अर्थव्यवस्था का परिचय
आर्थिक वस्तुओं व आर्थिक सेवाओं के द्वारा की जाने वाली आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन अर्थशास्त्र या अर्थव्यवस्था के अंतर्गत किया जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्र कौटिल्य ने अर्थशास्त्र नामक अपनी पुस्तक में राजनीतिक और आर्थिक दोनों विचार दर्शाएं।अरस्तू ने अपनी पुस्तक इकोनॉमिका में अर्थशास्त्र को House Management का नाम दिया।
अर्थशास्त्र का वास्तविक जनक एडम स्मिथ को कहा जाता है। क्योंकि इन्होंने अर्थशास्त्र के संदर्भ में फैली हुई सभी विचारों को संकलित करके वैज्ञानिक रूप में अपनी पुस्तक An enquiry into the nature and causes of wealth of nations 1776 में प्रकाशित किया।
अर्थव्यवस्था_शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ओइकोनोमिया से हुई। ओइकोस + नोमोस=घरेलू प्रबंध
अर्थव्यवस्था ( Economy )
अर्थव्यवस्था_से अभिप्राय उस वैधानिक और संस्थागत ढांचे हैं जिसमें आर्थिक क्रियाओं ( उत्पादन, उपयोग विनिमय, वितरण ) का संचालन किया जाता है।
अर्थव्यवस्था_के प्रकार ( Types of Economy )
(राज्य व्यवस्था के आधार पर)
- 1⃣ पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ( Capitalist Economy )
- 2⃣ समाजवादी अर्थव्यवस्था ( Socialist economy )
- 3⃣ मिश्रित अर्थव्यवस्था ( Mixed economy )
1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ( Capitalist Economy )- इस अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन करना है कितना उत्पादन करना है और उसे किस कीमत पर बेचना है यह सब बाजार तय करता है इसमें सरकार की कोई आर्थिक भूमिका नहीं होती है
NOTE 1776 ईस्वी में प्रकाशित एडम स्मिथ की किताब द वेल्थ ऑफ नेशंस को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उद्गम स्त्रोत माना जाता है
2. राज्य अर्थव्यवस्था ( Socialist economy ) – इस अर्थव्यवस्था की उत्पत्ति पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता के विरोध स्वरूप हुआ इसमें उत्पादन आपूर्ति और कीमत सब का फैसला सरकार द्वारा किया जाता है ऐसी अर्थव्यवस्थाओं को केंद्रित नियोजित अर्थव्यवस्था कहते हैं जो गैर बाजारी अर्थव्यवस्था होती है
राज्य अर्थव्यवस्था की दो अलग अलग शैली नजर आती है सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं जबकि 1985 ईस्वी से पहले चीन की अर्थव्यवस्था को साम्यवादी अर्थव्यवस्था कहते थे समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर सामूहिक नियंत्रण की बात शामिल थी और अर्थव्यवस्था को चलाने में सरकार की बड़ी भूमिका थी वहीं साम्यवादी अर्थव्यवस्था में सभी संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण था और संसाधन भी सरकार के अधीन थी
NOTE पहली बार राज्य अर्थव्यवस्था सिद्धांत जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स (1818-1883) ने दिया था जो एक व्यवस्था के तौर पर पहली बार 1917 ईस्वी की बोल्शेविक क्रांति के बाद सोवियत संघ में नजर आई और इसका आदर्श रूप चीन (1949) में सामने आया
3 मिश्रित अर्थव्यवस्था ( Mixed economy )- इसमें कुछ लक्षण राज्य अर्थव्यवस्था के मौजूद होते हैं तो कुछ लक्षण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के यह दोनों का मिला जुला रूप है द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद उपनिवेशवाद के चंगुल से निकले दुनिया के कई देशों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया इनमें (भारत , मलेशिया ,इंडोनेशिया) जैसे देश शामिल है
NOTE कैंस ने सुझाव दिया था की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था की और कुछ कदम बढ़ाना चाहिए जबकि प्रोफेसर लोंस ने कहा था कि समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर कुछ कदम बढ़ाना चाहिए
मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूंजी व समाजवादी दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के लक्षण होते हैं अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र की उपस्थिति रहती हो। इसे भारत में औद्योगिक नीति 1948 में अपनाया गया था। 1956 तक मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवाद के करीब थे। लेकिन 1991 में पूंजीवाद के करीब आ गये।
बंद अर्थव्यवस्था ( Closed economy )
वह अर्थव्यवस्था जिसमें आयात व निर्यात की दर शून्य हो तथा घरेलू अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण हो, बंद अर्थव्यवस्था कहलाती है।
खुली अर्थव्यवस्था ( Open economy )
वह अर्थव्यवस्था जिसमें आयात व निर्यात पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं हो साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो खुली अर्थव्यवस्था कहलाती है।
1991 से पहले भारत में बंद अर्थव्यवस्था पाई जाती थी। इसके पश्चात खुली अर्थव्यवस्था अस्तित्व में आ गयी।
अर्थव्यवस्था के प्रकार (अध्ययन के आधार पर)
1. व्यष्टि अर्थशास्त्र ( Micro economics )
व्यष्टि अर्थशास्त्र में हम व्यक्तिगत गृहस्थ की मांग करते हैं। जैसे-एक उपभोक्ता, एक फर्म, एक उद्योग की आर्थिक क्रियाओं तथा किसी एक विशिष्ट वस्तु के मूल्य का अध्ययन करते है।
2. समष्टि अर्थशास्त्र( Macro economics )
समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे राष्ट्रीय आय,पूर्ण रोजगार, सामान्य कीमत स्तर,सामूहिक मांग आदि
लोक_वित् ( Public financial )
लोक_वित्त का अध्ययन अर्थशास्त्र की एक शाखा के रूप में किया जाता है । यह अर्थशास्त्र और प्रशासन एवं राजनीति शास्त्र की साझी सीमा भी है। लोक वित्त सरकार और सार्वजनिक अधिकारियों की वित्तीय गतिविधियों का अध्ययन है । यह सरकार के व्यय की व्याख्या और वर्णन के साथ साथ सरकार द्वारा इनके वित्तीयन के लिए धन जुटाने हेतु अपनाई तकनीकों की समिक्षा भी करता है
लोक_वित्त विश्लेषण हमें यह भी समझाता है कि कुछ विशेष सेवा हमें सरकार से ही क्यों प्राप्त होती है । और सरकार क्यों किन्ही विशेष प्रकार के करो पर ही भरोसा करती है । लोक वित्त के सकारात्मक एवं गुणात्मक दोनों आयाम होते हैं।
भारत में जब सरकार की कुल आय (राजस्व खाते + पूंजीगत खाते की आय), उसके कुल व्यय से कम होती है, तो इस कमी के लिए सरकार रिजर्व बैंक में जमा अपने नकद कोषों से धन निकालती है अथवा रिजर्व बैंक तथा व्यापारिक बैंकों से ऋण प्राप्त करती है अथवा नए नोट छापती है तो इसे हीनार्थ प्रबंधन कहते हैं ।
इन सभी उपायों से चलन में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। सार्वजनिक वित्त केंद्र सरकार के समस्त वित्तीय संसाधनों को सार्वजनिक वित्त कहा जाता है। इसमें समस्त सार्वजनिक आय एवं समस्त व्यय को सम्मिलित किया जाता है।
Public income
सार्वजनिक आय के दो भाग होते हैं
- राजस्व आय ( Revenue income )
- पूंजीगत आय ( Capital income )
राजस्व आय ( Revenue income )- के अंतर्गत कर राजस्व आय एवं गैर कर राजस्व आय को सम्मिलित किया गया है।
पूंजीगत आय ( Capital income )- के अंतर्गत कर्ज से प्राप्त आय एवं गैर कर्ज पूंजीगत आय को सम्मिलित किया गया है ।
सार्वजनिक व्यय के अंतर्गत योजनागत व्यय एवं गैर योजनागत व्यय को सम्मिलित किया गया है। योजनागत व्यय विकासशील प्रकृति का होता है और आने वाले समय में सार्वजनिक आय को बढ़ाने में सहायक हो सकता है । गैर योजनागत व्यय गैर विकासशील प्रकार का होता है जैसे रक्षा व्यय, ब्याज ,सब्सिडी, प्रशासनिक व्यय आदि।
राजकोषीय नीति का संबंध अर्थव्यवस्था की संवृद्धि निष्पादन को सुधारना तथा लोगों को सामाजिक न्याय प्रदान करने से है। यह सरकार की सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक आय सार्वजनिक ऋण तथा उसके प्रबंधन से संबंधित है । राजकोषीय नीति के द्वारा सरकार अर्थव्यवस्था में रोजगार, राष्ट्रीय उत्पादन ,आंतरिक तथा बाह्य आर्थिक स्थिरता आदि उद्देश्यों को प्राप्त करती है ।
यह अर्थव्यवस्था की संवृद्धि को दो प्रकार से प्रभावित करती है पहला विकास के लिए साधनों का एकत्रण करना तथा दूसरा साधनों के आवंटन द्वारा कार्य कुशलता में सुधार करना। राजकोषीय उत्तरदायित्व बजट प्रबंधन के लिए भारत में कानूनी व्यवस्था की गई है।
राजकोषीय उत्तरदायित्व से आशय वित्तीय घाटे की संतुलन करने से है। निम्न तरीकों से घाटों का आकलन किया जाता है।
1. राजकोषीय घाटा ( fiscal deficit )
- बजटीय_घाटे में उधार व अन्य देयताओं को जोड़ दिया जाता है तब राजकोषीय घाटा प्राप्त होता है।
- बजटीय_घाटे की तुलना में राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था का वास्तविक चित्र अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है ।
- बजटीय घाटे में सार्वजनिक ऋण को भी एक आय मान लिया जाता है जबकि राजकोषीय घाटे में ऋण को आए नहीं माना जाता है।
2. राजस्व घाटा ( Revenue Lose )
कुल राजस्व प्राप्ति की तुलना में कुल व राजस्व में जितना अधिक होता है उसे राजस्व घाटा कहा जाता है।
राजस्व घाटा = राजस्व प्राप्तियां – राजस्व व्यय
= (कर राजस्व + कर भिन्न राजस्व) – (राजस्व खाते पर आयोजना भिन्न व्यय + राजस्व खाते पर आयोजना व्यय)
3. बजटीय घाटा ( Budgetary deficit )
सरकार के बजट में कुल प्राप्तियों की तुलना में यदि कुल व्यय अधिक हो तो उसे बजटीय घाटा कहते हैं ।
बजटीय घाटा = कुल प्राप्तियां – कुल व्यय
4. प्राथमिक घाटा ( Primary deficit )
जब राजकोषीय घाटे में से ब्याज देयताओं को घटाया जाता है तो प्राथमिक घाटा प्राप्त होता है।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज की अदायगीयाँ
5. मौद्रिकृत घाटा ( Monetary loss )
केंद्र सरकार के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की निवल साख में होने वाली वृद्धि को मौद्रिकृत घाटा कहा जाता है
मौद्रिकृत घाटा = भारतीय रिजर्व बैंक की बकाया ट्रेजरी बिलों की शुद्ध वृद्धि +सरकार की बाजार उधार में रिजर्व बैंक का योगदान।
राजकोषीय उत्तरदायित्व प्रबंधन एक्ट 2003 ( Fiscal Responsibility Management Act 2003 )
- राजकोषीय समेकन तथा सार्वजनिक व्यय प्रबंधन की दिशा में राजकोषीय उत्तरदायित्व बिल प्रबंधन एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है
सरकार ने e a s शर्मा की अध्यक्षता में राजकोषीय उत्तरदायित्व विधि निर्माण के लिए जनवरी 2000 में समिति गठित की जिसका राजकोषीय प्रणाली के विविध पहलुओ का परीक्षण करना था। - अंतिम रूप से राजकोषीय पारदर्शिता पर अहलूवालिया कमेटी की रिपोर्ट 2001 इस बिल का आधार बनी।
- FRBM बिल दिसंबर 2000 में पार्लियामेंट में रखा गया कुछ सुधार के बाद 26 अगस्त 2003 को बिल पास हुआ और 5 जुलाई 2004 को FRBM नियम के साथ सूचित किया गया।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र ( Areas of Economy )
मानव के वे तमाम क्रियाकलाप जो आय सृजन में सहायक होते हैं उन्हें आर्थिक क्रिया की संज्ञा दी गई है आर्थिक क्रिया किसी देश के व्यापारिक क्षेत्र घरेलू क्षेत्र तथा सरकार द्वारा दुर्लभ संसाधनों के प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोग, उत्पादन तथा वितरण से संबंधित है अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों को तीन श्रेणियों में बांटा गया अर्थव्यवस्था का (क्षेत्रक)कहा जाता है
1 प्राथमिक क्षेत्र – अर्थव्यवस्था का क्षेत्र प्रत्यक्ष रुप से पर्यावरण पर निर्भर होता है इन गतिविधियों का संबंध भूमि जल वनस्पति और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों से हैं कृषि ,पशुपालन, मत्स्य पालन, खनन और उनसे संबंध गतिविधियों को इसके अंतर्गत रखा जाता है इसमें सलंग्न श्रम की प्रकृति को (रेड कलर जॉब) के जरिए संकेतित किया जाता है
2 द्वितीयक क्षेत्र- अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को अपनी गतिविधियों में कच्चे माल की तरह उपयोग करता है द्वितीय क्षेत्र कहलाता है जैसे लोहा , इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि वास्तव में इस क्षेत्र में विनिर्माण कार्य होता है इस कारण ही इसे औद्योगिक क्षेत्रक कहा जाता है इस में लगे कुशल श्रमिकों को (हाइट कॉलर जॉब) के अंतर्गत स्थान दिया जाता है जबकि उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रुप से सलंग्न श्रमिकों को (ब्लू कॉलर जॉब) के अंतर्गत रखा जाता है
3 तृतीय क्षेत्र – इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उत्पादन किया जाता है जैसे बीमा ,बैंकिंग, चिकित्सा, शिक्षा, पर्यटन आदि इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है
किसी देश की आर्थिक संवृद्धि का सर्वाधिक उपयुक्त मापदंड प्रति व्यक्ति वास्तविक आय होता है
सार्वजनिक व्यय के संदर्भ में संसदीय नियंत्रण
1. लोक लेखा समिति ( Public accounting committee )
इस समिति का गठन भारत सरकार अधिनियम 1919 के अंतर्गत पहली बार 1921 में हुआ वर्तमान में इस समिति में कुल 22 सदस्य (15 लोकसभा व 7 राज्यसभा ) है ।इस समिति का अध्यक्ष विपक्ष का नेता होता है यह परंपरा वर्ष 1967 से चली आ रही है , यह केंद्र सरकार के विभागों व मंत्रालयों के लेखो की जाँच कर उन्हें संसद के प्रति उत्तरदायी बनती है।
लोक लेखा समिति के कार्यो के अंतर्गत नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) के वार्षिक प्रतिवेदनों की जाँच प्रमुख है जो कि राष्ट्रपति द्वारा संसद में प्रस्तुत किया जाता हैनियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष तीन प्रतिवेदन सौंपे जाते हैं —
- विनियोग लेखा पर लेखा परीक्षक प्रतिवेदन
- वित्त लेखा पर लेखा परीक्षक प्रतिवेदन
- सार्वजनिक उद्यमों पर लेखा परीक्षक प्रतिवेदन
नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) भी समिति की बैठकों में भाग लेता है और सहायता करता है। इस समिति को प्राक्कलन समिति की जुड़वाँ बहन भी कहा जाता है।
इस समिति की कुछ सीमाएँ भी है। जैसे – यह नीति संबंधी विषय की जाँच नहीं करती तथा कार्य हो जाने के बाद में कर रिपोर्ट तैयार करती है फिर भी इसने कई घोटाले जैसे – जीप ,बोफोर्स , कोयला आदि घोटालों को उजागर किया है ।
2. प्राक्कलन समिति ( Estimate committee )
इस समिति का गठन 1950 में जॉन मथाई (वित्त मंत्री ) की सिफारिशों के आधार पर किया गया। इसमें मूलत: 25 सदस्य थे किंतु 1956 में इनकी सदस्य संख्या बढ़ाकर 30 कर दी गई । यह सबसे बड़ी समिति भी है । इस समिति के सभी सदस्य लोकसभा द्वारा प्रतिवर्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय पद्धति द्वारा लोकसभा के सदस्यों से ही निर्वाचित होते है।
इस समिति का अध्यक्ष चुने हुए सदस्यों में से लोकसभा द्वारा नियुक्त किया जाता है किंतु यदि लोकसभा का उपाध्यक्ष इस समिति का सदस्य है तो वह स्वंय की समिति का अध्यक्ष नियुक्त हो जाता है। यह प्रतिवर्ष गठित होने वाले समिति है इसके निम्नलिखित कार्य है —
- वार्षिक अनुदानों की जाँच करना
- अतरिक्तअनुदानों पर चर्चा करना
- खर्च कम करने के लिए एवं प्रशासन में सुधर लेन के लिए वैकल्पिक नीति तैयार करना
- संसद में अनुदान की मांग रखने की सिफारिश रखना
3. सार्वजनिक उपक्रम समिति ( Public undertaking committee )
इस समिति का गठन 1964 में कृष्ण मेनन समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया शुरुआत में इसमें 15 सदस्य (10 लोकसभा + 5 राज्यसभा ) से थे किंतु 1974 में इनकी सदस्य संख्या बढ़ाकर 22 (15 लोकसभा + 7 राज्यसभा ) कर दी गई।
इस समिति का कार्यकाल 1 वर्ष होता है इस समिति का अध्यक्ष केवल लोकसभा से चुना जाता है व इसके सदस्यों का चुनाव एकल संक्रमणीय पद्धति से होता है । प्रत्येक वर्ष इस समिति के 1/5 सदस्य अवकाश ग्रहण कर लेते है तथा उनके स्थान पर नए सदस्य निर्वाचित होते है । इस समिति का कार्य सरकारी उपक्रमों के लेखो का परिक्षण करना है ।
भारतीय अर्थव्यवस्था के घटक ( Components of Indian Economy )
अर्थव्यवस्था
केंद्रीय बैंक (Central Bank)
केंद्रीय बैंक किसी देश की मौद्रिक व वित्तिय प्रणाली की शिखर संस्था हैं। देश में व्यापारिक बैंकों व अन्य वित्तिय संस्थाओं के संगठन में, उन्हें चलाने में, उनका पर्यवेक्षण करने में और उन्हें नियंत्रित करने में केंद्रीय बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं|
मौद्रिक व साख नीतियों की रूपरेखा बनाना व उनका संचालन करना इसकी विशेष जिम्मेदारियां हैं। अतः केंद्रीय बैंक आधुनिक अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सभी विकसित देशों और अधिकांश विकासशील देशों में केंद्रीय बैंक है।
लेकिन अधिकांश देशों में केंद्रीय बैंक बीसवीं शताब्दी की एक वित्तीय संस्था है। यद्यपि संसार का प्रथम केंद्रीय बैंक 1668 में स्वीडन में स्थापित हुआ था। परंतु 1694 ईस्वी में स्थापित होने वाला “बैंक ऑफ इंग्लैंड” “”केंद्रीय बैंकों की मां” (मदर ऑफ सेंट्रल बैंक) का जाता है।
★ क्योंकि इसने जिन पद्धतियों तथा परंपराओं को अपनाया उन्हें बाद में अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा भी अपनाया गया।★
बैंक ऑफ इंग्लैंड को प्रारंभ से ही नोट निर्गमन का अधिकार प्राप्त था, परंतु इसने केंद्रीय बैंक के रूप में 1844 से कार्य करना आरंभ किया और तब से इसका इतिहास केंद्रीय बैंकिंग के इतिहास का प्रतिरूप है। 1860 में बैंक ऑफ रशिया (Russia) तथा 1875 में जर्मनी में रिश बैंक की स्थापना हुई थी।
1882 में बैंक ऑफ जापान स्थापित हुआ। अमेरिका में फेडरैल रिजर्व सिस्टम बैंक की स्थापना 1913 ई. में हुई। भारत में केंद्रीय बैंक “रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया” की स्थापना 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत की गई|
प्रत्येक देश की मौद्रिक व बैंकिंग व्यवस्था में केंद्रीय बैंक का केंद्रीय स्थान होता है।
1940 के बाद के वर्षों में केंद्रीय बैंकों की प्रगति के मुख्य कारण ये हैं
【अ】 एशिया तथा अफ्रीका के विभिन्न देशों को राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त होना।
【ब】 स्वर्णमान के पतन के पश्चात प्रबंधित मुद्रामान की व्यवस्था करना
【स】 बैंकों का विस्तार होने के साथ-साथ उनके निर्देशन तथा नियमन की व्यवस्था करना
【द】 अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक संस्थाओं के साथ लेन-देन करना*
केंद्रीय बैंक की परिभाषा ( Central bank definition )
केंद्रीय बैंक की विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अलग-अलग परिभाषा दी है-
♀ “डब्ल्यू. ए. शाह की राय में” “”केंद्रीय_बैंक वह बैंक है जो साख का नियंत्रण करता है।
♀ बैंक फ़ॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के अधिनियमों में केंद्रीय बैंकों की परिभाषा इस प्रकार दी गई है,
“किसी देश का वह बैंक जिसे देश में मुद्रा और साख की मात्रा को नियमित करने का कार्य सौंपा गया हो।
♀ इन परिभाषाओं के आधार पर हम निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि ¶केंद्रीय बैंक किसी देश कि वह उच्चतम वित्तीय संस्था है
जिसका मुख्य कार्य मौद्रिक और बैंकिंग संरचना को नियमित, समन्वित व संघठित करना तथा उसका पथ-प्रदर्शन करना है
जिससे कि राष्ट्रीय और सार्वजनिक कल्याण के निश्चित अपेक्षित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारभूत विशेषताएं (Basic features of Indian economy)
- भारत की 70-75 प्रतिशत जनसख्या कृषि कार्य मे सलग्न है
- वर्तमान में भारत मे पूंजी निर्माण की दर 25-30प्रतिशत है
- विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2016 में 1.7 प्रतिशत है
- विश्व के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी 2016 में 1.4प्रतिशत है
- भारत का विश्व व्यापार में 19 वाँ स्थान है, चीन का प्रथम स्थान है
- वर्तमान में भारत मे लगभग 21.5प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे है
- वर्तमान में भारत मे रेल मार्गो की प्रति 100 वर्ग किमी लंबाई मात्र 19.23किमी है
- 1991 में भारत में उदारीकरण, निजीकरण ओर भूमंडलीकरण का दौर प्रारम्भ हुआ था
- “भारत एक धनी देश है किंतु यहॉ के निवासी निर्धन है” कथन है-श्रीमती वीरा ऐन्स्टे
- भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति कैसी है-तिहरी
- भारत मे पिछले 10 वर्षों में जनसंख्या में कितनी वृद्धि हुई- 18 करोड़