मुग़ल वंश- शाहजहाँ
शाहजहाँ
- जन्म:-1592 लाहौर में
- माँ का नाम:-जगत गोसाईं
- विवाह:-1612 ई0 में आसफ खाँ की पुत्री अरजुमन्द बानो बेगम उर्फ मुमताज महल से। यह नूरजहाँ की भतीजी थी। मुमताज महल की उपाधि मलिका-ए-जमानी।
दक्षिण अभियान की सफलता के बाद 1617 में खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की गई। शाहजहाँ का राज्याभिषेक 1628 ई0 में आगरा में। राज्याभिषेक के बाद ’’अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद शाहिब किस ए सानी’’ की उपाधि धारण की।
Shah Jahan Major Revolt ( शाहजहाँ प्रमुख विद्रोह )
शाहजहाँ के समय के प्रमुख विद्रोह निम्नलिखित हैं-
1. बुन्देल खण्ड का विद्रोह (1628-36):- इस विद्रोह का नेतृत्व जूझार सिंह बुन्देला ने किया। औरंगजेब ने ही इस विद्रोह को दबाया।
2. खाने जहाँ लोदी का विद्रोह (1628 से 31)- खाने जहाँ लोदी अफगान सरदार था इसे मालवा की सूबेदारी दी गई थी परन्तु इसने विद्रोह कर दिया बाद में यह अहमद नगर के शासक मुर्तजा निजाम शाह के दरबार में पहुँचा।
शाहजहाँ के दक्षिण पहुँचने पर यह उत्तर पश्चिम भाग गया अन्त में बांदा जिले के सिहोदा नामक स्थान पर माधव सिंह द्वारा इसकी हत्या कर दी गई।
3. पुर्तगालियों से संघर्ष (1632):– पुर्तगालियों के बढ़ते प्रभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से 1632 ई0 में उसके महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र हुगली पर अधिकार कर लिया गया।
4. अहमद नगर की विजय (1633):- इस समय अहमद नगर का शासक मूर्तजा खाँ था। इस प्रकार शाहजहाँ के समय तक खानदेश बरार और अहमद नगर मुगलों के अधीन आ गया।
औरंगजेब को दक्षिण का सूबेदार बनाया गया। जहाँ वह 1636 से 44 के बीच आठ वर्षों तक रहा। उसने दक्षिण के प्रदेशों को चार सूबों में विभाजित किया। तथा इसकी राजधानी औरंगाबाद बनाई।
- खानदेश -राजधानी -बुरहानपुर
- बरार -राजधानी -एलिच पुर
- तेलंगाना -राजधानी -नान्देर
- अहमद नगर -राजधानी -अहमद नगर
औरंगजेब दुबारा दक्षिण का सूबेदार 1652 से 57 के बीच रहा तब उसने मुर्शीद कुली खाँ के सहयोग से एक नई भू-राजस्व व्यवस्था लागू की।
Shahjahan Important Events ( महत्वपूर्ण घटनायें ):-
- गोलकुण्डा के प्रधान मंत्री मीर जुमला जिसका वास्तविक नाम मुहम्मद सैय्यद था और जो एक पार्शी व्यापारी था ने शाहजहाँ को कोहिनूर हीरा भेंट किया।
- शाहजहाँ के समय में कान्धार हमेशा के लिए 1649 ई0 में मुगल साम्राज्य से निकल गया। इस समय यहाँ का शासक शाह अब्बास द्वितीय था।
- शाहजहाँ के समय में 1630-32 ई0 में दक्खन और गुजरात में अकाल पड़ा इसका वर्णन वर्नियर एवं पीटर मुंडी ने किया है। पीटर मुडी एक अंग्रेज व्यापारी था जो अकाल के समय आया था अकाल के बाद शाहजहाँ ने भू-राजस्व को कम कर दिया।
War of Succession ( उत्तराधिकार का युद्ध ):–
शाहजहाँ के कुल चार पुत्र थे- दारा, शुजा, औरंगजेब एवं मुराद, उसकी तीन पुत्रियां थी, जहाँआरा, रोशन आरा एवं गौहन आरा।
इस समय शुजा बंगाल का सूबेदार, औरंगजेब दक्षिण का सूबेदार और मुराद गुजरात का सूबेदार था। उसकी पुत्री जहाँआरा ने दारा का पक्ष लिया, रोशन आरा ने औरंगजेब का और गौहन आरा ने मुराद का।
उत्तराधिकार के महत्वपूर्ण युद्ध ( Shah Jahan War of Succession ) –
प्रथम युद्ध –बहादुरपुर में (24 फरवरी 1658) यह युद्ध शाहशुजा एवं दारा के लड़के शुलेमान शिकोह के बीच हुआ।
द्वितीय युद्ध-धरमत का युद्ध (25 अप्रैल 1658):- उज्जैन के पास यह युद्ध दारा द्वारा भेजी गई सेना (जसवंत सिंह एवं कासिम खाँ) एवं औरंगजेब तथा मुराद के मिली जुली सेना के बीच। इसमें औरंगजेब की विजय हुई। इस विजय के उपलक्ष्य में औरंगजेब ने फतेहाबाद नामक नगर की स्थापना की।
तीसरा युद्ध –सामूगढ़ का युद्ध-आगरा के पास (8 जून 1658):- दारा एवं औरंगजेब के बीच इस युद्ध में दारा की पराजय हुई यह एक निर्णायक युद्ध था इसी के बाद औरंगजेब ने 31 जुलाई 1658 को आगरा में अपना राज्याभिषेक किया।
चतुर्थ युद्ध-खजवा का युद्ध (1659):- इलाहाबाद के निकट औरंगजेब ने शुजा को पराजित किया।
पांचवा युद्ध-दौराई का युद्ध (अप्रैल 1659):- अजमेर के पास दारा अन्तिम रूप से पराजित।
जून 1659 में औरंगजेब ने दूसरी बार राज्याभिषेक दौराई के युद्ध में सफलता के बाद दिल्ली में किया।
Shahjahan Architecture ( शाहजहाँ स्थापत्य कला )
मुग़ल स्थापत्य कला के इतिहास में शाहजहाँ का शासन काल सर्वाधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस मुग़ल कालावधि में भारतीय वास्तुकला अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई।
शाहजहाँ के शासन काल को अगर स्वर्ण युग कह कर पुकारा जाता है तो इसमें उसके द्वारा निर्मित भवनों का सर्वाधिक योगदान है।
शाहजहाँ_को उसकी इसी कला के प्रति अगाध प्रेम होने के कारण निर्माताओं का राजकुमार कहा जाता है।
शाहजहाँ_की देख रेख और उसके संरक्षण में आगरा, लाहौर, दिल्ली, काबुल, कश्मीर, अजमेर, कंधार, अहमदाबाद आदि अनेक स्थानों में सफ़ेद संगमरमर के महल,मस्जिद,मंडप,मकबरें आदि का निर्माण किया गया।
शाहजहाँ_ने आगरा तथा लाहौर में अकबर के द्वारा लाल पत्थरों से निर्मित अनेक भवनों को नष्ट करवा कर उनके स्थान पर सफ़ेद संगमरमर के भवनों का निर्माण करवाया। आगरे के किले में सम्राट ने दीवाने आम, दीवाने खास, खास महल, शीश महल, मोती मस्जिद, मुसम्मन बुर्ज तथा अनेक बनावटों का निर्माण करवाया।
दीवाने खास की सुन्दरता इसमें दोहरे खम्भों और सजावटों के कारण है। मुस्समन बुर्ज किले की लम्बी चोड़ी दीवार पर अप्सरा कुञ्ज के सामान शोभायमान है। मोती मस्जिद की कारीगरी मुग़ल कालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है।
1638 ई. में दिल्ली में सम्राट ने एक नये दुर्ग का निर्माण करवाया जो दिल्ली के लाल किले के नाम से प्रसिद्ध है। उसके भीतर एक नगर बसाया गया जिसका नाम शाहजहांनाबाद रखा गया।
दिल्ली के लाल किले के भीतर सफ़ेद संगमरमर की सुंदर इमारतें बनवाई गयी जिनमे मोती महल, हीरा महल, रंग महल , दीवाने आम , दीवाने खास आदि उल्लेखनीय है।
लाल किले में शाहजहाँ ने संगीत भवन अनेक दफ्तर या बाज़ार भी बनवाये। हर महल के सामने फूलों की क्यारियां एवं फव्वारे निर्मित किये गए। जिस से उनकी सुन्दरता में चार चाँद लग गये।
सरे महल, जाली, खम्भों ,मेहराबों और चित्रों से सुसज्जित है। इन महलो के फर्श संगमरमर के बने हुए है। लाल किले में स्थित भवनों में रंग महल की शोभा अति न्यारी है। इसमें सुंदर फव्वारों की भी व्यवस्था की गयी। शाहजहाँ के द्वारा इसकी एक दीवार पर खुदवाया गया यह वाक्य ” अगर धरती पर कही स्वर्ग एवं आनंद है तो वह यहीं है”। बिलकुल सत्य प्रतीत होता है।
शाहजहाँ ने लाहौर के किले में 40 खम्भों का दीवाने आम, मुसलमान बुर्ज, शीश महल, ख्वाबगाह आदि का निर्माण करवाया। शाहजहाँ ने शाहजहांनाबाद में प्रसिद्ध जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। यह मस्जिद अपनी विशालता एवं सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। किन्तु कला की दृष्टि से उत्कृष्ट नही है।
शाहजहाँ द्वारा निर्मित ताजमहल सर्वाधिक विख्यात व महत्वपूर्ण समझा जाता है। कहा जाता है इसका निर्माण 1631 ई. से लेकर 1653 ई. तक हुआ। इस प्रकार ताजमहल निर्माण में 22 वर्ष व 9 करोड रूपये लगे। संभवत ताजमहल की योजना उस्ताद अहमद लाहोरी द्वारा तैयार की गयी तथा इसके निर्माण हेतु देश विदेश से कारीगर नियुक्त किये गए।
पर्सी ब्राउन के मत में ताजमहल का निर्माण प्रायः मुसलमान शिल्पकारो द्वारा ही हुआ था किन्तु इसकी चित्रकारी सामान्यत: हिन्दू कलाकारों के द्वारा की गयी थीऔर पित्रादुरा जैसी कठिन पच्चीकारी कन्नौज के हिन्दू कलाकारों को सौंपी गयी।
ताज की रूपरेखा प्रधान रूप से फ़ारसी ही है, किन्तु कुछ अंश में हिन्दू शिल्प कला तथा हिन्दू साजो सज्जा का सम्मिश्रण भी हम पाते है। फिर भी इसके डिजाइन को पूर्णत: मौलिक नहीं खा जा सकता। अनुमानत: यह बीजापुर के सुल्तानों के द्वारा निर्मित मकबरों एवं शेरशाह के मकबरे से बहुत अधिक प्रभावित है।
शाहजहाँ के समय चित्रकला ( Painting at Shahjahan )
शाहजहाँ के समय चित्रकला में वह सजीवता नहीं है जो जहाँगीर के समय थी। इसमें अलंकरण पर बहुत बल दिया गया है और रंगों के बदले सोने की सजावट पर अधिक बल दिया गया है और औरंगजेब के समय तो चित्रकला का अवसान ही हो गया।
Dara Shikoh ( दारा शिकोह ):-
उपाधि- शाहबुलन्द इकबाल
दारा शिकोह शाहजहाँ का सबसे योग्य पुत्र था। वह अरबी फारसी एवं संस्कृत का विद्वान था। वह कादरी उप नाम से कविता भी लिखता था।उसके पास चित्रों का एक मुरक्का (एलबम) था। उसकी दो पुस्तकें-
- शफीनात-अल-औलिया (यह सूफी सिद्धान्तों पर आधारित थी)
- मजमुल-बहरीन (इसका अर्थ है दो समुद्रों का मिलन)
यह हिन्दू और मुस्लिम दो धर्मों के मिलन से सम्बन्धित थी। इसके अतिरिक्त 52 उपनिषदों का अनुवाद सिर्र-ए- अकबर अथवा सिर्र-ए-असरार के नाम से किया गया। दारा शिकोह ने भगवत गीता एवं योग वशिष्ठ का भी फारसी में अनुवाद करवाया।
दौराई के युद्ध में औरंगजेब से पराजय के बाद यह उत्तर-पश्चिम भाग गया तथा एक अफगानी जीवन खाँ के यहाँ शरण ली। उसने धोखा देकर इसे बहादुर खाँ के हवाले कर दिया जो उसे दिल्ली ले जाकर औरंगजेब को सौंप दिया। औरंगजेब ने दारा पर इस्लाम धर्म की अवहेलना का आरोप लगाया। उसे गधे पर बिठाकर दिल्ली में घुमाया गया।
इस दृश्य का चश्मदीन गवाह बर्नीयर था। बाद में दारा को फाँसी दे गई। उसे हुमायूँ को कब्र के गुम्बज के नीचे एक तहखाने में गाड़ दिया गया।
औरंगजेब ने सितम्बर 1658 में शाहजहाँ को आगरे के किले में कैद कर दिया। जहाँ 1666 ई0 में 74 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई।शाहजहाँ जहाँगीर से अच्छा गायक था।
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