प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक Aryabhata ( आर्यभट्ट ) वैज्ञानिक ये पांचवीं सदी के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी और भौतिक विज्ञानी थे। 23 वर्ष की उम्र में इन्होंने आर्यभट्टिया (Aryabhattiya) की रचना की, जो उनके समय के गणित का सार है। सबसे पहली बार उन्होंने ही पाई (pi) का मान 3.1416 निकाला था। इन्होंने बताया कि शून्य केवल अंक नहीं बल्कि एक प्रतीक और अवधारणा है। वास्तव में शून्य के आविष्कार ने आर्यभट्ट को पृथ्वी और चंद्रमा के बीच सटीक दूरी पता लगाने में सक्षम बनाया था और शून्य की खोज से नकारात्मक अंकों के नए आयाम सामने आए। इसके अलावा आर्यभट्ट ने…
Author: NARESH BHABLA
प्राचीन भारत के साहित्य धार्मिक साहित्य स्रोत प्राचीन भारत के साहित्य धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है। ब्राह्मण ग्रन्थों में – वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृति ग्रन्थ आते हैं। ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों में जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों को सम्मिलित किया जाता है।ब्राह्मण धर्म ग्रंथ – प्राचीन काल से ही भारत के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है। ब्राह्मण धर्म – ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया…
Sangam Period ( संगमकाल ) चेर वंश ( Cher dynasty ) चेर, केरल का प्राचीन नाम था। द्रविड़ अथवा तमिल कहलाने वाले पांड्य, चोल और चेर नाम के तीन क्षेत्र दक्षिण भारत की सर्वप्रथम राजनीतिक शक्तियों के रूप में दिखाई देते हैं। अत्यंत प्रारंभिक चेर राजाओं को वानवार जाति का कहा गया है। अशोक ने अपने साम्राज्य के बाहर दक्षिण की ओर के जिन देशों में धर्मप्रचार के लिए अपने महामात्य भेजे थे, उनमें एक था केरलपुत्र अर्थात् चेर ( शिलाभिलेख द्वितीय और त्रयोदश)। Sangam Period Sangam Period (लगभग 100 ई. से 250 ई. तक) का सबसे पहला चेर शासक था…
पुष्यभूति वंश (Pushyabhuti Vansh) गुप्त वंश के पतन के बाद भारतीय राजनीति के विकेंद्रीकरण एवं क्षेत्रीयता की भावना का अविर्भाव हुआ। गुप्त वंश के पतन के बाद जिन नए राजवंशों का उद्भव हुआ, उनमे मैत्रक, मौखरी, पुष्यभूति, परवर्ती गुप्त और गौड़ प्रमुख हैं। इन राजवंशों में पुष्यभूति वंश के शासकों ने सबसे विशाल राज्य स्थापित किया। Pushyabhuti Vansh को वर्धन वंश भी कहा जाता है। इनकी राजधानी थानेश्वर थी। वर्धन वंश का संस्थापक पुष्यभूति था। इस वंश को वैश्य जाति से सम्बंधित बताया गया है। प्रारंभ में पुष्यभूति गुप्तों के सामंत थे, हूणों पर आक्रमण के बाद उन्होंने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। प्रभाकर वर्धन इस वंश का प्रथम…
प्राचीन प्रमुख राजवंश कुषाण_वंश कुषाण वंश मौर्योत्तर कालीन भारत का ऐसा पहला साम्राज्य था, जिसका प्रभाव मध्य एशिया, ईरान, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान तक था। यह साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर तत्कालीन विश्व के तीन बड़े साम्राज्यों रोम, पार्थिया एवं चीन के समकक्ष था। कुषाण वंश के इतिहास की जानकारी का मुख्य स्रोत चीनी की पुस्तक history of the Han Dynasty, Analysis of Latter Han Dynasty तथा भारतीय पुस्तकें नागार्जुन कृत माध्यमिक सूत्र, अश्वघोष की बुद्धचरित हैं। कुषाण पश्चिमी क्षेत्र के यूची जाति के थे। लगभज 165 ईसा पूर्व इसके पड़ोसी कबीले “हिंग नू” ने यूचियों के नेता को पराजित कर मार डाला। यूचियों को…
चोल एवं पल्लव तथा अन्य प्राचीन राजवंश चोल प्राचीन भारत मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के साधनयों तो भारत के प्राचीन साहित्य तथा दर्शन के संबंध में जानकारी के अनेक साधन उपलब्ध हैं, परन्तु भारत के प्राचीन इतिहास की जानकारी के साधन संतोषप्रद नहीं है। उनकी न्यूनता के कारण अति प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं शासन का क्रमवद्ध इतिहास नहीं मिलता है। फिर भी ऐसे साधन उपलब्ध हैं जिनके अध्ययन एवं सर्वेक्षण से हमें भारत की प्राचीनता की कहानी की जानकारी होती है। इन…
Ancient Art Culture (प्राचीन कालीन कला व संस्कृति) भारतीय Art Culture का इतिहास अत्यंत प्राचीन है । प्रागतिहासिक काल में मानव ने जंगली जानवरों बारहसिंघा, भालू , हाथी, आदि के चित्र बनाना सीख लिया था । महाराष्ट में स्थित कुछ गुफाओं में प्रागतिहासिक काल के जानवरों के Art Culture बनाए हुए है, जिसका वह शिकार करता था । अनेक स्थानो पर मानव की कला के प्रमाण प्राप्त हुए हैं । इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय Art Culture आदिकालीन है । यह परम्परा का प्रेम भारतीय संस्कृति सभ्यता का उन्नति का कारण है । वैदिक साहित्य चारों वर्णों के कर्तव्यों का सर्वप्रथम वर्णन…
राजपूत राज्यो का उदय ( Rise of Rajput kingdoms ) हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया तेज हो गयी। किसी शक्तिशाली केन्द्रीय शक्ति के अभाव में छोटे छोटे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना होने लगी। 7-8 शताब्दी में उन स्थापित राज्यों के शासक ‘ राजपूत’ कहे गए। उनका उत्तर भारत की राजनीति में बारहवीं सदी तक प्रभाव कायम रहा। भारतीय इतिहास में यह काल ‘राजपूत काल’ के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकर इसे संधिकाल का पूर्व मध्यकाल भी कहते हैं, क्योंकि यह प्राचीन काल एवं मध्यकाल के बीच कड़ी स्थापित करने का कार्य करता है। ‘राजपूत’ शब्द संस्कृत…
मौर्योत्तर काल मौर्योत्तर काल Mauryottar Period 1. यवन मौर्योत्तर काल में भारत पर सबसे पहला विदेशी आक्रमण बैक्ट्रिया के ग्रीको ने किया इन्हें हिंद- यवन या इंडोग्रीक के नाम से जाना जाता है इनके शासकों में मिनांडर सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा है उसकी राजधानी साकाल थी प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागसेन के साथ मिनांडर (मिलिंद)के द्वारा की गई वाद विवाद का विस्तृत विवरण मिलिंदपन्हो नामक ग्रंथ पर मिलता है इंडो-ग्रीक शासकों ने भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्के तथा लेखयुक्त सिक्के जारी किए थे विभिन्न ग्रहों के नाम, नक्षत्रों के आधार पर भविष्य बताने की कला, संवत तथा सप्ताह के 7 दिनों…
Vardhan Vansh Vardhan Vansh वर्धन वंश की नींव छठी शती के प्रारम्भ में पुष्यभूतिवर्धन ने थानेश्वर में की थी। इन्होंने गुप्तों के बाद उत्तर भारत में सबसे विशाल राजवंश की स्थापना की। इस वंश का पाँचवा और शक्तिशाली राजा प्रभाकरनवर्धन हुआ था। उसकी उपाधि ‘परम भट्टारक महाराजाधिराज’ थी। बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ से पता चलता है कि इस शासक ने सिंध, गुजरात और मालवा पर अधिकार कर लिया था। राजा प्रभाकरवर्धन के दो पुत्र राज्यवर्धन, हर्षवर्धन और एक पुत्री राज्यश्री थी। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी वंश के शासक गृहवर्मन से हुआ था। हेनसांग तथा आर्य मंजुश्रीमूलकल्प के अनुसार वर्धन वंश (पुष्यभूति वंश) वैश्य जाति का था। पुष्यभूति वंश में तीन प्रसिद्ध शासक हुए प्रभाकर…