उपयोगितावाद
उपयोगितावाद
सुखवाद ( Suicidal )
सुख प्राप्ति से तात्पर्य किसी भी कर्म / नियम को अपनाने के स्वरूप व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होनी चाहिए दार्शनिक जे एस मिल सुख तथा आनंद को एक ही अर्थ में प्रयुक्त करता हैं अपिक्युरस शारीरिक तथा मानसिक कष्टो के अभाव को सुख कहता है
सिजविक सुख को एक मानसिक अनुभूति मानता है ऐसी अनुभूति जिसकी हमको इच्छा करनी चाहिए
सुखवाद दो प्रकार का होता हैं :-
- नेतिक सुखवाद
- मनोवेज्ञानिक सुखवाद
1. नेतिक सुखवाद :- यह दो प्रकार का होता है
(अ) स्वार्थमूलक
(ब) परार्थ/ सरवार्थ मूलक :- इसे उपयोगितावाद भी कहते है
नोट:- नैतिक सुखवाद में चाहिये शब्द की व्याख्या होती हैं
इसके अनुसार सुख परम् साध्य है और हमे समस्त कर्म सुख प्राप्ति के लिए करने चाहिये
2 मनोवेज्ञानिक सुखवाद :- यह ‘है’ शब्द की व्याख्या करता है
इसके अनुसार व्यक्ति अपने स्वभाव, गुण, और प्रवर्तीयो से सुख प्राप्ति की इच्छा करता है
नोट :- सरवार्थ(परार्थ) मुलक नैतिक सुखवाद ही उपयोगितावाद कहलाता है
उपयोगितावाद ( Utilitarianism )
तात्पर्य :- किसी भी कर्म अथवा नियम को अपनाने के परिणाम स्वरूप अधिकतम व्यक्तियो को अधिकतम सुख की प्राप्ति होनी चाहिए
कर्म सम्बंधी उपयोगितावाद – करने योग्य बहुत से कर्मो में से उसी कर्म का महत्व है जिसे करके अधिकतम व्यक्तियो को अधिकतम सुख की प्राप्ति होती है यह नैतिक नियमो को लेश मात्र भी महत्व नही देता
नियम सम्बंधी उपयोगितावाद :- इसमे केवल नैतिक नियमो को महत्व दिया जाता है जैसे- सत्य बोलना
सुखमूलक उपयोगितावाद – समर्थक बेन्थम, जे एस मिल, सिजविक
इसके अंतर्गत केवल सुखो के औचित्य को महत्व दिया जाता है
आदर्श मूलक उपयोगितावाद :- समर्थक हेनरी रेशगेल
इसके अनुसार केवल सुख ही जीवन का मापदण्ड नही है अपितु ज्ञान, चरित्र, जीवन की श्रेष्ठता, सदगुण आदि भी इसमे शामिल है
बेन्थम का उपयोगितावाद ( Utilitarianism of bentham )
1. सुखमूलक उपयोगितावाद – बेन्थम के अनुसार किसी भी कर्म अथवा नियम को अपनाने के परिणामस्वरूप अधिकतम व्यक्तियो को अधिकतम सुख की प्राप्ति होनी चाहिए
2. मनोवैज्ञानिक सुखवाद – बेन्थम के शब्दों में प्रकृति ने मनुष्य को सुख तथा दुःख दो शक्तियो के अधीन किया है व्यक्ति अपने स्वभाव से सुख की इच्छा करता ह और दुःख से निवर्ति की कामना करता है
3. सुखो में केवल मात्रात्मक (परिमाणात्मक) भेद :- बेन्थम गुण की द्रष्टी से सभी सुखो को एक समान मानता ह किन्तु मात्रा अथवा परिमाण की दृष्टि से उनमे भेद स्वीकार करता है
4. सुखकलन का सिद्धान्त :- सुखो के मध्य परिमाण को मापने के लिए बेन्थम सुखकलन का सिद्धान्त प्रतिपादित करता है सुखकलन में सात मापदण्ड है :- अवधि, तीव्रता, निश्चितता, निकटता, विशुद्धता, उत्पादकता, और व्यापकता
नोट:- व्यापकता का मापदण्ड बेन्थम को स्वार्थमूलक सुखवाद की अपेक्षा सरवार्थमूलक (उपयोगितावाद) की और ले जाता है
5. नैतिकता के पालन में चार बाह्यिय अथवा भौतिक दबाव :-
अ) भौतिक दबाव :- शारीरिक सुरक्षा से सम्बंदित
ब) राजनेतिक दबाव – कानून से सम्बंधित
स) सामाजिक दबाव – समाज के नियमो से सम्बंधित
द) धार्मिक दबाव – ईश्वर के नियमो से सम्बंधित
जे एस मिल का उपयोगितावाद ( JIS Mill’s Utilitarianism )
1. सुखमूलक उपयोगिता :- जिसके अनुसार कर्म अथवा नियम को अपनाने के परिणाम स्वरूप अधिकतम व्यक्तियो को अधिकतम सुख की प्राप्ति होनी चाहिए
2. नैतिक सुखवाद की व्याख्या मनोवैज्ञानिक सुखवाद के आधार पर :- मिल के अनुसार श्रवणिय शब्द का अर्थ ह वास्तव में उसे लोग सुनते है दर्शनीय शब्द का अर्थ है – वास्तव में लोग उसे देखते है
वांछनीय शब्द का अर्थ है :- की वास्तव में लोग उसकी इच्छा करते है या रखते है
3. सुखो के मध्य परिमाण ( मात्रात्मक) के साथ – साथ गुणात्मक भेद भी :- जे एस मिल परिमाणात्मक भेद के साथ साथ सुखो के मध्य गुणात्मक भेद भी स्वीकार करता है
4. इंद्रियपरक भौतिक सुख की अपेक्षा बौद्धिक सुख अधिक श्रेष्ठ होता है :- मिल के शब्दों में एक सन्तुष्ट शुकर (सूअर) होने की अपेक्षा असन्तुष्ट मनुष्य होना अधिक अच्छा है एक सन्तुष्ट पागल होने की अपेक्षा असन्तुष्ट सुकरात होना अधिक अच्छा है अर्थात इंद्रियपरक भौतिक सुख की अपेक्षा बौद्धिक सुख अधिक श्रेष्ट होता है
5. नैतिकता के पालन में पाँच दबाव :-
अ) भौतिक दबाव
ब) राजनैतिक दबाव
स) सामाजिक दबाव
द) धार्मिक दबाव
य) आंतरिक दबाव :- इसे मिल अंतरात्मा की आवाज कहता है
नोट :- उपरोक्त पाँच दबावों में बेन्थम और मिल के चार दबाव समान है
6. न्याय की व्याख्या :-
मिल के अनुसार व्यक्तित्व का सम्मान ही न्याय है मिल के शब्दों में जो व्यवहार आप दुसरो के द्वारा अपने प्रति चाहते है वही व्यवहार अपने पड़ोसियों से कीजिये अर्थात हमे सभी के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिये
बेन्थम और मिल में अंतर
- बेन्थम स्थूल सुखवादी है जबकि मिल परिष्कृत सुखवादी ह
- बेन्थम सुखो में केवल मात्रात्मक ( परिमाणात्मक) भेद स्वीकार करता है जबकि मिल मात्रात्मक के साथ साथ गुणात्मक भेद भी स्वीकार करता है
- बेन्थम नैतिकता के चार दबाव स्वीकार करता है जबकि। मिल पाँच दबाव स्वीकार करता है
सुखवाद का विरोधाभाष
प्रतिपादक :- सिजविक
इनके अनुसार व्यक्ति वास्तव में सुख की इच्छा नही करता है अपितु वस्तु की इच्छा करता है अर्थात भूख लगने पर भोजन की इच्छा की जाती ह उससे प्राप्त होने वाले सुख अथवा आनंद की नही सुख को प्राप्त करने के लिए सुख को भूलना ही अत्यंत आवश्यक हैं
Utilitarianism ( उपयोगितावाद ) important facts-
1- उपयोगितावाद के अनुसार अपराधी को जो दंड दिया जाता है वह वैसा अपराध करने वालों को रोकता है
2- अपराध विज्ञान कहता है मानसिक अथवा शारीरिक विकार के कारण व्यक्ति स्वता ही अपराध हो जाते हैं
3- फ्राइड का मानना है मानव मन के अचेतन भाग में दबी हुई इच्छाओं के कारण अपराध होते हैं
4- प्रतिकार वाद का सिद्धांत का आधार है – न्याय
5- स्वतंत्रता वाद के अनुसार कर्म का दायित्व करता पर होता है क्योंकि कर्म करने के लिए स्वतंत्र होता है
6- मनुष्य स्वतंत्र होने के लिए अभिशप्त है –
7- सुखवाद का आदि संस्थापक कौन था – हेराक्लीटस
8-नैतिक सुखवाद के कितने प्रकार हैं – 4
9-सभी सुखी हों सभी निरोगी हो सभी शुभ दर्शन करें और कोई दुखी ना हो यह शांति पाठ किस वेद में उद्धृत है -यजुर्वेद
10- सब पदार्थ संख्या मात्र है एवं संगीत मानसिक दोष को दूर करने का साधन है -पाइथोगोरस।