- भारत में लगभग 18वीं शताब्दी में राष्ट्रीय पतन के समय आर्थिक व धार्मिक रूप से भारतीय समाज प्राचीन रूढ़िवादी में जकड़ा हुआ था। देश में महिलाओं की दयनीय स्थिति थी, कठोर जाति प्रथा, आधारहीन सामाजिक रीति रिवाज तथा बाल विवाह, बाल हत्या, विधवाओं के साथ अत्याचार आधी कुप्रथाओं में आमूलचूल परिवर्तन हुआ। पुनर्जागरण के द्वारा हमारे देश में भी सुधार प्रारंभ करने की प्रेरणा दी अतः इसी समय 19वी व 20 वीं सदी में धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ हुआ। इस समय महान समाज व धर्म सुधारकों ने हमारे समाज की कमियां में बुराइयों का विश्लेषण करके उन्हें दूर करने के प्रयास किए गए इनके द्वारा किए गए प्रयास ही सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलन के नाम से जाने जाते हैं।
सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलन के प्रमुख कारण
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बहुत अधिक देश का आर्थिक शोषण किया गया।
- अंग्रेजों के समय भारत में नए मध्यम वर्ग का उदय हुआ- बुद्धिजीवी, डॉक्टर, शिक्षक, वकील, पत्रकार आदि।
- अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार के माध्यम से शिक्षित भारतीय अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम, फ्रांस की राज्य क्रांति वहां की बढ़ती हुई राष्ट्र भावना से परिचित हुए।
- भारत में इस नवजागरण के द्वारा भारतीय समाज एवं धार्मिक विचारधारा क्रांतिकारी परिवर्तन हुए।
- परिवर्तनों का श्रेय-राजा राममोहन राय एवं उनके ब्रह्म समाज, दयानंद सरस्वती एवं आर्य समाज, स्वामी विवेकानंद एवं रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी तथा अलीगढ़ आंदोलन को है।
- भारतीय समाज में ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भी पर्याप्त योगदान रहा है। इन्होंने स्त्री शिक्षा, स्त्रियों के उद्धार एवं बाल विवाह पर रोक लगाने के प्रयास किए गए।
देखिए साथियों इस टॉपिक को आपको पूरा ध्यान से और अच्छे से पढ़ना है देखिए इस टॉपिक में आगे पढ़ेंगे जिन जिन व्यक्तियों का धार्मिक व सामाजिक सुधार आंदोलन में योगदान रहा है उनका विस्तार से अध्ययन करेंगे।
भारत में सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलन से संबंधित प्रमुख व्यक्ति
- शासन में स्थायित्व इस प्रकार के आंदोलनों को चलाने की स्थाई शर्त होती है। क्योंकि समाज नये परिवर्तन को आसानी से स्वीकार कर लेता है।
राजा राममोहन राय – ब्रह्म समाज
राजा राममोहन राय धार्मिक पुनर्जागरण
- जन्म (date of birth) – 22 मई 1772
- जन्म स्थान (birth of palace) – बंगाल के हुगली जिले के राधानगर स्थान पर हुआ।
- पिता का नाम – राधाकांत देव
- माता का नाम – तारिणी देवी
- भाई का नाम – जगमोहन राय
- कुल विवाह – 3
- प्रारंभिक शिक्षा – कोलकाता (बंगाली भाषा में)
- राजा राममोहन राय ने कुल 3 विवाह किए। जिनमें से प्रथम दो कि जल्दी मृत्यु हो गई।
- राम मोहनराय को प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में बंगाली भाषा में दी गई।
- अरबी व फारसी की शिक्षा उन्होंने पटना के मदरसा में प्राप्त की थी।
- वाराणसी में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया था।
- अंग्रेजी शिक्षा के लिए मुर्शिदाबाद के डिप्टी मजिस्ट्रेट जॉन बुडरोक डिप्टी के पास क्लर्क के पद पर कार्य किया।
- राममोहन राय भारत की तुरंत स्वतंत्रता के पक्ष में नहीं थे। बल्कि वे चाहते थे कि अंग्रेज भारतीयों को प्रशासन में शामिल करके उन्हें शिक्षा प्रदान करें।
- राममोहन राय ईसाई धर्म की नीति शास्त्र, इस्लाम धर्म के एकेश्वरवाद, सूफी धर्म के रहस्यवाद से प्रभावित थे।
राजा राम मोहन राय द्वारा किए गए प्रयास
- 1807 ईस्वी में फारसी भाषा में मूर्ति पूजा के विरुद्ध तुहफाल उल मुवाहिदीन अर्थात एकेश्वरवादियों नामक लेख लिखा था।
- 1811 ईसवी में इनके भाई जगमोहन की मृत्यु होने पर उनकी पत्नी को सती किया गया। इस दृश्य को देखकर राजा राममोहन राय सती प्रथा के विरोधी हो गए।
- 1814 ईसवी में कोलकाता में”आत्मीय सभा ” की स्थापना की ।
- 1817 इसवी में डेविड हेयर को कोलकाता में हिंदू कॉलेज की स्थापना में सहयोग प्रदान किया।
- 1821 में बंगाली भाषा में “संवाद कौमुदी” नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया। यह किसी भारतीय द्वारा देसी भाषा में प्रकाशित प्रथम समाचार पत्र था।
- इसके अलावा 1822 में फारसी भाषा में “मिराततुल दर्पण” नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया।
- राजा राममोहन राय को भारतीय पत्रकारिता का अग्रदूत कहा जाता है।
ब्रह्म समाज :-
- 20 August 1828 को कोलकाता में कमल घोष के घर पर ब्राह्मण वर्ण की संस्था ब्रह्म समाज की स्थापना की स्थापना की।
ब्रह्म समाज के प्रमुख उद्देश्य
- हिंदू समाज की बुराइयों को दूर करना।
- ईसाई धर्म के भारत में बढ़ते प्रभाव को रोकना।
- सभी धर्मों में आपसी एकता स्थापित करना।
ब्रह्म समाज के मूल सिद्धांत
- ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वगुण संपन्न है।
- ईश्वर कभी भी शरीर धारण नहीं करता। इसलिए मूर्ति पूजा से ईश्वर नहीं मिलता है।
- ईश्वर की प्रार्थना का अधिकार सभी जाति और वर्ग के लोगों को है। ईश्वर की पूजा के लिए मंदिर, मस्जिद आदि की कोई आवश्यकता नहीं है।
- सच्चे दिल से की गई प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनता है।
- आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रार्थना आवश्यक है।
- आत्मा अजर और अमर है।
- प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
- सभी धर्मों और धर्म ग्रंथों के प्रति आदर की भावना रखनी चाहिए।
मोहनराय के आगे के प्रयास
- राजा राममोहन राय के प्रयासों से बंगाल के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिंग ने 4 दिसंबर 1829 को एक कानून लागू किया। जिसकी धारा 17 के तहत ब्रिटिश भारत को सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया गया।
- 1833 के चार्टर में इसे संपूर्ण भारत में लागू कर दिया गया
- राजा राममोहन राय के ही सहयोगी रहे राधाकांत देव 1830 में “धर्म सभा”की स्थापना कर दी। इसका विरोध किया गया।
- 1830 में मुगल शासक अकबर द्वितीय ने अपनी पेंशन बढ़ाने के लिए राजा राममोहन राय को इंग्लैंड के साथ साथ विलियम चतुर्थ के पास भेजा। इस अवसर पर राजा की उपाधि दी गई।
- बंगाल के नवाबों के द्वारा राजा राममोहन राय के पूर्वजों को राय की उपाधि दी गई।
- यूरोप जाने वाले यह प्रथम भारतीय थे 27 सितंबर 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल शहर में डॉक्टर कारपेटर के निवास स्थान पर राजा राममोहन राय की मृत्यु हुई।
- ब्रिस्टल में इनकी समाधि है क्योंकि उस समय इंग्लैंड में अग्नि दाह संस्कार की अनुमति नहीं होती थी।
- उनकी समाधि पर अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ के द्वारा लिखित ” हरीकेली नाटक”की पंक्तियों को भी लिखा गया है।
राजा राममोहन राय की पुस्तकें
राजा राममोहन राय के द्वारा निम्न पुस्तकें लिखी गई:-
- The precepts of Jesus the Guide to peace and happiness
- Precept of Jesus
- तूहफात- उल-मुवाहेदिन
सुभाष चंद्र बोस ने राजा राम मोहन राय को युगदूत की उपाधि दी। इसके अलावा पुनर्जागरण का तारा अतीत तथा भविष्य के मध्य सेतु तथा राष्ट्रवाद का जनक कहा जाता है।
- राजा राममोहन राय के बाद द्वारिका नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया।
- 1843 में उन्होंने अपने बेटे देवेंद्रनाथ टैगोर को ब्रह्म समाज का नेतृत्व सौंपा।
- 1857 में केशव चंद्र सेन ब्रह्म समाज के सदस्य बने व 1862 में आचार्य के पद पर नियुक्त हुए।
केशव चंद्र सेन
- केशव चंद्र सेन के कारण ब्रह्म समाज को पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया था क्योंकि केशव चंद्र सेन ने कोलकाता से बाहर प्रसार किया सभी वर्णो धर्मों के लोगों को इसका सदस्य बनाया।
- इस कारण से देवेंद्र नाथ से इनका विवाद हो गया।
- 1865 में केशव चंद्र सेन को ब्रह्म समाज से निष्कासित किया गया था।
- 1866 में केशव चंद्र सेन ने भारतीय ब्रह्म समाज की स्थापना की जो समाज देवेंद्र नाथ के नेतृत्व में रह गया उसे आदि ब्रह्म समाज कहां गया।
- भारतीय ब्रह्म समाज के कारण 1872 में अंतर्जातीय व विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लागू हुआ जिसमें की बाल विवाह को अपराध घोषित किया गया था
- परंतु स्वयं केशव चंद्र सेन ने 1878 में अपनी 12 वर्षीय पुत्री सुनीति देवी का विवाह कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) के युवराज निपेंद्र नारायण से कर दिया।
- इसी कारण भारतीय ब्रह्म समाज में फूट पड़ी जिन लोगों ने केशव चंद्र सेन का साथ छोड़ा उनको समाज को साधारण ब्रह्म समाज कहां गया जिसका नेतृत्व आनंद मोहन गोष व सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने किया।
प्रार्थना समाज
- प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 ईसवी में मुंबई में आत्माराम पांडुरंग ने की थी।
- एमजी रानाडे, आरजी भंडारकर भी इससे जुड़ गए।
- इन्होंने भी जाति प्रथा का विरोध किया व अंतरजातीय विवाह एवं विधवा विवाह का पुरजोर समर्थन किया
- इन्होंने विधवा पुनर्विवाह एसोसिएशन की स्थापना की।
स्वामी दयानंद सरस्वती – आर्य समाज
स्वामी दयानंद सरस्वती
- जन्म – 12 फरवरी 1824
- जन्म स्थान – गुजरात के मोरवी जिले के टंकारा नामक गांव में हुआ।
- बाल्यावस्था का नाम – मूलशंकर
- 24 साल की आयु में दंडस्वामी पूर्णानंद से शिक्षा प्राप्त की।
- इसके बाद इन्हें दयानंद सरस्वती नाम दिया गया।
- 1860 में मथुरा के आचार्य विरजानंद से इन्होंने वेदों की शिक्षा ली जिसके बाद नारा दिया था-वेदो की ओर लोटो
- इन्हें दयानंद नाम अपने गुरु विरजानंद ने दिया था।
शुद्धि आंदोलन
- स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारत में शुद्धि आंदोलन चलाया क्योंकि यह डलहौजी के 1850 ईसवी के लागू किए गए धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम की धारा 21 की प्रतिक्रिया के वादी के कारण चलाया।
- इन्होंने वैदिक धर्म में व्याप्त बुराइयों के विरुद्ध पाखंड खाउनि पताका को फहराया
- उन्होंने स्वराज्य शब्द का प्रथम बार प्रयोग किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती का कथन
- इनका कथन था” बुरे से बुरा देसी राज्य अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य की तुलना में बेहतर होगा”
एनीबेसेंट का कथन
एनीबेसेंट
- एनी बेसेंट का कथन था “भारत भारतीयों का है। यह लिखने वाले दयानंद सरस्वती प्रथम भारतीय थे।
आर्य समाज
- 10 April 1875 को उन्होंने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की।
- 1877 में इसके मुख्यालय को लाहौर में स्थानांतरित किया गया।
- केशव चंद्र सेन के कहने पर इन्होंने आर्य समाज की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश का लेखन कार्य हिंदी भाषा में किया गया। इसे मुंबई में लिखना प्रारंभ किया गया।
- इसका अधिकांश भाग उदयपुर में लिखा गया व अजमेर में इसका प्रारंभिक प्रकाशन है।
- राजस्थान में 4 शासक इनके शिष्य थे :-
- मदनपाल – करौली
- नारसिंह – शाहपुरा
- सज्जन सिंह – उदयपुर
- जसवंतसिंह -ll – जोधपुर
दयानंद सरस्वती के बारे में
- जसवंत सिंह-ll तथा इनके प्रधानमंत्री प्रताप सिंह नए-नए आमंत्रण देकर जोधपुर बुलाया था।
- जसवंत सिंह-ll की प्रेमिका नन्ही जान ने बड़ा काम करते हुए दयानंद सरस्वती को भोजन में कांच पीसकर या जहर मिलाकर खिला दिया।
- इलाज के लिए इन्हें माउंट आबू ले जाए ले जाया गया।
- 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में इनकी मृत्यु हो गई।
- वेलेंटाइन शिरोल ने अपने पुस्तकें unrest india मैं तिलक व आर्य समाज को भारतीय अशांति का जन्मदाता कहा गया।
- दयानंद सरस्वती के बाद शिक्षा को लेकर आर्य समाज के दो गुट बन गए थे।
आर्य समाज के दो गुट
- प्राच्य अर्थात देसी शिक्षा के समर्थक लाला मुंशी राम थे।
- इन्होंने 1901- 02 में हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की।
- इसमें वैदिक शिक्षा दी जाती थी।
- मुंशी राम स्वामी श्रद्धानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए इन्हीं के द्वारा महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका में 1500 रुपए का मनी ऑर्डर किया था। इन्हीं के पैसों की टिकट खरीद कर महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए।
- पाश्चात्य शिक्षा के समर्थक लाला हंसराज व लाला लाजपत राय थे। इन्होंने 1886 में दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल की स्थापना की। तथा इसमें 1889 में कॉलेज बनाया गया।
स्वामी विवेकानंद
धार्मिक पुनर्जागरण
- जन्म – 12 जनवरी 1863
- जन्म स्थान – कोलकाता
- बाल्यावस्था का नाम – नरेंद्र नाथ दत्त
- पिता का नाम – विश्वनाथ
- माता का नाम – भुनेश्वरी देवी
- कोलकाता में स्थित काली माता के मंदिर (दक्षिणेश्वर) के पुजारी गजाधर आचार्य या रामकृष्ण परमहंस से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की।
- खेतड़ी के शासक अजीत सिंह विवेकानंद के मित्र थे। दोनों की प्रथम मुलाकात मुंबई में जोधपुर के प्रधानमंत्री प्रताप सिंह ने करवाई।
- विवेकानंद तीन बार खेतड़ी आए:-
- 1891
- 1893
- 1897
- जब यह दूसरी बार आए थे तब अजीत सिंह ने इनको विवेकानंद नाम दिया व पगड़ी प्रदान की।
अजीत सिंह
- अजीत सिंह ने इनके लिए नृत्य का आयोजन रखा। परंतु नृत्यांगना मैणा बाई ने जैसे ही नृत्य प्रारंभ किया विवेकानंद उठकर जाने लगे और मैणा बाई ने सूरदास का भजन सुनाया, विवेकानंद ने इनको मां बोलकर संबोधित किया।
1893 में शिकागो में प्रथम विश्व धर्म संसद जनवरी का आयोजन किया गया।
- रामानंद रियासत (तमिलनाडु) के शासक भास्कर सेथूपल्ली ने विवेकानंद के लिए तृतीय श्रेणी के टिकट करवा कर दी। इसको पता चलने पर अजीत सिंह ने अपने मुंशी जगमोहन लाल को भेजा।
- जगमोहन लाल ने ओरियंट कंपनी पेनिनशूना जहाज के प्रथम श्रेणी के टिकट करवा दी।
- ग्यारह सितंबर 1893 में शिकागो में आयोजित प्रथम विश्व धर्म संसद में भाषण दिया था।
- इस संसद के अध्यक्ष जॉन हैरास बोरो थे ।
न्यूयॉर्क हेराल्ड
- अगले दिन अमेरिका के समाचार पत्र न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा था इस युवा तूफानी प्रचारक को सुनने के बाद पश्चिम देशों के द्वारा भारत में धर्म प्रचारक भेजना एक मूर्खतापूर्ण कार्य है।
- इसके बाद 1895 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।
- इसके बाद में इंग्लैंड आए जहां माग्रेट नोबेल इनकी शिष्य बनी थी। जोकि सिस्टर निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- इसके बाद ये श्रीलंका आए तथा पूर्व में अपना प्रथम सार्वजनिक भाषण उन्होंने कोलंबो में दिया था इसके बाद ये भारत आए।
- 1 मई 1897 को कोलकाता के बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन की स्थापना हुई।
- इसके अलावा उत्तराखंड के अल्मोड़ा नामक स्थान पर मायावती मठ स्थापित किया गया।
- 1899 में यह पुन: अमेरिका गए। 1900 ईसवी में पेरिस में आयोजित विश्व शांति सम्मेलन में भाग लिया।
- 4 July 1902 वेल्लूर मठ में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हुई।
- सुभाष चंद्र बोस ने विवेकानंद को भारत का अध्यात्मिक पिता कहां।
विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तकें
- मैं समाजवादी हूं
- राजयोग
- ज्ञान योग
- कर्म योग
- My master
- A journey from Colombo to to Almora
स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कथन
- हमारा धर्म केवल रसोई घर तक सीमित हो गया है।
- मैं ऐसे प्रत्येक शिक्षित भारतीयों को देशद्रोही मानता हूं जिसकी शिक्षा का लाभ निम्न वर्ग के लोगों तक ना पहुंचे।
- उठो जागृति हो वह तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस धार्मिक पुनर्जागरण
- जन्म – 18 फरवरी 1836
- जन्म स्थान – बंगाल के कमरपुकर
- पिता का नाम – शुदीराम
- माता का नाम – चंद्रा देवी
- असली नाम – गदाधर चट्टोपाध्याय
- रामकृष्ण मठ की स्थापना रामकृष्ण ने की
- रामकृष्ण परमहंस के सर्वाधिक प्रिय शिष्य नरेंद्र नाथ दत्त थे।
थियोसोफिकल सोसाइटी
- स्थापना – 1875
- कहां पर की गई – अमेरिका में
- किसके द्वारा की गई – मैडम एच. पी. ब्लावेटस्की और हेनरी स्टील आलकॉट
- इस सोसाइटी के द्वारा हिंदू धर्म को विश्व का सबसे अध्यात्मिक धार्मिक माना है।
- 1882 में मद्रास के समीप अंतरराष्ट्रीय कार्यालय स्थापित किया गया ।
- भारत में इस आंदोलन का श्रेय एक आयरिश महिला श्रीमती एनी बेसेंट को दिया गया जो कि 1893 में भारत आई और इस संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रचार प्रसार में लग गई।
- श्रीमती एनी बेसेंट ने 1898 में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की जो 1916 में पंडित मदन मोहन मालवीय के प्रयास से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में परिवर्तित हो गया।
मुस्लिम सुधार आंदोलन
हमदिया आंदोलन
मिर्जा गुलाम अहमद
- इस आंदोलन का प्रारंभ 1889-90 में मिर्जा गुलाम अहमद ने फरीदाकोट में किया
- इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों में आधुनिक बौद्धिक विकास प्रचार करना था।
- मिर्जा गुलाम अहमद ने हिंदू देवता कृष्णा और ईशा मसीह के अवतार होने का दावा किया ।
अलीगढ़ आंदोलन
सर सैयद अहमद
- इस आंदोलन को सर सैयद अहमद के द्वारा चला गया।
- वो इस आंदोलन के माध्यम से मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा का प्रसार करना चाहता था।
- इसने 1865 में अलीगढ़ मैं मोमडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की जो कि बाद में 1890 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।
- इस आंदोलन के माध्यम से सर सैयद अहमद में मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
देवबंद आंदोलन
- यह आंदोलन रूढ़िवादी मुस्लिमों के द्वारा चलाया गया इसका प्रमुख उद्देश्य विदेशी शासन का विरोध करना और मुसलमानों में कुरान की शिक्षा का प्रचार प्रसार करना
- यह आंदोलन मोहम्मद कासिम ननौतवी व रशीद अहमद गंगोही के द्वारा 1867 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में इस आंदोलन की स्थापना की
- यह अलीगढ़ आंदोलन का विरोधी था।
- देवबंद के नेता भारत में अंग्रेजी शासन के विरोधी थे उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा का विरोध किया।
सिख समुदाय आंदोलन
- 19वीं सदी में सिक्कों की संस्था सरीन सभा की स्थापना हुई।
- पंजाब का कुक आंदोलन सामाजिक व धार्मिक आंदोलन से संबंधित था।
- जवाहर मल और रामसिंह ने कूका आंदोलन का नेतृत्व किया
- पंजाब के अमृतसर में सिंह सभाआंदोलन चलाए गया।
- इन आंदोलनों के परिणाम स्वरूप 1922 में सिख गुरुद्वारा अधिनियम पारित किया गया जो कि आज तक भी कार्य कर रही है।
प्रमुख अन्य संस्थाएं और आंदोलन
- 1861 में शिवदयाल साहिब में आगरा में राधास्वामी आंदोलन चलाया।
- 1887 में नारायण अग्निहोत्री ने लाहौर में देव समाज की स्थापना की थी।
- गोपाल कृष्ण गोखले ने सन् 1851 में समाज सुधार के लिए भारतीय सेवा समाज की स्थापना की।
- सत्यशोधक समाज की स्थापना ज्योतिबा फुले ने की थी। इन्होंने गुलामगिरी नाम के पुस्तक की रचना भी की थी।
- केरल के बायकोम मंदिर में अछूतों के प्रवेश हेतु एक आंदोलन चलाया गया जिसका नेतृत्व श्री नारायण गुरु ने किया।
- एन मुदालियर ने जस्टिस पार्टी की स्थापना की ।
- 1924 में अखिल भारतीय दलित वर्ग की स्थापना बीआर अंबेडकर ने की थी तथा 1927 में बहिष्कृत भारत के नामा के के पत्रिका का प्रकाशन किया
- 1932 में हरिजन सेवक संघ की स्थापना महात्मा गांधी के द्वारा की गई।
- 1942 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के द्वारा अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ की स्थापना की गई
- भारत में महिलाओं के विकास के लिए श्रीमती एनी बेसेंट ने मद्रास में 1917 में भारतीय महिला संघ की स्थापना की ।
- 1920 में रामास्वामी नायकर दक्षिण भारत में आत्मसम्मान आंदोलन चलाया था।
ठीक है साथियों मुझे आशा है कि आपको यह जानकारी पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा और आपकी परीक्षा की दृष्टि से यह टॉपिक सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलन बहुत ही उपयोगी साबित होगा इसमें से काफी अच्छे सवाल पूछे जाते हैं जोकि आप इसे पढ़कर अच्छे से उत्तर दे पाएंगे यदि आपको सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलन इससे संबंधित जानकारी अच्छी लगी है तो आप मुझे कमेंट करके बताएं और अपने दोस्तों को आगे भी फॉरवर्ड करें धन्यवाद।
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