Indian Gov. Act 1919
Indian Gov. Act 1919 (भारतीय शासन अधिनियम 1919)
20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने पहली बार घोषित किया कि उसका उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है। पहली बार भारतीय प्रशासन में उत्तरदायी शब्द का समावेश किया गया। यह अधिनियम 1921 में लागू हुआ। इस अधिनियम को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार कहा जाता है। मांटेग्यू भारत के राज्य सचिव थे। जबकि चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे।
शासन से संबंधित विषयों को दो भागों में बांट दिया गया।
- 1 केंद्रीय
- 2 प्रांतीय
प्रांतीय विषयों को दो भागों में बांटा जाने के कारण इस व्यवस्था को द्वैध शासन कहा गया। प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया
- 1 आरक्षित
- 2 हस्तांतरित
आरक्षित विषयों में 28 विषयों का समावेश किया गया जिनका प्रशासन गर्वनर अपनी परिषद के माध्यम से करेगा। जो केवल उसी के प्रति उत्तरदायी थी। हस्तांतरित विषयों में 22 विषयों का समावेश किया गया जिनका प्रशासन भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था।
द्वैध शासन व्यवस्था इस अधिनियम का सर्वाधिक बुरा पक्ष साबित हुआ। क्योंकि महत्वपूर्ण विषय बिना उत्तरदायी के गवर्नर को और उसके माध्यम से गर्वनर को सौंप दिए गए। भारतीय विधान परिषद के स्थान पर दो सदनीय व्यवस्था (लोकसभा राज्यसभा) का गठन किया गया।
- इस अधिनियम में सांप्रदायिक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल भारतीयों और यूरोपियों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया गया।
- इस अधिनियम ने शिक्षा, सम्पत्ति एवं कर के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।
- लंदन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया गया।
- इस अधिनियम में एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया
- अतः 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोकसेवा आयोग का गठन किया गया।
- इस अधिनियम में पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया और
- राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया।
- इस अधिनियम में एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।
- इस अधिनियम में महिलाओं को मताधिकार दिया गया गांधी जी ने इस उत्तरदायी शासन की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय का स्वागत किया परंतु तिलक ने इस अधिनियम को बिना सूर्य का सवेरा की संज्ञा दी।
1919 के इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थी-
1.प्रान्तों के हस्तान्तरित विषयों पर भारत सचिव का नियंत्रण कम हो गया, जबकि केन्द्रीय नियंत्रण बना रहा।
2.भारतीय कार्य की देखभाल के लिए एक नया अधिकारी ‘भारतीय उच्चायुक्त’ नियुक्त किया गया। इसे भारतीय राजकोष से वेतन देने की व्यवस्था की गयी
3.गवर्नर-जनरलकी कार्यकारिणी में 8 सदस्यों में से 3 भारतीय नियुक्त किये गये तथा इन्हें विधि, श्रम, शिक्षा, स्वास्थ व उद्योग विभाग सौंपे गये।
4. विषयों को पहली बार केन्द्रीय व प्रान्तीय भागों में बांटा गया। राष्ट्रीय महत्व के विषयों को केन्द्रीय सूची में शामिल किया गया था
- ✍ जिस पर गवर्नर-जनरल सपरिषद क़ानून बना सकता था। विदेशी मामले रक्षा, राजनीतिक संबंध, डाकऔर तार, सार्वजनिक ऋण, संचार व्यवस्था, दीवानी तथा फ़ौजदारी क़ानून तथा कार्य प्रणाली इत्यादि सभी मामले केन्द्रीय सूची मे थे। प्रान्तीय महत्व के विषयों पर गवर्नर कार्यकारिणी तथा विधानमण्डल की सहमति से क़ानून बनाता था।
- ✍ प्रान्तीय महत्व के विषय थे- स्वास्थ्य, स्थानीय स्वशासन, भूमिकर प्रशासन, शिक्षा, चिकत्सा, जलसंभरण, अकाल सहायता, शान्ति व्यवस्था, कृषि इत्यादि। जो विषय स्पष्टतया हस्तान्तरित नहीं किये गये थे, वे सभी केन्द्रीय माने गये।
5. केन्द्र में द्विसदनी विधान सभा राज्य परिषद में स्त्रियाँ सदस्यता के लिए उपयुक्त नहीं समझी गयी थी, केन्द्रीय विधानसभा का कार्यकाल 3 वर्षों का था, जिसे गवर्नर-जनरल बढ़ा सकता था। साम्प्रदायिक निर्वाचन का दायरा बढ़ाकरसिक्खोंतक विस्तृत कर दिया गया
6. केन्द्रीय विधान मण्डल सम्पूर्ण भारत केलिए क़ानून बना सकता था। गवर्नर-जनरल अध्यादेश जारी कर सकता था तथा उसकी प्रभाविता 6 महीने तक रहती थी।
7. बजट पर बहस हो तो सकती थी, पर मतदान का अधिकार नहीं दिया गया था
8. प्रान्तों में वैध शासन लागू किया गया, प्रान्तीय विषयों को दो भागो में विभाजित किया गया, आरक्षित एवं हस्तान्तरित। आरक्षित विषयों का प्रशासन उन मंत्रियो की सहयाता से गवर्नर करता था, जो विधानमण्डल के निर्वाचित सदस्य थे, परन्तु उनकी पद स्थापना व पदच्युति गवर्नर की इच्छा पर आधारित थी। हस्तान्तरित व आरक्षित विषयों का विभाजन भी दोषपूर्ण था।
उदाहरणार्थ- सिंचाई तो आरक्षित विषय था और कृषि हस्तान्तरित, परन्तु स्पष्ट है कि दोनो एक दूसरे से अविभेद्य हैं। इसी प्रकार उद्योग हस्तान्तरित था, जबकि जलशक्ति, कल कारखाने आदि आरक्षित विषय थे जिन्हें एक दूसरे सेसे पृथक् करना अव्यावहारिक था।।
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