राजस्थान की हस्तशिल्प
हस्तशिल्प
मीनाकारी
मीनाकारी का कार्य सोने से निर्मित हल्के आभूषणों पर किया जाता है । मीनाकारी जयपुर के महाराजा मानसिंह प्रथम लाहौर से अपने साथ लाए । लाहौर में यह काम सिक्खों द्वारा किया जाता था । जहां फारस से मुगलों द्वारा लाया गया । मीनाकारी के कार्य की सर्वोत्तम कृतिया जयपुर में तैयार की जाती है । जयपुर में मीना का कार्य सोना चांदी और तांबे पर किया जाता है । लाल रंग बनाने में जयपुर के मीना कार कुशल है ।
प्रतापगढ़ की मीनाकारी थेवा कला कहलाती है । प्रतापगढ़ में कांच पर थेवा कला का कार्य किया जाता है। मीना का काम फाइनीशिया में सर्वप्रथम किया जाता था। कुदरत सिंह को पद्मश्री से अलंकृत किया गया है। मीना कार्य नाथद्वारा में भी किया जाता है । महेश सोनी, राम प्रसाद सोनी, रामविलास ,बेनीराम ,जगदीश सोनी ,को राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुके हैं ।
कागज़ जैसी पतली चद्दर पर मीना करने में बीकानेर के मीना कार सिद्धहस्त है । तांबे पर सफेद ,काला और गुलाबी रंग का काम ही होता है।पुराने मीना की कारीगरी अधिक मूल्यवान समझी जाती है।
ब्लू पॉटरी (Blue pottery)
चीनी मिट्टी के सफेद बर्तनों पर किए गए नीले रंग के अंकन को ब्लू पॉटरी के नाम से जाना जाता है जयपुर काम के लिए विश्व विख्यात है इसका आगमन पर्शिया(ईरान) से हुआ है इसको प्रारंभ मानसिंह प्रथम ने किया। सर्वाधिक विकास सवाई रामसिंह प्रथम के काल में हुआ था। राजस्थान में इस कला को सम्मान दिलाने और इसका प्रचार करने के लिए कृपाल सिंह शेखावत का नाम बहुत मान से लिया जाता है भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया है
मुगल बादशाहों के संबंध के कारण आगरा और दिल्ली से जयपुर लाया गया। मुगलों से पूर्व यह परंपरा चीन और फारस में थी। पालिशदान टाइलो का काम तुग़लक़ स्मारकों में चौदवहीं शती में पाया जाता है। जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह के समय दिल्ली बयाना और आगरा के पॉटरी का काम करने वाले चूड़ामन और कालूराम बयाना से आए थे।
जिन्हें यह काम भोला नामक दिल्ली के आदमी से महाराजा रामसिंह के समय में सिखलाया गया । कृपाल सिंह के अलावा स्वर्गीय नाथीबाई भी इस कारीगरी की विशेष जानकारी रखती थी। नोएडा और पिंक सिटी संस्थान भी उक्त कार्यक्रम करवाते हैं।
ब्लैक पॉटरी कोटा की प्रमुख प्रसिद्ध है सुनहरी पॉटरी बीकानेर की प्रमुख प्रसिद्ध है कागजी पॉटरी अलवर की प्रमुख प्रसिद्ध है
मूर्तिकला ( Sculpture)
राजस्थान अपने संगमरमर के लिए तो प्रसिद्ध है ही यहां अन्य कई तरह के पत्थरों की भी खूब सारी खानें है डूंगरपुर का हरा काला धौलपुर का लाल भरतपुर का गुलाबी मकराना का सफेद जोधपुर का बादामी जालौर का ग्रेनाइट कोटा का स्लेट पत्थर अपनी अलग पहचान रखते हैं
राजस्थान की राजधानी जयपुर अपनी मूर्ति कला के लिए विख्यात है की विशाल मूर्तियां बनती हैं तो कहीं पत्थर पर बारीक नकाशी कर जालियां झरोखे बनाए जाते हैं
टेराकोटा (मिट्टी के बर्तन एवं खिलौने) (Terracotta )
पकाई हुई मिट्टी से विभिन्न सजावटी व उपयोगी वस्तुओं का निर्माण टेराकोटा कहलाता है नाथद्वारा के पास मोलेला इस काम के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है मोलेला(राजसमंद), बनरावता(नागौर), महरोली(भरतपुर),बसवा(दौसा) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
मोलेला के कलाकार मिट्टी के साथ लगभग एक चौथाई अनुपात में गोबर मिलाकर जमीन पर थाप देते हैं फिर उसी पर हाथ हैं यहां बहुत साधारण उपकरणों से तरह-तरह की आकृतियां उकरते हैं इसे 1 सप्ताह तक सूखने देने के बाद 800 डिग्री ताप में पकाकर गेरुए रंग से रंग दिया जाता है इस तरह निर्मित वस्तुएं बहुत आकर्षक लगती है
कागजी टेरीकोटा अलवर की प्रमुख प्रसिद है। सुनहरी टेरीकाटा बीकानेर की प्रमुख प्रसिद्ध है।
रत्न और आभूषण (Gems & Jewelry)
मुगल और राजपूत हिंदू शासकों ने राजस्थान में रत्न और आभूषण निर्माण के विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जड़ाऊ गहनों के लिए जयपुर बीकानेर और उदयपुर विख्यात है जयपुर मूल्यवान पत्थरों के व्यापार का बहुत बड़ा केंद्र है
प्रतापगढ़ अपनी थेवा कला के लिए जाना जाता है
लाख का काम (Work of lakhs)
जयपुर और जोधपुर के बने आभूषणों विशेष रुप से चूड़ियों, कडो, पाटलों, सजावटी चीजें, खिलौने, मूर्तियां, हिंडोली, गुलदस्ते, गलेकाहार,अंगूठे के लिए प्रसिद्ध है लाख के काम का अर्थ है चपड़ी को पिघला कर उसमें चाक मिट्टी बिरोजा हल्दी मिलाकर उसे गुंथ लिया जाना और फिर उससे विभिन्न चीजें तैयार करना
लाख की चूड़ियों का काम जयपुर, करौली, हिंडोन में होता है । लाख के आभूषण खिलौना और कलात्मक वस्तुओं का काम उदयपुर में होता है । लाख से बनी चूड़ियां मोकड़ी कहलाती है । जयपुर के अयाज अहमद लाख के कार्य के लिए प्रसिद्ध है।
सवाई माधोपुर ,खेडला, लक्ष्मणगढ़ ,इंद्रगढ़ (कोटा), केसली में लकड़ी के खिलौने व अन्य वस्तुओं पर खराद से लाख का काम किया जाता है जो बहुत पक्का होता है।
कपड़े पर छपाई आदि का काम (Printing work)
बगरु, सांगानेर, बाड़मेर, पाली, बस्सी कपड़ों पर छपाई के लिए विशेष रुप से जाने जाते हैं सीकर, झुंझुनू आदि के आसपास की स्त्रियां लाल गोटे की ओढ़निया पर कसीदे से ऊंट, मोर, बैल, हाथी & घोड़े आदि बनाती हैं
शेखावाटी में अलग अलग रंग के कपड़ों को तरह-तरह के डिजाइन में काटकर कपड़ों पर सील दिया जाता है जिससे पैच वर्क कहा जाता है आरा तारी के काम के लिए सिरोही जिले की और गोटा किनारी के लिए उदयपुर जयपुर जिलों की बहुत प्रसिद्धि है
बंधेज के वस्त्र राज्य में कपड़ों की रंगाई का कार्य नीलगरो अथवा रंगरेजों द्वारा किया जाता है। बाड़मेर का अजरक प्रिंट, चित्तौड़ की जाजम छपाई राजस्थान का बंधेज या मोठडा अति विख्यात है । शेखावाटी व मारवाड़ का मोठड़ा बारीक और उत्तम माना जाता है।
जयपुर का लहरिया और पोमचा प्रसिद्ध है । अकोला की दाबू प्रिंट एवं बंधेज अद्वितीय है । जयपुर, उदयपुर में लाल रंग की ओढ़निया पर गोंद मिश्रित मिट्टी की छपाई की जाती है इसके बाद लकड़ी के छात्रों द्वारा सोने-चांदी के तबक की छपाई की जाती है ऐसी छपाई को खड्डी की छपाई कहते हैं । गोटे का काम जयपुर और बातिक का काम खंडेला में होता है।
टुकड़ी मारवाड़ी देसी कपड़ों में सर्वोत्तम गिनी जाती है। यह जालौर में मारोठ (नागौर )कस्बों में बनाई जाती है । शेखावाटी में नाना रंग के कपड़ों को विभिन्न डिजाइनों में काटकर कपड़े पर सिलाई की जाती है जिसे पेच वर्क कहते हैं । जरी का काम सूरत से महाराजा सवाई जयसिंह के समय जयपुर में लाया गया।
बगरू में दाबू का काम विशेष होता है । जो गहरे रंग पर किया जाता है। अनार के छिलके को पानी में उबालकर हल्दी मिलाने से हरा रंग बनता है । संगा देर में छपाई का कार्य प्रसिद्ध है । बूटो के कई प्रसिद्ध नाम भी है सौतन, गुलाब, हजारा का बूटा, लटक का बूटा ,बेरी का बूटा, धनिया, इलायची का बूटा इत्यादि। बगरू में महादेव, लक्ष्मीनारायण, सत्यनारायण, हनुमान सहाय धनोपिया प्रसिद्ध छापे है।
फड़ –
भीलवाड़ा जिले का शाहपुरा कस्बा राजस्थान की परंपरागत लोक चित्रकला के कारण राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है! 2006 में फड़ चित्रकार श्री लाल जोशी पदम श्री से नवाजे जा चुके हैं जोशी जी ने शाहपुरा की फड़ चित्रकला को वर्तमान में नई पहचान दी है मोटे सूती कपड़े (रेजा)पर गेहूं चावल के मांड में गोंद मिलाकर कलफ पर पांच या सात रंगों से बनी फड़ ग्रामीण के सरलतम विवरणात्मक क्रमबद्ध कथन का सुंदर प्रतीक है
रंगों का प्रतीकात्मक प्रयोग भावाभिव्यक्ति में सहायक देवियां नीली , देव लाल ,राक्षस काले,साधु सफेद या पीले रंग से बनाए जाते हैं सिंदूरी व लाल रंग शौर्य वीरता के धोतक है
पाने
राजस्थान में विभिन्न पर्व त्योहारों में मांगलिक अवसरों पर कागज पर बनी देवी देवताओं के चित्रों को प्रतिस्थापित किया जाता है जिन्हें पाने कहा जाता है दीपावली पर लक्ष्मी जी का पाना प्रयोग में लाया जाता है पानों में गुलाबी लाल काले रंग का मुख्यता प्रयोग किया जाता है
काष्ठ कला व बेवाण
राजस्थान में खाती है सुथार जाति के लोग लकड़ी का कार्य करने में सिद्धहस्त होते हैं चित्तौड़ जिले का बस्सी गांव लकड़ी की कलात्मक वस्तुओं के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है बस्सी मोर चोपड़ा बाजोट गणगौर हिंडोला एवं लोकनाट्य में प्रयुक्त विभिन्न वस्तुएं विमान व कावड़ (मंदिर नुमा आकार) का निर्माण के लिए प्रसिद्ध है
Imp- बस्सी के काष्ट कलाकार बेवाण बनाने में भी निपुण है
सांझी सांझी श्राद्ध पक्ष में बनाई जाती है कुंवारी लड़कियां सफेदी से पुति दीवारों पर गोबर से आकार उकेरती है तथा सांझी को माता पार्वती मानकर अच्छे घर ,वर के लिए कामना करती हैं
गलीचे व दरिया
जयपुर गलीचे के काम के लिए प्रसिद्ध है। बीकानेर जेल का गलीचा का कार्य सर्वाधिक सुंदर माना जाता था । सामान्य तौर पर बुनगट में एक चौकोर इंच में 140 गाँठे गलीचे में लगाई जाती है । इससे अधिक होने पर गलीचे की बनावट उत्कृष्ट समझी जाती है । 1 इंच में 180 गांठ तक भी हो सकती है।
गलीचे का काम जयपुर ब्यावर किशनगढ़ टोंक मालपुरा केकड़ी भीलवाड़ा कोटा सभी जगह होता है । राजकीय संग्रहालय जयपुर में इराक के शाह अब्बास द्वारा मिर्जा राजा जयसिंह को भेंट स्वरूप दिया गया गलीचा जिसमें बगीचा बना हुआ है संसार के अद्वितीय गलीचों में से है
आजकल दरियों का प्रचलन बढ़ गया है । दरियो में धागा 20 प्लाई का बढ़िया समझा जाता है। दरिया टोंक जोधपुर नागौर बाड़मेर भीलवाड़ा शाहपुरा केकड़ी मालपुरा आदि स्थानों पर बनाई जाती है।
कपड़े की बुनाई
- ऊनी कंबल –इरानी एवं भारतीय पद्धति के कालीन जयपुर, बाड़मेर, बीकानेर ,जोधपुर, अजमेर के प्रमुख प्रसिद्ध है
- वियना व फारसी गलीचे – बीकानेर के प्रमुख प्रसिद है
- नमदे – टोंक, बीकानेर के प्रमुख प्रसिद्ध है
- लोई – नापासर(बीकानेर) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- कोटा डोरिया – कैथून(कोटा) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- मसूरिया – कैथून(कोटा), मांगरोल(बांरा) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- खेसले – लेटा(जालौर), मेड़ता(नागौर) के प्रमुख प्रसिद्ध है।
- दरियां – जयपुर, अजमेर, लवाणा(दौसा), सालावास(जोधपुर), टांकला(नागौर) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
पीतल हस्तकला
पीतल की खुदाई, घिसाई एवं पेटिंग्स – जयपुर, अलवर की प्रमुख प्रसिद्ध है। बादला जोधपुर का प्रमुख प्रसिद्ध है। मरुस्थल मे पानी को ठण्डा रखने के लिए इस जस्ते से निर्मित बर्तन का निर्माण किया जाता है।
चमड़ा हस्तकला
- नागरी एवं मोजडि़या जयपुर, जोधपुर की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- बिनोटा – दुल्हा- दुल्हन की जुतियां को कहा जाता है।
- कशीदावाली जुतियां – भीनमाल (जालौर) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
लकड़ी हस्तकला
- काष्ठकला – जेढाना(डूंगरपुर), बस्सी(चित्तौड़गढ़), की प्रमुख प्रसिद्ध है ।
- बाजोट – चौकी को कहते हैं।
- कठपुतलियां – उदयपुर की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- लकड़ी के खिलौने – मेड़ता(नागौर) के प्रमुख प्रसिद्ध है।
- लकड़ी की गणगौर, बाजोट, कावड़, चौपडा – बस्सी(चित्तौड़गढ़) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
कागज हस्तकला
- कागज बनाने की कला – सांगानेर, स. माधोपुर की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- पेपर मेसी(कुट्टी मिट्टी) – जयपुर की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- कागज की लुग्दी, कुट्टी, मुल्तानी मिट्टी एवं गोंद के पेस्ट से वस्तएं बनाना।
तलवार
- सिरोही, अलवर, अदयपुर की प्रमुख प्रसिद्ध है।
तीर कमान
- चन्दूजी का गढ़ा(बांसवाड़ा) की प्रमुख प्रसिद्ध है।
- बोड़ीगामा(डूंगरपुर) की भी प्रसिद्ध है।
कोफ्तगिरी
कोफ्तगिरी का काम दमिश्क से पंजाब में लाया गया और वहां से गुजरात और राजस्थान में लाया गया। फौलाद की बनी वस्तुओं का यह काम सोने के पतले तारों की जड़ाई द्वारा किया जाता है ।
तहनिशा
तहनीशा के काम में डिजाइन को गहरा खोदा जाता है और उस खुदाई में पतला तार भर दिया जाता है । यह काम कीमती और टिकाऊ होता है । अलवर के तलवार साज यह काम अच्छा करते हैं । उदयपुर में भी यह काम सीकलीगर अच्छा करते हैं। धातु के काम की रामायण व महाभारत विषयक बहुत बड़े आकार की ढालें अति महत्वपूर्ण है जो नंदलाल मिस्त्री द्वारा 1882 में बनाई गई।
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