मराठा शासन माधवराव-प्रथम (1761-72) पानीपत के युद्ध में पराजय के बाद माधवराव ने मराठों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः बहाल करने का प्रयत्न किया उसने हैदराबाद के निजाम और मैसूर के हैदर अली को चौथ देने के लिए बाध्य किया। इस प्रकार दक्षिण भारत में मराठों के सम्मान को बहाल करने में मदद मिली। इसी के काल में मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को इलाहाबाद से दिल्ली लाया गया उसने मराठों की संरक्षिका स्वीकार कर ली परन्तु इसी बीच क्षयरोग से इसकी मृत्यु हो गई। इसकी मृत्यु के बाद मराठा राज्य गहरे संकट में आ गया। इतिहासकार ग्राण्ट डफ ने लिखा…
Author: NARESH BHABLA
मराठा शासन मराठा शासन शंभाजी (1680-1689) शिवा जी के बाद उनका पुत्र शम्भा जी गद्दी पर बैठा। शम्भा जी ने उत्तर-भारत के एक ब्राहमण कवि-कलश पर अत्यधिक भरोसा किया और उन्हें समस्त अधिकार प्रदान कर दिये। इस प्रकार शम्भा जी के समय से ही अष्ट-प्रधान का विघटन होना शुरू हो गया । औरंगजेब के पुत्र अकबर को शम्भा जी ने अपना समर्थन दिया था। शम्भा जी और कवि-कलश दोनों को पकड़ लिया गया और फाँसी दे दी गई। राजाराम (1689-1700) राजाराम को छत्रपति रायगढ़ में घोषित किया गया परन्तु मुगल सेनापतियों के दबाव के कारण ये वहाँ से भागकर कर्नाटक के जिंजी चले…
मराठा शासन मराठों की शक्ति को सर्वप्रथम पहचानने वाला व्यक्ति अहमद नगर का प्रमुख मलिक अम्बर था। उसने मुगलों के विरूद्ध युद्ध में मराठों को अपनी सेना में शामिल कर उनका उपयोग किया। प्रथम मुगल शासक जिसने मराठों को उमरावर्ग में शामिल किया जहाँगीर था। उसी के काल में मराठों को महत्ता मिली। परन्तु शाहजहाँ के काल से मराठों एवं मुगलों के बीच सम्बन्ध बिगड़ने लगे और उनमें संघर्ष प्रारम्भ हो गया। औरंगजेब के काल में यद्यपि हिन्दू सरदारों की संख्या सर्वाधिक थी और उसमें भी मराठों का प्रतिशत सबसे अधिक था फिर भी शिवा जी को एक अलग मराठा…
Sultanate era-Lodi dynasty ( लोदी वंश 1451 – 1526 ई.) बहलोल लोदी(1451-1489 ई) बहलोल लोदी ने अंतिम सैय्यद शासक आलमशाह को अपदस्थ कर लोदी वंश की स्थापना की। बहलोल लोदी की मुख्य सफलता जौनपुर (1484 ई.) राज्य को दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित करने की थी। उसने बहलोली सिक्के जारी किये, जो अकबर से पहले तक उत्तरी भारत में विनिमय के मुख्य साधन बने रहे। अब्बास खां शेरवानी कहता है कि, “बहलोल लोदी द्वारा दिल्ली की सत्ता हस्तगत करने पर अफगान टिड्डी के झुण्ड की तरह भारत की और चल पड़े।“ सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.) बहलोल लोदी के उपरांत सिकंदर लोदी दिल्ली…
सैय्यद वंश सैय्यद वंश तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में भारत में सल्तनत कालीन शासन की स्थापना हुई। कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 ईस्वी से लेकर इब्राहिम लोदी 1526 ईस्वी तक 32 सुल्तानों ने लगभग 320 वर्ष दिल्ली पर राज्य किया। इस में सर्वाधिक विस्तृत साम्राज्य अलाउद्दीन खिलजी के काल में था। जबकि सर्वाधिक दीर्घकालीन शासन फिरोज तुगलक का रहा। इस वंश का आरम्भ तुग़लक़ वंश के अंतिम शासक महमूद तुग़लक की मृत्यु के पश्चात ख़िज़्र ख़ाँ से 1414 ई. में हुआ सैयद वंश (1414-50)- सैयद भी तुर्क ही थे। इस वंश का संस्थापक मुल्तान का प्रान्तपति खिज्रखाँ था। खिज्र खाँ (1414-21) 1413-1414 ई. के बीच दौलत खां…
तुगलक वंश ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात् तुग़लक़ वंश की स्थापना की जिसने 1412 तक राज किया। इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1324-51) और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़ (1351-87)। इनमें से पहले दो शासकों का अधिकार क़रीब-क़रीब पूरे देश पर था। गयासुद्दीन तुगलक (गाजी मालिक) (1320-25)- तुगलक वंश का संस्थापक :— तुगलक गाजी गयासुद्दीन तुगलक के नाम से 1320 ई में दिल्ली का सुल्तान बना। वह मुबारक शाह खिलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत का गवर्नर था गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली का प्रथम सुल्तान जिसने अपने नाम के साथ गाजी (काफिरों का वध करने वाला) शब्द…
सल्तनत काल- खिलजी वंश खिलजी वंश खिलजी वंश:— खिलजी क्रांति से तात्पर्य है – सत्ता पर तुर्की अमीर वर्ग के एकाधिकार की समाप्ति। अब श्रेष्ठ पद जातीय व नस्लीय आधार पर नहीं अपितु योग्यता के आधार पर किए जा सकते थे। बलबन का राजस्व सिद्धांत जो कि रक्त की शुद्धता व उच्च कुलीनता पर आधारित था, खिलजी काल में समाप्त हो गया। अतः खिलजी क्रांति प्रशासन में व्यापक स्थानीय भागीदारी की दिशा महत्वपूर्ण थी। यद्यपि खिलजी सुल्तान भी तुर्क थे पर उन्होंने गैर तुर्कों को भी प्रशासन में शामिल किया। साम्राज्यवादी व आर्थिक नीतियों में उग्र व प्रबल परिवर्तन भी…
सल्तनत काल- इल्वारी वंश इल्वारी वंश प्रथम इल्बरी वंश (1211-66 ई)संस्थापक- इल्तुतमिशअंतिम शासक- नसीरुद्दीन महमूद द्वितीय इल्बरी वंश (1266-90)संस्थापक-बलबनउपनाम- जिल्ले इलाही (ईश्वर का प्रतिनिधि) इल्बारी वंश की स्थापना इल्तुतमिश (1210- 1236 ई.) ने की थी, जो एक इल्बारी तुर्क था। खोखरों के विरुद्ध इल्तुतमिश की कार्य कुशलता से प्रभावित होकर मुहम्मद ग़ोरी ने उसे “अमीरूल उमर” नामक महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किया था। अकस्मात् मुत्यु के कारण कुतुबद्दीन ऐबक अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था। अतः लाहौर के तुर्क अधिकारियों ने कुतुबद्दीन ऐबक के विवादित पुत्र आरामशाह, जिसे इतिहासकार नहीं मानते, को लाहौर की गद्दी पर बैठाया। दिल्ली के तुर्क सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबद्दीन…
सल्तनत काल- गुलाम वंश/ममलुक वंश गुलाम वंश 1206 से 1290 ई गुलाम वंश के प्रमुख शासक कालक्रमानुसार कुतुबुद्दीन ऐबक – 1206 से 1210 ईसवीशमसुद्दीन इल्तुतमिश – 1211 से 1136रजिया – 1236 से1240 ईसवीमोइनुद्दीन बहरामशाह- 1240 -1242 ईअलाउद्दीन मसूद शाह 1242-1246 ईनासिरुद्दीन महमूद- 1146-1265 ईबलबन – 1265-1287 ईकेकुबाद – 1287-90समसुद्दीन क्युमर्स – 1290 ई कुतुबुद्दीन ऐबक के माता-पिता तुर्किस्तान के तुर्क थे। तुर्की भाषा में युवक का अर्थ होता है चंद्रमा का स्वामी। 1206 से 1290 इसी तक तीन राजवंशो के 9 शासकों ने शासन किया यह वंश कुतुबी वंश, शम्सी वंश, बलबनी वंश थे इतिहासकार हबीबुल्ला ने गुलाम वंश को मामलुक…
सल्तनत काल- गजनवी और गौर वंश 977 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सुबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाइयां लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थीं। सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद_गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा। गजनवी महमूद_गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किए। उसने भारत पर 1001 से 1026 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किए। महमूद गजनवी यमनी वंश का तुर्क सरदार गजनी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। महमूद गज़नवी ये मध्य आशिया…