गांधीवादी युग
गांधीवादी
राष्ट्रपिता’ की उपाधि से सम्मानित महात्मा गाँधी भारतीय राजनीतिक मंच पर1919ई. से 1948 ई. तक छाए रहे। गाँधीजी के इस कार्यकाल को ‘भारतीय इतिहास’ में ‘गाँधी युग’ के नाम से जाना जाता है।
गांधी जी 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आए उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में सरकार के युद्ध प्रयासों में मदद की जिनके लिए सरकार ने उन्हें कैसर-ए-हिंद की उपाधि से सम्मानित किया। 1915 ईस्वी में गांधी जी ने अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
गाँधी-गोखले भेंट:
जनवरी 1915 ई. में गाँधी जी भारत आये और यहाँ पर उनका सम्पर्क गोपाल कृष्ण गोखले से हुआ, जिन्हें उन्होंने अपना राजनितिक गुरु बनाया। गोखले के प्रभाव में आकर ही गाँधी जी ने अपने को भारत की सक्रिय राजनीति से जोड़ लिया। गाँधी जी के भारतीय राजनीति में प्रवेश के समय ब्रिटिश सरकार प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918ई.) में फंसी थी।
गाँधी जी ने सरकार को पूर्ण सहयोग दिया, क्योंकि वह यह मानकर चल रहे थे कि ब्रिटिश सरकार युद्ध की समाप्ति पर भारतीयों को सहयोग के प्रतिफल के रूप में स्वराज्य दे देगी। गाँधी जी ने लोगों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके फलस्वरूप कुछ लोग उन्हें “भर्ती करने वाला सार्जेन्ट” भी कहने लगे थे।
1917 ईस्वी में गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह का सफल नेतृत्व किया। 1918 के खेड़ा सत्याग्रह को हार्डीमन ने भारत का पहला वास्तविक किसान सत्याग्रह कहा है।
फरवरी 1918 ईस्वी में अहमदाबाद मिल मजदूरों ने प्लेग बोनस को लेकर आंदोलन कर दिया। मिल मालिकों ने 20% बोनस देने का निर्णय किया जबकि गांधी जी ने मजदूरों को 35% बोनस देने की मांग की व 15 मार्च को गांधीजी भूख हड़ताल पर बैठ गए।
मिल मालिकों में अंबालाल साराभाई और उनकी बहन अनुसूया बेन ने भी गांधी जी का समर्थन किया। बोनस का मामला एक ट्रिब्यूनल को सौंपा गया जिसने मजदूरों को 35% बोनस देने का फैसला किया। इस प्रकार गांधी जी ने अहमदाबाद मिल मजदूरों के आंदोलन का सफल नेतृत्व किया।
1919 का रॉलेक्ट एक्ट
क्रांतिकारियों गतिविधियों को कुचलने के लिए सरकार ने 1917 ईस्वी में न्यायधीश सिडनी रौलेट की अध्यक्षता में आतंकवाद को कुचलने की योजना बनाने की एक समिति नियुक्त की। रौलट समिति के सुझाव पर 17 मार्च 1919 को केंद्रीय विधान परिषद ने भारतीय सदस्यों के विरोध के बावजूद रौलट एक्ट पारित किया।
रौलट एक्ट द्वारा कांग्रेस सरकार बिना मुकदमा चलाए किसी भी व्यक्ति को जेल में रख सकती थी। रौलट एक्ट को बिना वक़ील बिना अपील बिना दलील का कानून कहा गया इस एक्ट को भारतीय जनता ने काला कानून कहा।
गांधी जी ने रोलेट एक्ट के विरोध सत्याग्रह करने के लिए सत्याग्रह सभा की स्थापना की। इस सभा में जमनालाल दास द्वारकादास शंकरलाल बैंकर उमर सोमानी बी जी हार्निमन आदि शामिल थे। उदारवादी नेताओं सुरेंद्रनाथ बनर्जी तेग बहादुर सप्रू एवं श्रीनिवास शास्त्री तथा एनी बेसेंट ने गांधी जी के सत्याग्रह का विरोध किया।
6 अप्रैल 1919 को गांधी जी के अनुरोध पर देश भर में हड़तालों का आयोजन किया गया। हिंसा की घटनाओं के कारण गांधी जी का दिल्ली और पंजाब में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। गांधी जी ने 9 अप्रैल को दिल्ली में प्रवेश करने का प्रयास किया गिरफ्तार हो गए।
जालियावाला बाग हत्याकांड 1919 ई
पंजाब में रौलट एक्ट का विरोध करने वाले दो स्थानीय कांग्रेसी नेता डॉक्टर सत्यपाल और डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू को 9 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया। जिस के विरोध में 10 अप्रैल को रैली निकाली गई जिस पर गोलीबारी में कुछ आंदोलनकारी मारे गए।
13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन इस गिरफ्तारी व गोलीबारी के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा बुलाई गई। इस समय पंजाब में लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर थे। अमृतसर के एक सेना के अधिकारी जनरल डायर ने बिना चेतावनी दीये भीड़ पर गोली चलवा दी। जिसमें एक हजार से ज्यादा निर्दोष लोग मारे गए सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 लोग मारे गए थे।
हत्याकांड के विरोध में रविंद्र नाथ टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि त्याग दी। और वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकर नायर ने इस्तीफा दे दिया। सरकार ने जालियावाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए लार्ड हंटर की अध्यक्षता में कमेटी नियुक्त की। इसके अन्य सदस्य थे जस्टिस रैस्किंग राइस जॉर्ज बरी थॉमस स्मित सर चिमनलाल सीतलवाड़ साहबजादा सुल्तान अहमद तथा जगत नारायण।
हंटर कमेटी ने जनरल डायर को दोषमुक्त कर दिया। सरकार ने तो हंटर कमेटी की रिपोर्ट आने से पूर्व ही दोषी लोगों को बचाने के लिए इंडे मिनिटि बिल पास कर दिया। सजा के रूप में जनरल डायर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस में डायर की प्रशंसा की गई और उसे ब्रिटिश साम्राज्य का शेर कहा गया।
कांग्रेस ने जालियावाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। समिति के अन्य सदस्य थे मोतीलाल नेहरू महात्मा गांधी सी आर दास तैयबजी।जलियांवाला बाग हत्याकांड में लगे मार्शल के दौरान गुजरावाला और उसके समीपवर्ती क्षेत्रो पर हवाई जहाज से हमले किए गए। इसी बीच पंजाब के चमनदीप के नेतृत्व में डंडा फौज का गठन हुआ।
खिलाफत आंदोलन
जालियावाला बाग हत्याकांड से भारतीय राजनीति में आकस्मिक परिवर्तन आया तो खिलाफत आंदोलन शुरू होने पर अधिक उग्र हो गया।
प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की पराजय हुई भारतीय मुस्लिम तुर्की के सुल्तान को इस्लाम के खिलाफ मानते थे युद्ध के बाद जब ब्रिटेन में तुर्की का विभाजन करने का निश्चय किया तो भारतीय मुस्लिम नाराज हो गए उन्होंने खिलाफत आंदोलन शुरु किया।
जब गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन में भाग लिया तो यह आंदोलन अधिक मजबूत हो गया। गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को हिंदू मुस्लिम एकता का एक ऐसा सुनहरा अवसर माना जो आगे सो वर्षों तक भी नहीं मिलेगा। गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को सहयोग दिया क्योंकि वह भारतीय मुसलमानों को ब्रिटेन के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन में मिलाना चाहते थे।
अली बन्धुओ ( मोहम्मद अली और शौकत अली) ने अपने पत्र कॉमरेड में तुर्की का समर्थन किया। अली बंधु हकीम अजमल खान डॉक्टर अंसारी मौलाना अब्दुल कलाम आजाद हसरत मोहानी आदि प्रमुख तुर्की समर्थक खिलाफत नेता थे उनके नेतृत्व में सितंबर 1919 में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन हुआ।
17 अक्टूबर 1919 को खिलाफत दिवस मनाया गया। 24 नवंबर 1919 को दिल्ली में होने वाली अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी के सम्मेलन की अध्यक्षता गांधी जी ने की। अगस्त 1920 ईस्वी में सीवर्स की संधि के बाद तुर्की का विभाजन हो गया।
गांधी जी ने खिलाफत कमेटी को सहयोग आंदोलन करने का सुझाव दिया इसे मान लिया व जून 1920 में इलाहाबाद में खिलाफत कमेटी की मीटिंग में गांधीजी से सहयोग आंदोलन का नेतृत्व संभालने का आग्रह किया।
जिन्ना ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन नहीं किया। सितंबर 1920 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन (लाला लाजपत राय के अध्यक्षता) में मुख्य मुद्दा जालीया वाला कांड और खिलाफत था कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्रवाई करने विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया।
कोलकाता सम्मेलन में चितरंजन दास ने विधान परिषदों के बहिष्कार का व असहयोग प्रस्ताव का विरोध किया था। असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव के लेखक गांधीजी थे।
राष्ट्रवाद के पुनः जीवंत होने के कारण:-
- युद्धोपरांत उत्पन्न हुई आर्थिक कठिनाइयां।
- विश्वव्यापी साम्राज्यवाद से राष्ट्रवादियों का मोहभंग होना।
- रूसी क्रांति का प्रभाव।
भारत में गांधीजी की प्रारंभिक गतिविधियां:
- चम्पारन सत्याग्रह (1917) प्रथम सविनय अवज्ञा
- अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) प्रथम भूख हड़ताल।
- खेड़ा सत्याग्रह (1918) प्रथम असहयोग।
- रॉलेट सत्याग्रह (1918) प्रथम जन-हड़ताल।
खिलाफत-असहयोग आंदोलन तीन मांगें-:
- तुर्की के साथ सम्मानजनक व्यवहार।
- सरकार पंजाब में हुयी ज्यादतियों का निराकरण करे।
- स्वराज्य की स्थापना।
चुनिन्दा व्यक्तियों द्वारा गांधी जी के लिए कहे गये कथन
- पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि “गांधी जी उस तेज हवा के झोंके की तरह आये जिसने हमारे लिए स्वच्छ एवं खुली हवा में सांस लेना संभव बनाया ।”
- आइंस्टीन ने कहा कि “आने वाली पीढ़ियों को शायद ही विश्वास होगा कि कोई हाड़ मांस का गांधी भी पैदा हुआ था ।”
- लार्ड विलिंगडन ने गांधी के लिए कहा कि “ईमानदारी किन्तु बोल्शेविक अतः अधिक खतरनाक ।”
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के समय गांधी जी को लिए चर्चिल ने ‘ देशद्रोही फकीर ‘ की संज्ञा दी ।
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के समय ही फ्रेंको मारिस ने गांधी जी को ‘ अर्ध्दनग्न फकीर ‘ की संज्ञा दी ।
- ऐनी बेसेन्ट ने गांधी जी को भारतीय राजनीति का बच्चा कहा था ।
- सरोजिनी नायडू ने गांधी जी को बापू की उपाधि दी थी ।
- खान अब्दुल गफ्फार खान ने गांधी जी को मलंग बाबा की उपाधि दी जिसका अर्थ होता है नंगा फकीर ।
- अर्नोल्ड जोसेफ टायनवी ने कहा था कि “हमने जिस पीढी में जन्म लिया है, वह न केवल पश्चिम में हिटलर और रूस में स्टालिन की पीढी ही नही वरन भारत में गांधी की भी पीढ़ी है और यह भविष्यवाणी बड़े ही विश्वास के साथ की जा सकती है कि मानव इतिहास पर गांधी का प्रभाव स्टालिन या हिटलर से कहीं ज्यादा स्थायी होगा ।”
गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी गांधीवादी