीय आय का 26% भाग प्राप्त होता है और उन में कार्यशील जनसंख्या के लगभग 15% भाग को रोजगार प्राप्त हो है
- यही नहीं उद्योगों में उपभोग उद्योगों की प्रधानता रही है
- पूंजीगत एवं आधारभूत उद्योगों की प्रगति धीमी रही है
- यद्यपि योजनाबद्ध विकास के अंतर्गत लोह इस्पात मशीन निर्माण भारी रसायन विद्युत आदि उद्योगों का विकास हुआ है
- फिर भी वह नगण्य है औद्योगिक करण में काफी क्षेत्रीय विषमता है
- जहां एक और पश्चिम बंगाल बिहार महाराष्ट्र गुजरात एवं तमिलनाडु औद्योगिक दृष्टि से विकसित है
- वहां दूसरी ओर आसाम उड़ीसा जम्मू और कश्मीर तथा राजस्थान काफी पिछड़े हुए हैं
- असंतुलित औद्योगिक विकास का ढांचा औद्योगिक पिछड़ेपन का कारण है
- लघु एवं कुटीर उद्योग भी काफी पिछड़े हुए हैं औद्योगिक क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर 9वी योजना काल में 4.5% थी
- जो कि लक्षित दर 8.7% से बहुत कम थी
- वर्ष 2006 में अग्रिम अनुमानों के अनुसार यह दर 9% है
5 जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि
- भारत में जनसंख्या अधिक है जिससे जनसंख्या का भार निरंतर बढ़ता जा रहा है
- भारत में विश्व की 16.87% जनसंख्या है किंतु क्षेत्रफल है 2.4 प्रतिशत ही जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व है
- जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 1.0% है प्रतिवर्ष 24 करोड बच्चे जन्म लेते हैं
- और हर वर्ष एक नए आस्ट्रेलिया का निर्माण होता है
- इसी तीव्र वृद्धि के कारण जहां 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी
- वह बढ़कर मार्च 2011 को 125 करोड़ से अधिक हो गई है तथा अब 125 करोड़ से अधिक है
- इस विस्फोटक वृद्धि से अनेक सामाजिक एवं आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं
6 व्यापक बेकारी एवं अर्ध बेकारी
- भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास एवं तीव्र जनसंख्या वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था में बेकारी एवं अर्थ बेकारी निरंतर बढ़ रही है
- प्रथम योजना के शुरू में बेरोजगारों की ओर 4500000 थी जिसके अब बढ़कर 65 करोड होने की संभावना है
- जबकि विभिन्न योजनाओं में लगभग 245 करोड अतिरिक्त लोगों को रोजगार प्रदान किया गया है
- कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आज बेकारी मौसमी बेकारी एवं छिपी हुई बेकारी की समस्या विकट है
7 अर्थव्यवस्था की दोहरी प्रकृति
- भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता है कि इसके विभिन्न क्षेत्रों में दोहरा स्वरूप देखने को मिलता है
- एक और अर्थव्यवस्था का व्रत ग्रामीण क्षेत्र पर चढ़ा रूढ़िवादी अनपढ़ एवं आधुनिक सभ्यता से परे लगता है
- वहां दूसरी और छोटे-छोटे विकसित समृद्ध शिक्षित एवं आधुनिक लगता है
- जहां ग्रामीण क्षेत्रों में बैलगाड़ी खच्चर एवं उठे तो शहरों में रेल मोटर एवं वायु यान जैसी तकनीकी सुविधाएं हैं
- जहां एक और बड़े पैमाने के 20 साल आधुनिक कारखाने हैं
- तो दूसरी और लघु एवं कुटीर उद्योगों की प्रधानता है
- एक और धनी एवं विश्व जीवन है तो दूसरी और आर्थिक दरिद्रता भुखमरी एवं बेकारी है
- कुछ लोग अधिक खाने से मरते हैं तो अधिकांश लोग अभावों से मरते हैं
8 पूंजी निर्माण की धीमी गति
- आर्थिक दरिद्रता और निम्न आय के कारण अर्थव्यवस्था में बचत एवं विनियोग का स्तर नीचा रहता है
- जहां विकसित देशों में पूंजी निर्माण की दर 25% से 35% है
- वहां भारत में पूंजी निर्माण की समायोजित दर 1950-51 में 8.7% थी जो 2003-04 मैं बढ़कर 26.3% हो गई है
9 निर्धनता का दुष्चक्र
http://भारतीय अर्थव्यवस्था निर्धनता एवं गरीबी के कुछ चक्कर में फंसी हुई है जब तक यह खुद चक्कर नहीं तोड़े जाते निर्धनता निरंतर बनी रहेगी जहां एक और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण उत्पादन आए एवं रोजगार का स्तर नीचा है
- वहां दूसरी और निम्न आय एवं रोजगार के कारण उपभोग बचत एवं पूंजी निर्माण के निम्न स्तर से आर्थिक पिछड़ापन है
- इस प्रकार के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए भीषण प्रहार की जरूरत है
10 बाजार की अपूर्णताएं
अर्ध विकसित देशों की तरह भारत में भी वक्त बाजार की कई अपूर्णता ओं के दर्शन होते हैं
जैसे उत्पादन के साधनों की गतिशीलता बाजार की परिस्थितियों की अज्ञानता मूल्यों की वेलोसिता विशिष्ट कर्ण का अभाव तथा बेरोजगार ढांचा अपर्याप्त मांग संकुचित बाजार कठोर आर्थिक एवं सामाजिक ढांचा इससे साधनों का सर्वोत्तम उपयोग एवं अधिकतम उत्पादन संभव नहीं हो पाता है
कभी-कभी तो आर्थिक साधनों का दुरुपयोग भी हो जाता है मुद्रा बाजार असंगठित होने से वित्तीय साधनों का अभाव है
भारतीय अर्थव्यवस्था
11 नियोजित एवं विकासशील मिश्रित अर्थव्यवस्था
http://भारतीय अर्थव्यवस्था जहां एक और योजनाबद्ध तरीके से विकासशील है वहां दूसरी और इसमें समाजवाद और पूंजीवाद का अजीब समन्वय है
अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के साथ-साथ संयुक्त एवं सहकारी क्षेत्रों का भी समावेश किया गया है यह सभी अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करते हुए समग्र विकास के लिए प्रत्याशी लाएं पिछले 56 वर्षों के योजनाबद्ध विकास से भारतीय मिश्रित अर्थव्यवस्था तेजी से विकास के मार्ग पर अग्रसर हो रही है
वर्ष 2003 4 के अंत तक 1993 94 की कीमतों पर राष्ट्रीय उत्पादन लगभग 8 गुना तथा प्रति व्यक्ति आज गुनी हो गई है
12 भारतीय अर्थव्यवस्था की मानसून पर निर्भरता
भारतीय कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था की समृद्धि बहुत कुछ मानसून पर निर्भर करती है क्योंकि सिंचाई के साधनों के अभाव में कृषि उत्पादन में वृद्धि अनुकूल मानसून से ही संभव होती है अच्छी फसलों से कृषि में रोजगार और आय बढ़ती है कृषि आधारित उद्योगों को कच्चा माल मिलता है उनके निर्मित माल की खपत संभव होती है व्यापार पनपता है संचार साधनों में गति आती है और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में खुशहाली एवं संपन्नता का मार्ग प्रशस्त होता है जबकि मानसून की प्रतिकूलता एवं असफलता से कृषि के साथ-साथ व्यापार एवं औद्योगिक क्षेत्र भी चौपट हो जाता है सभी क्षेत्रों में रोजगार एवं विनियोग में कमी से निराशा गरीबी बेकारी एवं भुखमरी से अकाल आम बात है
13 आधुनिक तकनीकी ज्ञान की कमी
http://भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी बड़े पैमाने पर रूढ़िवादी एवं भाग्यवादी सामाजिक ढांचे में डाली हुई है जिसमें अनेक कुरीतियां मृत्यु भोज बाल विवाह फिजूलखर्ची संयुक्त परिवार प्रथा पर्दा प्रथा आदि व्याप्त है प्रगतिशील दृष्टिकोण के अभाव में विकास के प्रति रुचि नगण्य है अब शिक्षा के प्रसार से सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना जागृत हुई है फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में चेतना की कमी है
14 क्षेत्रीय विषमताए
देश में योजनाओं के क्रियान्वयन से क्षेत्रीय विषमता घटने के स्थान पर बढ़ी हैं जहां एक और पंजाब हरियाणा पश्चिम बंगाल महाराष्ट्र तथा गुजरात में आर्थिक समृद्धि तेजी से बढ़ी है वहीं दूसरी ओर राजस्थान आसाम जम्मू कश्मीर एवं उड़ीसा विकसित क्षेत्रों के मुकाबले काफी पिछड़ गए हैं
15 मुद्रा स्पीति एवं बढ़ते मूल्य
भारत में योजनाबद्ध विकास के साथ-साथ मुद्रास्फीत का प्रभाव बढ़ा है और मूल्यों में निरंतर वृद्धि हुई है विकास योजनाओं में बड़े पैमाने पर ही नार्थ प्रबंधन सुरक्षा पर बढ़ते वह और मांग के मुकाबले पूर्ति की धीमी गति के कारण भारत में पिछले 30 वर्षों में मूल्यों में लगभग 6 गुना वृद्धि हुई है
16 निम्न जीवन स्तर
भारतीय जनता का जीवन स्तर विकसित देशों के मुकाबले में काफी नीचा है देश की 26% जनसंख्या निर्धनता रेखा के नीचे है औसत भारतीयों को 2000 कैलोरी भोजन मिलता है जबकि जीवन के लिए 3000 कैलोरी अनिवार्य है 2003 04 में औसतन प्रति भारतीयों को प्रतिदिन 436 ग्राम खाद्यान्न एवं दाले प्रतिवर्ष किलोग्राम खाद्य तेल 16.5 किलोग्राम चीनी तथा 37 मीटर कपड़ा मिलता है जो सुखी जीवन के लिए अपर्याप्त है
17 विनिमय व्यवस्था का सीमित होना
देशों में उत्पादन विनिमय के लिए किया जाता है भारत के विश्व के अन्य 6 देशों में अधिकांश व्यक्ति विशेष रुप से कृषक स्वयं के उपयोग की चिंता पहले करते हैं यही कारण है कि खाद्यान्नों के उत्पादन का एक बटे तीन भाग बाजार में बिकने आता है गैर कृषि क्षेत्र में शामिल व्यक्तियों में से अधिकांश व्यक्ति ग्रामीण उद्योगों में कार्यरत हैं जो कृषकों की जरूरतों पूरी करते हैं गांव में इन सेवाओं के बदले मुद्रा के स्थान पर कृषि पदार्थ प्राप्त होते हैं