स्पष्ट है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यत-अल्प-रोजगार, मौसमी बेरोजग तथा प्रच्छन्न बेरोजगारी विद्यमान होती है, जबकि शहरी क्षेत्रों में खुली बेरोजगारी एवं शिाक्षा बेरोजगारी होती है । बेरोजगारी की अवस्था उस समय उत्पन्न होती है जब उपलब्ध रोजगार के अवसरों की में श्रम-शक्ति के विकास की दर अधिक होती है ।
1 संरचनात्मक बेरोजगारी Structural unemployment
सामाजिक आर्थिक एवं तकनीकी विकास के परिणाम स्वरूप उद्योगों का विस्तार होता है जबकि कुछ अन्य उद्योग धीरे-धीरे संकुचित होते जाते हैं
यदि भौगोलिक एवं तकनीकी दृष्टि से सर में पूर्णता गतिशील हो तो संकुचित होने वाले उद्योगों के श्रमिक नए उद्योगों में ख पाए जा सकते हैं परंतु वास्तव में श्रम इन दृश्यों से पूर्णता गतिशील नहीं होता
जिसके कारण कुछ http://बेरोजगारी उत्पन्न होती है औद्योगिक जगत में इस प्रकार के संरचनात्मक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाली_बेरोजगारी संरचनात्मक बेरोजगारी कहलाती है
2 छिपी हुई बेरोजगारी Disguised unemployment
इसके अंतर्गत श्रमिक बाहर से तो काम पर लगे हुए प्रतीत होते हैं किंतु वास्तव में उन श्रमिकों की उस कार्य में आवश्यकता नहीं होती अर्थात उनकी सीमांत उत्पत्ति सुनने या नहीं के बराबर होती है
वास्तव में यदि उन श्रमिकों को उस कार्य से निकाल दिया जाए तो कुल उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि तथा उद्योगों में जनसंख्या के भारी दबाव में रोजगार अवसरों के अभाव में छिपी हुई बेरोजगारी चरम सीमा पर है इसको अदृश्य बेकारी भी कहते हैं
3 खुली बेरोजगारी Open Unemployment
इससे तात्पर्य उस बेरोजगारी से है जिसके अंतर्गत श्रमिकों को बिना किसी कामकाज के रहना पड़ता है उन्हें थोड़ा बहुत भी काम नहीं मिलता है
भारत में बहुत से श्रमिक गांव से शहरों की तरफ काम प्राप्त करने के लिए जाते हैं किंतु काम उपलब्ध न होने के कारण वहां बेरोजगार पड़े रहते हैं
इसके अंतर्गत मुख्यतः शिक्षित बेरोजगार तथा साधारण बेरोजगार श्रमिकों को सम्मिलित किया जाता है
4 चक्रीय बेरोजगारी Cyclical unemployment
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में जब मांग और पूर्ति में असंतुलन से तेजी से मंदी का कुचक्र बेकारी का कारण बनता है तो कई लोग बेकार हो जाते हैं तो वह चक्रीय बेकारी है
मंदी काल में वस्तुओं के भावों में कमी तथा उत्पादन अधिक कैसे बेकारी का तांडव नृत्य होता है 1930 की आर्थिक मंदी या युद्ध तत्कालीन मंदी आदि चक्रीय बेरोजगारी के उदाहरण हैं।
5 मौसमी बेरोजगारी Seasonal unemployment
इसके अंतर्गत किसी विशेष मौसम या अवधि में प्रति वर्ष उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को सम्मिलित किया जाता है
भारत में रवि और खरीफ की फसलों के बीच की अवधि में मानसून ने आने तक किसानों को बेकार बैठना पड़ता है इस प्रकार चीनी गुड़ आदि उद्योगों में काम केवल मौसम में होता है बाद में बेकार बैठना पड़ता है
लघु एवं कुटीर उद्योगों के पतन से मौसमी बेरोजगारी अधिक कष्टप्रद हुई है सिंचाई के साधनों के विकास बहु फसल योजना तथा राहत कार्यों आदि से समस्या पर कुछ काबू पाया जा सकता है
6 शहरी बेरोजगारी Urban unemployment
शहरी क्षेत्र में प्राय खुले किस्म की बेरोजगारी पाई जाती है इसमें औद्योगिक बेरोजगारी तथा शिक्षित http://बेरोजगारी को सम्मिलित किया जाता है
7 ग्रामीण बेरोजगारी Rural unemployment
इसे कृषि गत बेरोजगारी भी कहा जाता है भारत में ग्रामीण बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या बनी हुई है इस प्रकार की बेरोजगारी के सही आंकड़े भी उपलब्ध नहीं है
8 औद्योगिक अथवा तकनीकी बेरोजगारी (Industrial or technological unemployment)
उत्पादन कार्य में विज्ञान और तकनीकी ज्ञान के विस्तार से जब सुधरी तथा स्वचालित मशीनों का प्रयोग होता है तो दो प्रकार से बेकारी बढ़ती है
पहले जो लोग नई मशीनों को चलाने में अयोग्य होते हैं उन्हें काम से हाथ धोना पड़ता है तथा दूसरे स्वचालित मशीनों में श्रमिकों की कम आवश्यकता पड़ती है
कृषि में भी वैज्ञानिक तरीकों से बेकारी की अधिक संभावना बढ़ती है भारत में कृषि तथा उद्योग दोनों में तकनीकी बेरोजगारी का क्षेत्र व्यापक है और
इसलिए उद्योगों में नवीनीकरण विवेकी करण वैज्ञानिक की करण की गति धीमी है ताकि विवेकी कारण बिना आंसुओं के संभव हो सके
बेरोजगारी
9 अस्थाई बेकारी (Sudden unemployment)
बाजार की दशा में परिवर्तन होने से उत्पन्न बेरोजगारी के घटनात्मक बेरोजगारी कहते हैं बाजार की मांग देश में उपलब्ध साधनों पर निर्भर करती है इनकी उपलब्धता में परिवर्तन हो जाने पर मांग पक्ष प्रभावित होता है
कभी-कभी किसी व्यापारिक अथवा औद्योगिक इकाइयां समूचे उद्योग पर अचानक संकट से उद्योग बंद हो जाते हैं तो उसमें नियोजित व्यक्ति जब तक दूसरी जगह काम पर नहीं लग जा पाते अस्थाई रूप से अचानक बेरोजगार हो जाते हैं
ठीक इसी प्रकार कृषि पर आधारित धंधे अकाल से थोड़े समय के लिए ठप हो जाते हैं तो यह बेकार है आस्थाई तथा आत्मिक कही जाती है
इस प्रकार कच्चे माल के अभाव विद्युत शक्ति के अभाव या मशीनों की टूट-फूट हो जाने से भी कुछ समय के लिए कारखाने बंद कर दिए जाते हैं
10 शिक्षित तथा अशिक्षित बेरोजगारी (Educated and uneducated unemployment)
- जब देश में शिक्षित वर्ग में बेकारी होती है तो उस शिक्षित बेरोज -गारी कहा जाता है
- और जब अशिक्षित ओं की इच्छा तथा योग्यता होने पर भी वर्तमान वेतन दर रोजगार उपलब्ध नहीं होता है तो ऐसे क्षित बेरोज-गारी कहा जाता है
- भारत में शिक्षित बेकारी के दो स्वरूप है सामान्य शिक्षा प्राप्त बेकार ओं की संख्या अधिक है
- जबकि तकनीकी तथा वैज्ञानिक शिक्षा प्राप्त लोगों की बेकारी कम है
- जब शिक्षित हो में ही बेकारी है तो अशिक्षित की बेकारी तो उनकी पूर्ति बहुत अधिक और मांग कम होने से चरम सीमा पर है यही कारण है
- कि शिक्षकों में छिपी हुई तथा अदृश्य बेरोजगारी का बोलबाला है
11 अल्प रोजगार
- इसके अंतर्गत ऐसे श्रमिक आते हैं जिनको थोड़ा बहुत काम मिलता है और
- जिनके द्वारा वह कुछ अंशों तक उत्पादन में योगदान देते हैं किंतु इनके अपनी क्षमता अनुसार काम नहीं मिलता या पूरा काम नहीं मिलता
- इसमें कृषि में लगे श्रमिक भी आते हैं जिन्हें करने के लिए कम काम मिलता है
- भारत में अल्प रोजगार के दो स्वरूप हैं दृश्य और अदृश्य
दृश्य
- दृश्य अल्प रोजगार को मापा जा सकता है यह सुस्त मौसम में कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों में पाया जाता है
- इसका विशेष प्रभाव गांव में व रोजगार प्राप्त महिलाओं में देखा जाता है
- इसका आधार समय होता है अर्थात काम की अवधि कम होती है
अदृश्य
- अदृश्य अल्प रोजगार का प्रत्यक्ष रूप से माप नहीं हो सकता यह स्वरोजगार में लगे व्यक्तियों में वर्ष भर पाया जा सकता है
- और अपर्याप्त काम है के कारण यह अल्प उत्पादकता व अल्फा मदनी के रूप में प्रकट होते हैं
- ऐसे व्यक्ति अपनी आय बढ़ाने के लिए अतिरिक्त काम या वैकल्पिक काम करना चाहते हैं